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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।

उत्तर -

साधारण अर्थों में अल्पसंख्यक वर्ग से हमारा आशय उस वर्ग के लोगों से होता है जिनकी धर्म, भाषा और जनसंख्या की दृष्टि से किसी समाज के बहुसंख्यक वर्ग के लोगों की तुलना में कम अनुपात होता है। केरल के शिक्षा विधेयक के द्वारा अल्पसंख्यक समूह उसे माना गया जिनकी संख्या किसी राज्य में 50 प्रतिशत से कम हो। किसी भी राज्य में किस समूह को अल्पसंख्यक कहा जाये इसका निर्धारण उस राज्य की सम्पूर्ण जनसंख्या में एक वर्ग या संमूह विशेष की संख्या के अनुपात के आधार पर ही किया जाना चाहिए। हमारे भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग तो किया गया है किन्तु उसमें भी कोई सर्वमान्य अथवा स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। भारत में प्रायः हिन्दुओं को बहुसंख्यक तथा मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी, जैन तथा बौद्ध आदि को अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में जाना जाता है। इसका आधार धार्मिक विषमता को माना गया।

ईसाई अल्पसंख्यकों की विशेषताएँ

ईसाई समुदाय का जीवन विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है। इस समाज के कुछ लोगों को छोड़कर अधिकतर लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हैं। राजनीति में इनका दखल न के बराबर है। इसी प्रकार देश की प्रशासनिक सेवाओं में इनका प्रतिशत निम्न है। जहाँ तक शिक्षा के क्षेत्र का प्रश्न है तुलनात्मक रूप से इनमें साक्षरता अधिक है, किन्तु उच्च शिक्षित लोग बहुत कम हैं। यही कारण है कि अधिकतर लोग मिशनरी स्कूलों में अध्यापक ही हैं। उच्च शिक्षा एवं विश्वविद्यालयों में इनकी संख्या नगण्य है। अधिकतर ईसाई महिलायें या तो शिक्षण कार्य में लगी हैं अथवा अस्पतालों एवं नर्सिंग होम में आया, मिडवाइफ या नर्स (परिचारिका) का कार्य करती हैं। ये लोग आवासीय समस्या से भी ग्रसित हैं। इतना सब कुछ होने के पश्चात् ये लोग अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए धरना, जुलूस या किसी भी प्रकार के होहल्ला को पसन्द नहीं करते बल्कि शान्तिपूर्वक मिल बैठकर अथवा सरकार के समक्ष अपनी समस्याओं को विनम्रतापूर्वक रखकर उनका समाधान ढूंढने का प्रयास करते हैं। आज स्वतंत्र भारत का अभिन्न अंग होने के कारण सरकार का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वह इनकी समस्याओं का कोई स्वस्थ हल ढूंढे जिससे वह इस समुदाय के लोगों के विश्वास को जीत कर उनकी क्षमताओं का भी राष्ट्रीय निर्माण में प्रयोग कर सके।

सिख अल्पसंख्यक

इस समुदाय की अपनी कुछ समस्यायें निम्नलिखित हैं -

स्वाधीनता के पश्चात् सिखों ने एक अलग पंजाबी सूबे की मांग की। 1967 में पंजाब का विभाजन कर हरियाणा एवं पंजाब दो राज्य गठित किये गए। अकाली शिरोमणि दल ने यह मांग रखी कि चंडीगढ़ एवं पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब को सौंप दिया जाये। अकाली दल के कुछ प्रमुख नेताओं ने यह मांग नहीं की कि यदि सिख राज्य को अलग से स्वायत्तता न सौंपी गई तो सिख समुदाय के लोग जन आन्दोलन का भी सहारा ले सकते हैं। उनकी यह शिकायत है कि हिन्दुओं ने उन्हें अपने धर्म का अंग बनाकर तथा अपने में सम्मिलित कर उनके धर्म एवं भाषा को वास्तविक एवं सम्मानित दर्जा नहीं दिया। इसीलिए आनन्दपुर साहिब के शैक्षिक सम्मेलन में इन्होंने एक कृषक राज्य की मांग रखी। चूंकि इनकी मांगों का नेतृत्व कुछ उग्र तत्त्वों के हाथ में आ गया इसलिए पंजाब आतंकवादियों का गढ़ सा बन गया। आये दिन मारपीट, लूटपाट एवं खून खराबा होने लगा। स्वर्ण मंदिर जो सिखों के लिए पूज्य है आतंकवादियों का अड्डा बनं गया। विवश होकर वहां सैनिक कार्यवाही करनी पड़ी जिससे नाराज होकर कुछ आतंकवादियों ने प्रधानमंत्री इन्द्रा गांधी की हत्या की साजिश कर डाली। वैसे 1985 में अकाली दल एवं सरकार के बीच वार्तालाप के माध्यम से इनकी समस्याओं के निराकरण के लिए एक समझौता भी हुआ किन्तु उससे भी कोई समाधान न हो सका। श्रीमती इन्द्रा गांधी की हत्या के पश्चात् 1984 में भड़के दंगे में देश के विभिन्न भागों में बसे सिख समुदाय के लोगों को भारी जान-माल का नुकसान झेलना पड़ा जिससे इनमें आक्रोश एवं असुरक्षा की भावना पैदा हो गई एवं ये दूसरे समुदाय के लोगों को शंका की दृष्टि से देखने लगे। 1984 के दंगा पीड़ितों को सरकार पर्याप्त सहायता देने तथा दोषियों को दण्डित करने का प्रयास कर रही है किन्तु देखना यह है कि यह कहाँ तक उनके घावों को भरने में कामयाब होता है।

