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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2685
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

वेदान्त का शाब्दिक अर्थ हैवेदों का अन्तिम भाग अतः वेदान्त का तात्पर्य उस अन्तिम ज्ञान से है जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तत्व मीमांसा - तत्व का शाब्दिक अर्थ ( सत्ता मीमांसा) से है। जिसे सत्ता की मीमांसा या विवेचना करने वाला शास्त्र कह सकते हैं। इस अर्थ में सत्ता मीमांसा भी "मैटाफिजिक्स" (तत्वशास्त्र) के समान है। क्योंकि दोनों में तत्व या सत्ता की समस्या के सम्बन्ध में ही विचार किया जा सकता है। दर्शन के रूप में वेदान्त भारत का मौलिक, अत्यन्त तार्किक सर्वश्रेष्ठ एवं प्रमुख विचार है।

तत्व मीमांसा सदैव ही इस प्रश्न- के प्रत्युत्तर की खोज में लगा रहता है कि इस संसार में वास्तविकता क्या है? अर्थात् तत्व मीमांसा दर्शनशास्त्र की वह शाखा है जो वास्तविकता की प्रकृति की खोज करती है। ईश्वर के सम्बन्ध में तत्वमीमांसा से सम्बन्धित विद्वानों के मतों में भी एकरूपता नहीं है। सभी ने ईश्वर के स्वरूप को अपने अनुकूल बताया है जो इस प्रकार है -

1. आस्तिकवाद - यह विचारधारा ईश्वर की सत्ता व उसके अस्तित्व में विश्वास करती है। और मानती है कि ईश्वर इस संसार में हर जगह विद्यमान है और वही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का संचालक है।
2. नास्तिकवाद - ये लोग ईश्वर की सत्ता व उसके अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। इनका मानना है कि ईश्वर को किसी ने नहीं देखा, अतः यह एक कोरी कल्पना है।
3. अनेकावाद या बहुवाद - यह न केवल ईश्वर के अस्तित्व व सत्ता में विश्वास रखते हैं वरन् यह भी मानते हैं कि इस संसार में अनेक ईश्वर है जो सर्वत्र विद्यमान है।
4. एकवाद - यह विचारधारा सिर्फ एक ईश्वर के अस्तित्व में ही विश्वास रखती है। इनके अनुसार ईश्वर एक है जो सर्वशक्तिमान है।
5. द्वैतवाद - यह मानते है कि ईश्वर के दो रूप है। एक आत्मा का दूसरा परमात्मा का।
6. विश्व द्वैतवाद - इनके विचारानुसार ईश्वर तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ही है ईश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में समाया हुआ है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ईश्वर का ही स्वरूप है अर्थात् ईश्वर सब कुछ तथा वही सबमें समाहित है।
7. ईश्वरवाद - ईश्वर ने यह विश्व बनाया व उसके सभी तत्वों की रचना की है परन्तु रचना करने के बाद वह अपने कार्य से मुक्त हो गया। इनका विचार है कि ईश्वर एक अवकाश प्राप्त रचनाकार होता है।

तत्व मीमांसा यह भी मानता है। कि इस संसार में ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य ही है। मनुष्य के माध्यम से ही ईश्वर को समझा जा सकता है व उसके स्वरूप को पहचाना जा सकता है

तत्व मीमांसा का अध्ययन क्षेत्र - तत्व मीमांसा के स्वरूप को और अधिक स्पष्ट करने के लिए यदि दार्शनिकों के विचारों को देखें तो स्पष्ट होता है कि सभी ने एक परम सत्ता को स्वीकार किया है और उसी की तलाश से जगत की सार्थकता को सिद्ध करने का प्रयास किया। उसी सत्ता को किसी ने द्रव्य, ईश्वर, किसी ने किसी ने आब्सोल्यूट और किसी ने ब्रह्मा कहा है। तत्व मीमांसा के अन्तर्गत विभिन्न शाखायें है जिनका व्यापक अध्ययन इस मीमांसा के अन्तर्गत किया जाता है

1. आत्म तत्व सम्बन्धी ज्ञान - इसके अन्तर्गत आत्मा के स्वरूप के विषय की खोज की जाती है। इसमें मुख्य प्रश्न होते हैं मै कौन हूँ? सुकरात ने दर्शन की मुख्य समस्या अपनी आत्मा को जानना माना है। उपनिषदों में "समआत्मा ब्रह्मा" और अहम् ब्रह्मसि जैसे सूब आत्मा के स्वरूप के परिचायक है।

2. ईश्वर सम्बन्धी तत्व दर्शन - इसमें ईश्वर विषयक प्रश्नों के उत्तर - खोजे जाते हैं जैसे ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं। यदि ईश्वर का अस्तित्व है तो इस बात का क्या प्रमाण है। कि ईश्वर का स्वरूप कैसा है?

