बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य
प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
अथवा
"बिहारी सतसई" की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
भारतीय आचार्यों ने काव्य के दो भेद किये हैं प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काव्य प्रबन्ध काव्य में जहाँ जीवन का व्यापक चित्रण रहता है, वहीं मुक्तक काव्य में किसी एक रसपूर्ण दृश्य का अंकन किया जाता है। यही नहीं, अपितु प्रबन्ध काव्य में एक सानुबन्ध कथा होती है। परिणामतः उसमें कथाक्रम की सूत्रबद्धता का होना अनिवार्य है, जबकि मुक्तक अपने अर्थ की दृष्टि से एक ऐसी स्वतन्त्र रचना है, जिसमें पूर्वोत्तर सम्बन्ध का अभाव होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मुक्तक और प्रबन्ध काव्य के अन्तर को स्पष्ट करते हुए लिखा है "मुक्तक में प्रबन्ध के समान रस की धारा नहीं बहती। इसमें रस के ऐसे छीटे पड़ते हैं, जिनमें हृदय कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है। यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है। इसलिए यह सभा समाजों के लिए अधिक उपयुक्त होता है। उसमें एक रमणीय खण्ड दृश्य सामने ला दिया जाता है कि पाठक या श्रोता कुछ क्षणों के लिए मन्त्रमुग्ध सा हो जाता है।'
बिहारी सतसई रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि बिहारीलाल द्वारा रचित एक ऐसा मुक्तक काव्य है, जिसमें कला की सभी विशेषताओं का समावेश किया गया है। बिहारी ने केवल इस एक ग्रन्थ के आधार पर ही अपार लोकप्रियता प्राप्त की है, जो इस बात का प्रमाण है कि बिहारी सतसई के दोहों में रसिक श्रोताओं की हृदय कलिका को प्रस्फुटित करने की क्षमता है। उन्होंने दोहे जैसे छोटे छन्द के केवल कुछ- ही शब्दों में रस के इसके जो छीटे बरसाये हैं, वे अपूर्व हैं, अद्भुत और अनुपम हैं। उन्होंने वस्तुत, 'गागर में सागर' भर दिया है। रस व्यंजना की दृष्टि से ये दोहे अत्यन्त प्रभावकारी माने गये हैं। यही कारण है कि बिहारी की सतसई के विषय में कहा गया है।
"सतसइया के दोहरे क्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगे घाव करें गम्भीर॥"
मुक्तक कला की दृष्टि से बिहारी सतसई की समीक्षा करने पर उसमे निम्न गुणों का समावेश दिखाई पड़ता है -
1. भाषा की समास-शक्ति - कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करने की क्षमता मुक्तक कला का प्राण तत्व कही जा सकती है। बिहारी में यह शक्ति चरम सीमा पर विद्यमान थी। उन्होंने बड़े-बड़े प्रसंगों को छोटे से दोहे में सफलतापूर्वक नियोजित कर दिया है। प्रेम व्यापार की समस्त क्रियाएँ एक ही दोहे में समाविष्ट करते हुए शृंगार रस की सुन्दर योजना इस दोहे में की है
"कहत तटत रीझत खीझत मिलत खिलत लजिपात।
भरे मौन में करत हैं, नैनन ही सब बात॥'
यहाँ गुरुजनों से भरी हुई सभा है। प्रेम व्यापार में विदग्ध नायिका नायक नेत्रों के माध्यम से ही प्रेम सम्बन्धी सम्पूर्ण वार्तालाप कर लेते हैं। समास पद्धति के बल पर ही बिहारी ने नायिका के हाव-भाव का ही सुन्दर चित्रण किया है, साथ ही सांगरूपक अलंकारों की योजना भी इसी शक्ति के बल पर वे कर सकें हैं। यथा
" खौरि पनिच भृकुटी धनुष, बधिक समरू तजि कान।
हनत तखन मृग तिलक सर सुरक भाल भरि ताना। '
2. कल्पना की समाहार शक्ति - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कल्पना की समाहार शक्ति को मुक्तक कला को आधारशिला माना है। बिहारी में कल्पना की समाहार शक्ति का पूर्ण उत्कर्ष विद्यमान था। यही वह शक्ति है, जिसके बल पर वे बड़े बड़े प्रसंगों को अपनी प्रतिभा से दोहों में समाविष्ट कर सके। योग साधना और श्रृंगार ये दो विरोधी विषय हैं, पर बिहारी ने एक ही दोहे में इन दोनों की समाविष्ट कर कल्पना की समाहार शक्ति का परिचय दिया है। यथा -
