बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
अथवा
फैशन को प्रभावित करने वाले कारकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
फैशन को बढ़ाने वाले ( प्रेरक ) तत्व
फैशन को बढ़ाने वाले तत्व मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं-
(1) सुख व सन्तुष्टि की इच्छा (Desire of Satisfaction ) - प्रत्येक व्यक्ति में सुख की कामना होती है। अपने मन को सुखी रखने हेतु वह नयी-नयी वस्तुओं का उपयोग करता है। नये-नये परिधान, फर्नीचर, गहने, मकान आदि उसे सन्तुष्टि प्रदान करते हैं। सबसे अलग व सबसे अच्छा होने की कामना उसे सुख देती है व सन्तुष्टि प्रदान करती है और यही फैशन की उत्पत्ति में भी सहायक होती है।
(2) वैयक्तिकता (Individualism) – जब समाज बहुत विशाल हो जाता है तो द्वैतीयक समाज (mass society) में परिवर्तिश हो जाता है जहाँ कोई किसी की चिन्ता नहीं करता। ऐसे समाज में व्यक्ति सबका ध्यान अपनी ओर केन्द्रित करने के लिए नित नये फैशन अपनाता है। यह व्यक्तिवादी इच्छा फैशन की उत्पत्ति और विकास में सहायक होती है। आज के द्वैतीयक समाज में व्यक्ति को अपने को समाज में एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में व्यक्त करने का आसान तरीका नित नये फैशन को जन्म देना व अपनाना है।
(3) परिवर्तन तथा नवीनतम की इच्छा-लम्बे समय तक एक सा जीवन जीने से जीवन नीरस लगने लगता है। व्यक्ति परिवर्तन चाहता है और वह नवीनता की इच्छा रखता है। फैशन की उत्पत्ति का मुख्य कारण यही है। फैशन व्यक्ति के नीरस जीवन में सरसता लाती है। आधुनिक समय के मशीनी जीवन में फैशन एक जीवन के समान होती है।
(4) अनुरूपता और पृथकता की इच्छा - फैशन की उत्पत्ति व प्रसार साथ ही इसके पतन का मुख्य कारण दूसरों के समान होने की इच्छा व दूसरों से पृथक् होने की इच्छा है। यद्यपि यह दोनों इच्छाएँ सिद्धान्तः एक दूसरे की विरोधी हैं किन्तु फिर भी मनुष्य की मनोवैज्ञानिक भावनाएँ हैं जो उसे किसी नये कार्य को करने के लिए प्रेरित करती हैं या हतोत्साहित करती हैं।
यह प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है। जब व्यक्ति समूह की भीड़ में खो सा जाता है और उसका अपना कोई पृथक् अस्तित्व नहीं रहता तब वह अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए व अपना विशिष्ट स्थान बनाने के लिए अन्य व्यक्तियों से कुछ पृथक बनने, रहने या पहनने की कोशिश करता है। यह पृथकता की चाह नये फैशन को जन्म देती है। जब एक व्यक्ति इस पृथक् फैशन को अपनाता है तो अन्य व्यक्ति उसे देखते हैं। यदि वह व्यक्ति आकर्षक या विशिष्ट दिखाई देता है तो अन्य व्यक्ति उसके अनुरूप बनने की कोशिश करते हैं और उसके फैशन को अपनाने लगते हैं। यही फैशन के व्यापक प्रसार का कारण है।
(5) अहं का विस्तार (Ego. Expansion ) — फैशन व्यक्ति के अहम् के विस्तार का भी एक माध्यम है इसीलिए यह फैशन की उत्पत्ति व विस्तार में सहायक होता है। यदि कोई व्यक्ति नये फैशन को जन्म देता है तो वह अन्य लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। इसमें वह व्यक्ति अपने आपको ऊँचा समझने लगता है। उसे लोगों द्वारा आदर व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, अन्य लोग उसका अनुसरण करते हैं। इससे समाज में उसको विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है। यह बातें उसके आत्म गौरव में वृद्धि करती हैं और उसके अहं का विस्तार होता है इसीलिए व्यक्ति फैशन को जन्म देता है व फैलाता है।