3. सत्ता शास्त्र - यह तत्व मीमांसा की मुख्य शाखा है। इसमें अखिल विश्व ब्रह्माण्ड की रचना भौतिक तत्वों से हुई है। क्या का निर्माण आध्यात्मिक तत्वों से हुआ है आदि।

4. सृष्टि उत्पत्ति का शास्त्र - इसमें सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में विचार किया गया है। जैसे सृष्टि अथवा विश्व की उत्पत्ति किस प्रकार हुयी है। क्या इसकी रचना की गयी है? यदि हाँ तो इसकी रचना किसने की है आदि।

ज्ञान मीमांसा - ज्ञान के लिये एक विशेष अंग्रेजी का पद एपिस्टिमोलॉजी प्रयुक्त होता है जो ग्रीक शब्द Epistome (एपिस्टिमें) और लोगोस से बना है। एपिस्टिमे का अर्थ है नालेज अथवा ज्ञान लोगोस का अर्थ विज्ञान से होता है अर्थात् शाब्दिक अर्थ देखते हुये कहा जा सकता है कि एपिस्टेमोलॉजी ज्ञान का विज्ञान है अथवा ज्ञान का सिद्धान्त जिसे दार्शनिक दृष्टि से ज्ञान मीमांसा कहा जा सकता है।

कान्ट के अनुसार - "ज्ञान मीमांसा ज्ञान का विज्ञान तथा समालोचना है। "

ज्ञान मीमांसा के सिद्धान्त ज्ञान मीमांसा के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

1. अनुभववाद - अनुभववाद को समस्त ज्ञान का स्रोत माना गया है। अनुभववाद के अनुसार मनुष्य को ज्ञान उसकी इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त संवेदनाओं के द्वारा होता है अनुभववाद के जनक ब्रिटिश दार्शनिक जॉन लाक थे।

2. संशयवाद - ह्यूम का मानना है कि हम अपने तत्काल ज्ञान के बाहर किसी वस्तु के अस्तित्व के विषय में निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते क्योंकि इसे सिद्ध करने के लिए मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।

3. प्रत्ययवाद - प्रत्ययवाद की चरम सत्ता मनस की मानी है। इस विचारधारा के अनुसार विश्व की प्रत्येक वस्तु मनस पर आधारित है। संसार की प्रत्येक भौतिक वस्तु क्षणिक तथा परिवर्तनशील है। ब्रह्माण्ड की प्रत्येक घटना एवं तत्व अपने अस्तित्व के लिए मनस पर आश्रित एवं आधारित है।

4. बुद्धिवाद - बुद्धिवाद ज्ञान की ही एक वृहत् धारा है। बुद्धिवाद सम्पूर्ण ज्ञान को बुद्धि पर ही आश्रित मानता है। ऐतिहासिक दृष्टि से पश्चिमी दर्शन में बुद्धिवाद का प्रारम्भ देकार्ते से माना जाता है। बुद्धिवाद में सत्य का अन्वेषण आवश्यक है और हम बिना प्रमाण के किसी तथ्य की स्वीकार नहीं कर सकते।

5. यथार्थवाद - इस विचारधारा में अध्यात्म की सत्ता से परे भौतिक सत्ता में ही विश्वास प्रकट किया गया है। मन और मानसिकता को चिन्तन न मानते हुऐ पदार्थ को ही जगत का आध र माना गया है। बटलर " यथार्थवाद संसार को सामान्यतः उसी रूप में स्वीकार करता है जिस रूप में वह हमें दिखाई देता है।"

6. व्यवहारवाद - इस विचारधारा का मूल तत्व है कि कोई भी पूर्ण सिद्ध सत्य स्वीकार करने योग्य नहीं है। सभी सत्ता परिवर्तनशील है। जो आज और अभी सत्य है। इस वाद ने आधुनिक दर्शन को विशेष महत्व दिया।