"जोगु जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन।
चाहत पिय अद्वैतता कानन सेवत नैन।'
प्रेम के विभिन्न क्रिया-व्यापारों को कल्पना की समाहार शक्ति के बल पर दोहे जैसे- छोटे में बिहारी समाविष्ट करने में समर्थ हो सके हैं। राधाकृष्ण की प्रणय लीला का एक दृश्य एक प्रसंग में देना अनुपयुक्त न होगा -
"बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें भौंहनु हँसे दैन कहें नहि जाय।'
वार्तालाप का आनन्द लेने के लिए राधा ने कृष्ण की मुरली छिपाकर रख दी है। जब कृष्ण मुरली देने के लिए कहते हैं तो राधा सौगन्ध खाने लगती है मैंने नहीं ली तुम्हारी मुरली, किन्तु उसकी भौहों में दुष्टता भरी मुस्कान छिपी है, वह सारा भेद खोल देती है।
3. हावों, अनुभावों का चित्रण - बिहारी सतसई में हाव- अनुभावों की सुन्दर योजना की गई है, जिसके कारण इन दोहों में रस की अपूर्व सृष्टि हुई है। नायिका की वे शृंगारिक चेष्टाएँ हाव कहलाती हैं जो जानबूझकर की जाती हैं और जिनका उददेश्य नायक के हृदय में प्रेम उत्पन्न करना होता है। बिहारी सतसई में विलास नामक हाव के द्वारा प्रेयसी (नायिका) की चेष्टाओं का कितना मनोहारी वर्णन निम्न दोहे में किया गया है।
"त्रिबली, नाभि दिखाई कर सिर ढकि सकुचि समाहि।
गली अली की ओट कै चली मली बिधि चाहि।'
हावों के चित्रण से एक ओर तो काव्य में चित्रात्मकता का समावेश हुआ है, दूसरी ओर भावों को हृदयंगम कराने में भी सफलता मिली है। हाँवों के साथ-साथ बिहारी सतसई में अनुभावों की योजना भी अत्यन्त कुशलता से की गई है। अनुभाव योजना के द्वारा हृदयंगम भाव का सुन्दर परिचय प्राप्त हो जाता है।
4. व्यंग्य एवं ध्वनि की प्रधानता - प्रायः सभी विद्वानों ने एक स्वर से मुक्तक काव्य की सफलता के लिए इस तत्व को उत्तरदायी माना है। बिहारी के अनेक दोहो में व्यंजना का सौन्दर्य विद्यमान है। उदाहरण के लिए निम्न दोहे को लिया जा सकता है।
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सौं विध्यौ आग कौन हवाल।'
यहाँ कवि ने भ्रमर की अन्योक्ति से राजा जयसिंह को सचेत किया है कि अभी से तू इस नवोढ़ा रानी के प्रेम में इतना आसक्त है, आगे तेरी क्या दशा होगी, जब यह पूर्ण यौवन को प्राप्त करेगी।
5. बहुज्ञता का प्रदर्शन - प्रायः सभी मुक्तककारों ने अपनी रचनाओं में बहुज्ञता का प्रदर्शन करते हुए आयुर्वेद, पुराण, ज्योतिष, वैद्यक इतिहास आदि विविध शास्त्रों के ज्ञान का परिचय दिया है। उदाहरण के लिए बिहारी के निम्न दोहे को लिया जा सकता है, जिसमें ज्योतिष के राजयोग प्रकरण का उल्लेख किया गया है। यथा
"सनि कञ्जल चख झख उपज्यो सुदिन सनेह।
क्यों न नृपति है भोगि वै लहि सुदेस सब देह॥'
नायिका के मीन जैसे नेत्रों में काजल रूपी शनि ग्रह स्थित है। यह जो राजयोग प्रकरण है, क्योंकि मीन लग्न में शनि ग्रह स्थित है। यही कारण है कि नायक उस नायिका को देखकर पूर्णरूप से प्रेमासक्त हो गया है।
6. नाद सौन्दर्य की प्रधानता - बिहारी सतसई में कवि ने नाद सौन्दर्य का विशेष ध्यान रखा है। नादात्मकता के कारण एक ओर तो संगीत की सृष्टि हुई है और दूसरी ओर वाक् में माधुर्य का समावेश भी है। बिहारी ने अनुप्रास का अत्यधिक ध्यान अपने दोहों में रखा है। पद मैत्री एवं शब्द मैत्री के द्वारा जो संगीतात्मक प्रभाव बिहारी के दोहों में आ गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है.
