बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक सम्प्रेषण बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक सम्प्रेषणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक सम्प्रेषण
प्रश्न- सम्प्रेषण के कोई दो उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
सामान्यतया सम्प्रेषण को निम्नांकित उद्देश्यों के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है -
1. संदेश या सूचना देना,
2. आदेश देना,
3. सलाह देना,
4. शिक्षा प्रदान करना,
5. मनोबल को बढ़ाना,
6. प्रोत्साहन देना,
7. सुझाव देना,
8. चेतावनी देना आदि।
उपरोक्त उद्देश्यों को नीचे वर्णित किया गया है -
1. संदेश या सूचना देना एवं प्राप्त करना (Providing and Receiving of Information) : सूचना देना एवं प्राप्त करना सम्प्रेषण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसमें आन्तरिक व बाहरी सूचनायें आती हैं।
(a) आन्तरिक सूचना ( Internal Information ) : इसके अन्तर्गत निम्न प्रकार की सूचनायें शामिल हैं-
(i) नीतियाँ तथा गतिविधियाँ,
(iii) प्रास्थिति,
(ii) कार्य निर्धारण,
(iv) निर्णय लेने के अधिकार।
(b) बाह्य सूचनायें (External Information ) : इसके अन्तर्गत निम्न प्रकार की सूचनाएँ आती हैं :
(i) विज्ञापन सूचना,
(ii) प्रौद्योगिकी में नवीनतम परिवर्तन की सूचना,
(iii) सरकारी नियमों व उप-विधियों की सूचना,
(iv) साख सुविधाओं के बारे में सूचना,
(v) उत्पादों के सम्बन्ध में सूचना,
(vi) कच्चे माल की आपूर्ति के बारे में सूचना।
(c) नियोजन हेतु वांछित सूचना (Information required for Planning) : ये सूचनाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) राजनीतिक, सामाजिक, भावनात्मक व भौगोलिक सूचना,
(ii) प्रतियोगितात्मक सूचना,
(iii) उत्पादन व बिक्री सम्बन्धी सूचना,
(iv) मानव संसाधन विकास सम्बन्धी सूचना।
सूचनाओं के स्रोत (Sources of Information ) : ये निम्नलिखित हैं-
1. पुरानी फाइलें व अभिलेख,
2. निजी प्रेक्षण
3. चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स,
4. प्रश्नावलियाँ,
5. जन सम्पर्क के साधन जैसे दूरदर्शन, रेडियो, समाचारपत्र, पत्रिकायें आदि,
6. सभाएँ व अधिवेशन,
7. व्यक्तिगत साक्षात्कार,
8. वर्तमान इलैक्ट्रॉनिक मीडिया,
9. व्यापारिक मेले।
सूचनाओं को स्वीकार करना (Acceptance of Information) : यदि सूचना में निम्नांकित तत्व हों तभी उसे स्वीकार करना चाहिए-
(i) स्रोत का विश्वासपूर्ण होना,
(iii) पूर्णता,
(ii) सत्यता व उचितता,
(iv) नवीनता।
2. आदेश देना (Placing the Order) : यह सहायकों के लिए निदेशात्मक होना है। यह प्राधिकार युक्त (authoritative) सम्प्रेषण है। इसमें सूचना का अधोगामी ( downward) प्रवाह होता है।
3. सलाह (Advice) : इसमें निजी सम्मति शामिल होती है। इसका महत्व अग्रवत है :
(i) व्यावसायिक सफलता हेतु वित्त, कर, जन-सम्पर्क व प्रचार विशेषज्ञों की सलाह
(ii) कनिष्कों को पर्यवेक्षकों की सलाह।
सलाह अधोगामी या समतल स्तर की होती है।
प्रभावी सलाह (Effective Advice) : इसमें अग्रांकित बातें होनी चाहिए-
(i) व्यक्ति - अभिमुखी तथा कार्य - अभिमुखी;
(ii) बेहतर समझ हेतु प्रोत्साहन देना;
(iii) द्वि-मार्गीय सम्प्रेषण।
4. शिक्षा (Education) : यह सम्प्रेषण की अत्यन्त चेतनापूर्ण प्रक्रिया है। इसमें शिक्षा देना व सीखना दोनों आते हैं। शिक्षा से ज्ञान व कुशलता बढ़ती है। शिक्षा में निम्नांकित स्तर हो सकते हैं :
(i) प्रबन्धकीय स्तर,
(ii) सेविवर्गीय स्तर,
(iii) बाहरी व्यक्तियों हेतु।
5. मनोबल (Morale) : इसमें दिमागी स्वस्थता शामिल है। इसमें वृद्धि करने में निम्नांकित तत्व सहायक होते हैं
(i) कार्यक्षमता के अनुसार कार्य,
(ii) मधुर वातावरण,
(iii) उन्नति के अवसर,
(iv) शिकायतों का समुचित निपटारा।
6. प्रोत्साहन या अभिप्रेरणा (Motivation) : माइकेल जे. जूसियस के शब्दों में, " अभिप्रेरणा स्वयं को अथवा किसी अन्य व्यक्ति को वांछित कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया है अर्थात् वांछित प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिये सही बटन को दबाना है।"
7. सुझाव (Suggestions) : कोई भी व्यक्ति जो कार्य से प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखता है वह सकारात्मक सुझाव दे सकता है।
यह बाध्यतापूर्ण प्रक्रिया नहीं है। यह ऐच्छिक प्रक्रिया है। कर्मचारियों को उचित सुझाव देने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
8. चेतावनी (Warning) : यदि कोई व्यक्ति नियमानुसार कार्य नहीं करता है तो उसे चेतावनी दी जा सकती है। चेतावनी के संदर्भ में निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं:
(i) सामान्य या विशिष्ट होना,
(ii) किसी व्यक्ति विशेष हेतु,
(iii) संगठन को सुधारने का उद्देश्य होना।
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