बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
अथवा
पंजाब की परम्परागत कढ़ाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
फुलकारी के प्रकार बताइये।
बाग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी
(Phulkari Embroidery of Punjab)
“फूलकारी" दो शब्दों के मिलने से बना है। (फूल+कारी) फूल का अर्थ है, फूल (Flower) तथा कारी का अर्थ है काम (Work) अर्थात् फूलकारी "फूलों का काम " (Work of Flowers) है। यह पंजाबियों की एक महत्वपूर्ण परम्परागत कढ़ाई है। पंजाब की फूलकारी देश-विदेशों में प्रसिद्ध है। पंजाब की फूलकारी देश विदेशों में प्रसिद्ध है। रोहतक, गुड़गाँव, करनाल, हिसार और दिल्ली फूलकारी के काम के लिए काफी प्रसिद्ध है। पश्चिमी पंजाब में फुलकारी को "बाग " (Bagh) कहा जाता है। बाग फूलकारी का ही एक विस्तृत रूप है। इसमें पूरे वस्त्र पर “फूलकारी" की जाती है जिससे सम्पूर्ण वस्त्र एक "बाग" की तरह प्रतीत होने लगता है।
पंजाब की फूलकारी कशीदाकारी
फूलकारी कला पर अगर हम दृष्टिपात करें तो यह पता चलता है कि इसका उद्गम फारसी कला से हुआ है। फारसी में इसे "गुलकारी” (Gulkari) कहा जाता है। गुलकारी का भी शाब्दिक अर्थ "फूलों का काम" ही होता है क्योंकि फारसी में “गुल” को “फूल' (Flower) कहा जाता है। अतः पंजाब की फूलकारी गुलकारी से मिलती-जुलती है। ऐसा माना जाता है कि सेन्ट्रल एशिया के लोग जब पूर्वी पंजाब में आये तो उन्होंने इस कला का प्रचार-प्रसार किया।
फूलकारी का काम पंजाबी लड़कियों एवं स्त्रियों द्वार बड़े ही उल्लास एवं उत्साह से किया जाता है। यह उनका उद्यमी, परिश्रमी एवं कठिन मेहनती होने का संकेत देता है। फूलकारी को सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य एवं सुहाग का प्रतीक माना जाता हैं इसलिए फूलकारी से कढ़े परिधानों को वहाँ की विवाहित स्त्रियाँ बड़े ही उल्लास एवं उत्साह के साथ शादी-विवाह एवं तीज-त्यौहारों के अवसर पर पहनती हैं।
फूलकारी का काम साधारण खद्दर (Simple Khadar) के वस्त्र पर किया जाता है। सिल्क के धागों से इस पर ज्यामितीय नमूने (Geometrical design) बनाये जाते हैं। इसमें सीधी, तिरछी, आड़ी, चौकोर एवं त्रिकोण रेखाओं का उपयोग किया जाता है। रंग संयोजन (Colour combination) में लाल, पीला, नारंगी एवं सफेद रंग प्रमुखता से काम में लाया जाता है। रेशमी धागे को "पट" (Patt) कहा जाता है। फूलकारी अत्यन्त सौन्दर्यमय एवं आकर्षक लगता है। इसे माँ अपनी पुत्री को शादी के शुभ अवसर पर उपहार स्वरूप देती है।. एक प्राचीन प्रथा के अनुसार पंजाबी परिवार में जैसे ही एक "कन्या" का जन्म होता है, माँ, दादी एवं नानी उसके विवाह के अवसर पर उपहार स्वरूप देने के लिए फूलकारी का निर्माण करने लगती हैं। इसमें माँ का कन्या के प्रति सम्पूर्ण लाड़, प्यार, स्नेह, गौरवं एवं निष्ठा झलकती है। वह अपनी समस्त भावनाओं, कल्पनाओं, आशाओं एवं आकांक्षाओं को फूलकारी से बने शॉलों में मूर्तिमान कर देती है जिससे पूरा शॉल ही आकर्षक, ऐश्वर्यशाली, वैभवशाली एवं अलौकिक दिखने लगता है।
