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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2695
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन

प्रश्न- प्रसार शिक्षा का क्षेत्र समझाइए।

उत्तर -

प्रसार शिक्षा का क्षेत्र
(Scope of Extension Education)

प्रसार शिक्षा, शिक्षा का प्रसार अर्थात् फैलाव इसके अर्थ से ही समझा जा सकता है कि प्रसार शिक्षा का क्षेत्र कितना व्यापक है। प्रसार शिक्षा से हमारे जीवन का कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। इसके क्षेत्र में वे सब बातें आती हैं जिनका सम्बन्ध हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी से होता है। हमारे प्रतिदिन के जीवन की हर छोटी बड़ी सामान्य, विशिष्ट समस्याओं का निदान प्रसार शिक्षा का क्षेत्र है। प्रसार शिक्षा मनुष्य का व्यक्तिगत विकास उसके परिवेश का सुधार विकास, मनुष्य के विकास कार्य से जुड़ी संस्थाओं के विकास कार्य तक प्रसार शिक्षा का क्षेत्र फैला है। भारत की 3/4 आबादी गाँवों में रहती है अतः प्रसार शिक्षा का प्रमुख कार्यक्षेत्र भारतीय गाँव हैं। ग्रामीण क्षेत्रों का विकास, कृषि का विकास, गाँव में पनपने वाले उद्योग-धन्धों का विकास ताकि उनके विकास से ग्रामीणों का आर्थिक विकास हो सके रहन-सहन का स्तर उन्नत हो सके। ग्रामीण जीवन से जुड़ी समस्याओं का वैज्ञानिक निदान जो उन्हें जड़ से दूर कर सके खोजकर ग्राम वासियों तक पहुँचाना प्रसार शिक्षा का व्यावहारिक पक्ष है। लोगों को साक्षर बनाना उसका सैद्धान्तिक पक्ष है।

प्रसार शिक्षा कार्यक्रम की सफलता इसमें है कि ग्रामीण अपने धन्धों में उत्पादन बढ़ाकर अपने आर्थिक स्तर में सुधार ला सकें। प्रसार शिक्षा हमारे ग्राम्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी है। हमारे राष्ट्र की तीन चौथाई आबादी गाँवों में रहती है तो प्रसार शिक्षा क्षेत्र की व्यापकता क्या होगी इसकी कल्पना की जा सकती है।

'सूपे के अनुसार - "प्रसार शिक्षा के अन्तर्गत वे समस्त क्रियाएँ आती हैं जो ग्रामवासियों के विकास की दिशा में की जाती है।"

भटनागर के अनुसार - "इसका सम्बन्ध प्रौढ़ों जैसे—कृषकों तथा गृहस्वामी को अंक, अक्षर, भाषा, व्याकरण की नहीं बल्कि अच्छी फसल, उत्पादन बढ़ाने, उच्च नस्ल के पशु, अच्छे फल देने वाले पेड़ों को प्राप्त करने गृह प्रबन्ध कुशलतापूर्वक करने, वैज्ञानिक तरीके दृष्टिकोण से बच्चों का पालन-पोषण करने परिवार की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की देखभाल करने के सम्बन्ध में शिक्षित करने से होता है।"

प्रसार शिक्षा के क्षेत्र के सन्दर्भ में उपर्युक्त दोनों विशेषज्ञों के विचारों का विश्लेषण किया जाये तो यह स्पष्ट होता है कि प्रसार शिक्षा की परिधि में ग्रामीण लोग एवं प्रौढ़ लोग दोनों ही आ जाते हैं। चूँकि प्रौढ़ के अन्तर्गत शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही आते हैं, अतः प्रसार शिक्षा ग्रामीण एवं नगरीय दोनों ही क्षेत्रों से जुड़ा है। इस प्रकार, कोई भी ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह चाहे वह ग्रामीण क्षेत्र का निवासी हो या शहरी क्षेत्र का, प्रसार शिक्षा के कार्यक्षेत्र में आ जाते हंऐ और अगर इसमें उसकी रुचि हो तो इससे वह लाभान्वित हो सकता है।