अल्पसंख्यकों की समस्याओं का समाधान

भारत में 'अनेकता में एकता है' की कहावत को सत्य सिद्ध करने के लिए यह अति आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों की समस्याओं पर गम्भीरता से विचार कर उनका हल ढूंढने का प्रयास किया जाये जिससे इनके दिलो दिमाग में बहुसंख्यक वर्ग के प्रति जो अविश्वास एवं कटुता की भावना है, इसे आमूल समाप्त करके उन्हें राष्ट्रीय धारा में जोड़ा जा सके। इस संदर्भ में 1983 में एक अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की स्थापना भी की गई जो कि अल्पसंख्यकों की समस्याओं को सुनकर उनका यथोचित निराकरण ढूढ़ने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्त बीस सूत्रीय कार्यक्रम में भी इनकी कल्याण की पर्याप्त व्यवस्था की गई। वैसे भारतीय संविधान में पहले से ही स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि धर्म, भाषा, जाति या प्रजाति अथवा लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा। संविधान ने अनुच्छेद 29 और 30 में भाषाई अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान किया गया है। किसी भी भाषा के बोलने वालों को अपनी संस्कृति लिपि एवं भाषा को बनाये रखने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 350 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि प्रत्येक राज्य इस बात का प्रयास करेगा कि बच्चों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा उनकी ही मातृ भाषा में दी जाये और इनके कार्यान्वयन के लिए एक विशेष पदाधिकारी की भी व्यवस्था की गयी है। भाषाई आधार पर हमारे यहां अनेक राज्यों का गठन हुआ। गुजरात, आन्ध्र, महाराष्ट्र, पंजाब व हरियाणा इसके उदाहरण हैं। भाषाई अल्पसंख्यकों का अपना तर्क है कि उनकी भाषा को मान्यता न प्रदान करने से प्रशासनिक एवं अन्य सेवाओं में केवल हिन्दी भाषा भाषियों को ही लाभ मिलेगा। इसी कटुता के कारण जो प्रदेश गैर हिन्दी भाषाई व हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है।

संविधान के अनुच्छेद 14, 15 व 16 में सभी को कानून के समक्ष समानता तथा संरक्षण प्रदान किया गया। इसी प्रकार अनुच्छेद 25 व्यक्ति को किसी भी धर्म का स्वीकार करने तथा उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद 26, 27 और 28 धर्म का प्रबन्ध करने, धर्म के प्रचार के लिए कर वसूलने तथा धार्मिक उपासना के लिए अवकाश की स्वतन्त्रता देता है किन्तु ये सारे प्रावधान उसी समय उपयोगी हो सकते हैं जबकि हमारे प्रशासक एवं राजनेता अपने दलगत स्वार्थों से ऊपर उठकर सेवा भाव से कार्य करें तथा इस बात पर ध्यान दें कि कोई भी व्यक्ति किसी की धार्मिक भावनाओं को आघात न पहुंचाये। हमें गंभीरता से सोचना होगा कि 1984 के दंगों तथा 6 दिसम्बर 1992 जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने पाये जिससे अल्पसंख्यकों के दिलों से भय एवं आशंका मिट सके और वे अपने को वृहत्तर भारत का अभिन्न अंग मानकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देने के लिए प्रोत्साहित हो सके। धर्म को राजनीति से अलग रखकर ही हम भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना सकते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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