बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
उत्तर -
अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप
भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्ग
भारतीय समाज में अंग्रेजी उपनिवेशवाद के परिणामस्वरूप और स्थानीय निवेश के कारण जो नये वर्ग आये, वे इस तरह हैं-
(1) व्यापारी एवं औद्योगिक वर्ग (Business and Industrial Class) – अंग्रेज जब सन् 1600 में भारत में आये, उनका प्रवेश एक कारोबार करने वाली कम्पनी के रूप में था। तब इसका नाम था ईस्ट इण्डिया कम्पनी। बाज़ार की इसी तलाश में फ्रान्स की कम्पनियाँ भी इस देश में आयी। इस नये बाज़ार में आयात-निर्यात के व्यापार को आगे बढ़ाया। अब देश में व्यापारियों का मध्यम वर्ग आस्तित्व में आया। रेल की स्थापना के साथ इस धनी व्यापारी मध्यम वर्ग की संचित बचत ने अन्य वृहत् स्तरीय उत्पादित माल एवं आधुनिक उद्योगों में निवेशित होने वाली पूँजी का रूप ले लिया। "अंग्रेजों की भाँति जिन्होंने भारत में उद्योगों की स्थापना में अगुवाई की, भारतीयों ने भी, चाय बागानों, सूती वस्त्र, एवं जूट के कारखानों में अपना निवेश किया। इस प्रकार भारतीय समाज की संरचना में मिल मालिक, खान मालिक जैसे नये समूह उभर कर आये।" यह होने के बाद इन व्यापारियों ने औद्योगिक गतिविधि के क्षेत्र का विभेदीकरण किया। आर्थिक एवं सामाजिक रूप से यह वर्ग भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली वर्ग बन गया।
अंग्रेजों के साथ हितों के टकराव के परिणामस्वरूप भारतीय व्यापारी और औद्योगिक वर्गों ने स्वतन्त्र संगठन बनाये। इस वर्ग ने उन व्यावसायिक वर्गों को समर्थन देकर स्वतन्त्र संग्राम में भाग लिया जो कि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के आधार थे। हमारे देश में सभी जानते हैं कि बिड़ला और बजात घरानों ने आज़ादी की लड़ाई में गाँधीजी को बड़ी आर्थिक सहायता दी थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश ने औद्योगिकरण पर जोर दिया।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद के काल पर व्यापारी एवं वाणिज्यिक वर्ग आकार व संख्या दोनों में बढ़ा। ये उद्योग, वस्त्र उद्योग, जूट, खान, बागान जैसे पारम्परिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहे। हुआ यह कि इस्पात उद्योगों, कागज़ मिलों तथा अनेक इस्पात निर्मित माल के उद्योगों में भी विस्तार हुआ।
(2) व्यावसायिक वर्ग (Business Class) – औद्योगिक समाज की दूसरी उपज व्यावसायिक वर्ग है। अंग्रेज अपने शासन को भारत में सुदृढ़ करना चाहते थे। वे अपनी जड़ें गहरी करना चाहते थे। इसके लिये उन्हें ऐसे कुशल भारतीयों की आवश्यकता थी जो प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, अर्थव्यवस्था, प्रशासन आदि में कारगर रूप से काम कर सकें। इसी आवश्यकता ने मेकाले को अंग्रेजी शिक्षा इस देश में लागू करने के लिये प्रेरित किया। परिणामस्वरूप यहाँ आधुनिक शिक्षण संस्थाओं को विशाल स्तर पर लागू किया गया। इन प्रयत्नों के परिणामस्वरूप भारत में व्यावसायिकों के रूप में एक नया वर्ग उभरकर आया। इस व्यावसायिक वर्ग में आधुनिक वकील, चिकित्सक, अध्यापक, आधुनिक वाणिज्यिक एवं अन्य उद्योगों में कार्यरत प्रबन्धक व अन्य सरकारी प्रशासनतन्त्र में कार्यरत अधिकारी, इंजीनियर, तकनीशियन, कृषि वैज्ञानिक और पत्रकार आदि आते हैं। राष्ट्रीय आन्दोलन में इस वर्ग की भूमिका निर्णायक थी। वस्तुतः ये लोग अगुआ तथा नये आयाम व गति स्थापित करने वाले थे। देश में प्रगतिशील सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलनों के पीछे इन्हीं लोगों की शक्ति थी। जब भारत ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से औद्योगीकरण एवं शहरीकरण को बढ़ावा दिया तो देश में कई नये रोज़गार के अवसर आये। इसी के साथ सरकार ने पूरे देश में जटिल प्रशासनिक ढाँचे से बनी विशाल संस्थात्मक रचना सृजित की। इसने बहुत बड़े पैमाने पर रोज़गार दिये हैं। इन निजी या सरकारी क्षेत्रों में रोज़गार के लिये शिक्षण, प्रशिक्षण, विशेष योग्यता आदि जैसी योग्यताएँ निर्धारित की गयीं।
प्रशासनिक अधिकारी प्रबन्धकीय अधिकारी, तकनीकी प्रबन्धक, चिकित्सक, वकील, शिक्षक, आदि कुछ श्रेणियाँ हैं जिनके पास ऐसी योग्यता है।
