बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र
प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
भारत में लोकतंत्र लोकतंत्र की उत्पत्ति प्राचीन काल में एक पौराणिक शहर एथेंस में पाई जा सकती है। लोकतंत्र प्राचीन सभ्यताओं से एक भारत में था। पूरे वैदिक काल में सभाओं और समितियों का अस्तित्व यहीं से शुरू होता है, जहाँ से भारत के लोकतंत्र का इतिहास शुरू होता है। अधिकांश प्राचीन शहर और राष्ट्र राजशाही थे, हालांकि उनमें से सभी नहीं थे। लोकतंत्र का विचार गायब नहीं था और पूरे मुगल काल में कई रूपों में मौजूद था। भारत पर ब्रिटिश का कब्जा तब हुआ था जब लोकतंत्र का विचार सबसे पहले नागरिकों के लिये महत्वपूर्ण हो गया था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक भारत में है, भारत दुनिया की सबसे बड़ी मत देने वाली आबादी है। भारत में दुनिया का सबसे लिखित संविधान भी है। अपनी स्थापना के बाद से भारत ने एक प्रगतिशील रुख अपनाया है। भारतीयों ने महिलाओं को मत देने का अधिकार दिया है, प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकार की रक्षा की है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धान्त को शामिल किया है। भारतीयों ने धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धान्तों को भी शामिल किया है। जो अभी भी अन्य लोकतंत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित नहीं है, लेकिन भारतीय संविधान में यह शुरूआत से ही शामिल हैं। भारत में लोकतांत्रिक के अस्तित्व और विस्तार की गारंटी देने वाला प्रमुख साधन भारत का संविधान है।
भारतीय लोकतंत्र की विशेषतायें भारतीय लोकतंत्र की विशेषताओं का उल्लेख निम्नलिखित है-
(1) लोकप्रिय संप्रभुता - भारत में आम जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती हैं और अपने विचारों से उनके व्यवहार को नियंत्रित करती हैं। लोकतांत्रिक सरकारों को विभिन्न मुद्दों पर जनता की राय बनाने के लिए आवश्यक संस्थायें प्रदान करनी चाहिये। विधायिका लोकप्रिय राय का आकलन करने और व्यक्त करने के लिये सबसे महत्वपूर्ण मंच प्रदान करती है।
(2) संघवाद - भारत में एक संघीय सरकार है जो शासन के एकात्मक रूप की ओर थोड़ा अधिक झुकती है। इसलिये भारत को कभी-कभी एक अर्धसंघीय संरचना के रूप में वर्णित किया जाता है। संघवाद के रूप में जानी जाने वाली प्रणाली संघीय सरकार और राज्यों के बीच अधिकार को विभाजित करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है। भारतीय संविधान घोषणा करता है कि राज्य स्वतंत्र है और अनुसूची VII में संघीय सरकार और राज्यों के बीच अधिकार का आवंटन सरकार की संघीय प्रणाली के लिए एक मजबूत मामला बनाता है। कुछ ऐसे क्षेत्रों में, उन्हें पूर्ण स्वायत्ता प्राप्त है जबकि अन्य में वे केन्द्र पर निर्भर है।
(3) बहुमत का नियम - देशभर में नियमित, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते हैं। कहा जाता है कि जिस दल को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं वह चुनाव जीत जाता है। विधायिका के भीतर भी, बहुमत का शासन एक आवश्यक भूमिका निभाता है। विधायी निर्णयों के लिए बहुमत नियम एक निर्णय लेने वाला सिद्धान्त है जो बहुमत या आधे से अधिक मतों के साथ विकल्पों का समर्थन करता है। महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले संगठनों में, जैसे कि लोकतांत्रिक देशों के कई विधायिकाओं में यह द्विआधारी निर्णय नियम है जो सबसे अधिक बार उपयोग किया जाता है।
(4) सहमति का नियम - मजबूरी या जबरदस्ती के बजाये, चुने हुये दल लोगों की अनुमति से शासन करेगा। लोकतंत्र में लोगों की सहमति महत्वपूर्ण है क्योंकि लोगों की भागीदारी लोगों को यह विश्वास करने की अनुमति देगी कि वे सत्ता में हैं और खुद को लोकतंत्र के अन्य सिद्धान्तों का पालन करने वाली सरकार द्वारा शासित होने की अनुमति देंगे।
