बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
अथवा
सिद्ध कीजिए कि महाकवि कालिदास प्रकृति के कवि हैं।
उत्तर -
महाकवि कालिदास ने प्रकृति का सुन्दरतम चित्रण किया है। महाकवि कालिदास प्रकृति को मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण मानते हैं वह प्राणिमात्र से संबंधित है तथा मनुष्य के सुख-दुःख में सहयोग भी करती है। वह स्वयं भी सुख-दुःख का अनुभव करती है। इस प्रकार मनुष्य तथा प्रकृति एक-दूसरे के सहयोग से कार्य करते हैं अभिज्ञानशाकुन्तलम् में कवि ने अपने इन्हीं विचारों का व्यावहारिक रूप दिया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्राकृतिक रूप को ही देखकर रवीन्द्रनाथ लिखते हैं-
"शाकुन्तल नाटक में अनुसूया, प्रियंवदा, कण्व दुष्यन्त आदि जैसे एक-एक पात्र हैं वैसे ही तपोवन भी एक विशेष पात्र है। इस गूँगी प्रकृति का किसी नाटक के भीतर ऐसा अनिवार्य स्थान दिया जा सकता है। यह बात शायद संस्कृत साहित्य के सिवा अन्यत्र देखने को नहीं मिल सकती है। प्रकृति को मनुष्य बनाकर उसके मुख से बातचीत कराकर रूपक नाटक की रचना की जा सकती है, किन्तु प्रकृति को स्वाभाविक रूप में रखकर उसे सजीव प्रत्यक्ष व्यापक और अन्तरंग बना लेना उसके द्वारा नाटक का इतना काम करा लेना शकुन्तलम् के सिवा और कहीं नहीं देखा जा सकता है।"
अभिज्ञानशाकुन्तलम् में शकुन्तला वृक्षों को अपना सहोदर भ्राता और लताओं को सगी बहन के रूप में मानती हैं। वे उसके साथ भाई-बहन जैसा ही व्यवहार भी करती हैं। उन्हें लक्ष्य कर वे इस प्रकार कह रही हैं -
'न केवलं तातनियोग एव। अस्ति मे सोदरस्नेहोऽप्येतेषु।
यही कारण है कि उन्हें जल पिलाये बिना वह स्वयं भी जलपान नहीं करती है। आभूषण प्रिय होने पर भी वह किसलयों को नहीं तोड़ती हैं। पुष्पों के प्रथम आगमन पर वह हर्षित होती है। वनस्पतियों से इस प्रकार स्नेह रखने वाली शकुन्तला आज अपने पतिगृह जा रही हैं, अतः महर्षि कण्व सभी की अनुज्ञा चाहते हैं -
नादत्ते प्रियमण्डनापि भक्तां स्नेहेन या फल्लवम्।
आद्ये वः कुसुमप्रसूतिसमये यस्या भवत्युत्सवः।
सेयं याति शकुन्तला पतिगृहंसर्वेनुज्ञायताम्॥'
महर्षि कण्व के ऐसे वचन सुनकर प्रकृति भी कोयल की कूक ध्वनि से स्वीकृति देती है -
"परभृतविरुतं कलं यथ प्रतिवचनीकृतमेभिरीदृशम् "
शकुन्तला (लतामुपेत्य) वनज्योत्सने आम्र सङ्गत्तापि मा प्रत्यालिङ्गेतोगिताभिः शाखाबाहुभिः। अद्यप्रभृति दुरपरिवर्तिनी ते भविष्यामि।
अभिज्ञानशाकुन्तलम् में प्रायः कवि ने ही प्रकृति को प्रतिनिधि बना दिया है। प्रकृति के साथ रहने से वह भी तदरूप हो गयी है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसने उन्हीं का स्वरूप ग्रहण कर लिया हो। प्रियंवदा का प्रस्तुत कथन इस बात की पुष्टि करता है। जब शकुन्तला वृक्ष के पास खड़ी होती है तो प्रियंवदा कहती है "अरी शकुन्तला क्षण भर वहीं खड़ी रह जा। जब तू पेड़ से लगकर खड़ी होती है तो यह केसर का वृक्ष ऐसा लगता है मानो उससे लिपटी हुई कोई लता है।"
कवि ने प्रकृति के दोनों रूपों अन्तः प्रकति एवं बाह्यप्रकृति को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। मानव मनकी भावनायें बाह्य प्रकृति के रूप में प्रतिबिम्बत होती हैं। मानव मनोभावों एवं बाह्य प्रकृति का सुन्दर समन्वय नाटक के चतुर्थ अंक में परिलक्षित होता हैं। प्रोषितभर्तुका शकुन्तला की असह्य विरह वेदना को चंद्रमा के अस्त हो जाने पर कुमुदिनी की व्यथा के साथ अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है -
अन्तर्हिते शशिनि सैव कुमुद्वयी मे दृष्टिं न नन्दयातिसंस्मरणीयशोभा इष्टप्रवासजनितान्यबलाजनस्य, दुःखानि नूनमतिमात्रः दुःसहानि॥
कवि ने शकुन्तला को प्रकुति की पुत्री के रूप में प्रस्तुत किया है। प्रकृति रहित शकुन्तला कुछ भी नहीं है। श्री शान्तिप्रिय द्विवेदी का यह कथन ठीक ही है "शकुन्तला उस रूप में प्रकृति कन्या है, जिस रूप में शकुन्त से शकुन्तला है। वह जैसे संपूर्ण प्रकृति का स्वर समाहित हो जाता है वैसे ही शकुन्तला में संपूर्ण प्रकृति के स्वर का समागम हो गया है। इसी कारण पुष्पसिंचन करती हुई शकुन्तला कहती है "मैं केवल पिताजी की आज्ञा से ही इन्हें नहीं सींचती हूँ, मैं स्वयं इन्हें सगे भाई जैसा प्यार करती हूँ।" यही कारण है कि शकुन्तला के पतिगृहगमन पर तपोवन में स्थित वृक्ष भी रेशमी वस्त्र, अलक्तक एवं आभूषण देकर अपने प्रेम, सहानूभूति एवं शुभकामनाओं को प्रस्तुत करते हैं -