ज्ञान मीमांसा का क्षेत्र एवं स्वरूप - दर्शनशास्त्र में ज्ञान मीमांसा वह शाखा है जो ज्ञान की उत्पत्ति, विकास और स्वरूप एवं उसकी रचना विधि एवं सत्य की कसौटी पर विचार करती है। ज्ञान विश्वास पर आधारित होता है। ज्ञान मीमांसा सत्य तक पहुँचने के लिये प्रमाणों द्वारा उस विश्वास की मीमांसा है। कहा जा सकता है। कि ज्ञान मीमांसा में ज्ञान, अनुभव बुद्धि विश्वास, सत्य प्रमाण आदि का विवेचन होता है। इस मीमांसा में समीक्षात्मक दृष्टि से सामान्य ज्ञान की भी समीक्षा की जाती है। ज्ञान मीमांसा में निम्न क्षेत्रों को समाहित किया जाता है। ज्ञान मीमांसा के समीक्षात्मक रूप के अन्तर्गत भाषागत ज्ञान के विषयों की मीमांसा होती है।

मूल्य मीमांसा - मूल्य मीमांसा को अंग्रेजी में (Astiology) कहा जाता है जो दो शब्दों से मिलकर मूल्य तथा विज्ञान से बना है।

मूल्यों के दो प्रकार होते हैं -

1. आन्तरिक मूल्य, 2. बाह्य मूल्य

यही मूल्य विभिन्न रूपों में हमारी गतिविधियों का निर्धारण एवं मूल्यांकन करते हैं।

मूल्यों के क्षेत्र

मूल्यों के क्षेत्र निम्नलिखित हैं -

1. आर्थिक मूल्य - इसको हम साधक या उपकरणीय मूल्य कह सकते है। मूल्यों की शिक्षा में धन के सदुपयोग पर बल दिया जाना चाहिए।
2. स्वास्थ्य सम्बन्धी मूल्य - यह मूल्य शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति से सम्बन्धित है। मूल्य शिक्षा में स्वस्थ्य जीवन के मूल्य की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है।
3. सामाजिक मूल्य - मूल्य शिक्षा ऐसे मूल्यों को प्रोत्साहित कर सकती है। जो मित्रता, प्रेम, उदारता इत्यादि हो।
4. नैतिक मूल्य - नैतिक मूल्यों की शिक्षा विद्यार्थी के अन्दर उपयुक्त एवं सही विकल्पों के चुनाव करने की क्षमता में वृद्धि और उनमें सन्तोष प्राप्त करने की आदत बनाने की ओर दिखानी चाहिए।
5. सौन्दर्यानुभूति मूल्य - इस क्षेत्र में मूल्य शिक्षा सुन्दर और असुन्दर में विभेद करने की योग्यता में वृद्धि की ओर होनी चाहिये।
6. बौद्धिक मूल्य - हम किसी कार्य या वस्तु को बौद्धिक मूल्य का उस समय करते हैं। जबकि वह किस प्रकार से सत्य का पता लगाने में सहायक या बाधक होता है। मूल्य शिक्षा बौद्धिक मूल्यों की शिक्षा सत्य की खोज की ओर विद्यार्थियों की रुचि बढ़ा कर दे सकती है।

 

आचार मीमांसा - मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति करना है, जिसके लिये आध्यात्मिक ज्ञान मार्ग पर चलना आवश्यक है। ज्ञान प्राप्ति के शंकराचार्य ने श्रवण, मनन, निदिध्यासन और साधन चतुष्ठ्य पर बल दिया है। शंकराचार्य ने कहा कि मनुष्य अपना व्यावहारिक जीवन सफलतापूर्वक तभी व्यतीत कर सकता है। जब वह अपने दायित्वों का पालन निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ करें। वह जितना ईमानदारी के साथ जीवनयापन करेगा उतना ही सफल होगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
  10. प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
  12. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
  14. प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  17. प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
  20. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
  22. प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
  23. प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
  24. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।‌
  25. प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
  28. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
  32. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
  33. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
  35. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
  37. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
  38. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
  39. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
  45. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
  46. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  47. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
  49. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  51. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  53. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  54. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  55. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  56. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
  58. प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
  59. प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
  60. प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  62. प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
  64. प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
  65. प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
  67. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  69. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
  77. प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
  79. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  83. प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
  86. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
  87. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
  89. प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
  90. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  92. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
  93. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  94. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  95. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  96. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  97. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  98. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  99. प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
  100. प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
  101. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
  103. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  104. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  107. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  111. प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
  118. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  120. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  121. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  122. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  123. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  124. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  126. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
  128. प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
  129. प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  131. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
  134. प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  135. प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
  136. प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
  137. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
  138. प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
  140. प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  142. प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  143. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
  145. प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
  148. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
  149. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  151. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  153. प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  154. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?

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