बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र
प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए फोर्ड ने लिखा है, "अधिनायक तंत्र राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर- कानूनी शक्ति प्रदान करना है।" अधिनायकवाद अपनी शक्ति का प्रयोग स्वच्छतापूर्वक या मनमाने ढंग से करता है। यह एक प्राचीन शासन प्रणाली है। मध्यकाल में संसार के कई राज्यों में अधिनायकों की निरंकुश शासन व्यवस्था थी। वर्तमान युग में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अधिनायकवाद तेजी से बढ़ा। इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर भयंकर तानाशाह बना। अधिनायकतंत्र भी कई प्रकार का होता है। प्रथम, एक व्यक्ति सेना के बल पर सम्पूर्ण देश में शासन करता है। द्वितीय, वह जिसमें एक व्यक्ति एक पार्टी के बल पर सम्पूर्ण शासन पर अधिकार रखता है। तृतीय, अधिनायकतंत्र वह है जिसमें एक व्यक्ति अपने चमत्कारिक लक्षणों के कारण सम्पूर्ण शासन तंत्र का स्वामी बन जाता है। प्रायः कहा जाता है कि अधिनायकवाद में राज्य की सम्पूर्ण शक्ति एक ही व्यक्ति में निहित होती है जो स्वयं मूर्तिमान राज्य होता है।
जैक्सन ने अधिनायकतन्त्र के गुणों के बारे में कहा है कि "स्पेन के इतिहास में यह पहला अवसर है जब रेलें समय पर चल रही हैं। अधिनायकवादी व्यवस्था के अधीन व्यापार और उद्योग समृद्ध हुये हैं, कृषि भी उन्नतिशील हुई है तथा श्रम संकट दूर हो गये हैं।
प्रो. एस. एन. दुबे के अनुसार, "अधिनायकतन्त्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें शासक वर्ग जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। अधिनायकवाद लोकतंत्र का विलोम माना गया है।"
एफ. न्यूमैन के अनुसार, "अधिनायकतंत्र से हमारा आशय एक या कुछ लोगों के एक समूह के शासन से है जो स्वयं को अन्यायपूर्वक राज्य सत्ता में स्थापित करता है और बिना किसी प्रकार के नियंत्रण को स्वीकारते हुए सत्ता का एकाधिकारपूर्ण ढंग से प्रयोग करता है।"
सेल्टाऊ के शब्दों में, "अधिनायकतंत्र एक व्यक्ति का शासन होता है जिसने अपने पद को सामान्य तौर पर वंशानुगत रूप में प्राप्त नहीं किया होता है वरन् शक्ति अथवा सहमति या दोनों के सहयोग से प्राप्त किया होता है। यह निरपेक्ष प्रभुसत्ता प्राप्त करता है और इसका प्रयोग वह कानून के स्थान पर अपनी इच्छा से आदेशों को लागू करके करता है।"
मैकाइवर के अनुसार, "विभिन्न शासन प्रणालियाँ इस रूप में संवैधानिक मानी जाती हैं कि उनके सत्ता में आने का एक तय कानूनी आधार होता है जिसे शासन सत्ता में आने वाली सरकार नहीं बनती है और न ही तोड़ती है। इस रूप में अन्य समस्त शासन प्रणालियाँ वैध मानी जाती हैं। केवल अधिनायकतन्त्र ही मात्र अपनी इच्छा को सत्ता का एक मात्र औचित्य मानता है। समाज की सभी अवस्थाओं में लोगों की सत्ता के स्रोत को जानने में रुचि रही है, इसे कभी समुदाय में ईश्वर या पवित्र रूढ़ियों में देखा है, लेकिन अधिनायकतंत्र इनकी उपेक्षा करता है और अपने अस्तित्व को ही एकमात्र स्वीकारणीय मानता है।"
अधिनायकवाद की विशेषताएँ - विभिन्न समाजशास्त्रियों ने अधिनायकवाद की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है -
(1) हिंसा और शक्ति में विश्वास - अधिनायकवादियों के अनुसार राज्य का मूर्त रूप है और शांति कायरों की देन है यह मानवता के मस्तिष्क पर कुलीनता का टीका लगा देता है। अधिनायकवादी देशों ने सैन्यशक्ति पर भोजन से अधिक बल दिया है। उनके अनुसार राज्य को शक्तिशाली बनाने के लिए महत्वकांक्षी तथा कठोर व्यक्तियों का नेतृत्व चाहिए। युद्धकाल में ही संस्कृति का उदय होता है।
(2) उग्र राष्ट्रीयता अधिनायकवाद राज्य को साध्य एवं व्यक्तियों को साधन मानते हैं। उनका विचार है कि व्यक्ति को राज्य के लिए बलिदान कर देना चाहिए, इनका राष्ट्रवाद दूसरे देशों के अधिकारों की अवहेलना करता है। राज्य की पूजा करनी चाहिए।