फूलकारी के नमूने में वहाँ की स्त्रियों की अनोखी कल्पनाशक्ति, स्मृति एवं मौलिकता की फूलकारी की अनोखी कल्पना आकृति पुट रहती है। नमूने अधिकांशतः प्राकृतिक स्रोत से लिये जाते हैं, जैसे― चाँद, सूरज, वनफूल, सागर-तरंग, कंठहार आदि। नमूने तथा रंग संयोजन के आधार पर फूलकारी को . विभिन्न नामों से सम्बोधित किया जाता है, जैसे- ककड़ी बाग, मिर्ची बाग, धनिया बाग, करैली बाग, अनार बाग, शालीमार बाग, बैंगन बाग, चन्द्रमा बाग, जंजीर दा बाग, गुलकेरियन दा बाग इत्यादि। फूलकारी के नमूने को वस्त्र पर अंकित नहीं किये जाते हैं बल्कि वस्त्र के धागों को ही गिन-गिनकर सुन्दर-सुन्दर उत्कृष्ट नमूने बनाये जाते हैं। पंजाबी लड़कियाँ एवं स्त्रियाँ इसे अत्यन्त कुशलता से काढ़ती हैं। उनकी कुशल प्रवीण एवं जादुई अँगुलियों से ऐसे सुन्दर-सुन्दर वस्त्र कढ़ें होते हैं जिसे देखकर बिना अचंभित हुए नहीं रहा जा सकता। फूलकारी में नमूनों के तौर पर फूल (सूर्यमुखी, कपास, लिली, गेंदा), फल (आम, संतरा, अनार, नाशपाती), सब्जियाँ (बैंगन, मिर्च, बंदगोभी, फूलगोभी, करेला) आदि के चित्रों को काढ़े जाते हैं। पशु-पक्षी के चित्रों को भी बड़ी कुशलतापूर्वक वस्त्र पर उतारा जातां है जिससे सम्पूर्ण वस्त्र ही खिल उठता है। इसमें बकरी, भैंस, गाय, खरगोश, घोड़े, हाथी, मुर्गी, तोता, उल्लू, कबूतर आदि का चित्रण किया जाता है। नमूने वस्त्र के सीधी तरफ बनाये जाते हैं।
फूलकारी के प्रकार
(Types of Phulkari)
फूलकारी कई प्रकार की होती है। कुछ अत्यन्त लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण फूलकारी का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार से है-
(1) चोप (Chope ) — चोप लाल रंग के चद्दर पर बना होता है जिसे नानी अपने नातिन की शादी के शुभ अवसर पर उपहार स्वरूप देती है। यह सुनहरे पीले रंग के रेशमी धागों से दोहरी टंकाई के टाँके (Double Running Stitch) से बनाये जाते हैं। कढ़ाई वस्त्र के दोनों ओर से दिखती है। इसमें कलाकार की सम्पूर्ण व्यक्तित्व, कुशलता एवं प्रवीणता स्पष्ट रूप से झलकती है। कढ़ाई इतनी सफाई (Neatness) से की होती है कि इसका सीधा एवं उल्टा पक्ष पहचानना मुश्किल हो जाता है।
चोप अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक होता है इसे "कहीं नजर न लग जाए" इस भय से चद्दर के चारों कोनों पर छोटे-छोटे बूटे ( Small buti) बनाये जाते हैं। यह बूटी काले रंग के रेशमी धागों से बनायी जाती हैं। सम्पूर्ण नमूना ज्यामितीय रेखाओं से बना होता हैं।
(2) सुभर (Subhar ) - यह शॉल भी चोप की तरह ही लाल रंग के शॉल (Shawl) पर बना होता है। इसे माँ अपनी पुत्री को शादी के शुभ अवसर पर उपहार स्वरूप देती है। इसे "फैरा (Phera) के समय पहना जाता है। इसमें भी चोप के तरह ही नमूने बने होते हैं। परन्तु सुभर की विशेषता यह है कि शॉल के बीच में पाँच नमूने एक साथ ही बने होते हैं और उसी नमूने का चित्रण शॉल के चारों कोनों पर किया जाता है।
(3) तिलपत्रा (Tilpatra ) — ये सस्ते एवं झिरझिरे खद्दर के वस्त्रों पर बनाये जाते हैं। . इसमें छोटे-छोटे फूलों के नमूने बने होते हैं। इसे गृह स्वामी अपनी दासियों को शादी के शुभ अवसर पर उपहार स्वरूप देती हैं।.
