बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य
प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
अथवा
'मैला आँचल' के नायकत्व पर एक लेख लिखिए।
उत्तर -
'मैला आँचल' के नायक का निर्धारण वास्तव में ही बड़ा जटिल है। कारण यह है कि उपन्यासकार ने किसी भी व्यक्ति या पात्र को कथानक में इतनी अधिक महत्ता प्रदान नहीं की है कि उसको सहज ही उपन्यास का नायक कहा जा सके। 'मैला आँचल वस्तुतः किसी व्यक्ति की कहानी न होकर मेरीगंज नामक गाँव की कहानी है, अतः इसमें किसी को नायक कहा जा सकता है तो वह है मेरीगंज को फिर भी यदि पात्रों में से ही किसी के नायकत्व का अथवा कहिए सर्वाधिक प्रभावशाली पात्र का निर्णय करना हो तो उसके दावेदार निम्नांकित चार पात्र सिद्ध होते हैं - डॉ. प्रशांत, बालदेव, कालीचरण, विश्वनाथ प्रसाद तहसीलदार।
डाक्टर प्रशांत अज्ञात कुलशील का होनहार युवक है। कदाचित् यह अवैध संतान है। उसे देश सेवा या कहिए मानव जाति की सेवा की दृढ़ लगन है यही कारण है कि उसे विदेश जाने की स्कॉलरशिप मिलते हुए भी वह गुलछरों की जिन्दगी व्यतीत करने के लिए विदेश नहीं जाता अपितु अपने देश में ही रहकर सेवा का कार्य करना चाहता है। अनेक देशों में रहते हुए भी वह किसी नगर में सुविधापूर्ण जीवन नहीं व्यतीत करता अपितु मेरीगंज जैसे पिछड़े क्षेत्र को अपना कार्यक्षेत्र चुनता है और वहाँ रहकर काला-ज्वर से छुटकारा पाने की दवा की खोज करता है। उसके साथी उनके इस निर्णय को पागलपन कहते हैं। उसमें शोध की ऐसी लगन विद्यमान कि उसके द्वारा प्रकाशित पेपर्स की देश के मूर्धन्य चिकित्सा शास्त्री सराहना करते हैं। उसक चरित्र में दीनों के प्रति अपार करुण भाव है -
वह लोक कल्याण करना चाहता है, मनुष्य के जीवन को क्षय करने वाले रोगों के का पता लगाकर नई दवा का अविष्कार करेगा।
..... माँ ! काँ वसुन्धरा धरती माता ! माँ अपने पुत्र को नहीं मार सकी, लेकिन पत्र अपनी माँ का गला टीपकर मार देगा। शस्य श्यामला।
"भारतमाता ग्रामवासिनी, खेतों में फैला है श्यामल, धूल भरा मैला सा आँचल "
वह ग्रामवासियों का अपनी सेवा से मन मोह लेता है और उनमें आदमी के स्थान पर देवता के रूप में प्रसिद्ध हो जाता है। उपन्यास के अंत में भी वह मेरीगंज के रहते हुए साधना करने का संकल्प व्यक्त करता है -
"ममता ! मैं फिर काम शुरू करूँगा - यहीं इसी गाँव में। मैं प्यार की खेती करना चाहता हूँ। आँसू से भींगी धरती पर प्यार के पौधे लहराएँगे। मैं साधना करूँगा, ग्रामवासिनी भारत माता के मैले आँचल तले कम से कम एक ही गाँव के कुछ प्राणियों के मुरझाये ओठों पर मस्कुराहट लौटा सकूँ, उनके हाथ में आशा और विश्वास को प्रतिष्ठित कर सकूं।
रोगियों के सेवा के साथ-साथ प्रेम के क्षेत्र में देखा जाए तो भी वह कमला को दिए गए अपने इस वचन का पूर्णतः निर्वाह करता है कि हमारे तुम्हारे हेल-मेल का जो भी परिणाम निकलेगा वह शुभ ही रहेगा। वह कुमार्यावस्था में ही माँ बनी कमला और उसके पुत्र को अपनाकर यदि देवत्व नहीं तो मनुष्यत्व का तो परिचय देता ही है।
जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या प्रशांत को आलोच्य उपन्यास का नायक कहा जा सकता है? इसका उत्तर नकारात्मक होते हुए प्रशांत इस उपन्यास में नायकत्व का सर्वाधिक अधिकारी पात्र है। नायक के निर्धारण में नायक शब्द की व्युत्पति के अनुसार नायक के लिए कथा को विकास की ओर अग्रसर करना अत्यावश्यक होता है। उसे मूल कथानक की वह धूरी होना चाहिए जिसके इर्द-गिर्द उपन्यास की सभी घटनाएँ परिभ्रमणशील रहती हों। जब इस दृष्टि से हम प्रशांत के मैला आँचल में चित्रित चरित्र पर विचार करते है तो स्पष्ट होता है कि प्रशांत का प्रमुख घटनाओं से व ऐसा सम्बन्ध नहीं है, जैसाकि नायक के लिए वांछित होता है। वह घटनाओं का केन्द्र बिन्दु नहीं है, हाँ उनमें से कुछ में सहयोग अवश्य करता है। जहाँ तक अधिक से अधिक घटनाओं से सम्बन्ध का प्रश्न है, यह कहा जा सकता है कि इस दृष्टि से तो उसकी अपेक्षा बलदेव, विश्वनाथ प्रसाद और कालीचरन का पक्ष अधिक सबल है।