(6) क्षतिपूर्ति की इच्छा (Desire for Compensation ) - जो व्यक्ति शारीरिक या मानसिक कमी के कारण समाज में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध नहीं कर पाते वह अपनी इस क्षतिपूर्ति को फैशन के माध्यम से अभिव्यक्त कर समाज में श्रेष्ठ बनने की कोशिश करते हैं। जो व्यक्ति अपने गुणों से श्रेष्ठ होते हैं वे सामान्यतः फैशन की ओर अधिक आकर्षित नहीं होते जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक, साहित्यकार, शिक्षक, राष्ट्रीय नेता आदि। इन व्यक्तियों में स्वयं की योग्यता होती है। अतः उन्हें अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए फैशन आदि दिखावटी वस्तुओं की सहायता की आवश्यकता नहीं रहती। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों में कुछ कमी या दोष रह जाता है, उनमें हीनता की भावना आ जाती है और वे इस हीन भावना की क्षतिपूर्ति के लिए फैशन की सहायता लेते हैं। वे आधुनिकतम फैशन को अपनाकर अपने आपको विशिष्ट बनाते हैं।
(7) स्वरूप की चेतना (Consciousness about Posture )- कुछ व्यक्ति स्वयं की आकृति व स्वरूप के प्रति बड़े सचेत रहते हैं। वे रोज अपने जूतों पर पॉलिश करते हैं। कटाई ठीक करते रहते हैं। कपड़ों पर रोज प्रेस करते हैं, उनके बाल हमेशा सँवरे रहते हैं, और वे पूरे समय अपने को सँवारकर रखने की कोशिश करते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति फैशन के बारे में भी सजग रहते हैं और जैसे ही नया परिवर्तन आता है वह उसे अपनाकर समय के साथ चलने की कोशिश करते हैं।
(8) उच्च वर्ग का अनुसरण (Follow to high Society ) — निम्न वर्ग के व्यक्तियों में यह इच्छा होती है कि वे रहन-सहन व रीति-रिवाज में उच्च वर्ग का अनुसरण कर सकें। कुछ व्यक्ति तो अपनी इच्छा की पूर्ति कर लेते हैं किन्तु कुछ व्यक्ति परिस्थितिवश ऐसा नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में उच्च वर्ग द्वारा अपनाये गये फैशन को निम्न व्यक्तियों द्वारा अपना लिया जाता है और निम्न वर्ग अपनी इच्छा की सन्तुष्टि कर लेता है। निम्न वर्ग द्वारा फैशन के अपनाये जाने के बाद उच्च वर्ग उस फैशन को बदल देते हैं। इसी तरह फैशन का क्रम चलता रहता है।
(9) आकर्षण का केन्द्र बनने की इच्छा (Desire of Becoming Attractive)- फैशन में आत्मप्रदर्शन की भावना विद्यमान रहती है। उस भावना के कारण व्यक्ति फैशन को अपनाकर आकर्षण का केन्द्र बनना चाहता है। फैशन की उत्पत्ति का यह एक प्रेरक तत्व है।
पुरुष स्त्रियों को और स्त्रियाँ पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए फैशन करती हैं और अधिक से अधिक आकर्षक बनने की कोशिश करती हैं। यह प्रवृत्ति स्त्रियों में अधिक देखी जाती है।
(10) नये आविष्कार ( New Invention ) — वर्तमान समय में नित नए वैज्ञानिक आविष्कार होते रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को नई-नई बातों की जानकारी प्राप्त होती है। कई नई सुविधाओं व विशेषताओं का ज्ञान मिलता है। व्यक्ति इन नई सुविधाओं व विशेषताओं से प्रभावित होकर नयी वस्तुएँ अपनाना चाहता है। पुरानी वस्तुएँ जब नए रूप में सामने आती हैं तो वह कई बार फैशन का रूप धारण कर लेती हैं।
(11) यातायात व दूर संचार के साधनों का विकास (Development in Transportation and Communication ) — यातायात व दूरसंचार के साधनों में विकास होने के कारण एक स्थान, नगर या देश का फैशन तुरन्त दूसरे स्थान पर पहुँच जाता है जिससे फैशन के विस्तार में सहायता मिलती है। आज दूरदर्शन के विकास से कोई भी नया फैशन दो-चार दिन में ही पूरे विश्व में फैल जाता है।
