बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
समकालीन भारतीय समाज के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सम्पूर्ण बालकों को एक समान शिक्षा प्रदान करना जरूरी है। समावेशी शिक्षा द्वारा समाज के उन वर्गों की शिक्षा व विकास पर विचार किया गया है जो पहले इससे वंचित रहे हैं या जिनकी आवश्यकताओं की अनदेखी की गई है। इसके द्वारा विकलांग बच्चों के व्यक्तिगत, सामाजिक तथा भावी रोजगार में बच्चों की पूरी क्षमता का विकास करने तथा अवसर देने की आवश्यकता को पूरा किया जाता है।
इसके माध्यम से निर्धन बच्चे जो मुख्य धारा में नहीं थे अथवा मुख्य धारा से हट गए हैं उन्हें शिक्षा द्वारा मुख्य धारा में लाया जा सकता है। जिनकी सीखने की गति कम है उन्हें आसानी से सिखाया जा सकता है। इस शिक्षा प्रणाली से विशेष बच्चों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनके विकास पर ध्यान दिया जाता है। समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों इस प्रकार हैं—
1. शिक्षा का अधिकार - शिक्षा, का अधिकार प्रत्येक बच्चे का संवैधानिक अधिकार है। समावेशी शिक्षा, शिक्षा के अधिकार को प्राप्त करने के लिए एक सहायक प्रयास है। इसका मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को चाहे वह मानसिक, सामाजिक, शारीरिक, संवेगात्मक रूप से कमजोर हों, उन्हें एक समान व सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा प्रदान करना व बच्चे के अधिकार का सम्मान करना समावेशी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।
2. विभिन्न क्षमताओं की पहचान - प्रत्येक बच्चे में कुछ विशेष योग्यताएँ होती हैं। कई बालक यदि शिक्षा के क्षेत्र में कमजोर हैं तो हो सकता है कि वह किसी दूसरे क्षेत्र में प्रतिभावान हों। कई शोध व अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि मानसिक मंदता वाले बच्चों में किसी न किसी प्रकार की कला व सृजनशीलता होती है। ऐसे बच्चों को "Savage Genius" कहा जाता है। इस प्रकार इन बच्चों की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें अपनी क्षमताओं के विकास का अवसर देना आवश्यक होता है।
ऐसे बच्चे संगीत, कला, वादन, चित्रकला, पेंटिंग आदि क्षेत्रों में अधिक सृजनशील होते हैं। समावेशी शिक्षा के उद्देश्य इन बच्चों की विशिष्ट क्षमताओं को पहचान कर उनका विकास करना है।
3. सभी को शिक्षा का समान अवसर - समावेशी शिक्षा किसी वर्ग या समूह विशेष के लिए नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य बालकों को समान शिक्षा प्रदान करना है। समावेशी शिक्षा की शिक्षण रणनीति, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, प्रविधि को इस प्रकार लचीलापन बनाया गया है कि शिक्षा से कोई भी बच्चा वंचित न रह जाए।
इस शिक्षा का केन्द्र बालक को माना गया है। शिक्षा प्रदान करने में बालकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर समान अवसर प्रदान किया जाता है। इससे पहले विशिष्ट बालकों के लिए पृथक विद्यालयों को स्थापित करने का विचार था, जिससे कारण माता-पिता को इन बच्चों को शारीरिक, मानसिक व सामाजिक रूप से अलग ही रखना पड़ता था।
विशिष्ट विद्यालयों में प्रवेश व अन्य सुविधाओं के अभाव के कारण ये बच्चे शिक्षा का लाभ नहीं उठा पा रहे थे। लेकिन वर्तमान में समावेशी शिक्षा के प्रावधान के अन्तर्गत सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के अवसर प्रदान करती है।
4. सामाजिकरण की भावना का विकास - पहले विद्यालयों में निर्धनतावश वाले बच्चों को पृथक शिक्षण कराया जाता था तथा इनके लिए पृथक विद्यालय खोले गए। इस पृथक्करण के कारण ये बच्चे सामाजिक रूप से भी पृथक होने लगे। उनमें हीनता की भावना आनी लगी। समावेशी शिक्षा में सभी बच्चे एक साथ मिलकर सामाजिक रूप से अध्ययन करते हैं...
5. असहाय व बाधित बालकों की क्षमताओं का विकास - इस प्रकार के बालक भी समाज के अंग हैं। उनमें भी अपनी योग्यता व कौशल पाए जाते हैं। समावेशी शिक्षा के माध्यम से इन बच्चों की क्षमता व योग्यता का विकास किया जा सकता है। असहाय बालक असहाय नहीं होते बल्कि उनको प्रेरित व विकास के अवसर प्रदान किए जाएं। आवश्यक है कि उन्हें समाज के अन्य बालकों के साथ पूर्ण रूप से स्वीकार करने का समर्थन किया जाना चाहिए।
इन बच्चों को दया की आवश्यकता नहीं है बल्कि कार्य एवं सम्मान की आवश्यकता होती है। समावेशी शिक्षा इन बच्चों को विकास के अवसर प्रदान करती है। इसका उद्देश्य असहाय व बाधित बालकों की प्रतिभा व क्षमता का विकास करना व प्रदर्शित करना है जिससे वे भावी जीवन में दूसरों पर निर्भर न रहकर आत्मनिर्भर बन सकें।
6. आत्मविश्वास व आत्मसम्मान का विकास करना - कोई भी व्यक्ति यदि शिक्षित है तो उसमें आत्मविश्वास दिखाई देता है। कोई भी शैक्षिक उपलब्धि या शिक्षा बालक में आत्म विश्वास पैदा करती है। जब व्यक्ति आत्मविश्वासी होता है तो उसके बाद वह आत्म सम्मान के लिए कार्य करता है और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रयास करता है।
शिक्षा बालक में आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास व आत्मसम्मान की भावना का विकास करती है। समावेशी शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को आत्मविश्वासी व आत्मनिर्भर बनाना है।
7. चुनौतियों के लिए तैयार करना - समावेशी शिक्षा स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। सभी बच्चों को एक कक्षा में एक ही स्तर के नीचे एक समान शिक्षा प्रदान करना वास्तव में एक कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य है।
समावेशी शिक्षा का प्रत्येक उद्देश्य बालकों को शिक्षा के अधिकार हेतु इस उद्देश्य के तहत चलती है कि प्रत्येक बालक की उसकी क्षमताओं के ध्यान में रखकर शिक्षित किया जाए तथा उसे भावी जीवन की चुनौतियों को सामना करने योग्य बनाया जाए।
8. असमर्थता से सामर्थ्य की ओर ले जाना - समावेशी शिक्षा में असमर्थ बालकों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षा प्रदान की जाती है। ऐसे बच्चे जब सामान्य बच्चों के साथ मिलकर कार्य करते हैं तो इनकी क्षमता का विकास होता है, वे अन्य बच्चों को देखकर कार्य करने की प्रेरणा लेते हैं।
इस शिक्षा का उद्देश्य ऐसे बच्चों की क्षमताओं का विकास करना तथा उनमें सहयोग की भावना का संचार करना है।
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