प्रसार शिक्षा ग्रामीणों के कल्याण को ध्यान में रखकर इनके दैनिक जीवन से जुड़ी हर बात को अपने क्षेत्र में समेट लेती है। यह किसी एक पक्ष के विकास में आस्था नहीं रखती है बल्कि उनके समग्र विकास (integrated development) में विश्वास लेकर काम करती है। प्रसार शिक्षा का प्रारम्भ कृषि के क्षेत्र में ही हुआ है, क्योंकि कृषि ग्रामीण क्षेत्र का मुख्य जीविकोपार्जन का साधन है। इसलिए प्रसार शिक्षा में कृषि को उन्नत करने के लिए उसके सभी पक्षों को लिया गया है। जैसे कृषि से सम्बन्धित नयी ज्ञान, पद्धति, नयी तकनीकी, मिट्टी, भूमि, पानी, बीज खाद तथा कृषि यन्त्र आदि। वैसे तो अब प्रसार शिक्षा सभी ऐसे क्षेत्रों में काम करती है जो ग्रामीण जीवन से जुड़े हैं। जैसे- पशुपालन, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण आदि। परन्तु कृषि प्रसार शिक्षा के पूर्ण रूप से स्थापित हो जाने के बाद सबसे पहले प्रसार शिक्षा को गृह विज्ञान के क्षेत्र में ही लागू किया गया।

प्रसार शिक्षा के क्षेत्र को सही ढंग से समझने के लिए इसे तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -

(1) मनुष्य के विकास का क्षेत्र - मनुष्य के विकास का एक पक्ष नहीं है। मनुष्य के विकास में उसका आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक विकास आता है। आज मनुष्य के विकास में सबसे बड़ी रुकावट उसका निरक्षर होना है। भारतवर्ष आज विज्ञान में दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है पर उसका ज्ञान उसके अपने नागरिक ही नहीं उठा पा रहे हैं। आज भी भारत में निरक्षरों का प्रतिशत अधिक है। आज भी हमारे गाँवों की जनता निरक्षर है जिसका सीधा प्रभाव उनके रोज के जीवन पर पड़ता है। निरक्षर होने के कारण उसे आधुनिक जानकारियाँ प्राप्त करने के लिये दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। वह अनेक उन जानकारियों से वंचित रह जाता है जो उसके विकास में सहायक होती हैं। प्रसार शिक्षा के अन्तर्गत प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम मनुष्य को साक्षर करने की जिम्मेदारी पूरी करता है।

मनुष्य के विकास का दूसरा प्रमुख पहलू है आर्थिक विकास। आर्थिक सम्पन्नता दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ आत्मविश्वास भी देती है। आर्थिक विकास मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर निर्भर है। भारत के गाँवों में प्रमुख धन्धा खेती है। इसके अतिरिक्त कृषि से जुड़े अन्य धन्धे हैं। इन धन्धों के विकास हेतु जानकारी प्रसार शिक्षा गाँवों तक पहुँचाती है जैसे—भूमि की उर्वरता कैसे बढ़ायें? अच्छे उत्तम बीजों का चुनाव, उत्पादित फसल का संरक्षण, फसल को कीड़ों, बीमारियों से बचाना, जानवरों की देखभाल। इन सब सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये धन तथा अन्य साधनों की व्यवस्था करने का तरीका बताया जाता है। इन समस्त जानकारी को लोगों तक पहुँचाने में आज संचार माध्यम प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

मनुष्य के विकास के क्षेत्र में प्रसार शिक्षा को अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिये प्रसार शिक्षा के कार्यकर्त्ताओं तथा संचार माध्यमों की सहायता से निम्न क्रियाएँ करनी होंगी -

(a) मनुष्य के लिये उसके व्यवसाय से सम्बन्धी ज्ञान देने की व्यवस्था हो।
(b) शिक्षा देने के लिये साधनों की, व्यवसाय उन्नत करने के साधनों की व्यवस्था हो।
(c) रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त हों ताकि आर्थिक विकास हो।
(d) नये उपयोगी रोजगार प्रारम्भ किये जायें।
(e) शिक्षा का प्रसार कर मनुष्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण वैज्ञानिक सोच विकसित की जाये।
(f) सही गलत में चुनाव करने की क्षमता विकसित की जाये।

