बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन
प्रश्न- भारत में राष्ट्रीय विस्तारप्रणाली की रूपरेखा को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर -
भारत में ग्रामीण संरचना अत्यन्त ही शाश्वत रही है। भारत में शासन की एक इकाई के रूप में ग्रामपंचायत का विशेष महत्व रहा है तथा यहाँ पर यह परम्परा वैदिक काल से चली आ रही है। महाभारत में मौर्यकाल में शुक- नीतिसागर में इसका विस्तृत रूप से वर्णन देखने को मिलता है। इतिहास के द्वारा देखा जा सकता है कि भारतीय ग्रामीण सामाजिक संरचना अत्यन्त ही सम्पन्न थी, इसको अपने कार्यों के लिए नगरों की तरफ नहीं जाना पड़ता था। छठी शताब्दी के बाद युद्धों व राजनैतिक अस्थिरता में अत्यधिक वृद्धि हो जाने के कारण सभी शासक ग्रामीण विकास की तरफ उदासीन हो गए। ब्रिटिश काल में तो गाँवो की सम्पूर्ण सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था जमींदारों के शोषण का शिकार बन गयी जिसके फलस्वरूप गाँवों में शैक्षिक वातावरण समाप्त हो गया तथा अंधविश्वास और रूढ़िवादिता ने शिक्षा की जगह ले ली। भारत में अकाल, सूखा और महामारी की स्थितियों ने गाँवों के जीवन को और ज्यादा दयनीय बना दिया। अकाल की स्थिति बार-बार आने पर 19वीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटिश सरकार को गाँवों की तरफ ध्यान देना पड़ा। गाँवों के विकास के लिए भूमि विकास ऋण अधिनियम, सहकारी साख समिति अधिनियम (1904), सहकारी अधिनियम (1912) प्रमुख थे।
भारत में जैसे-जैसे स्वतन्त्रता आन्दोलन की जड़ें मजबूत होती गयी वैसे-वैसे भारतीय सामाजिक जीवन में परिवर्तन आता गया। समाज सुधारकों के प्रयासों के फलस्वरूप कुछ अधिनियम पारित किए गए-
1. राजा राममोहन राय की प्रेरणा से सती प्रथा निषेध अधिनियम (1929)
2. आर्य समाज द्वारा प्रस्तावित हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम ( 1856)
3. हिन्दू स्त्रियों का सम्पत्ति पर अधिकार अधिनियम (1933)
4. बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929)
5. विशेष विवाह अधिनियम 1872, 1923 1924
6. छुआछूत अभिशाप अधिनियम (1955)
7. दहेज निरोधक अधिनियम (1961)
इन अधिनियमों से पूरे समाज का उत्थान सम्भव नहीं था, इसलिए समस्त ग्राम के विकास के उत्थान के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए -
1. श्रीनिकेतन योजना - इस योजना की पहल रवीन्द्र नाथ टैगोर के द्वारा की गयी थी। उन्होंने कालीग्राम परगना में युवकों का एक संगठन बनाकर आस-पास के गाँवो में विकास कार्य प्रारम्भ किया। एल्महर्स्ट के सहयोग से सन् 1921 में श्रीनिकेतन के रूरल रिकनस्ट्रक्शन इंस्टिटूट की स्थापना की। इस प्रोजेक्ट के द्वारा उन्होंने आठ गाँवों को केन्द्र बनाकर कार्य करना प्रारम्भ किया। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य था- युवकों के द्वारा ग्रामीणों का विश्वास प्राप्त करना तथा संगठन के सदस्यों के द्वारा ग्रामीणों की समस्याओं को हल करने में सहायता करवाना।
