बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर -
कसूती भारत के कर्नाटक प्रदेश की कशीदाकारी का एक परम्परागत रूप है। कसूती कशीदारी कार्य अत्यधिक जटिल है। कभी-कभी इसमें 5000 टाँकों तक का उपयोग हाथ से करना पड़ता है। यह कशीदाकारी सामान्यतः इकल और कांचीवरम साड़ियों पर की जाती है। कर्नाटक हस्तकला विकास निगम कसूती कशीदाकारी के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। यह उसे बौद्धिक सम्पदा अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
कसूती का इतिहास
कसूती का इतिहास चालुक्य वंश से प्रारंभ होता है। कसूती नाम का उद्भव "काई" और "सूती" शब्दों से हुआ है, जिनमें 'काई' का अर्थ हाथ और 'सूती' का अर्थ वस्त्र से होता है। इसका अर्थ है कपड़े पर हाथ से कशीदाकारी। मैसूर राज्य में 17 वीं सदी में महिला दरबारियों द्वारा 64 प्रकार की कशीदाकारी की कला का उपयोग किया जाता था, उसमें कसूती भी एक थी। यह भी कहा जाता है कि राजस्थान का लम्बनी समुदाय अपनी इस पारम्परिक कला को लेकर राजस्थान से कर्नाटक में आ बसा था और उसी ने इस कला को विस्तार दिया। सामान्यतः कसूती कशीदाकारी वाली सिल्क की साड़ियों पर की जाती है, जिन्हें 'चन्द्रकली' साड़ी के नाम से जाना जाता है। ये साड़ियाँ मुख्य रूप से विवाहोत्सवों में प्रयुक्त की जाती हैं।
कसूती कार्य
इसके अन्तर्गत जो पैटर्न उपयोग में लाए जाते हैं वे है— गोपुरम, चैरियट, पालकी, रथ, कमल, हाथी, मयूर, बैल, तोता आदि का चित्रांकन। कढ़ाई में स्थानीय स्तर पर प्राप्त होने वाली कच्ची सामग्री का प्रयोग किया जाता है। सर्वप्रथम कोयला या पैसिल से कपड़े पर इसका नमूना उलेट लिया जाता है। तत्पश्चात् सुई व धागों का चयन किया जाता है। यह कार्य अत्यधिक परिश्रम का है क्योंकि कपड़े पर धागों का उपयोग टाँकों की गणना के साथ होता है। अपेक्षित पैटर्न के लिए विभिन्न प्रकार के टाँकों का प्रयोग करते हैं। उनमें कुछ टाँकों के नाम हैं--
(1) गवन्ती (Gavnti ) — रेखीय और उल्टा बखिया टाँका।
(2) नेगी (Negi ) — रनिंग टाँका।
(3) मेन्थी (Menthi) क्राँस टाँका।
(4) मुर्गी (Murgi ) — जिगजैग रनिंग टाँका।
गवन्ती सबसे अधिक प्रचलित टाँका है। यह टाँका दोनों ओर से समान दिखाई देता है।
नेगी टाँका हाथ की बुनाई वाले नमूने जैसा प्रभाव उत्पन्न करता है।
कसूती के लिए उपयोग में लाए जाने वाले रंग हैं-लाल, बैंगनी, हरा और नारंगी। सभी रंगों को चमकदार रूप में उपयोग में लाया जाता है। कसूती में बहुरंगों का उपयोग भी कलात्मक रूप से किया जाता है। कसूती में नीले और पीले रंग का उपयोग बहुत कम किया जाता है।
कसूती के नमूने इस प्रकार के होते हैं कि बुने हुए और कसीदे के नमूने में भ्रम होता है। नमूने बिल्कुल निश्चित होते हैं। इसका निश्चित आकार होता हैं और धागे गिनकर उपयोग में लाये जाते हैं। यह सूती वस्त्रों पर बिना नमूने को उतारकर बनाये जाते हैं। कसूती की कढ़ाई में बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है।
कसूती कढ़ाई करने वाले अधिकांशतः जाति से बुनकर, खेतीहार और दर्जी होते है। यह अधिकतर ऐसे व्यक्तियों द्वारा बनाई जाती है जो गरीब होते है और कठिन परिश्रमी होते है।
कसूती व्यावसायिक रूप से नहीं बनाई जाती है। केवल ऑर्डर देने पर ही बनाई जाती है। आजकल बहुत कम परिवारों द्वारा यह सूक्ष्म कार्य किया जाता है।
आजकल सरकार इस प्राचीन कला में रुचि लेने लगी है। इसे हस्तकला उद्योग कहा जाता है।
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