(2) मनुष्य के वातावरण परिवेश के विकास का क्षेत्र - सामाजिक प्राणी होने के कारण व्यक्ति अपने वातावरण से अनेक रूप से जुड़ा रहता है। व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उस वातावरण या परिवेश पर निश्चित रूप से आश्रित होता है जिसमें वह रहता है क्योंकि दैनिक जीवन की सुविधाएँ अथवा असुविधाएँ उनसे जुड़ी रहती हैं। यातायात की सुविधा, शिक्षण व्यवस्था, बच्चों की शिक्षा तथा पालन-पोषण सम्बन्धी सुविधाएँ, खाद्य आपूर्ति, जन स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएँ अस्पताल चिकित्सा व्यवस्था, पेयजल, स्वच्छता एवं कूड़ा-करकट निवारण की समुचित व्यवस्था जैसी बातों का प्रभाव व्यक्ति के दैनिक जीवन पर पड़ता है। व्यक्ति को दैनिक जीवन से जुड़ी समस्याओं से प्रतिदिन जूझना पड़ता है तो वह अपने व्यावसायिक कर्त्तव्यों के प्रति उदासीन हो जाता है। व्यक्ति की कार्य शक्ति व उसके निजी साधनों के समुचित उपयोग . के निमित्त यह आवश्यक है कि उस वातावरण या परिवेश का विकास किया जाये जिसमें वह रहता है। सुविधा सम्पन्न वातावरण मानव विकास की व्यापक गति को तीव्र करने में सहायक है। इस सन्दर्भ में प्रसार शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक और विस्तृत रूप ले लेता है। उपर्युक्त सुविधाओं को उपलब्ध कराने के साथ सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक एवं ऋण सुविधाएँ, बैंक सेवाएँ, बीजों व उर्वरकों की उपलब्धि, ग्रामीण व्यवसायों तथा उद्योगों से सम्बन्धित प्रशिक्षण कार्यक्रम व्यवस्था, ग्रामीण उत्पादन की समुचित विक्रय व्यवस्था आदि का समुचित विक्रय व्यवस्था आदि का समुचित प्रबन्ध इसमें सम्मिलित किया जाता है।, मानव जीवन को परिवार, समुदाय, समाज जैसे अनेक सामाजिक तत्व प्रभावित करते हैं। मानव विकास में इनका योगदान अत्यन्त सकारात्मक होता है। सामान्यतः समुन्नत परिवार, समुदाय और समाज से सम्बन्धित व्यक्ति प्रगति पथ पर सरलता से बढ़ता है जबकि पिछड़ेपन से ग्रसित वातावरण में रहने वाले व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए अत्यन्त संघर्ष की आवश्यकता होती है। जब पूरा परिवार अथवा समाज आस-पास हो रहे परिवर्तनों के प्रति सजग रहता है और उन्हें स्वतः स्वाभाविक रूप से ग्रहण करना पसन्द करता है तब विकास अपेक्षाकृत सहज होता है। परिवर्तनों और विकास के सम्बन्ध में वैयक्तिक प्रयास की अपेक्षा सामूहिक प्रयास अधिक सुदृढ़ होते हैं और विकास की गति तीव्र होती है।

(3) मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति के लिये निर्मित संस्थाओं तथा साधनों के विकास का क्षेत्र - मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न संस्थाओं तथा साधनों का विकास करता है। इसके माध्यम से ही व्यक्ति अपने विकासोन्मुख उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल होता है। मनुष्य द्वारा निर्माण की गयी संस्थाएँ ठीक प्रकार से कार्य करें इसके लिए आवश्यक है कि-

(a) कार्य करने वाली संस्थाओं का अध्ययन हो और उसमें जो त्रुटि हो उन्हें दूर किया जाये।
(b) कार्य करने वाली संस्थाएँ बनायी जाये तथा कार्य करने की पद्धति तथा उद्देश्य में समुचित परिवर्तन हो।
(c) साधन चाहे प्रत्यक्ष हो अथवा अप्रत्यक्ष, मानवीय हो अथवा अमानवीय, सामाजिक हो अथवा तकनीकी, सभी को पहचान कर उनका समुचित मूल्यांकन करके उनको विकसित करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए।

