लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।

अथवा
गुजरात के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
• काम्बी कढ़ाई

उत्तर -

गुजरात की कढ़ाई
(Embroidery of Gujrat)

गुजरात प्राचीन समय से अपने सुन्दर एवं उत्कृष्ट कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के कढ़े वस्त्र विदेशों में निर्यात किये जाते हैं। कढ़ाई सुई-धागे से की जाती है। सौराष्ट्र, कच्छ, काठियावाड़, उत्तरी गुजरात एवं पश्चिमी राजस्थान का पूरा क्षेत्र कढ़ाई कला में पारंगत है। अवकाश के क्षणों में यहाँ की महिलाएँ कढ़ाई का काम करती हैं।

गुजरात की कढ़ाई का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि इस कढ़ाई का प्रादुर्भाव "काथी" (Kathi) जाति के लोगों के द्वारा हुआ। इनका मुख्य व्यवसाय ( पेशा) जानवरों को चराना, देखभाल करना था। वे जंगलों में इधर-उधर विचरण करते हुए अपना जीवनयापन करते थे। अर्जुन का मुख्य प्रतिद्वन्दी, महाभारत का वीर योद्धा, “दानवीर कण" ने इस जाति को संगठित करके कढ़ाई कला के लिए उत्साहित किया। बाद में यही कढ़ाई गुजरात की एक महत्वपूर्ण कढ़ाई हो गई। इसमें शिव एवं गणेश के चित्रों को अत्यन्त सुन्दर ढंग से काढ़े जाते थें

2694_54_137

गुजराती कढ़ाई

Shailja D. Naik ने अपनी पुस्तक Traditional embroidery of India में लिखा है, “ This embroidery was introduced by “Kathi", the cattle breeder who were basically wanderers and brought by Karna the famous warrior of Mahabharat. These wanderers collected and gathered themselves in place and contributed variety, unique elements, patterns, designs, themes, mods and techniques of needle work which became later on integral part of the embroidery of Gujrat."

गुजरात कढ़ाई कला के क्षेत्र में उत्पादन एवं व्यापार के लिए आज भी प्रसिद्ध है। यहाँ के कढ़े वस्त्र यूरोपीय देशों में भेजे जाते हैं। दवीर पर टाँगने हेतु सामान, तस्वीर, बेडशीट, बच्चों के खिलौने, क्विल्ट की हुई चादर आदि अत्यन्त सुन्दर-सुन्दर नमूने से कढ़े होते हैं। इन्हें शंख, मोती, बीड वर्क, बटन, आदि से सजाया जाता है, गुजरात के प्रत्येक जाति (Caste) की एक अलग कढ़ाई कला होती है। कढ़ाई में रंग-संयोजन एवं टाँके भी भिन्न-भिन्न लिये जाते हैं। उच्च जाति के लोग रेशमी वस्त्रों पर रेशमी धागों से कढ़ाई करते हैं जबकि निम्न जाति के लोग सूती एवं ऊनी वस्त्रों पर कढ़ाई करते हैं।

गुजराती कढ़ाई क्षेत्र विशेष के आधार पर निम्नांकित प्रकार की होती है-

(1) सिंध की कढ़ाई (Sindh Embroidery) - सिन्ध प्रदेश के कढ़े हुए वस्त्रों पर कच्छ एवं पंजाब की कढ़ाई का स्पष्ट प्रभाव झलकता है। सिंधी कढ़ाई पंजाब की फूलकारी के रफू टाँकों तथा कच्छ कढ़ाई के चैन टाँकों के सम्मिश्रण से बनाया जाता है। इस कढ़ाई का अपना विशिष्ट सौन्दर्य होता है। चटकीले रंग-बिरंगे धागों से कढ़ाई का काम किया जाता है। पश्चिम राजस्थान के जैसलमेर एवं बाड़मेर जिले में भी सिन्धी कढ़ाई काफी लोकप्रिय है तथा यहाँ की महिलायें इस कढ़ाई को विशेष उत्साह से करती हैं। पशु-पक्षी, फूल-पत्तियाँ आदि के चित्रों को वस्त्र पर विशेष ढंग से काढ़ा जाता है। कई नमूनों में शीशे के नन्हें टुकड़े अथवा अभ्रक के टुकड़े को काज टाँके (Button hole Stitch) से लगाया जाता है। यह कढ़ाई सम्पूर्ण वस्त्र पर नहीं की जाती है।

2694_55_138
सिंध की कढ़ाई

(2) कच्छ की कढ़ाई (Kutch Embroidery ) – ऐसा माना जाता है कि कच्छ की कढ़ाई सिन्ध के एक मुस्लिम फकीर ने सबसे पहले वहाँ के "मोची" (Shoemaker) को सिखाई थी। बाद में यह कढ़ाई अहीर, चरवाहे, कान्वी काश्तकार एवं रबाड़ी चरवाहे द्वारा किया जाने लगा।