(5) कल्याण उन्मुख सरकार - एक कल्याणकारी राज्य शासन का स्वरूप है जिसमें राज्य सक्रिय रूप से अपने लोगों की आर्थिक और सामाजिक की भलाई की रक्षा करता है और इसे आगे बढ़ता है। यह समान अवसर, समान आर्थिक वितरण और एक सभ्य जीवन के लिए छोटी-छोटी आवश्यकताओं तक पहुँचने में असमर्थ लोगों के लिए सार्वजनिक जिम्मेदारी के विचारों पर आधारित है। भारत ने संविधान के भाग IV में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धान्तों को लागू करके एक कल्याणकारी राज्य स्थापित करने का प्रयास किया है। भारत सरकार लगातार अपने नागरिकों के कल्याण के लिए प्रयास करती है और नागरिकों की मलाई में सुधार के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
(6) समझौता आधारित सरकार - एक समझौता सरकार वह है जिसमें रियायतों के आदान-प्रदान के माध्यम से असहमति का समाधान किया जाता है, यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें विरोध या प्रतिस्पर्धी दावों, सिद्धान्तों आदि को माँगों के पारस्परिक संशोधन के माध्यम से समायोजित किया जाता है। लोकतंत्र यह एक तरह का समझौता है और समायोजन आधारित शासन है। यह मुख्य रूप से ऐसे रियायतों के परिणाम पर कार्य करता है। सत्ताधारी दल के अन्दर और बाहर दोनों के अलग-अलग दृष्टिकोणों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। कई दृष्टिकोण भी हैं जिन पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।
(7) बहुदलीय प्रणाली - राजनीति के सन्दर्भ में एक बहुदलीय प्रणाली वह है जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेते हैं और व्यक्तिगत रूप से गठबंधन के माध्यम से सरकार का नियंत्रण जीतने की क्षमता रखते हैं। भारत में एक बहुदलीय प्रणाली है जिसका अर्थ है कि दो से अधिक दल कार्यालय के लिए चुनाव लड़ सकते हैं और किसी भी दल के पास राष्ट्र की बागडोर संभालने का मौका है। यह राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों और भौगोलिक क्षेत्रों से सभी विभिन्न मांगों का प्रतिनिधित्व करने में मदद करता है।
(8) राजनीतिक समानता - राजनीतिक समानता वह है जिसमें सभी नागरिकों को अपनी सरकारें चलाने के तरीके में समान अधिकार होता है। सभी नागरिकों की प्राथमिकताओं और हितों का समान रूप से ध्यान रखना लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। यह एक व्यक्ति, एक मत, एक कानून के समक्ष समान (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14) और समान स्वतंत्र भाषण का अधिकार (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19) जैसे विचारों में परिलक्षित (रिफ्लेक्ट) होता है। नागरिकों के महत्वपूर्ण समूहों में मतदान के अलावा अन्य प्रकार की भागीदारी में समानता सहित नागरिकों के बीच समान राजनीतिक भागीदारी सभी नागरिकों की प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं के समान विचार को बढ़ावा देती हैं। जाति, पंथ, धर्म, लिंग या जातीयता की परवाह किये बिना हर कोई जो भारतीय नागरिक है, मत देने का पात्र है। इस सिद्धान्त को भारत में उच्च सम्मान में रखा जाता है।
(9) सामूहिक जवाबदेही - विधायिका जो चुनी हुयी सरकार से बनी होती है, सामूहिक रूप से चुनी हुयी सरकार के प्रति जवाबदेह होती है। एक भारतीय लोकतंत्र में, राज्यों और केन्द्र दोनों में मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से अपने सम्बन्धित मंत्रियों के लिये जिम्मेदार होती है। कोई भी मंत्री किसी भी सरकारी कार्यवाही के लिये पूरी तरह से जवाबदेह नहीं होता है। सभी कार्य पूर्ण मंत्रिपरिषद के दायरे में आते हैं।
(10) स्वतंत्र न्यायपालिका - भारत में न्यायालय स्वतंत्र है और किसी भी सरकारी एजेंसी या राजनीतिक दल द्वारा शासित नहीं है। भारत की न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से अपने निर्णय लेती है और विधायी के किसी भी प्रभाव के अधीन नहीं है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्णय लेने की अनुमति देता है। लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता महत्वूपर्ण है। जब सरकार संविधान में उल्लिखित स्वतंत्रताओं और अधिकारों का दमन करती हैं, तो जनता न्यायपालिका का सहारा लेती है। इसलिये, विधायी और सरकार को नियंत्रण में रखने के लिये एक स्वतंत्र न्यायपालिका का होना महत्वपूर्ण है। भारत इस प्रणाली का उपयोग करता है, जो कई व्यक्तियों को 5 नागरिकों के प्रतिनिधियों के रूप में सेवा करने का मौका देता है। अन्य प्रणालियों के विपरीत जहाँ सिर्फ एक या दो पक्ष प्रतिस्पर्धा करते हैं, यह जनता के लिए व्यापक विविधता के विकल्प भी प्रदान करता है।
