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बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक सम्प्रेषण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2669
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक सम्प्रेषण

प्रश्न- शारीरिक भाषा क्या है? इसके गुण व दोष समझाइये।

अथवा
दैहिक भाषा क्या है?
अथवा
दैहिक भाषा के लाभ बताइये।
अथवा
दैहिक भाषा को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
Kinesics से क्या अभिप्राय है?
अथवा
"चेहरा मस्तिष्क का निर्देशांक है। 110 शब्दों में समझाइए।
अथवा
"शारीरिक भाषा का सम्प्रेषण में महत्वपूर्ण योगदान है। समझाइये।

उत्तर -

शारीरिक अथवा दैहिक भाषा
(Body Language)

Kinesics शरीर के विभिन्न अंगों के माध्यम से भावनाओं की आन्तरिक दशा के निर्धारण के लिए शारीरिक हलचलों का अध्ययन है। चेहरे एवं आँखों की अभिव्यक्तियाँ, हाव-भाव, भाव-भंगिमाएँ एवं शारीरिक आकृति बहुत कुछ बताते हैं।

चेहरे की अभिव्यक्तियाँ एवं आँखें (Facial Expression and Eyes ) - चेहरे की अभिव्यक्तियाँ अक्खड़पन प्रशन्नता, भय, दुःख आदि को व्यक्त करते हैं।

भाव-भंगिमाएँ (Gestures) - भाव-भंगिमाएँ शरीर के अंगों की हलचलें होती हैं। लोग अपनी भावनाओं एवं विचारों को अपने शरीर के अंगों के माध्यम से संचारित करते हैं।

हाव-भाव (Posture) - हाव-भाव एवं शारीरिक आकार का प्रभाव सोचने की प्रक्रिया पर पड़ता है। यह दृष्टिकोण के बारे में विचार देता है तथा आक्रामकता, भय आदि के बारे में संकेत करता है।

बाह्य दिखावा (Appearance ) - आभूषण, प्रसाधन, कपड़े आदि भावनाओं का संकेत करते हैं।

सम्प्रेषण में शारीरिक हलचल (body movements ), भाव-भंगिमा ( gesture) आदि का अत्यन्त महत्व है। शारीरिक हावभाव (kinesics) का आशय शारीरिक गति या हलचल होने से लगाया जाता है। इसमें शरीर द्वारा की जाने वाली हलचल, भाव-भंगिमा, हाव-भाव ( posture), सिर हिलाना, आँखों से हलचल करना, हाथ हिलाना, कंधों से गति जिनके माध्यम से व्यक्ति इशारे करता है एवं संदेश भेजता है, शामिल है। दैहिक भाषा अशाब्दिक सम्प्रेषण का एक रूप है। यह शब्द जार्ज टैरी द्वारा दिया गया था। दैहिक भाषा सम्प्रेषण में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अन्तर्वैयक्तिक गतिविधियों एवं हलचलों के माध्यम से संदेश भेजा जाता है। दैहिक भाषा में तालियाँ बजाना, हाथ हिलाना, आँखों से इशारे करना, होंठों को चबाना एवं चलाना आदि को शामिल किया जाता है। इस प्रकार, यह वह तरीका है जिससे शरीर शब्दों के बिना सम्प्रेषण करता है। दैहिक भाषा एक स्वाभाविक क्रिया है जिसे स्व-अभ्यास द्वारा प्राप्त किया जाता है।

नीचे दिए गये तरीकों से शरीर के विभिन्न अंग संकेत भेजते हैं -

1. चेहरे (Face) - चेहरे को मन का सूचकांक माना जाता है। हम जो कुछ अनुभव करते हैं वह हमारे चेहरे पर प्रतिबिम्बित होता है। हमारे माथे की रेखाएँ, भौंहें, हमारे गालों की माँसपेशियों, मुस्कराहट के समय हमारे होंठ सभी शब्दों की अपेक्षा अधिक जोर से बोलते हैं।

2. गाल (Cheeks ) - गाल लज्जा एवं शर्म को व्यक्त करते हैं। जब कोई व्यक्ति लज्जा का अनुभव करता है तो गाल गुलाबी हो जाते हैं।

3. नेत्र सम्पर्क (Eye Contact) - आमने-सामने सम्प्रेषण में यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। कुंचित की हुई भौंहें असहमति एवं क्रोध को व्यक्त करती हैं।

4. होंठ (Lips) - हल्के होंठ गुस्से को प्रदर्शित करते हैं। मुस्कराते हुए होंठ मित्रता का सम्प्रेषण करते हैं। बनावटी मुस्कराहट अन्य लोगों की आलोचना करती है।