(4) शीशेदार फूलकारी (Shishedar Phulkari) – इस फूलकारी में नमूनों के बीच-बीच में शीशे (Mirrors) या अभ्रक (Mica) के टुकड़ों को काज वाले टाँके (Button hole Stitch) से लगाया जाता है। अधिकांशतः यह फूलकारी साटिन (Satin) तथा रेशमी वस्त्रों पर किया जाता है, इसमें वस्त्र की पृष्ठभूमि गहरे रंग की रखी जाती है। शीशेदार फूलकारी का काम मुख्य रूप से सिन्ध प्रान्त में होता है। कढ़ाई के टाँके में गुजरात एवं पंजाब की कढ़ाई का भी प्रभाव झलकता था।
(5) कच्छ की फूलकारी (Kuchh Phulkari ) - कच्छ की फूलकारी काफी लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध है। कच्छ प्रदेश में किये जाने के कारण इसका नाम भी कच्छ फूलकारी पड़ा है। इसमें वस्त्र के चारों ओर उत्कृष्ट नमूने से बोर्डर बनाये जाते थे। बीच के रिक्त स्थानों में पशु-पक्षी, फल-फूल, पत्तियाँ आदि के नमूने चित्रित किये जाते थे। नमूने प्रायः चैन एवं हेरिंगबोन टाँके से बनाये जाते थे। हाथी, मोर, तोते, हंस, कबूतर आदि के नमूने की बड़ी प्रवीणता एवं कुशलता के साथ चित्रित किया जाता था।
(6) निलक (Nilak) - जब नीले रंग के खद्दर के वस्त्रों पर पीले अथवा क्रीमसन रंग के रेशमी धागे से कढ़ाई की जाती थी तो इसे "निलक" (Nilak) कहा जाता था। कभी-कभी काले रंग के खद्दर पर भी फूलकारी की जाती थी। नमूने के रूप में घरेलू उपयोग की सामग्री को चित्रित किया जाता था, जैसे- कंघी (Comb) पंखा (Fan), छाता (Umbrella) आदि। इसके लिए फूल-पत्तियों के नमूने को भी अंकित किया जाता था।
(Bagh)
पंजाब की फूलकारी की तरह ही वहाँ का “बाग" (Bagh) भी काफी लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध है। यह फूलकारी की तरह ही है परन्तु फूलकारी एवं बाग में खास अन्तर है कि इसमें कढ़ाई सम्पूर्ण वस्त्र पर की जाती है। बाग सामान्यतया दो रंग के शेड्स के धागों से बनायी जाती है, जैसे—- सुनहरा पीला और सफेद, नारंगी और पीला, हरा और क्रीमसन; लाल और भूरा इत्यादि। "बाग" कढ़ाई से युक्त वस्त्र, इतना सुन्दर एवं आकर्षक लगता है कि सम्पूर्ण वस्त्र ही एक बाग की तरह प्रतीत होने लगता है। कलाकार अपनी जादुई अँगुलियों से ऐसे नमूने को चित्रित कर देता है जिससे सम्पूर्ण वस्त्र ही खिल उठता है। नमूने के स्रोत, रंग संयोजन एवं आकृति के अनुसार बाग को भी विभिन्न नामों से सुशोभित किया गया है। बाग के प्रकार निम्नांकित हैं-
(1) घूँघट बाग (Ghunghat Bagh ) – यह तीन कोनों वाला (तिकोना ) लाल रंग का शॉल होता है जिसमें सुनहरे पीले एवं चटक रंगों से सुन्दर-सुन्दर नमूने बने होते हैं। इसे विवाह के समय " घूँघट" के शुभ अवसर पर दुल्हन के सिर पर इस तरह से ओढ़ाया जाता है कि यह उसके सिर के अग्र भाग को ढक ले। इसमें नमूने भी त्रिकोणाकार बने होते हैं। इसे ही " घूँघट बाग" (Ghunghat Bagh) कहते हैं। भारतीय पारम्परिक प्रथा है कि यहाँ शादी के उपरान्त विवाहित भारतीय स्त्रियाँ अपने ससुराल में श्वसुर, जेठ, जेठानी, सास व अन्य बड़े बुजुर्गों के सम्मान में घूँघट निकालती हैं।