नायकत्व की एक कसौटी यह भी होती है कि वह फल का उपभोक्ता हुआ करता है और इस दृष्टि से आलोच्य उपन्यास का यदि कोई पात्र नायक माना जा सकता है तो वह प्रशान्त ही है। उपन्यास का नामकरण तो उसके द्वारा कहे गये उद्गारों को आधार बनाकर किया ही गया है। उपन्यास के अन्त में वही ऐसा पात्र है जो कमला को प्राप्त करने के साथ-साथ तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद की अपार सम्पत्ति का स्वामी भी बन जाता है। इसके विपरीत बालदेव उपन्यास के अन्त में लक्ष्मी और पाठकों की दृष्टि में गिर जाता है क्योंकि वह बावनदास की चिट्ठियों का राजनीतिक लाभ उठाने की कामना से ओत-प्रोत होकर बावनदास को दिया हुआ वचन पूरा नहीं करता। कालीचरन उपन्यास के अंतिम अंश में बुरी तरह आहत होकर चालित्तर कर्मकार के समीप जाने का निश्चय व्यक्त करते हुए दिखाया गया है जिसका अभिप्राय यह कि वह भी डकैतों के गिरोह में सम्मिलित हो गया होगा। हाँ, विश्वनाथ प्रसाद अपनी सम्पत्ति का अधिकांश भाग गरीब रियाया को लौटाकर पाठकों की सहानुभूति अवश्य अर्जित करते हैं किन्तु उन्हें किसी फल का उपभोक्ता नहीं कहा जा सकता।
बालदेव का चरित्रांकन फणीश्वरनाथ रेणु ने विशेष सहानुभूति पूर्वक किया है जिसके फलस्वरूप वह उपन्यास के अधिकांश भाग में पाठकों की सहानुभूति अर्जित करता रहता है। लक्ष्मी के प्रसंग में बालदेव को जिस रूप में संयमशील प्रदर्शित किया गया है वह बालदेव का किन्हीं अंशों में मानवेत्तर गुण ही प्रतीत होता है। अहिंसा के प्रति बालदेव की अडिग आस्था भी प्रशंसनीय है। उसका सम्बन्ध भी उपन्यास की बहुत सी घटनाओं से है जैसे अस्पताल के निर्माण कार्य के लिए ग्रामवासियों को भोज दिये जाने के संदर्भ में भी मर्दुमशुमारी आदि के कृत्यों को बालदेव ही सँभालता है। उसकी अडिग निष्ठा से कांग्रेस की सदस्य संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होती है और उसको जिला पार्टी का सदस्य बना दिया जाता है। बालदेव के चरित्र की यदि कोई विशेषता सर्वाधिक प्रभावित करती है तो वह है उसके स्वभाव की सरलता मानो वह छल-छद्मों से एकदम अनभिज्ञ है। हाँ उपन्यास के अंत में वह अपनी सरलता पर स्थिर नहीं रह पाता। एक ओर तो वह लक्ष्मी पर भ्रष्ट चरित्रा होने का मिथ्यारोप लगाता है, जबकि दूसरी ओर वह बावनदास को गाँधी जी द्वारा लिखी गयी चिट्ठियों का राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है। इस कारणों से वह पाठकों की सहानुभूति को बैठता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि बालदेव मैला आँचल के प्रमुख पात्रों में से एक अवश्य है, किन्तु उसे नायक नहीं कहा जा सकता है।
कालीचरन का चरित्र उपन्यास में आद्यंत प्रभावशाली रूप में अंकित हुआ है। ग्राम के नवयुवकों, खेतिहरों और मजदूरों का तो वह नेता है ही न्यायपक्ष का सबल पोषक होने के कारण वह पाठकों के हृदय का भी नेता है। महन्त रामदास को उसके हस्तक्षेप के कारण ही अपना उचित अधिकार मिलता है और मेरीगंज का मठ लरसिंह दास जैसे घोर पतित व्यक्ति के अधिपत्य में जाने से बचता है। महँगूदास की बेटी फुलिया के संदर्भ में भी उसकी न्यायप्रियता का लोहा मानना पड़ता है। उसकी मंगला विषयक आसक्ति उसको पाठकों की दृष्टि में गिराती नहीं है, क्योंकि वह परिस्थितियों का सहज परिणाम और मानवोचित दुर्बलता है। उसके द्वारा अपनी सोशलिस्ट पार्टी का बदनामी को अपने जीवन से भी अधिक महत्व देना, कालीचरन की अपनी पाटी-विषयक दृढ़ आस्था का परिचायक है। उसे इस बात से मर्मान्तक व्यथा होना कि उसका डकैती में झूठा नाम लेकर सोशलिस्ट पार्टी की बदनामी की जा रही है -