अहीर चरवाहे सौराष्ट्र के किसान होते हैं। अहीर स्त्रियाँ अवकाश के क्षणों में कढ़ाई द्वारा वस्त्रों को सुसज्जित करती हैं जिन्हें वे अपने तथा अपने परिवार के लिए उपयोग करती हैं। यह कढ़ाई हुकदार सुईं (Hooked Needle) की सहायता से की जाती है। चैन टाँके एवं खुली चैन टाँके द्वारा उत्कृष्ट नमूने बनाये जाते हैं। तोता, मोर, बुलबुल, मानव आकृतियाँ, नृत्य करती गुड़िया, फूल-पत्तियाँ आदि के सुन्दर नमूनों को वस्त्र पर बड़ी कुशलतापूर्वक काढ़ा जाता है। नमूनों को काँच के नन्हे नन्हें टुकड़ों “काँच वर्क" (Mirror Work) द्वारा सजाया जाता है। गहरे रंग के वस्त्र पर रंग-बिरंगे चटकीले रंग के धागे से नमूने बनाये जाते हैं।

(3) सौराष्ट्र की कढ़ाई (Saurashtra Embroidery ) - सौराष्ट्र कढ़ाई में मुख्यत: 3 शैलियों का प्रभाव देखने को मिलता है। ये निम्नांकित हैं-

(a) कान्बी कढ़ाई (Kanbi Embroidery ) — "कान्बी" काश्तकार होते हैं जो सौराष्ट्र से स्थानान्तरित होकर आये हुए किसान होते हैं। कान्बी स्त्रियाँ कढ़ाई कला में अत्यन्त निपुण होती हैं। कान्बी जातियों के द्वारा किये जाने के कारण इस कढ़ाई का नाम भी "कान्बी कढ़ाई" पड़ा है। कढ़ाई चटकीले रंग के सूती धागे से की जाती है जिसमें अधिकतर लाल, पीला, हरा, नीला, सफेद, नारंगी एवं जामुनी रंगों का प्रयोग होता है। नमूने प्राकृतिक स्त्रोत से लिये जाते हैं। फूल-पत्तियों, मानव आकृतियों, पशु-पक्षियों आदि के नमूने को उत्कृष्ट तरीके से काढ़ा जाता है। नमूने की बाह्य रूपरेखा डारनिंग एवं चैन टाँके से तथा भराई हेरिंग बोन टाँके से की जाती है। नमूने अधिकांशतः सफेद एवं पीले वस्त्र पर काढ़े जाते हैं।

'कान्बी लोगों में पशुओं के प्रति प्रेम होता है। वे कढ़े हुए वस्त्रों से गाय, बैल एवं अन्य पशुओं के ललाट (Forhead), पीठ (Back), सींग (Horn) आदि को सजाते हैं। पशुओं को सजाने के लिए विशेष प्रकार से उत्कृष्ट डिजाइनों में कढ़ाई की जाती है। घरेलू उपयोग में आने वाली वस्तुओं को भी वे कढ़ाई द्वारा सुसज्जित करते हैं।

(2) कथीपा शैली (Kathipa Style ) — इसमें चौकोर रूमाल (Square Rumal) या तोरण द्वार (Toran Dwar) पर रेशमी धागे से तुरपाई टाँके (Hem Stitch) या हेरिंग बोन टाँके से कढ़ाई की जाती है। इसमें धागा आड़ी एवं खड़ी अवस्था में रहता है। वस्त्र के मध्य में चौकोर नमूने बने होते हैं। इन्हें अष्टकोण वाले सलमा- सितारे से अलंकृत किया जाता है। नियमित अन्तराल पर अभ्रक अथवा काँच के छोटे-छोटे टुकड़ों को काज टाँके से लगाकर वस्त्र को अलंकृत किया जाता है।

तोरन घर के मुख्य द्वारा को सजाने में काम आता है। इस पर भगवान श्री गणेश के चित्र काढ़े जाते हैं।

(3) काठियावाड़ की कढ़ाई (Kathiawar Embroidery ) – काठियावाड़ की कढ़ाई पंजाब की फूलकारी एवं सिन्ध की कढ़ाई से मिलती-जुलती है। इसमें “काँच वर्क" (Mirror Work) काँच के नन्हें टुकड़ों का बाहुल्य रहता है। काँच के टुकड़े को काज टाँके (Button hole Stitch) से लगाया जाता है।