(11) लिखित संविधान - कई अन्य राष्ट्रों के विपरीत, भारत का एक लिखित संविधान है जो सरकार के कई विभागों की भूमिकाओं, शक्तियों, और दायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है और उन सीमाओं को निर्धारित करता है जिनके भीतर उन्हें काम करना चाहिए। न्यायपालिका और संसद के पास संविधान की व्याख्या करने और उसे बदलने का अधिकार है ताकि इसे जनता और समय की बदलती माँगों के अनुकूल बनाया जा सके।
निष्कर्ष - भारत और दुनिया भर में लोकतंत्र को सरकार का सबसे अच्छा ढाँचा माना जाता है। लोकतंत्र में नागरिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिये भागीदारी और प्रतिनिधित्व का उपयोग करते हैं। पूरी दुनिया में लोकतंत्र मूलभूत गम्भीर संकट में हैं। धन कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में केन्द्रित है। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धान्त ही खतरे में है। सत्ता कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में केन्द्रीकृत होती है जो लोगों की इच्छा के नाम पर लोकप्रिय मत के बहुमत से नहीं चुने जाते हैं। लोकतंत्र जो होना चाहता था, उससे दूर विकसित हो रहा है। लोकतंत्र में अभी जो समस्यायें हैं, उनका तत्काल समाधान किया जाना चाहिए। लोकतंत्र के मूल सिद्धान्तों की रक्षा की जानी चाहिए। वंचित और निम्न सामाजिक स्तर के सदस्यों को अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाना चाहिए। अधिक महिलाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की आवश्यकता है। यदि भारतीय लोकतंत्र को बढ़ाने के लिए सक्रिय कदम उठाये जाते हैं तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राज्य और मजबूत बन जायेगा।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति में सहायक दशाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था का नये स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपादेयता व सीमाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता / महत्व को स्पष्ट कीजिये। भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिये कौन-कौन से उपाय किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- "भारत में सतत् पोषणीय पर्यावरण की परम्परा" शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता क्या है? भारत में जीवन की गुणवत्ता को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- स्थायी विकास या सतत विकास के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास सूचकांक, 2017 क्या है?
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्तों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समरेखीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी निर्णायकवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा वेब्लेन के सिद्धान्त से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स व वेब्लेन के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए!
- प्रश्न- जनसांख्यिकी विज्ञान की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सॉरोकिन के सांस्कृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सन्देशवहन के साधनों के विकास का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स तथा वेब्लन के सिद्धान्तों की तुलना कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
- प्रश्न- विकास में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गैर सरकारी संगठनों से आप क्या समझते है? विकास में इनकी उभरती भूमिका की चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
- प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?