बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायेंसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें
प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
वेदान्त ज्ञान योग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद, ग्रन्थों और अख्यक ग्रन्थों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसलिए इसको वेदान्त कहते हैं। वेदान्त का शाब्दिक अर्थ वेदों का अंत / वेदान्त की तीन शाखाएं जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत।
वेदान्त दर्शन की विशेषतायें - वेदान्त दर्शन की अनेक विशेषताएं हैं। प्रथम तो नाम पर विचार कीजिये। अंग्रेजी में दर्शन के लिये फिलासफी शब्द का प्रयोग होता है। यह ग्रीक (यूनानी) शब्द है और इसका अर्थ है लव आफ विज्डम या बुद्धि प्रेम। संस्कृत का 'दर्शन' शब्द अधिक सारगर्भित है। दर्शन का अर्थ है देखना। (दृश धातु से) दर्शन की सार्थकता निर्भर है दृष्टा और दृश्य पर। यदि दृष्टा मिथ्या है तो दर्शन कैसा और यदि दृश्य मिथ्या तो दर्शन का क्या अर्थ? अतः दर्शन शब्द ही प्रकट करता है कि दृष्टा और दृश्य जीव और जगत की सत्ता को स्वीकार करते हैं। यदि शंकर स्वामी ने जगत को मिथ्या कहा, तो मिध्या का दर्शन ही क्या और यदि दृश्य कुछ न रहा तो न दर्शन रहा न दृष्टा। ऋषि दयानन्द ने इसलिये वेद के इस अन्त का उद्धरण देकर के जीव, ब्रह्म और जड़-जगत तीनों की सत्ता स्वीकार की है, वैदिक दर्शन द्वैत दर्शन है। इस अर्थ में कि वह चेतन और जड़ दोनों संज्ञाओं को वास्तविक मानता है। इस को आप इस अर्थ में त्रैतवाद भी कह सकते हैं कि यह ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीन अनादि पदार्थों को मानता है। इसको बहुत्ववाद भी कह सकते हैं क्योंकि यह जीवों और परमाणुओं के बहुत्व को मानता है। प्रायः दर्शन की विशेषता यह मानी जाती है कि अनेकत्व में एकत्व को देखा जाए। वैसा वेद में लिखा है
सर्वभूतेषू चात्यांन तवो न विचिकित्सति।।
अर्थात् जो सब भूतों को आत्मा में और आत्मा को सब भूतो में ओत-प्रोत देखता है वह कभी दुःख नहीं पाता परन्तु जो लोग इसका अर्थ यह लेते हैं कि अनेकत्व मिथ्या है और एकत्व सत्य है, वह वेद के आशय को नहीं समझते। अनेकत्व में एकत्व कैसे देखा जाए यदि अनेकत्व मिथ्या हो। अधि करण के मिथ्या होने से अधिकृत भी मिथ्या होगा। आर्य दर्शन यही है कि जगत को मिथ्या न माना जाए। महर्षि व्यास ने वेदान्त का पहला सूत्र लिखा।
फिर ब्रह्म के लक्षण किए
जन्मा द्यस्य यत।
अर्थात् ब्रह्म वह है जिससे जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय हो।
यदि जगत मिथ्या है तो उसकी उत्पत्ति कैसी और स्थिति कैसी? एकतत्ववादी यह नहीं समझते कि अनेक तत्व न हो तो एक तत्व का भी क्या मूल्य? दार्शनिक जगत में एकत्व के कई समूह पाए जाते हैं।
शिक्षा के उद्देश्य - विवेकानन्द ने शिक्षा पर जो विचार प्रकट किये हैं उनके आधार पर उनकी शिक्षा के निम्न दो प्रमुख उद्देश्य बताये जा सकते हैं -
1. वेदान्त के आधार पर शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य है मोक्ष प्राप्ति। 2. वेदान्त दर्शन में आधुनिकता एवं मानवतावाद का सम्मिश्रण करने पर शिक्षा का मुख्य उद्देश्य श्रेष्ठ, सच्चरित, राष्ट्रभक्त और सत्यानुरागी मानव का निर्माण करना है
उक्त दोनों उद्देश्य अन्तिम रूप से एक ही मुख्य लक्ष्य को लेकर चलते हैं और वह है मानव रूप में मानव की सेवा करते हुए ईश्वर प्राप्ति की ओर निरन्तर आगे बढ़ते रहना। स्वामी जी मनुष्य के स्वतन्त्र अनुभवों को भी शिक्षा के लिये आवश्यक मानते हैं। इस प्रकार स्वामी जी के वेदान्त दर्शन के आधार पर शिक्षा के निम्न उद्देश्य बताये जा सकते हैं।
1. व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियों का पूर्ण विकास - स्वामी जी के विचारों से स्पष्ट है कि शिक्षा मनुष्य की आन्तरिक पूर्णता को अभिव्यक्ति देने का एक साधन है। अतः शिक्षा द्वारा मनुष्य की आन्तरिक पूर्णता का बाह्य प्रकटीकरण किया जाना चाहिए। इसके लिए शिक्षा इस प्रकार से दी जानी चाहिए कि व्यक्ति स्वयं आत्मानुभूति के द्वारा अपनी शक्तियों से परिचित हो सके और अपने शिक्षक से मार्गदर्शन लेकर स्वयं अपना विकास करने में समर्थ हो सके। यह उद्देश्य आधुनिक युग के वैयक्तिक विकास का ही एक उत्कृष्टतम रूप है, जो व्यक्ति को सीधे आत्मदर्शन के लिये प्रेरित करता है।
2. शारीरिक एवं मानसिक विकास - स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मस्तिष्क अथवा मन का विकास होता है। इसी तथ्य के आधार पर स्वामी जी ने छात्रों के शारीरिक स्वास्थ्य तथा इनके मानसिक विकास को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना है।