दैहिक भाषा की प्रकृति (Nature of Body Language) - यद्यपि दैहिक भाषा को पूर्णतया नियंत्रित नहीं किया जा सकता फिर भी इसे सामाजिक व्यवहार द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

1. दैहिक भाषा को औपचारिक प्रशिक्षण के बिना सीखा जा सकता है।
2. यद्यपि दैहिक भाषा अनियंत्रणीय होती है, तथापि इसकी अभिव्यक्ति को कुछ सीमा तक सामाजिक परम्पराओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

शारीरिक भाषा का महत्व (Importance of Body Language) :

1. सस्ता साधन
2. समय की बचत
3. शीघ्र प्रतिपुष्टि
4. विशिष्ट पहचान होना।

शारीरिक भाषा निम्न को शामिल करती है :

1. चेहरे की अभिव्यक्ति;
2. आँखों का सम्पर्क;
3. भाव-भंगिमा
4 सर व हाव-भाव
5. बाह्य आकृति (appearance ) :
6. शान्त रहना।

शारीरिक भाषा का प्रभावशाली प्रयोग (Effective use of Body Language) : यह निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है -

1. शारीरिक बात पर ध्यान देना चाहिए
2. आँखों के सम्पर्क को ठीक रखना चाहिए
3. स्वतः पर ध्यान देना चाहिए
4. हाथ हिलाते व मिलाते समय सावधान रहना चाहिए
5 उचित गतिविधि अपनानी चाहिए,
6. विश्वासपूर्ण हाव-भाव रखना चाहिए,
7. सम्प्रेषिती के स्तर व प्रास्थिति को ध्यान में रखना चाहिए।

शारीरिक भाषा के लाभ (Advantages of Body Language) : ये अग्रवत हैं- दैहिक भाषा सम्प्रेषण के लाभ/ गुण निम्नलिखित हैं-

1. सरल एवं आसान (Simple and Easy ) - दैहिक भाषा सरल एवं आसान होती है। यह सम्प्रेषण का आसानी से स्वीकार किए जाने योग्य दृश्य पहलू है। यह सम्प्रेषण करने के लिए प्रौद्योगिकी अथवा अन्य दक्षताओं को आवश्यक नहीं करता है।

2. शाब्दिक सम्प्रेषण में सहायता करना (Helps Verbal Communication) - दैहिक भाषा शाब्दिक सम्प्रेषण में सहायक होती है। यह आमने-सामने सम्प्रेषण को अधिक प्रभावी बनाती है।

3. सम्प्रेषण को अधिक जीवन्त बनाना (Makes Communication more Lively) - दैहिक भाषा सम्प्रेषण को अधिक जीवन्त बनाती है। यह सम्प्रेषण को भावनात्मक रूप से प्रभावशाली बनाती है।

4. स्वाभाविक साधन (Natural Means) - दैहिक भाषा सम्प्रेषण का स्वाभाविक एवं प्रभावशाली साधन है।

5. अधिक अनुकूल वातावरण (More Favourable Atmosphere) - यदि दैहिक भाषा को उचित प्रकार से उपयोग किया जाता है तो इससे संगठनात्मक वातावरण अधिक अनुकूल एवं प्रभावशाली बनेगा।

इस प्रकार, दैहिक भाषा व्यावहारिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है।

दैहिक भाषा की हानियाँ
(Disadvantages of Body Language)

यद्यपि वास्तविक जीवन में दैहिक भाषा बहुत महत्वपूर्ण होती है परन्तु यह दोषों से मुक्त नहीं है। इसके दोष निम्नलिखित हैं -

1. सदैव विश्वसनीय नहीं (Not Always Reliable) - शारीरिक हरकतें, हावभाव, चेहरे की अभिव्यक्तियाँ सदैव उपयोगी एवं विश्वसनीय नहीं होतीं। इसलिए इसे बहुत गम्भीरता से नहीं लिया जाता।

2. अपूर्ण संदेश (Incomplete Message ) - दैहिक भाषा पूरा संदेश नहीं देती वरन् उसका केवल कुछ भाग ही व्यक्त कर पाती है।

3. हावभाव एवं अभिव्यक्तियों में अन्तर (Variation in Gestures and Expressions) - संस्कृति आदि में भिन्नता के कारण दैहिक भाषा के चिन्ह अलग-अलग व्यक्तियों तथा अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न होते हैं।

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