उपरोक्त आधार पर कहा जा सकता है कि प्रसार के कार्यक्षेत्र में वे समस्त कार्य जो जनता के जीवन में उन्नति लाने के लिए किये जायें सम्मिलित किये जाते हैं। परन्तु "विशिष्ट रूप से प्रसार के कार्य क्षेत्र में वही कार्य किये जाते हैं। जो जनता के साधनों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए जनता द्वारा पूरे किये जाते हैं।"जो कार्य जनता के द्वारा पूरे नहीं किये जा सकते और सरकार द्वारा पूरे किये जाते हैं प्रसार के कार्य क्षेत्र में नहीं आते। इसलिए प्रसार कार्य क्षेत्र प्रत्येक देश में जनता के साधनों, आवश्यकताओं और कार्य करने की क्षमता में परिवर्तन होने के कारण अलग-अलग होता है।

तात्पर्य यह है कि प्रसार शिक्षा के क्षेत्र के अन्तर्गत वे सभी क्रिया-कलाप सम्मिलित हैं जो ग्रामीण विकास से सम्बन्धित हैं। तकनीकी विकास के साथ निरन्तर हो रहे परिवर्तनों को ध्यान में रखकर प्रसार कार्यक्रम तैयार किये जाने चाहिए। इन कार्यक्रमों में विशेष महत्व कृषि उत्पादनों को दिया जाना चाहिए। उत्पादनों के विक्रय और वितरण की सही व्यवस्था होनी भी आवश्यक है। कार्य सम्पादन में प्राकृतिक, स्थानीय, मानवीय तथा अन्य साधनों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इनकी सुरक्षा और विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना भी आवश्यक है। इसके लिए परिवार के सभी सदस्यों के हित की रक्षा करना प्रसार कार्य का अभिन्न अंग है। इस बात पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए कि युवा शक्ति का दुरुपयोग न हो। युवाओं के सहयोग से सहकारी और सामुदायिक कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सहायता मिलती है। उपयुक्त नेतृत्व द्वारा किसी भी कार्यक्रम को सरलतापूर्वक निपटाया जा सकता है।