2. गुड़गाँव प्रोजेक्ट - यह प्रोजेक्ट पंजाब के गुड़गाँव नामक जिले में तत्कालीन कलक्टर श्री एफ. एल. ब्रेयन के द्वारा शुभारम्भ किया गया। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत सन् 1920 में की गयी थी। सरकारी स्तर पर किया जाने वाला यह पहला प्रयास था। इस प्रोजेक्ट के द्वारा प्रत्येक गाँव में एक विलेज गाइड की नियुक्ति की गयी, ये विलेज गाइड ग्रामीण तथा विशेषज्ञों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता था। विलेज गाइड के माध्यम से ही ग्रामीणों को उन्नत ढंग से खेती करना, अच्छे बीजों का प्रयोग करना, नए औजार तथा उपकरणों का प्रयोग करना, विकसित तकनीकों के माध्यम से खेती करना आदि जानकारियाँ पहुँचायी जाती थीं। गुड़गाँव प्रोजेक्ट के द्वारा ही सर्वप्रथम माइक्रोफोन, फिल्म प्रोजेक्टर, मैजिक लैन्टर्न जैसे संचार साधनों का प्रयोग किया गया तथा लोक नाटक, लोक गीत, नृत्य नाटिका जैसे परम्परागत लोक प्रसार माध्यमों का प्रयोग किया गया। आज हम इन संचार साधनों के बिना प्रसार शिक्षण की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। यह प्रोजेक्ट ग्रामीण पुनर्निर्माण हेतु एक महत्वपूर्ण कदम था। इस प्रोटेजेक्ट के द्वारा स्त्री शिक्षा और बच्चों के शिक्षण की भी व्यवस्था की गयी थी, इसमें रात्रि पाठशालाएँ, स्त्रियों के लिए विशेष कक्षाएँ, बच्चों के लिए प्राइमरी स्कूल आदि की व्यवस्था की गयी थी।
3. महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रम - सत्याग्रह आश्रम, साबरमती तथा सेवाग्राम, वर्धा - भारत की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है इसलिए महात्मा गाँधी जी ने ग्रामीण पुनर्निर्माण पर बल दिया, उनका ऐसा मानना था कि भारत को बचाने के लिए पहले गाँवों को बचाना होगा। गाँवों की उन्नति से ही भारत की उन्नति हो सकती है। सन् 1920 में गाँधी जी ने वर्धा (सेवाग्राम) की स्थापना की तथा उन्होंने इसको अपने रचनात्मक कार्यक्रम का केन्द्र बनाया। गाँधी जी ने यह अनुभव किया कि भारतवासियों का विदेशी शासकों के द्वारा दोतरफा शोषण हो रहा है पहला सामाजिक तथा आर्थिक रूप से दूसरा उन्हें दूसरे दर्जे के नागरिक का स्थान दिया जा रहा था। इसलिए गाँधी जी ने एक वृहत रचनात्मक कार्यक्रम बनाया, जिसके द्वारा उन्होंने नैतिक, सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक विकास और शोषण के विरूद्ध तो बाते की ही, साथ ही इन्हीं परिवर्तनों के साथ पूर्ण स्वराज्य की घोषणा भी की।
4. मारथन्डम प्रोजेक्ट - यह प्रोजेक्ट सन् 1928 में डा. स्पेन्सर हेय द्वारा 'यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन' (YMCA) के द्वारा ग्रामोत्थान की एक अराजकीय योजना आरम्भ की गयी। डा. स्पेन्सर हेय एक कृषि विशेषज्ञ थे। इसलिए वह ग्रमीण समस्याओं, ग्रामीण कार्यक्रमों और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के लिए वे उत्साही थे। यह प्रोजेक्ट केरल की राजधानी थिरुअनन्तपुरम से लगभग तीस किलोमीटर दक्षिण अवस्थित मारथन्डम में शुरू की गयी। इस प्रोजेक्ट के द्वारा पाँच सूत्री कार्यक्रम प्रतिपादित किए गए -
1. आध्यात्मिक विकास
2. मानसिक विकास
3. शारीरिक विकास
4. सामाजिक विकास
5. आर्थिक विकास।
मारथन्डम प्रोजेक्ट के द्वारा ग्रामीणों के सर्वतोन्मुखी विकास के बारे में सोचा गया। मारथन्डम प्रोजेक्ट एक सुव्यवस्थित संगठन एवं कुशल नेतृत्व के संरक्षण में एक अत्यन्त ही गतिशील कार्यक्रम रहा है। इसमें सुनियोजित तरीके से ग्राम स्तर पर, क्षेत्रीय स्तर पर तथा केन्द्र स्तर पर कार्य किए जाते थे। ग्राम्य स्तर पर YMCA के कर्मचारी तथा गाँव के व्यक्ति कार्य करते थे।