निष्ठयूस्तचरणोपरागसुभगो लाक्षारसः केनचित्।
अन्येभ्यो वनदेवताकरतत्तलैरापर्वभागोत्थितै
दत्तान्याभरणानिन: किसलयोद्भेदप्रतिद्वन्द्विभिः॥
अर्थात् किसी वृक्ष ने चन्द्रमा के सदश शुभ्र माङ्गलिक रेखमी वस्त्र दिया, किसी वृक्ष ने चरणों में लगाने योग्य महावर निकालकर दिया तथा अन्य वृक्षों ने कलाई तक बाहर निकले हुए वन देवताओं के करतलों द्वारा जोकि उन वृक्षों के नूतन किसलयों से प्रतिस्पर्धा करने वाले थे, आभूषण प्रदान किये। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ठीक ही लिखा है-
"कालिदास ने मनुष्य की परिपूर्णता प्रकृति के साहचर्य में देखी है। जहाँ मनुष्य सहजात वृत्तियों के इशारों पर आँख मूंदकर आगे बढ़ने लगता है, वहाँ विनाश को निमंत्रण देता है, परन्तु जहाँ वह तपस्या से अपने को ऐसा बना लेता है कि विश्व चराचर की प्रकृति उसके इशारे पर चलने लगती है तब वह अमृतत्व को निमंत्रण देता है कालिदास ने तपोवनों में प्रकृति के इङ्गितानुयायी रूप का साक्षात्कार किया उनके सभी ग्रन्थों में प्रकृति का यह संयत मोहन रूप अवश्य मिल जाता है।'
हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रकृति के आठ रूपों को मान्यता प्रदान की है-
(1) आलम्बन,
(2) उद्दीपन,
(3) दूतिका,
(4) मानवीय संवेदिका,
(5) मानवीकरण,
(6) अलङ्करण,
(7) उपदेशात्मक,
(8) उपमान।
उपर्युक्त सभी रूपी महाकवि कालिदास की रचनाओं में देखने को मिलते हैं।
आलम्बन - आलम्बन रूप में प्रकृति का स्वाभविक वर्णन किया जाता है। प्रस्तुत श्लोक को देखें -
"अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः।
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥'
उद्दीपन - जो प्रकृति प्रियजन के समीप होने पर सुख देती है और प्रिय के समीप न होने पर
वही प्रकृति विरह में दुःखदायी होती है। प्रकृति के इस रूप को उद्दीपन कहते हैं।
द्रतिका - कहीं-कहीं पर प्रकृति को दूती रूप में प्रस्तुत किया गया है महाकवि कालिदास ने मेघदूत में मेघ को दूत के रूप में प्रयोग किया है -
संदेशं मे हर धनपतिक्रोधविश्लेषितस्य।
गन्तव्या ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणां
बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिकाधौतहर्म्या॥'
उपमान - कहीं-कहीं प्रकृति को उपमानों के रूप में प्रयोग किया जाता है अभिज्ञानशाकुन्तलम् शकुन्तला का वर्णन दर्शनीय है -
कुसुममिव लोभनीयं यौवनमङ्गेदषु सन्नद्धम्॥'
प्रकृति के अन्य उपादानों के उदाहरण कालिदास की रचनाओं में देखने को मिलते हैं प्रो. जी. सी. झाला का अभिमत है कि 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' में प्रकृति तत्व का महत्वपूर्ण स्थान हैं प्रकृति के बिना शकुन्तला का अस्तित्व ही सम्भव न होगा।
इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि शकुन्तला में प्रकृति का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे हम इस तरह भी कह सकते हैं कि शकुन्तला में प्रकृति प्राणतत्व के रूप में है। यदि शकुन्तला से प्रकृति को दूर किया जाये तो उसका हरा-भरा जीवन नष्ट हो जायेगा। महाकवि कालिदास ने शकुन्तला एवं शाकुन्तल में ऐसा सम्बन्ध स्थापित किया है, जिसे पृथक नहीं किया जा सकता है। कालिदास के प्रकृति चित्रण को देखकर 'राइडर ने प्रकृति के इतने अधिक रूपों का सूक्ष्म निरीक्षण किया हो जितना कालिदास ने। यद्यपि उनका निरीक्षण कवि का था, वैज्ञानिक का नहीं कालिदास का प्रकृति ज्ञान केवल सहानुभूतिमूलक ही नहीं है, अपितु वह सूक्ष्मतया सटीक है। हिमालय की हिमराशि तथा पवन सङ्गीत और पवित्र गंगा की शक्तिशाली धारा ही केवल उनके अधिकार की वस्तुएँ नहीं हैं, छोटी-छोटी सरितायें, विटप तथा छोटे से छोटा फूल भी उनकी सृष्टि, व्यापिनी दृष्टि से बाहर नहीं जा सके हैं।'
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- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
- प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
- प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
- प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
- प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)