(3) लघु व्यापारी, दुकानदार एवं असंगठित मजदूर ( Small Traders, Shopkeepres and Unorganized Labour ) - महानगर, शहर और कस्बे बढ़ते हुए औद्योगिक समाज के दायरों को बताते हैं। बड़े शहरों में व्यापारी और औद्योगिक वर्ग सामाजिक संरचना को नया चरित्र देते हैं। इन बड़े नगरों की सड़कों पर अगणित कारों और मोटरों के धुएँ को कभी भी देखा जा सकता है। शाम होते-होते तो यह प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर देता है। किसी भी सड़क पर चलिये रास्ता 'जाम' मिलेगा। ये शहर झोपड़ पट्टी और गंदी बस्तियों से लदे पड़े हैं। और दूसरी और भव्य और आलीशान मकान सभी ओर देखने को मिलते हैं। ऐसी बसावटों में जहाँ व्यापारी एवं औद्योगिक वर्ग और इसी तरह व्यावसायिक वर्ग अपना प्रभुत्व बनाये रखते हैं, वहीं इन बड़ी बसावटों में लघु व्यापारी, दुकानदार और असंगठित मजदूर भी होते हैं। जहाँ शहरों का विकास हुआ है वहीं इन वर्गों का विकास भी हुआ है। छोटे व्यापारी और दुकानदार एक ऐसी कड़ी है जो उत्पादकों तथा थोक विक्रेताओं को जोड़ते हैं।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद लघु व्यापारियों, दुकानदारों और असंगठित मजदूर वर्गों में भी वृद्धि हुई है। शहरीकरण की प्रक्रिया में शहरों की अभूतपूर्व वृद्धि ने इस वर्ग को प्रोत्साहित
किया है। उदाहरण के लिये, दिल्ली शहर को लीजिये, यहाँ प्रतिदिन कोई 10 लाख लोग आते हैं। यहाँ का सदर बाज़ार एशिया का सबसे बड़ा बाज़ार है। यह शहर प्रशासन का केन्द्र भी है; शिक्षा केन्द्र भी है और कई ऐसे अगणित प्रतिष्ठान हैं जहाँ हजारों लोगों का आना-जाना बना रहता है। शहरीकरण, रोजगार तथ नये कार्यकलापों को विभिन्नता प्रदान करता है। बढ़ती शहरी जनसंख्या अनेक प्रकार की आवश्यकताओं व सेवाओं की माँग सृजित करती है। "लघु व्यापारी व दूकानदार, शहरी जनसंख्या की इन आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
शहरों में असंगठित मजदूर भी होते हैं। संगठित क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर कम होते हैं क्योंकि इसके लिये शैक्षणिक तथा व्यावसायिक कुशलता की आवश्यकता होती है। अधिकांश ग्रामीण प्रवासियों में ये योग्यताएँ नहीं अतः उनके लिये संगठित क्षेत्र बन्द रहता है। ऐसी अवस्था में ग्रामीण लोग असंगठित क्षेत्र का सहारा लेते हैं। ये लोग लघु स्तरीय उद्योगों, दस्तकारी या मेहनतकश व्यवसाय में काम करते हैं। इनका वेतन थोड़ा होता है। इन्हें वे लाभ भी नहीं मिलते जैसे— आवास, चिकित्सा, सवेतन अवकाश जो संगठित क्षेत्र के कामगारों को मिलता है।
असंगठित मजदूर, एक बिखरी हुई श्रेणी है। इसके अन्तर्गत दुकानदार, व्यापारी, ठेले वाले मजदूर होते हैं। दूसरी और संगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर अर्द्ध-निपुण व अनिपुण श्रमिक होते हैं। भारत के शहरी समूहों में यह वर्ग सबसे कम संगठित होता है।
(4) श्रमिक वर्ग (Labour Class) – औद्योगिक समाज में वर्ग की जो संरचना होती है वह ग्रामीण समाज से भिन्न होती है। वहाँ वर्ग की संरचना कृषि आधारित होती है और औद्योगिक समाज में यह संरचना उद्योग आधारित होती है। जहाँ उद्योग होते हैं वहाँ व्यापार भी होता है। अतः शहरों का एक बहुत बड़ा वर्ग श्रमिकों का होता है। इस वर्ग का उदय अंग्रेजी शासनकाल में हुआ। उस समय में यह वर्ग रेल उद्योग, चाय बागान आदि में काम करता था। जैसे-जैसे भारत में बागान, कारखाना, खान उद्योग, यातायात, रेल और अन्य औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुए वैसे-वैसे यह वर्ग भी बढ़ा। देखा जाये तो शहरों का श्रमिक वर्ग निर्धन किसानों का है जो गाँव छोड़कर शहर आ गये है; परेशानी दस्तकारों की है जो ग्रामीण दस्तकारी को छोड़कर शहर आ गये हैं। बहुत थोड़े में कहाना चाहिये, शहरी श्रमिक वर्ग का आधार गाँव है।
सरकार ने श्रमिकों की स्थिति को सुधारने के लिये कई अधिनियम बनाये हैं। इन अधिनियमों में कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम (Workman's Compensation Act), उद्योग अधिनियम (Factories Act), खनन अधिनियम (Miner's Act), जैसे पारित किये हैं। यह सब होते हुए भी औद्योगिक क्षेत्र में यह माना जाता है कि ये अधिनियम उचित रूप से श्रमिकों को संरक्षण नहीं दे पाते। स्वयं श्रमिक ने भी अपने संगठन बनाये हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये संगठन सावयवी रूप से किसी न किसी राजनैतिक दल के साथ अवश्य जुड़े हुए हैं।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
- प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
- प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
- प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
- प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
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- प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
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