5. इण्डियन विलेज सर्विस (Indian Village Service) - इण्डियन विलेज सर्विस का आरम्भ सन् 1908 में हुआ था। बी. एन गुप्ता नाम के भारतीय व्यापारी जो अमेरिका में थे उनके ही प्रयास से सन् 1945 में इस कार्यक्रम का अनुमोदन हुआ। अमेरिका में उस समय मेथोडिस्ट तथा प्रेस्बिटेरियन गिरजाघरों के माध्यम से अनेक योजनाएँ चलती थीं तथा इन कार्यक्रमों के द्वारा ग्रामीण जीवन का उत्तरोत्तर विकास हो रहा था। बी.एन. गुप्ता जी इन कार्यक्रमों से अत्यधिक प्रभावित हुए तथा उन्होंने मेथोडिस्ट एवं प्रेस्बिटेरियन गिरजाघरों के संगठनों से आग्रह किया कि ऐसी ग्रामीण कल्याणकारी योजनाएँ वह भारत में भी चलाएँ। इनके सहयोग से ही एक समिति बनी तथा इस कार्यक्रम का अनुमोदन किया गया। इस कार्यक्रम के लक्ष्य निम्नलिखित थे -
1. ग्राम्य जीवन के प्रति ग्रामीणों में रूचि पैदा करना।
2. ग्रामीणों को जागरूक बनाना, जिससे वे अपनी समस्याओं का समाधान कर सकें।
3. ग्रामीण विकास योजनाओं की सम्भावना बढ़ाना।
4. ग्रामीणों को प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण के द्वारा शिक्षित करना।
5. शहरों में रहने वालों को ग्रामोत्थान के लिए प्रेरित करना।
6. राजकीय स्तर पर चलायी जाने वाली ग्रामीण विकास योजनाओं में सहयोग प्रदान करना।
6. इटावा पायलट प्रोजेक्ट - इस प्रोजेक्ट को उत्तर प्रदेश के इटावा में सन् 1948 में आरम्भ किया गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् यह पहला कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम का आयोजक अमेरिकी कृषि विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल एलबर्ट मेयर को बनाया गया। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य था - भविष्य की ग्रामीण विकास योजनाओं की सम्भावनाओं का पता लगाना तथा मार्गदर्शन करना। इस उन्नत पद्धति के द्वारा खेती, पशुपालन, साक्षरता, कुटीर उद्योगों के विकास पर बल दिया गया।
7. सर्वोदय - यह गाँधीवाद का रचनात्मक विस्तार था। गाँधी जी ने वृहद रचनात्मक कार्यक्रम तैयार किया था, इसी की एक कड़ी के रूप में सर्वोदय कार्यक्रम बना। इस कार्यक्रम में आचार्य विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, काकाकालेकर, शंकरादेव, दादाधर्माधिकारी आदि लोगों ने इस कार्यक्रम को गतिशीलता दी। सर्वोदय नाम का अनुवाद रस्किन की पुस्तक 'अन्टू दिस लास्ट का गुजराती भाषा से मिला। इस कार्यक्रम का लक्ष्य था उन मानवीय मूल्यों की स्थापना करना जो सार्वभौमिक, सर्वव्यापक एवं सार्वकालिक हो। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था सभी लोगों का कल्याण करना चाहे वह निर्धन हो, अक्षम हो या कमजोर हो।
भारत में प्रसार कार्य के कुछ अन्य भी निम्नलिखित प्रयास किए गए -
1. फेड्रिक निकल्सन का सहकारी आन्दोलन
2. सर्वेन्ट्स ऑफ इंडियन सोसायटी, पूना
3. ईसाई मिशनरियों का योगदान
4. सर डेनियन हेमिल्टन की ग्रामीण पुनर्निर्माण योजना
5. ग्रो मोर फूड कैम्पन
6. आदर्श सेवा संघ, पोहरी ( ग्वालियर )।
इस तरह से भारत में प्रसार कार्य की शुरूआत हुयी तथा इन प्रयासों के द्वारा ही आज भारत में गाँवों की उन्नति के लिए इतने वृहद स्तर से कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
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