|
बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
||||||
बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- परिवार की शिक्षा में भूमिका को स्पष्ट करें व टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
समावेशी शिक्षा प्रदान करने में माता-पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। परिवार बालकों की शिक्षा में अनेक प्रकार से सहायता करते हैं। उनका सकारात्मक योगदान सदैव महत्वपूर्ण होता है। विशेषकर बालकों की शिक्षा की अत्यंत कठिन प्रक्रिया को विद्यालय व माता-पिता के सहयोग के बिना नहीं किया जा सकता है। इसमें परिवार की सक्रियता व संतुलनता अति महत्वपूर्ण होती है। परिवार की संतुलनता व सहभागिता में वृद्धि करने के कुछ बिंदु इस प्रकार हैं -
- माता-पिता को बालक सम्बन्धी सूचनाओं से अवगत कराया जाए।
- अभिभावकों, माता-पिता के लिए बैठक, सम्मेलनों का आयोजन किया जाए।
- बालकों की उपलब्धियों की सूचना माता-पिता को दी जाए।
- बालकों की समस्याओं के सम्बन्ध में माता-पिता से जानकारी ली जाए।
- बालकों के शारीरिक एवं मानसिक स्थिति की जानकारी माता-पिता को दी जाए।
- बालकों की प्रति मानसिकतावादी, सामाजिकता तथा विविध सेवाओं की सूचना दी जाए।
- विद्यालय में माता-पिता के विचारों को महत्व दिया जाए।
- नियमित रूप से अभिभावकों/माता-पिता से संपर्क बनाकर बच्चों के जानकारी लेना।
- माता-पिता को सम्बंधितों के प्रति संवेदनशील रहना।
- बालकों के हितानुकूल शिक्षण उद्देश्य निर्धारित करना व माता-पिता की सलाह लेना।
- समय-समय पर बालकों की उपलब्धि व व्यवहार सुधार सम्बन्धी सूचनाएँ माता-पिता को देना।
- माता-पिता को विद्यालय के लिए समुदाय एवं समाज द्वारा की गई क्रियाओं को सीखने एवं समझने के लिए प्रोत्साहित करना।
इस प्रकार स्पष्ट है कि परिवार बालक के जीवन की प्रथम पाठशाला होती है और माता-पिता ही उसके प्रथम शिक्षक होते हैं। बालक के जीवन निर्माण एवं उसकी शिक्षा में माता-पिता की भूमिका अहम होती है। बालक की सीखने की प्रक्रिया व सामाजिकरण की प्रक्रिया से ही प्रारंभ होती है। यदि असमर्थ व बाधित बालकों की शिक्षा का प्रश्न हो तो परिवार की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। माता-पिता का यह उत्तरदायित्व बन जाता है कि इन बालकों को स्वीकार करें व इनके लिए घर में स्वस्थ वातावरण प्रस्तुत करें। इन बच्चों की शैक्षिक व अन्य आवश्यकताओं का ध्यान रखें। यदि इन बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो तो माता-पिता शिक्षण कार्यक्रमों में सम्मिलित हों व समावेशी शिक्षा प्रदान करने में आसानी होगी। इन बच्चों की क्षमता का विकास होगा, जिससे वे आत्मनिर्भर होकर अपना जीवन सुख से व्यतीत कर सकेंगे।
|
|||||