रात्रि में पार्टी के अवसर पर पहनने वाले परिधान को "मिरर वर्क" से अलंकृत किया जाता है। रोशनी में ये. परिधान अत्यन्त सुन्दर लगते हैं एवं चाँद-सितारे का-सा प्रभाव उत्पन्न करते हैं। फलतः पहनने वाले के व्यक्तित्व एवं सुन्दरता में चार चाँद लग जाता है। यह कढ़ाई गुजराती परिधान चोली घाघरा पर की जाती है। चैन टाँके, डारनिंग टाँके, अबला भारत एवं इन्टरलेसिंग टाँकों की सहायता से नमूने बनाये जाते हैं। क्रीमसन, लाल, काला, हरा, इन्डिगो, आइवरी (Ivory) एवं पीले रंग के रेशमी धागों से कढ़ाई की जाती है। नमूने में नयापन एवं आलौकिकता लाने के लिए चौकोर वर्ग के चार बराबर भागों में इस तरह से बाँटा जाता है कि वे त्रिकोण बने तथा प्रत्येक त्रिकोण आकार-प्रकार में एक समान रहें। त्रिकोण के बीच में काँच के नन्हें टुकड़ों को काज टाँके से सजाया जाता है। दोनों आमने-सामने के त्रिकोणों को लम्बे टाँके (Long Stitch) से भराई की जाती है, परन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि कढ़ाई में धागे बिल्कुल सीधे एवं आड़े हों।

अबला भारत एक प्रकार का "मिरर वर्क" ही है। इसमें काँच के टुकड़ों के द्वारा वस्त्र को अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक बनाया जाता है। यह काठियावाड़ का पारम्परिक कढ़ाई कला का एक अभिन्न हिस्सा है, परन्तु आजकल इसका प्रचार-प्रसार अत्यन्त व्यापक हो गया है। राजस्थानी कढ़ाई में भी अबला भारत ( Mirror Work) का बाहुल्य रहता है। आजकल देश के अन्य भागों में भी शीशे के नन्हें टुकड़ों से वस्त्र को अलंकृत किये जाने लगे हैं। चटकीले रंग के रेशमी धागों से अबला भारत का काम किया जाता है। नमूने में फूल-पत्तियों, मोर, तोता, पशु, लताएँ आदि के चित्र काढ़े जाते हैं।

गुजरात "बीड वर्क" (Bead Work) के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसमें कढ़ाई के द्वारा सुन्दर-सुन्दर "बीड्स" (Beads) बनाकर वस्त्र को अलंकृत किया जाता है। सफेद वस्त्र पर रंग-बिरंगे मोती जैसे बीड्स लगाये जाते हैं। इसमें विशिष्ट नमूने नहीं काढ़े जाते हैं बल्कि हाथी, घोड़े, तोते, मोर, गाय-बछड़ा आदि के नमूने को सुन्दर ढंग से काढ़ा जाता है। हालाँकि बीड से अलंकृत परिधान ज्यादा उपयोगी नहीं होते हैं, परन्तु इनसे सजावटी सामान, जैसे—तोरण द्वार, थैले, पर्स, कुशन कवर, सोफा कवर, दीवारों पर लटकाने वाले चित्र, खिलौने आदि तैयार किये जाते हैं।

गुजरात की कढ़ाई अत्यन्त मनोहरी, लुभावनी एवं आकर्षक होती है जिसे देखकर मन बिना ललचाये नहीं रह पाता।

कच्छ की कढ़ाई
(Embroidary of Kutch )

कच्छ गुजरात के उत्तर में है। जहाँ कई विभिन्न प्रकार की कढ़ाई होती हैं। साथ ही कढ़ाई की कई विभिन्न तकनीकें व शैलियाँ विकसित हुई हैं। यहाँ अधिकांश व्यक्ति कृषि का व्यवसाय करते हैं। कढ़ाई का कार्य प्रत्येक घर की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

यह कढ़ाई सामान्यत: स्वयं के उपयोग के लिए बनाई जाती है, व्यावसायिक कढ़ाई के रूप में इसका उपयोग नहीं किया जाता है।

यहाँ की सबसे प्रचलित कढ़ाई है-कच्छ भारत। यह भुज जिले में बनाई जाती है। यह हुक वाली सुईं की सहायता से की जाती है। इस सुईं का नाम है— अरही। धागे को सुई की सहायता से नीचे ले जाया जाता है। उसी प्रकार जिस प्रकार जूते बनाने वाले व्यक्ति धागे को चमड़े के नीचे ले जाते हैं।

इसमें नमूने मोर या फूलों वाले वृक्ष के लिए जाते हैं। इसमें उपयोग में लाये जाने वाले टाँके सिद्ध करते हैं कि यह चमड़े की कढ़ाई की कला से लिया गया है। इसमें सैटिन वस्त्र का उपयोग किया जाता है। यह घाघरा पर बनाई जाती है। इसमें विपरीत रंगों का उपयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त कच्छ का कशीदा बिस्तर की चादर, दीवार पर लटकाने हेतु, फर्श बिछावन आदि अन्य वस्तुओं पर भी बनाये जाते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी अहीर समुदाय द्वारा इस कशीदे को बनाया जाता है। इनका मुख्य कार्य कृषि होता है। इनके द्वारा किया गया कशीदा उतना सूक्ष्म नहीं होता है जितना शहरी क्षेत्रों के कारीगरों का होता है।