3. मानव सेवा के माध्यम से सामाजिक विकास - स्वामी विवेकानन्द ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते हैं जिससे एक मानव दूसरे मानव की सेवा, श्रद्धा भक्ति और मानवता के साथ अपना कर्त्तव्य समझ कर करें। मानव सेवा ही सच्ची समाज सेवा है और वही ब्रह्म की प्राप्ति का एक मात्र मार्ग है।
4. मनुष्यों में परस्पर प्रेम व श्रद्धा का भाव जागृत करना - स्वामी जी जीवन में पारस्परिक श्रद्धा और विश्वास को बहुत महत्व देते हैं। उनके अनुसार शिक्षा द्वारा बालकों में सत्कर्मों के प्रति स्वाभाविक अनुराग उत्पन्न किया जाना चाहिए। श्रद्धा ही मानव को आत्मविश्वासी, क्रियाशील, कर्मठ एवं संयमी बनाती है।
5. उत्तम चरित्र का निर्माण - शिक्षा द्वारा मानव के उत्तम चरित्र का निर्माण अवश्य किया जाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि श्रेष्ठ चरित्र के लिए व्यक्ति बड़े-बड़े आडम्बरपूर्ण कार्य करे बल्कि जीवन से जुड़ी हुई प्रत्येक छोटी-बड़ी बात में भी उसे अपने चरित्र की छाप छोड़नी चाहिए। चरित्र ऐसा होना चाहिए जिससे व्यक्ति के हर कार्य में कुछ विशिष्टता और महानता की झलक दिखाई दे। अच्छे कार्यों को मनुष्य को अपनी आदतों में शामिल कर लेना चाहिए।
पाठ्यक्रम
स्वामी जी की शिक्षा पद्धति का मूल उद्देश्य श्रेष्ठ मानव का निर्माण करना है। अपने जीवन में मिलने वाले मृदु-कटु अनुभवों के आधार पर उन्होंने शिक्षा पर अपने विचार यत्र-तत्र अपने व्याख्यानो; लेखों और भाषणों आदि में प्रस्तुत किये है। इन स्फुट विचारों में कहीं-कहीं व्यावहारिकता के नाम कुछ समझौते अवश्य किये गये हैं, किन्तु उन्होंने मानव निर्माण के अपने जीवन लक्ष्य को कभी भी कमजोर नहीं पड़ने दिया है। यहीं कारण है कि उन्होंने पाठ्यक्रम पर अलग से विचार नहीं किया है। इसका दूसरा कारण सम्मवतः ये भी हो सकता है कि वे तत्कालीन विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था से सन्तुष्ट नहीं थे और अपने लघु व व्यस्त जीवन में शिक्षा प्रणाली पर विस्तृत रूप से विचार करने का उन्हें अवसर नहीं मिल सका था। अतः शिक्षा पर उपलब्ध उनके विचारों के आधार पर उनके पाठ्यक्रम को दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है -
1. मानव निर्माण का आध्यात्मिक पाठ्यक्रम - आध्यात्मिक पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वैदिक साहित्य, हिन्दू धर्म से सम्बन्धित साहित्य जैसे पुराण, धार्मिक भजन कीर्तन, सन्तों की वाणी, प्रवचन, साधु सन्यासी जनो को शिक्षाओं का श्रवण, मनन एवं चिन्तन। वैदिक साहित्य में वेदान्त के अध्ययन को विशेष महत्व दिया गया है।
2. जीविकोपार्जन हेतु लौकिक पाठ्यक्रम - लोकाचार एवं सामाजिक जीवनयापन के लिये स्वामी जी ने भाषा के अन्तर्गत संस्कृत, मातृभाषा, प्रादेशिक भाषा और अंग्रेजी को स्थान दिया है। इसके बाद विज्ञान, गृह विज्ञान, तकनीकी विज्ञान, मनोविज्ञान, उद्योग व्यवसाय, इतिहास, भूगोल, गणित, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र आदि विषयों के अध्ययन पर जोर दिया है। खेलकूद, सामाजिक सेवा, व्यायाम एवं राष्ट्रभक्ति के साहित्य को भी उन्होंने पर्याप्त महत्वपूर्ण बताया है। वे पाठ्यचर्या में उन प्रकरणों को सम्मिलित करने के प्रबल विरोधी हैं जो बालकों को शारीरिक मानसिक रूप से दुर्बल व कमजोर बनाये। स्वामी जी ने उन समस्त विषयों, प्रकरणों और क्रियाकलापों को पाठ्यक्रम में महत्व दिया है जो मनुष्य का सार्वभौमिक विकास करने के लिये आवश्यक है।
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- प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
- प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
- प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
- प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
- प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
- प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
- प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
- प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
- प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
- प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
- प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
- प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
- प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?