शिक्षाशास्त्र >> ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षणईजी नोट्स
|
|
बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 3. परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इनकी विशेषताओं को बताते हुये
इनका विस्तृत वर्णन कीजिए।
अथवा
उत्तम परीक्षण का अर्थ एवं परिभाषा देते हुये इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
1. परीक्षण का क्या अर्थ है?
2. परीक्षण के प्रकारों को बताइये।
3. उत्तम परीक्षण की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर-परीक्षण का अर्थ
(Meaning of Test)
जिस साधन/उपकरण के माध्यम से मानव-व्यवहार की विभिन्नताओं का मापन एव मूल्यांकन
किया जाता है, उसे परीक्षण कहते हैं। इन परीक्षणों की रचना अंग्रेज
संख्याशास्त्री सर फ्रान्सिस गाल्टन और अमेरिकन मनोवैज्ञानिक आर.बी. कैटिल ने
की थी। इन्होंने व्यक्ति की संवेदना, स्मृति, प्रत्यक्षीकरण एवं बुद्धि आदि से
सम्बन्धित कार्यों के मापन एवं मूल्यांकन के लिए परीक्षणों का विकास किया।
परीक्षण के अर्थ को स्पष्ट करते हुये इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया है -
क्रोनबैक के अनुसार, “परीक्षण के अन्तर्गत दो या दो से अधिक व्यक्तियों की
तुलना करना एक व्यवस्थित प्रक्रिया होती है।"
शिक्षा शब्दकोश के अनुसार, "प्रश्नों अथवा कार्यों का ऐसा समूह जिन्हें छात्रों
को हल करना होता है, परीक्षण कहलाता है। इसका उद्देश्य छात्र के गुणों का
संख्यात्मक रूप में प्रस्तुतीकरण करना होता है।"
उत्तम परीक्षण की विशेषतायें
(Characteristics of a Good Test)
उत्तम परीक्षण में दो प्रकार की विशेषतायें पाई जाती हैं -
(A) तकनीकी विशेषतायें (Technical Characteristics) - उत्तम परीक्षण की तकनीकी
विशेषतायें निम्नलिखित हैं -
1. विभेदकारिता (Discrimination) - एक उत्तम परीक्षण में विभेदकारिता का गुण
अनिवार्य रूप से विद्यमान रहता है। विभेदकारी परीक्षा उस परीक्षा को कहते हैं
जो उच्च योग्यता एवं निम्न योग्यता वाले छात्रों में अन्तर बता सके। इसी
उद्देश्य से परीक्षा के प्रश्न कुछ जटिल बनाये जाते हैं और कुछ सरल, जिससे कि
दोनों प्रकार के छात्र हल कर सकें। परीक्षण की यह विशेषता होनी चाहिये कि अच्छे
छात्रों को अधिक अंक मिलें। ऐसा नहीं होना चाहिए कि अच्छे और कमजोर छात्रों को
समान अंक मिलें। यदि कोई प्रश्न ऐसा है जिसका ठीक उत्तर अच्छे छात्र भी दे सकते
हैं और कमजोर भी या इसके उल्टा हो तो प्रश्न का ठीक उत्तर न अच्छे छात्र दे
सकते हैं और न ही कमजोर तो फिर ये प्रश्न विभेदकारी नहीं होगा तथा ऐसे प्रश्न
कठिनाई स्तर पर शून्य कहलायेंगे। अत: इसको विभेदकारिता कहते हैं और विभेदीकरण
क्षमता ज्ञात करने के लिये प्रत्येक पद का विश्लेषण किया जाता है और इस
प्रक्रिया को पद-विश्लेषण कहते हैं।
2. मानकीकरण (Standardization)- मानकीकरण परीक्षण की एक प्रमुख विशेषता है। -
इस परीक्षण में दिये जाने वाले निर्देशों, प्रश्नों, परीक्षा लेने की विधियों
तथा प्रशासन एवं फलांकन प्रक्रिया को पहले से ही निश्चित कर लिया जाता है जिससे
मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ तरीके से किया जा सके। इस परीक्षण के अन्तर्गत परीक्षण को
एक विशाल समूह पर प्रशासित कर उस समूह के निश्चित फलांकों को प्राप्त करते हैं।
परीक्षण के मानकीकरण में कुछ निश्चित प्रक्रियाएँ होती हैं। इसमें निर्देशों को
सावधानीपूर्वक स्पष्ट किया जाता है तथा इसमें समयसीमा का विशेष ध्यान रखा जाता
है। मानकीकरण की अनुपस्थिति में परीक्षण का कोई नहीं होता चाहे वह कितना ही
अच्छा क्यों न बनाया गया हो।
3. वैधता (Validity) - वैधता किसी भी परीक्षण का एक महत्वपूर्ण गुण है क्योंकि
जब तक कोई परीक्षण वैध नहीं होता है जब तक वह उपयोगी नहीं हो सकता। यदि कोई
परीक्षण किसी श्रेणी के छात्रों के लिये उसी विषय या विशेषता का ही मापन करता
है जिस परीक्षा के लिये उसने निर्माण किया हो तो वह परीक्षा वैध मानी जाती है।
वैधता को हम इस प्रकार बता सकते हैं। वैधता का अर्थ है वह कार्य-कुशलता जिससे
कोई परीक्षण उस तथ्य का मापन करता है जिसके लिये वह निर्मित किया गया है।
उदाहरण, अगर कोई छात्र परीक्षण को गणितीय योग्यता का मापन करने के लिये बनाता
है तो उसे वैध कहा जायेगा।
4. विश्वसनीयता (Reliability) - परीक्षण की विश्वसनीयता का अर्थ है जिस पर
विश्वास किया जा सके। अर्थात् विश्वसनीयता से अर्थ है जिसको बार-बार प्रसासित
करने पर एक से ही निष्कर्ष प्राप्त हों। यदि छात्र परीक्षण को एक से अधिक बार
करें तो उसके प्राप्त अंकों या कोटि स्थान में एकरूपता बनी रहे।
5. वस्तुनिष्ठता (Objectivity) - किसी भी परीक्षण का वस्तुनिष्ठ होना अत्यन्त
आवश्यक है क्योंकि इसका प्रभाव विश्वसनीयता एवं वैधता दोनों पर ही पड़ता है।
कोई परीक्षा वस्तुनिष्ठ तब होती है जब उसके प्रश्नों की व्याख्या भिन्न-भिन्न
प्रकार से न की जा सकती हो, जिनके उत्तर ठीक या बिल्कुल गलत हों और उन पर अंक
देते समय विभिन्न व्यक्तियों में मतभेद न होता हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि
परीक्षण में प्रश्नों की भाषा सरल एवं स्पष्ट हो। अत: वस्तुनिष्ठ परीक्षा वह
कहलाती है जिस पर परीक्षक का व्यक्तिगत प्रभाव नहीं पड़ता है। अंक कुँजी बन
जाने पर प्रश्न ही नहीं उठना चाहिये कि प्रश्न अस्पष्ट तो नहीं है। अब चाहे
मूल्यांकन कोई भी करे छात्रों को सदैव उतने ही अंक मिलने चाहिये जितने कि उसको
प्रथम बार मिले थे। इसी को वस्तुनिष्ठता कहते हैं।
6. अंकन में सरलता (Simplicity in Scoring) - इस परीक्षण की प्रमुख विशेषता
उसके अंकन की सरलता है। परीक्षण में प्रश्न-उत्तर के अंक देने की विधि सरल होनी
चाहिये जिससे अंक में कोई कठिनाई न हो और न ही परीक्षक को इसके लिए किसी
प्रशिक्षण की आवश्यकता हो।
(B) व्यावहारिक विशेषतायें (Practical Characteristies) - उत्तम परीक्षण की
व्यावहारिक विशेषतायें निम्नलिखित हैं -
1. प्रतिनिधित्वता (Representativeness) - कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि
उसमें कितना ज्ञान है उसके आगे कुछ है ही नहीं। लेकिन फिर भी वह आत्म-विश्वास