इस प्रकार प्रसार शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। ग्रामीण विकास से सम्बन्धित सभी पक्षों से इसका सम्बन्ध है। ग्रामीण विकास की कल्पना प्रसार शिक्षा के अभाव में नहीं की जा सकती।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रसार शिक्षा से आप क्या समझते हैं? प्रसार शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रसार शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  3. प्रश्न- प्रसार शिक्षा का क्षेत्र समझाइए।
  4. प्रश्न- प्रसार शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  5. प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा से आप क्या समझते हैं? गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा का क्षेत्र समझाइये।
  6. प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के उद्देश्यों का विस्तार से वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा की विशेषताएँ समझाइये।
  8. प्रश्न- ग्रामीण विकास में गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा का महत्व समझाइये।
  9. प्रश्न- प्रसार शिक्षा, शिक्षण पद्धतियों को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्वों का वर्णन करो।
  10. प्रश्न- प्रसार कार्यकर्त्ता की भूमिका तथा गुणों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- दृश्य-श्रव्य साधन क्या हैं? प्रसार शिक्षा में दृश्य-श्रव्य साधन की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- सीखने और प्रशिक्षण की विधियाँ बताइए। प्रसार शिक्षण सीखने और प्रशिक्षण की कितनी विधियाँ हैं?
  13. प्रश्न- अधिगम या सीखने की प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका बताइये।
  14. प्रश्न- अधिगम की परिभाषा देते हुए प्रसार अधिगम का महत्व बताइए।
  15. प्रश्न- प्रशिक्षण के प्रकार बताइए।
  16. प्रश्न- प्रसार कार्यकर्त्ता के प्रमुख गुण (विशेषताएँ) बताइये।
  17. प्रश्न- दृश्य-श्रव्य साधनों के उद्देश्य बताइये।
  18. प्रश्न- प्रसार शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  19. प्रश्न- प्रसार शिक्षा के मूल तत्व बताओं।
  20. प्रश्न- प्रसार शिक्षा के अर्थ एवं आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- श्रव्य दृश्य साधन क्या होते हैं? इनकी सीमाएँ बताइए।
  22. प्रश्न- चार्ट और पोस्टर में अन्तर बताइए।
  23. प्रश्न- शिक्षण अधिगम अथवा सीखने और प्रशिक्षण की प्रक्रिया को समझाइए।
  24. प्रश्न- सीखने की विधियाँ बताइए।
  25. प्रश्न- समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) कार्यक्रम को विस्तार से समझाइए।
  26. प्रश्न- महिला सशक्तिकरण से आपका क्या तात्पर्य है? भारत में महिला सशक्तिकरण हेतु क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
  27. प्रश्न- स्वच्छ भारत अभियान की विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए। इस अभियान के उद्देश्यों का उल्लेख करें।
  28. प्रश्न- 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- उज्जवला योजना पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- स्वच्छ भारत अभियान घर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- भारत में राष्ट्रीय विस्तारप्रणाली की रूपरेखा को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  33. प्रश्न- स्वयं सहायता समूह पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना का उद्देश्य बताइये।
  35. प्रश्न- स्वच्छ भारत अभियान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- उज्जवला योजना के उद्देश्य बताइये।
  37. प्रश्न- नारी शक्ति पुरस्कार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- प्रधानमंत्री मातृ वन्दना योजना क्या है? इसके लाभ बताइए।
  42. प्रश्न- श्रीनिकेतन कार्यक्रम के लक्ष्य क्या-क्या थे? संक्षिप्त में समझाइए।
  43. प्रश्न- भारत में प्रसार शिक्षा का विस्तार किस प्रकार हुआ? संक्षिप्त में बताइए।
  44. प्रश्न- महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रम के लक्ष्य क्या-क्या थे?
  45. प्रश्न- सेवा (SEWA) के कार्यों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- कल्याणकारी कार्यक्रम का अर्थ बताइये। ग्रामीण महिलाओं और बच्चों के लिए बनाये गए कल्याणकारी कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- सामुदायिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामुदायिक विकास कार्यक्रम की विशेषताएँ बताइये।
  48. प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना का क्षेत्र एवं उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्यों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  50. प्रश्न- सामुदायिक विकास एवं प्रसार शिक्षा के अन्तर्सम्बन्ध की चर्चा कीजिए।
  51. प्रश्न- सामुदायिक विकास की विधियों को समझाइये।
  52. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यकर्त्ता की विशेषताएँ एवं कार्य समझाइये।
  53. प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना संगठन को विस्तार से समझाइए।
  54. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम को परिभाषित कीजिए एवं उसके सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- समुदाय के प्रकार बताइए।
  56. प्रश्न- सामुदायिक विकास की विशेषताएँ बताओ।
  57. प्रश्न- सामुदायिक विकास के मूल तत्व क्या हैं?
  58. प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना के अन्तर्गत ग्राम कल्याण हेतु कौन से कार्यक्रम चलाने की व्यवस्था है?
  59. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम की सफलता हेतु सुझाव दीजिए।
  60. प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना की विशेषताएँ बताओ।
  61. प्रश्न- सामुदायिक विकास के सिद्धान्त बताओ।
  62. प्रश्न- सामुदायिक संगठन की आवश्यकता क्यों है?
  63. प्रश्न- कार्यक्रम नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  64. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है?
  65. प्रश्न- प्रसार प्रबन्धन की परिभाषा, प्रकृति, सिद्धान्त, कार्य क्षेत्र और आवश्यकता बताइए।
  66. प्रश्न- नेतृत्व क्या है? नेतृत्व की परिभाषाएँ दीजिए।
  67. प्रश्न- नेतृत्व के प्रकार बताइए। एक नेता में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
  68. प्रश्न- प्रबंध के कार्यों को संक्षेप में समझाइए।
  69. प्रश्न- प्रसार शिक्षा या विस्तार शिक्षा (Extension education) से आप क्या समझते है, समझाइए।
  70. प्रश्न- प्रसार शिक्षा व प्रबंधन का सम्बन्ध बताइये।
  71. प्रश्न- विस्तार प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- विस्तार प्रबन्धन की विशेषताओं को संक्षिप्त में समझाइए।
  73. प्रश्न- प्रसार शिक्षा या विस्तार शिक्षा की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
  74. प्रश्न- विस्तार शिक्षा के महत्व को समझाइए।
  75. प्रश्न- विस्तार शिक्षा तथा विस्तार प्रबंध में क्या अन्तर है?

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