उसके उच्च विचारों पर प्रकाश डालती है। पहलवान मुश्ताक अली के चेले को पछाड़कर वह अपने जनपद की प्रतिष्ठा तो बचाता है, पाठकों के भी गले का हार बन जाता है। हाँ यह सब होते हुए भी उसे उपन्यास का नायक नहीं स्वीकार किया जा सकता। उसके संदर्भ में कृति के फल का उपभोक्ता होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि वह सोशलिस्ट पार्टी से निष्कासित तथा आहत होकर चालित्तर कर्मकार को याद करते दिखाया गया है। यह तो स्पष्ट नहीं है कि पुलिस द्वारा पकड़ लिया गया होगा अथवा चालित्तर कर्मकार से जा मिला होगा, तथापि वह उपन्यास के नायकत्व से वंचित हो जाता है।
तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद भी उपन्यास के उन पात्रों में से एक हैं, या कहिए उन पात्रों में प्रमुख स्थान रखते हैं जिनका उपन्यास की घटनाओं में सर्वाधिक मात्रा में सम्बन्ध है। वे उपन्यास के प्रथम परिच्छेद में कथानक में पदार्पण करते हैं जबकि उसके अंतिम परिच्छेद में अपनी अन्याय द्वारा अर्जित अधिकांश जमीन को लौटाते चित्रित किये गये हैं। उपन्यास के आरम्भिक भाग में ही स्पष्ट हो जाता है कि गाँव का प्रमुख व्यक्ति बनने के लिए उनमें और ठाकुर राम किरपाल सिंह में प्रतिद्वन्द्विता चलती रहती है। इस प्रतिद्वन्दिता में बाजी विश्वनाथ प्रसाद के हाथ ही लगती है और रामकिरपाल सिंह अपनी जमीन उनके यहाँ गिरवी रखकर तीर्थाटन पर जाते दिखाये गये हैं। वे अपनी तहसीलदारी से त्यागपत्र दे देते हैं किन्तु उनके स्थान पर तहसीलदार बना हरगौरी समझ जाता है कि विश्वनाथ प्रसाद की अनुकम्पा के अभाव में उसकी तहसीलदारी चलना कठिन है।
हाँ उपन्यास के अन्तिम अंश को छोड़कर विश्वनाथ प्रसाद का चरित्रांकन एक धूर्त व्यक्ति के रूप में ही किया गया है - वे पाठकों की सहानुभूति के स्थान पर किन्हीं स्थानों पर उनकी घृणा के पात्र अधिक होते हैं, उपन्यासकार का उनके प्रति दृष्टिकोण किंचित असहानुभूतिपूर्ण रहा है उसने इन्हें उन कुटिल जमींदारों के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित किया है जो अपने कानूनी दाँव-पेचों द्वारा जनता का शोषण करते रहते हैं। धान पर लेवी लगती है तो वे अपना धान छिपा देते हैं। जमींदारी प्रथा समाप्त होने पर जब उन्हें यह भय लगता है कि कहीं संथाल उनकी जमीन पर कब्जा न कर लें तो वे गाँव वालों को संथालों के प्रति ऐसा भड़काने का षडयन्त्र रचते हैं कि उनकी फसल को लूट से बचाने के लिए पूरा गाँव संथालों पर टूट पड़ता है। फसल उनकी बचती है और मारा जाता है नया तहसीलदार हरगौरी। मुकदमा उन पर चलना चाहिए था परन्तु मुकदमें में बरबाद होते हैं रामकिरपाल सिंह और खेलावन यादव। उपन्यास के अन्तिम भाग में हृदय परिवर्तन के सिद्धान्त का आश्रय लेकर उपन्यासकार ने उनके चरित्र को ऊँचा उठा तो दिया है, किन्तु उन्हें आलोच्य उपन्यास का नायक नहीं कहा जा सकता।
निष्कर्षतः किसी पात्र को नायक बनाने का प्रश्न उठाया जाये, तो इस दृष्टि से डॉ. प्रशांत का पक्ष सर्वाधिक प्रबल है।
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- प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
- प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
- प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
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- प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
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