(12) व्यक्ति की उम्र (Age of Person) - सामान्यतः युवा व्यक्ति अधिक परिवर्तनशील होते हैं। वे फैशन की वस्तुओं का उपयोग करना पसन्द नहीं करते अतः स्वयं को आधुनिक कहलाने की होड़ में नित नए फैशन को अपनाना पसन्द करते हैं।
(13) पैसे कमाने की धुन (Fad of Earning Money) — नये फैशन के निर्माण और ★ प्रसारण में व्यापारी लोगों की पैसे कमाने की धुन भी एक कारण होता है। व्यापारी जनता की रुचि का सर्वेक्षण करके उनकी पसन्द व दुर्बलताओं को पहचानने की कोशिश करते हैं और उसी के अनुसार नित नये फैशन का निर्माण करते रहते हैं।
फैशन के बाधक तत्व
(Factors Retarding Fashion )
फैशन का विस्तार जितनी शीघ्रता से होता है उसका पतन भी उतनी ही शीघ्रता से होता है। कई तत्व ऐसे होते हैं जो केवल फैशन के विस्तार में बाधक होते हैं जबकि कई तत्व फैशन की उत्पत्ति में बाधक होते हैं। फैशन के बाधक तत्व इस प्रकार हैं-
(1) निम्न आय (Low Income) - निम्न नये फैशन को अपनाने में धन की आवश्यकता होती है। कई बार परिधान या वस्तुएँ मजबूत हैं किन्तु उसका फैशन पुराना हो जाता है। ऐसी स्थिति में उसे व्यर्थ करके नई खरीदना निम्न आय के व्यक्तियों के लिए सम्भव नहीं होता और वे फैशन का अनुसरण नहीं कर पाते।
(2) नैतिकता का अभाव (Absence of morality ) - यदि फैशन में नैतिकता का अभाव होता है तो समाज उसका विरोध करता है और उसे पनपने नहीं देता। कभी-कभी किसी एक स्थान पर कोई फैशन जन्म लेता है, किन्तु वही फैशन जब दूसरे स्थान पर जाता है तो उस समाज की मर्यादाओं के अनुसार वह अनैतिक हो सकता है। अतः ऐसी स्थिति में वहाँ फैशन का विस्तार नहीं हो पाएगा।
(3) परिवर्तन विरोधी विचारधारा (Negative thinking about change )— फैशन का जन्म परिवर्तन की चाह से होता है। यदि व्यक्ति या समूह परिवर्तन विरोधी होते हैं तो फैशन की उत्पत्ति सम्भव नहीं होती। सामान्यतः अधिक उम्र के व्यक्ति परिवर्तन पसन्द नहीं करते हैं।
(4) विवेकपूर्ण चुनाव ( Rational choice )- विवेकपूर्ण चुनाव भी फैशन के विकास में बाधक होता है। यदि व्यक्ति बुद्धिमान है, वह किसी भी वस्तु का विवेकपूर्ण चुनाव करता है तो वह वस्तु का चुनाव तर्क के आधार पर करता है। साथ ही वह यह भी देखता है कि वस्तु में उपयोगिता है या नहीं। कई फैशन तर्कशून्यता पर आधारित होते हैं व उनमें उपयोगिता का अभाव होता है। ऐसी दशा में व्यक्ति फैशन को नहीं अपनाता है और यही कारण फैशन के व्यापक विस्तार में बाधक हो जाता है।
(5) सामाजिक मूल्यों का अभाव (Absence of Social Value ) — कोई भी फैशन समाज में जब तक अस्तित्व में नहीं आ सकता जब तक कि उसमें कुछ न कुछ सामाजिक मूल्य न हो। अतः सामाजिक स्वीकृति के अभाव में फैशन की उत्पत्ति सम्भव नहीं है।
(6) पुरातन संस्कृति के कट्टर समर्थक (Strictly followed conventional culture ) - जो व्यक्ति या समूह पुरातन संस्कृति के कट्टर समर्थक होते हैं वे परिवर्तन को पसन्द नहीं करते। वे ऐसी कोई फैशन नहीं अपनाते जिससे उनकी संस्कृति पर आँच आये। वह अपनी पुरातन संस्कृति को उसी रूप में बनाये रखना चाहते हैं जिस रूप में वह है। ऐसी स्थिति में फैशन का विकास नहीं हो पाता।
(7) समूह द्वारा नापसन्द (Group are not interested ) — कोई भी नवीन विचारधारा जब एक व्यक्ति द्वारा अपनाई जाती है तो वह शैली ( Style) कहलाती है। जब यही विचारधारा समूह द्वारा अपनाई जाती है तो फैशन कहलाती है। कई बार कोई परिधान या विचारधारा समूह द्वारा पसन्द नहीं की जाती है और इसलिए यह अपनाई नहीं जाती। ऐसी स्थिति में फैशन का अस्तित्व नहीं रहता।
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