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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- भारतीय शैक्षिक व्यवस्था में समावेशन पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -
भारतीय शैक्षिक व्यवस्था में समावेशन का अर्थ है—

  • शिक्षा में सभी लोगों की भागीदारी बनाना ताकि उनके अनुपातों के बावजूद बच्चों को शिक्षा में समान अवसर प्रदान किए जा सकें।

समावेशी शिक्षा व समावेशी शिक्षण कार्य बालकों को सशक्त करते हुए, उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बालकों के बौद्धिक, संवेदनात्मक एवं सृजनात्मक विकास के अतिरिक्त सीखने-सिखाने तथा समाजकरण का एक अनूठा प्रयास है।

समावेशन मुख्य रूप से तीन तत्वों पर आधारित है—

1. शिक्षा का अधिकार - संविधान के 86वें संशोधन के अनुसार शिक्षा एक मौलिक अधिकार बन गया है।

  • अब कोई भी विद्यालय, जाति, धर्म, लिंग अथवा अक्षमता के आधार पर किसी बालक को विद्यालय में दाखिला लेने से वंचित नहीं कर सकता।
  • दायित्व के रूप में यह समझा जा सकता है कि प्रत्येक स्कूल वास्तव में जातीय, सांस्कृतिक, सामाजिक-आर्थिक स्तर, लिंग, क्षमता एवं ज्ञानात्मक रूपाकलन के अंतर को ध्यान में रखकर सभी बालकों को इच्छित शिक्षा ग्रहण करने का समान अवसर दे।

इस तथ्य को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत राष्ट्रीय नीति में यह रूप में स्वीकार किया गया है कि—

  • असमर्थ बालकों के लिए अर्थ या हीनभावना बालकों पर लागू नहीं होनी चाहिए।
  • समावेशन दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण आवश्यकता इस बात की है कि इन बालकों को सामान्य रूप से शिक्षा दी जाए।

2. शिक्षा की प्रक्रिया - गुणात्मक शिक्षा के अनुसार अब विशेष बल दिया जाने लगा है कि शिक्षा का समावेश केवल सरकारी या गैर-सरकारी संगठनों से ही नहीं, बल्कि समाज से भी हो।

गुणात्मक शिक्षा का अभियान केवल उच्च शैक्षिक निम्नताओं से नहीं, बल्कि इसका समावेश मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य, पोषण स्तर, संवेदनात्मक स्तर एवं सम्प्रेषण, पारिवारिक एवं सामाजिक समझ, व्यावसायिक अपेक्षाओं एवं व्यक्तिगत सम्मान भावों से भी है।

3. शिक्षा में प्रवृत्ति - समावेशी शिक्षा शैक्षिक एकीकरण प्रयासों का एक रूप है। समावेशी शिक्षा के प्रावधान का नवीनतम कानूनी निर्माण एवं व्यावहारिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप प्राप्त तो कर लिया गया है, लेकिन इसे अभी लागू करना शेष है।  इसकी सफलता के लिए समावेशी शिक्षा के कार्यक्रमों में अभी पर्याप्त परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।

अभी भी शिक्षकों का अपने विद्यालयों पर विशेष प्रभाव है। शिक्षकों के माध्यम से समावेशी शिक्षा की सफलता को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। शिक्षकों को अपने शिक्षण-पद्धतियों में बालकों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना होगा। उनके विकास के सुनिश्चित अवसर देने होंगे।

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