(3) संसदीय शासन के विरुद्ध - संसदीय सरकार के विरुद्ध अधिनायकतंत्र एक या कुछ व्यक्तियों द्वारा शासन है। इसलिए तानाशाही आवश्यक है। यह संसद को केवल बात करने वाली सभा मानते हैं।
(4) प्रेस और रेडियो पर नियंत्रण - तानाशाही समाचार-पत्रों को विरोधी विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता नहीं देती, अपितु वे प्रेस तथा रेडियो पर अपना पूर्ण नियंत्रण रखते हैं और जनता को अपने पक्ष में शिक्षित करने के लिए उसका हर प्रकार से प्रयोग करते हैं।
(5) राज्य की सर्वोपरिता - तानाशाही लोकतंत्र के विरुद्धी होते हैं। इसमें सारी शक्तियाँ राज्य को देते हैं। मुसोलिनी का कहना था कि, "सब वस्तुएँ राज्य के अन्तर्गत हैं, राज्य के बाहर कुछ भी नहीं हैं।" इस तरह तानाशाही में सरकार की शक्तियाँ असीमित होती हैं ओर उस पर कोई वैधानिक नियंत्रण नहीं होता।
(6) मौलिक अधिकार और स्वतंत्रताओं का अंत - तानाशाही में जनता को प्रायः मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं से वंचित कर दिया जाता है। अधिकार जनता के हक में नहीं समझे जाते बल्कि राज्य की कृपा समझी जाती है।
(7) एक व्यक्ति का शासन - अधिनायकतंत्र में शासन एक व्यक्ति द्वारा ही किया जाता है। जैसे रूस या चीन में दल के नेता में ही शासन की शक्तियाँ निहित रहती है। इटली में मुसोलिनी का फासिस्टवाद या जर्मन में हिटलर का नाजीवाद अधिकनायकतंत्र शासन थे। फासिस्टवाद की व्याख्या करते हुए मैक्सी ने कहा है, कि फासिस्टवाद सिद्धान्तविदों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि समस्त शक्तियों का वास एक ही व्यक्ति में होना चाहिए, परन्तु जिस व्यक्ति को उन्होंने ये शक्तियाँ दी हैं, उसे एक तानाशाह न कहकर उसे देवता के सिंहासन पर बिठा दिया। ऐसा देवता जो सभी की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है और जो स्वयं राज्य का मूर्तिमान स्वरूप है।
(8) निरंकुशता - यह पद्धति राज्य की सर्वोच्चता और निरंकुशता में विश्वास करती है। "राज्य ईश्वरी का प्रतिरूप है", हीगल के इस कथन को अधिनायकवादी स्वीकार करते हैं। इसमें राज्य को सर्वश्रेष्ठ संस्था माना जाता है। उस पर कोई नियंत्रण नहीं होता तथा उसकी शक्तियाँ असीमित होती हैं। मुसोलिनी के अनुसार, "सब राज्य के भीतर है, राज्य के बाहर कुछ भी नहीं है और राज्य के विरुद्ध भी कुछ नहीं है।"
(9) स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध - अधिनायकतंत्र में व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्धित कर दी जाती है। उन्हें न तो अपने विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता रहती है और न ही शासन का विरोध करने की। समाचार-पत्रों पर भी शासन का नियंत्रण रहता है।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
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- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
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- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
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- प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
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- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
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- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
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- प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
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- प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
- प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?