के साथ कहता है। जैसे - हम पूरी जनसंख्या को लेकर कोई अनुसन्धान कार्य करते हैं
लेकिन पूरी जनसंख्या के आँकड़े नहीं ले पाते। अत: उसमें से एक प्रतिनिधि
न्यादर्श ले लेते हैं जिस पर हमारा एक सम्पूर्ण अनुसंधान कार्य आधारित होता है।
एक उत्तम परीक्षण की दृष्टि से उसमें यह विशेषता होनी चाहिये कि उसे प्रतिनिधि
कहा जा सके अर्थात् कहने का अर्थ है कि व्यक्ति के व्यवहार के जिस न्यादर्श का
मापन करने के लिए परीक्षण की रचना की गई है उसका मापन परीक्षण प्रतिधित्व रूप
से कर सके। फ्रेडरिक जी. ब्राउन के अनुसार - "परीक्षण के अन्तर्गत उस समय
प्रतिनिधि माना जायेगा जबकि परीक्षण पद उस व्यवहार से सम्बन्धित हों जिनका हम
मापन करना चाहते हैं।" कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि उसमें बहुत ज्ञान है
तथा उसके आगे कुछ भी नहीं है।
2. मितव्ययी (Economical) - परीक्षण के मितव्ययी होने का अर्थ है कि समय, धन,
एवं शक्ति की नजर से परीक्षण अधिक खर्चीला न हो। परीक्षण बनाते समय परीक्षण
निर्माता को यह अवश्य . ध्यान रखना चाहिये कि परीक्षण अनुसन्धानकर्ता के लिये
धन की दृष्टि से अधिक महँगा सिद्ध न हो। यही कारण है कि समय के महत्व को
स्वीकारते हुए आज व्यक्तिगत परीक्षणों की अपेक्षा सामूहिक परीक्षणों का प्रयोग
बढ़ता जा रहा है।
3. उपयोगिता (Usability) - उपयोगिता को परीक्षण का एक महत्वपूर्ण गुण माना जाता
है। सी. सी. रौस के अनुसार - "उपयोगिता या सहजता वह मात्रा है जिस तक परीक्षा
या अन्य साधनों को अध्यापकों तथा पाठशाला प्रबन्धकों द्वारा बिना समय और शक्ति
के अनावश्यक व्यय के सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जाता है अर्थात् सहजता का अर्थ
व्यावहारिकता है।"
4. सर्वमान्यता (Acceptability) - सर्वमान्यता उत्तम परीक्षण की एक महत्वपूर्ण
विशेषता है। किसी भी परीक्षण को उन व्यक्तियों पर तथा उन परिस्थितियों में
सफलतापूर्वक प्रशासित किया जाना चाहिये जिनको आधार बनाकर उस परीक्षण की एक
प्रकार से मानकीकरण प्रक्रिया सम्पन्न हो जाती है।
5. व्यापकता (Comprehensiveness) - व्यापकता का अर्थ है कि परीक्षा जिस योग्यता
का मापन करने के लिये बनायी गई है उस योग्यता के समस्त क्षेत्र या जिस
पाठ्यक्रम पर आधारित हो उसके समस्त पहलुओं पर प्रश्न पूछे जायें। परीक्षण इतना
व्यापक होना चाहिये कि वह अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये व्यवहार के विस्तृत
प्रतिदर्श रूप का भी चयन कर सके। व्यापकता परीक्षण निर्माता की स्वयं की
सूझ-बूझ, बुद्धि एवं क्षमता पर निर्भर करता है।
6. उद्देश्यपूर्णता (Purposiveness) - उत्तम परीक्षण की उद्देश्यपूर्णता एक
मुख्य विशेषता है। उद्देश्यपूर्णता का अर्थ किसी भी प्रकार की परीक्षा को बनाने
में उसके उद्देश्यों को निर्धारित कर लेने से है। उदाहरणार्थ, एक बुद्धि
परीक्षण का उद्देश्य बालकों की सामान्य मानसिक योग्यता का मापन करना होता है,
जबकि एक समायोजन परीक्षण का उद्देश्य भिन्न-भिन्न तरीके से होता है जैसे - घर,
आस-पड़ोस, शैक्षिक एवं संवेगात्मक क्षेत्र में समायोजन का अध्ययन करना होता है।
|