बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन
प्रश्न- स्वयं सहायता समूह पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
स्वयं सहायता समूह -
स्वयं सहायता समूह क्या है स्वयं सहायता समूह महिलाओं के सशक्तीकरण का माध्यम बन गए हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्र में यह महिलाओं को सशक्त और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए एक कारगर माध्यम हैं। इन्हें निम्न प्रकार जाना जा सकता है-
(1) स्वयं सहायता समूह समान आर्थिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि वाले 10-20 सदस्यों का एक स्वैच्छिक समूह है।
(2) सभी सदस्य नियमित रूप से अपनी आमदनी से थोड़ी-थोड़ी बचत करते हैं।
(3) व्यक्तिगत राशि को सामूहिक विधि में योगदान के लिए परस्पर सहमत रहते हैं।
(4) सामूहिक निर्णय लेते हैं।
(5) सामूहिक निर्णय द्वारा आपसी मतभेद का समाधान करते हैं।
(6) समूह द्वारा तय किये गये नियमों एवं शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराते हैं।
स्वयं सहायता समूह का निर्माण - स्वयं सहायता समूह का निर्माण करने के लिए समन्वयक को निम्न कार्य करने होते हैं
(1) समन्वयक को गाँव में जाकर लोगों से घर-घर जाकर बात करनी होती है।
(2) समन्वयक को उन्हें समझदारी से रुपये खर्च करने और बचत करने तथा स्वयं सहायता समूह बनाने के लाभ के बारे में समझाना होता है।
(3) समन्वयक प्रारम्भिक अवस्था में स्वयं सहायता समूह की एक या दो बैठकें आयोजित करने में मार्गदर्शन करते हैं।
(4) समन्वयक स्वयं सहायता समूह के नेता के चयन, धनराशि के संग्रह तथा समूह का खाता व्यवस्थित करने में भी समूह का मार्गदर्शन करते हैं।
(5) समन्वयक नेता को सिखाते हैं कि वह किस प्रकार समूह के सदस्यों में एकता बनाए रखे। समूह के सदस्यों को नियमित बचत करने के लिए भी समन्वयक प्रोत्साहित करता है।
(6) समूह की बैठक करवाने में, समूह का बैंक में खाता खुलवाने में मदद करना भी समन्वयक का ही कार्य है।
स्वयं सहायता समूह बनाने में कौन मदद कर सकता है
(1) कोई भी स्थानीय पढ़ा लिखा व्यक्ति जो रिटायर्ड स्कूल टीचर हो या समाजसेवी हो। युवा वर्ग में भी समाज सेवा करने वाले युवक गरीबों के समुदाय के सदस्यों का स्वयं सहायता समूह बनाने में मदद कर सकता है। व्यक्ति सहायक प्रवृत्ति का होना चाहिए तथा उसकी समाज में अच्छी छवि होनी चाहिए।
(2) NGO का फील्ड वर्कर भी स्वयं सहायता समूह बनाने में मदद कर सकता है। अगर NGO कार्यकर्ता पहले से ही उस क्षेत्र में किसी प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है, तो उसे समूह बनाने में कोई मुश्किल नहीं आएगी। यदि महिलाओं का समूह बनाना है तो महिला कार्यकर्ता का होना बहुत जरूरी है।
NGO कार्यकर्ता यदि क्षेत्र में नया हैं तो उसे उस क्षेत्र में जाकर लोगों की गरीबी के कारणों का, वहाँ की क्षेत्रीय समस्याओं का पता लगाकर गाँव के मुखिया के साथ क्षेत्र के लोगों की मीटिंग करवानी चाहिए। उनके बच्चों की पढ़ाई तथा स्वास्थ्य के मुद्दे पर बातचीत करनी चाहिए। फिर जब वह उनमें घुल-मिल जाए तो तीन-चार मीटिंग्स के बाद समूह निर्माण की बात करनी चाहिए। समूह बनाने के क्या फायदे हैं, छोटी-छोटी बचत से कैसे वे खुद का व अपने परिवार का कल्याण कर सकते/सकती हैं। उन्हें यह सब उदाहरण सहित बताएँ। शुरुआत में उन्हें बैंक लोन के बारे में नहीं बताना चाहिए।
(3) को ऑपरेटिव बैंक या उस क्षेत्र के कोई भी सरकारी या प्राइवेट बैंक के बैंक कर्मी भी गरीबों को स्वयं सहायता समूह बनाने में मदद कर सकते हैं।
स्वयं सहायता समूह बनाने में मदद करने वाले NGO कार्यकर्ता को समन्वयक कहते समन्वयक अकेले ही स्वयं सहायता समूह नहीं बना सकते। उन्हें समुचित प्रशिक्षण, प्रशिक्षण सामग्री तथा पाठ्य सामग्री की आवश्यकता होती है। ये प्रशिक्षण तथा सम्बन्धित सामग्री अग्रलिखित संस्थाएँ उपलब्ध कराती हैं-
(1) NGO
(2) राज्य सरकार का डेवलेपमेंट डिपार्टमेंट
(3) बैंक की लोकल ब्रांच
स्वयं सहायता समूह के निर्माण की मुख्य बातें -
(1) समूह का आकार समूह का आकार दस सदस्यों, पंद्रह सदस्यों या बीस सदस्यों का होता है। बीस से अधिक सदस्य नहीं हो सकते।
(2) परिवार का एक सदस्य स्वयं सहायता समूह में शामिल हो। समूह या तो सिर्फ महिलाओं का हो या सिर्फ पुरुषों का। सभी सदस्यों की सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि एक ही होनी चाहिए।
(3) समूह के सदस्यों की रहने की तथा जीवन बसर करने की सामान्य दशाएँ दयनीय हो।
(4) समूह की मीटिंग महीने में एक बार निश्चित दिन, स्थान तथा समय पर अवश्य होनी चाहिए। सभी सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिए।
(5) स्वयं सहायता समूह के धनराशि के लेनदेन का रिकार्ड रखने के लिए एकाउंट बुक बहुत ही सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
स्वयं सहायता समूह के मुख्य कार्य स्वयं सहायता समूह पाँच मुख्य सिद्धांत, जिन्हें पंचसूत्र कहते हैं, के नियम का अनुसरण करता है। ये पाँच सिद्धांत हैं-
(A) नियमित बैठकें
(B) नियमित बचत
(C) समूह के भीतर ही समूह के सदस्यों को ऋण देना
(D) समूह से जो ऋण किसी सदस्य ने लिया है, उसकी किश्तें नियमित रूप से समूह के खाते में जमा कराना
(E) बुक कीपिंग।
निष्कर्ष - स्वयं सहायता समूह धीरे-धीरे अपनी कार्यविधियों में विस्तार पाकर आत्मनिर्भर और समुदाय के प्रबंधक बन कर उभरते हैं। स्वयं सहायता समूह गरीबों को अपनी आवाज बुलंद करने के लिए और आजीविका के साधन बढ़ाने के लिए कई अवसर देते हैं। समूह से जुड़ते ही गरीबों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्थिक सहायता हेतु बाहरी एजेंसियों पर निर्भरता खत्म होती है। स्वयं सहायता समूह बंधुत्व तथा भ्रातत्व भावना के आधार पर बचत और ऋण अपने सदस्यों को उपलब्ध करवाता है। एकजुटता व संगठन शक्ति ही इसका उद्घोष है। स्वयं सहायता समूह कई प्रकार की आर्थिक सहायता तथा स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, रोजगार आदि और भी कई सामाजिक कल्याण के कार्यों पर सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करवाते हैं।
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