(2) वरी दा बाग (Vari da Bagh ) – यह भी लाल रंग के शॉल ( Shawl) पर बना होता है। इसे विवाह के समय वर पक्ष की ओर से दुल्हन को उपहार स्वरूप भेंट किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसे दूल्हे की दादी (Grand mother) बनाती हैं। इसे बनाने में अधिक श्रम एवं समय लगता है। इसे पूरा करने में लगभग चार वर्ष का समय लगता है। नमूने पीले रंग के रेशमी धागों से बनाये जाते हैं। इसमें छोटे-छोटे नमूने कढ़े होते हैं। यह शॉल अत्यन्त सुन्दर मनभावन एवं आकर्षक लगता है।
(3) भवन बाग (Bhavan Bagh ) – इसमें 52 ज्यामितीय आकार में नमूने बनाये जाते हैं। नमूने छोटे-छोटे चौकोर (Square) में काढ़े जाते हैं। प्रत्येक चौकोर के मध्य में रंग-बिरंगे चटकीले धागे से सुन्दर एवं उत्कृष्ट नमूने बनाने जाते हैं। यह काफी बड़ा काम होता है जिसे काढ़ने में काफी समय एवं श्रम लगता है। इसे बनाने के लिए कलाकार में अत्यधिक मेहनत, अटूट धैर्य एवं असीमित उत्साह की क्षमता होनी चाहिए। आजकल यह कढ़ाई लगभग लुप्तप्राय सी हो गई है।
(4) रेशमी शीशा बाग (Reshmi Sheesha Bagh ) - इस प्रकार की कढ़ाई में सफेद रंग के रेशमी धागे से गहरे रंग के पृष्ठभूमि पर कढ़ाई की जाती है जिससे यह शीशे के समान आभास देने लगता है। इस कढ़ाई में भी ज्यामितीय नमूने बनाये जाते हैं। टाँके भी फूलकारी की तरह ही लिये जाते हैं। सूक्ष्म एवं बारीक नमूनों को भी कुशलता एवं प्रवीणतापूर्वक वस्त्र पर अंकित किया जाता है।
(5) सतरंगा बाग (Sat Ranga Bagh ) – जब बाग सात रंगों के धागों से बना होता है तो इसे सतरंगा बाग कहते हैं।
(6) धूप-छाँव बाग (Sun Shadow Bagh ) — इस प्रकार की बाग कढ़ाई में धूप-छाँव का प्रभाव डाला जाता है।
(7) चाँद रानी बाग (Chand Rani Bagh ) — जब गहरे नीले रंग की पृष्ठभूमि पर सफेद धागे से कढ़ाई की जाती है तो वह "चाँद रानी बाग" कहलाता है। यह नीले आकाश की तरह प्रतीत होने लगता है और ऐसा लगता है मानो आकाश ही चन्द्रमा एवं तारेगण के साथ वस्त्र पर उतर आया हो।
(8) बेलन बाग (Velanian da Bagh ) - बेलन बाग का नाम भी चकला - बेलन (Roller - Pins) से पड़ा है। इसमें वस्त्रों पर चकला - बेलन के नमूनों को काढ़ा जाता है।
(9) सूरजमुखी बाग (Surajmukhi Bagh ) — सूरजमुखी बाग में सूरजमुखी के फूलों का चित्रण किया जाता है। नमूने भूमितीय (Geometrical design) होते हैं। यह विषम कोण, चतुर्भुज एवं समकोण चतुर्भुज (Lozenges) के आकार में बने होते हैं। प्रत्येक लोजेन्जेज (Lozenges) इस प्रकार से व्यवस्थित होता है कि वह देखने में अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक लगता है। पूर्वी पंजाब में सूरजमुखी बाग ज्यादा लोकप्रिय है।
बाग की कढ़ाई के लिए कलाकार जिस स्रोत से नमूने को चयन करता है, रंग संयोजन करता है, उसी के आधार पर डिजाइन का नामकरण कर देता है, जैसे- शालीमार बाग, ककड़ी बाग, खीरा बाग, बैंगन बाग, कद्दू बाग, धनिया बाग, मिर्चा बाग, खीरा बाग, जहाज बाग, गेंदा बाग, मोतियाँ बाग (जैसमीन के फूलों के नमूने) करैला बाग, मोर बाग, तोता, बाग, कबूतर बाग. इत्यादि।
रंगों के आधार पर भी नमूने का नामकरण किया जाता है, जैसे—दोरंगा बाग (दो रंग), पंचरंगा बाग (पाँच रंग), सतरंगा बाग (सात रंग), नौरंगा बाग (नौ रंग) इत्यादि।
बाग कढ़ाई में मुगल काल के प्रभाव भी दृष्टिगोचर होते हैं। मुगलों के शैली के आधार पर बाग का नामकरण भी किया गया है, जैसे― चार बाग, शालीमार बाग, चौरसिया बाग, धूप-छाँव बाग इत्यादि।
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