"रस श्रृंगार मजनु किए कंजनु मंजन दैन।
अंजनु रखनु हू बिना खंजन गंजन नैन।'
अनुप्रासिकता के कारण बिहारी सतसई में जिस सौन्दर्य का समावेश हुआ है, वह अन्यत्र दिखाई नहीं पड़ता। कभी-कभी तो ऐसा लगता है, जैसे बिहारी पहले शब्दों की एक सूची बनाते होंगे और तदुपरान्त उन शब्दों को लेकर दोहे की रचना करते होंगे -
"नभ लाली चाली निसा, चटकाली धुनि की न।
रति पाली आली अनत आये वनमाली न॥"
7. श्लेष एवं यमक का प्रयोग - मुक्तक काव्य में चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति विद्यमान रहती है। बिहारी ने सतसई में चमत्कार प्रदर्शन के लिए श्लेष एवं यमक अलंकारों के प्रयोग द्वारा चमत्कार सृष्टि की है
"कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय॥'
इसी प्रकार एक अन्य दोहे में श्लेष अलंकार के बल से दुहरे अर्थों का समावेश किया है -
"अज्यौं तरपौना ही रह्यौ श्रुति सेवत इक अंग।
नाक बास बेसरि लह्यो बसि मुकुटन के संग॥'
इस दोहे में श्लेष के कारण दुहरे अर्थ की व्यंजना की गई है। बिहारी सतसई में श्लेष और यमक जैसे शब्दालंकारों के प्रयोग से एक ओर तो कवि के सामर्थ्य का बोध होता है, दूसरी ओर चमत्कार की सृष्टि करके श्रोताओं को चमत्कृत किया है।
छन्द के रूप में दोहा मुक्तक के लिए सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि दो पंक्तियों में मार्मिक भावों को समाविष्ट करके रस की व्यंजना की गई है। निश्चय ही बिहारी ने 'गागर में सागर' भरने में सफलता प्राप्त की है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि मुक्तककार के रूप में जो सफलता बिहारी को मिली है, वैसी सफलता अन्य कवियों को नहीं मिल सकी। उन्होंने सामान्य विषयों को भी अपनी उर्वर कल्पना शक्ति के बल पर अत्यन्त सरस एवं मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है। एक सफल मुक्तककार के लिए जो गुण आवश्यक बताये गये हैं, वे सब बिहारी सतसई में विद्यमान है। जैसे 'नावक' के तीर आकार में छोटे होने पर भी अत्यन्त प्रभावकारी एवं संहारक होते हैं, ठीक उसी प्रकार बिहारी सतसई के दोहे आकार में छोटे हैं, किन्तु रस व्यंजना एवं प्रभाव की दृष्टि से मार्मिक बन पड़े हैं। इसीलिए उनके सम्बन्ध में यह कहा गया है -
"सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगे घाव करें गम्भीर॥'
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- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
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- प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
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- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
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- प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
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- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
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- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
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- प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
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- प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
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- प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
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- प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
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- प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
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- प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
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- प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
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- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
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- प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
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- प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
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- प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
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- प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
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- प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
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- प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
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- प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
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- प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
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- प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
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- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
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- प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
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- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
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- प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
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- प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
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- प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
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- प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
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- प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
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- प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
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- प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
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- प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
- प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
- प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
- प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
- प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)