महिलाएँ कच्छ कशीदा किया हुआ घाघरा और लाल ब्लाऊज पहनती हैं। बच्चों को भी कशीदा किये हुए वस्त्र पहनाये जाते हैं।

कच्छ की दूसरे प्रकार की कढ़ाई में छोटे-छोटे टुकड़ों का उपयोग कर एप्लिक का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त् दोहरे क्रॉस टाँके का उपयोग भी किनारों पर किया जाता है।

काठियावाड़ की कढ़ाई 
(Embroidary of Kathiawad)

गुजरात राज्य के सौराष्ट्र जिले में यह कशीदा किया जाता है। यहाँ भिन्न-भिन्न शैली और तकनीक का कशीदा किया जाता है। यहाँ की कढ़ाई भगवान कृष्ण की लीलाओं पर आधारित है।

काठियावाड़ में 6 विभिन्न शैली की कढ़ाई की जाती हैं-

(1) हीर भारत (Heer Bharat ) यह पंजाब की कढ़ाई बाग के समान हैं। यह चमकदार रेशम के धागों से बनाई जाती है जिसे हीर कहा जाता है। इसमें 1" लम्बे टाँकों से डिजाइन की सतह को भरा जाता है। इसमें नमूने मुख्य रूप से आयताकार, त्रिभुज, चौकोर और ज्यामितीय आकार के बनाये जाते हैं। वस्त्र की पूरी सतह कढ़ाई से ढक दी जाती है। सामान्यत: यह कढ़ाई गहरे नीले पृष्ठ पर बनाई जाती है। हरा और पीला रंग बहुत कम उपयोग में लाया जाता है। नमूने के बीच में काँच बटन होल टाँके से लगाये जाते हैं।

(2) अभला भारत (Abhla Bharat ) इसमें काँच का कार्य किया जाता है। यह भारत के विभाजन के बाद प्रचलित हुई है। शरणार्थी महिलाओं द्वारा यह कढ़ाई की जाती थी। इसमें डिजाइन हाथ से बनाई जाती थी। काँच को वृत्ताकार डिजाइन से बनाया जाता है और स्टेम या हेरिंग वोन टाँकों का उपयोग किया जाता है।

इस कशीदे से बनाई जाने वाली वस्तुएँ हैं- तोरण छाकल, घाघरा और चोली। इसमें फूलों के नमूने बनाये जाते हैं और इसके साथ काँच लगाये जाते हैं।

( 3 ) भावनगर की चेन स्टिच (Chain Stitch of Bhavnagar) – यह भावनगर में बनाई जाती है। इसमें बहुत छोटे टाँके बनाये जाते हैं। इसमें बनाये जाने वाले नमूने हैं—घोड़ा चलाते हुए मानव, स्कर्ट में महिला की डिजाइन, हाथ में फूल लिए लड़की, पतंग उड़ाते हुए लड़का। इनमें चेहरे, हाथ और विशिष्ट स्थानों पर काँच लगाये जाते थे।

(4) सिंधी स्टिच (Sindhi Stitch) — इसे तरोपा (Taropa) कहा जाता है जिसका अर्थ है— गूंथे हुए टाँके। यह कच्छ और काठियावाड़ की विशेषताएँ हैं। इसमें पहले लम्बे टाँकों से नमूना बना लिया जाता है और फिर इनमें टाँकों को गूँथा जाता है। इसमें 6 पत्तियों वाले फूलों का नमूना बनाया जाता है जिसमें बीच में काँच लगाया जाता है। यह स्टिच जर्मनी में भी बहुत प्रचलित है।

(5) एप्लिक का काम (Applique Work ) — यहाँ एल्पिक का काम बचे हुए रंगीन कपड़ों से किया जाता है। यह कार्य तोरण, दीवारों पर लटकने के वस्त्र आदि पर किया जाता है। इसमें डिजाइन में मोर, घोड़ा; हाथी बनाये जाते हैं।

( 6 ) मोती भारत ( Moti Bharat ) – यह मोती का काम होता है। इसमें पृष्ठभूमि में वस्त्र का उपयोग नहीं किया जाता है। यह केवल सुई धागे और रंगीन मोतियों द्वारा बनाया जाता है। डिजाइन गूँथकर बनायी जाती है जिसमें अपने आप सतह तैयार हो जाती है। पृष्ठभूमि हेतु सफेद रंग लिया जाता है और नमूने जामुनी, पीले, हरे और लाल मोती से बनाये जाते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book