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ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2271
आईएसबीएन :0

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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।

प्रश्न 5. विज्ञान के आधारभूत सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

उत्तर -  विज्ञान के आधारभूत सिद्धान्त-विज्ञान की प्रकृति के आधार पर ही विज्ञान शिक्षण के सिद्धान्तों. को स्पष्ट किया जा सकता है -

(1) विज्ञान का आधार प्रत्यक्ष सत्य होता है- आधुनिक वैज्ञानिक चिन्तन की दिशा में यह एक बड़ा ही महत्वपूर्ण कदम था जब यह मान लिया गया कि किसी वस्तु के अस्तित्व का प्रमाण उसका अनुभव-सिद्धत है न केवल निगमात्मक तर्क। जब बहुत दिनों तक यह तय नहीं हो पाया कि ऊपर से गिरने वाली वस्तुओं का त्वरण कितना होता है, तब गैलीलियो को यह सूझ आई कि इस बहस के निर्णय के लिये. पीसा में स्थित मीनार (Leaning Tower) से वस्तुओं को गिराकर देखा जाय। तब गैलीनियों का यह प्रयोग न केवल उसके विषय के क्षेत्र में सहायक हुआ अपितु अनुसंधान प्रणाली में प्रचण्ड गति का अग्रदूत सिद्ध हुआ।

(2) विज्ञान विश्लेषण पर आधारित होता है-विज्ञान प्रत्येक तथ्य का विश्लेषण करके प्रत्येक भाग को बारीकी से समझने का प्रयत्न करता है। किसी भी जटिल ज्ञान को विश्लेषण के आधार पर छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर फिर समझा या समझाया जाय तो समझना आसान हो जाता है।

(3) विज्ञान परिकल्पना पर आधारित होता है - वैज्ञानिक विचारधारा में परिकल्पना का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है। जब कभी हम दो तथ्यों को सदा एक साथ घटित होते हुए देखते हैं तो हम तुरन्त उनके बीच किसी सम्बन्ध की कल्पना कर लेते हैं। फिर इस कल्पना के आधार पर नए तथ्यों की खोज की
जाती है। मानव मस्तिष्क उस समय तक निश्चित धारणा नहीं बनाता जब तक कि उसे सारे आँकड़े उपलब्ध नहीं हो जाते। प्राप्त आँकड़ों के आधार पर वह तुरन्त तथ्यों के सम्बन्ध की परिकल्पना करना आरम्भ कर देता है। इसी परिकल्पना से आगे के अवलोकन का आधार एवं कार्य निर्धारित होता है।

(4) विज्ञान पक्षपात रहित होता है - वैज्ञानिक विचारधारा सदैव पक्षपात रहित होती है। वह परिकल्पना पर आधारित तो हो सकती है किन्तु उसे भी वहाँ सत्यापित करके देखती है। इसलिए अनुसंधानों के लिये बनाई गई परिकल्पना सत्य भी हो सकती है और असत्य भी किन्तु पक्षपाती नहीं होती। वैज्ञानिक विचारधारा किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं होती और न ही उसके लिये किसी व्यक्ति की भावनाओं का कोई स्थान होता है। वैज्ञानिक निरपेक्ष होकर विज्ञान से केवल सत्य की खोज करता है। पक्षपातपूर्ण तर्क तथा भावनात्मक आसक्ति उसे ग्राह्य नहीं होती है। सत्य ही उसका एकमात्र उद्देश्य होता है।

(5) विज्ञान वस्तुनिष्ठ कारकों पर निर्भर करता है - विज्ञान का शिक्षण अधिगम वस्तुनिष्ठ मापकों पर निर्भर करता है। जिन व्यक्तियों को वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण नहीं मिलता है वे प्राय: अटकल से तथा व्यक्तिगत अनुमान से मूल्यांकन करते हैं, लेकिन जो वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं उनका मूल्यांकन तथ्यों के परिणामों के माप-तौल या अन्य किन्हीं परीक्षाओं पर आधारित होता है। इसलिए विज्ञान की प्रगति अच्छे मापकों पर निर्भर करती है।

(6) विज्ञान परिमाणवाची है- विज्ञान परिमाणवाची निष्कर्षों की खोज में रहता है। वैज्ञानिक केवल इतना जान लेने से ही सन्तुष्ट नहीं होता कि चुम्बक की आकर्षण शक्ति दूरी के अनुसार कम हो जाती है, बल्कि वह यह भी जानना चाहता है कि इस आकर्षण शक्ति का प्रभाव कितनी दूरी तक कितना रहता है अर्थात् क्या वह 1/(दूरी) के व्युत्क्रमानुपाती होती है। इसलिए विज्ञान में तथ्यों के माप लिए जाते हैं और सांख्यिकीय विश्लेषण के आधार पर तथ्यों के बीच सम्बन्ध निश्चित किए जाते हैं।

विज्ञान के कुछ अन्य आधारभूत सिद्धान्त निम्न हैं -

(1) स्वतन्त्रता का सिद्धान्त - छात्रों के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा नहीं होती। वे प्रयोग को किसी भी प्रकार करने के लिये स्वतन्त्र होते हैं। वे चिन्तन और अन्वेषण करने को स्वतन्त्र होते हैं।

(2) अन्वेषण का सिद्धान्त - छात्रों को कम से कम सूचनाएँ दी जाती हैं और उन्हें अधिक से अधिक अन्वेषण करने के लिये प्रेरित किया जाता है।

(3) तार्किकचिन्तन - वैज्ञानिक प्रक्रिया पूर्णतः तार्किक चिन्तन पर आधारित होती है। आगमन और तर्को का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है।

(4) करके सीखने का सिद्धान्त - मानव मस्तिष्क एक भण्डार गृह की तरह कार्य नहीं करता जिसमें सभी तथ्यों को भावी प्रयोग के लिये एकत्रित कर लिया जाता हो, वह एक जैविक प्रक्रिया है जो वर्तमान के सन्दर्भ में तथ्यों का चयन करता है और कुछ ही भाग को समन्वित रूप से मानसिक शक्ति के रूप में एकत्रित करता है। इस विधि में ज्ञानार्जन हेतु यह सभी मानसिक परिवर्तन स्वाभाविक रूप से हो जाते हैं।

(5) उपयोगिता का सिद्धान्त - इस विधि में छात्रों के अपने निश्चित उद्देश्य होते हैं। वे निश्चित समस्या समाधान हेतु प्रयत्नशील होते हैं, वे निश्चित नियमों और सिद्धान्तों की खोज करते हैं। इस प्रकार यह विधि विकास पर जोर देती है। तथ्यों के एकत्रीकरण पर नहीं। अत: यह पूर्णतः उपयोगिता केन्द्रित है।

(6) वैयक्तिक कार्य का सिद्धान्त - इस विधि में प्रत्येक छात्र अपनी मानसिक शक्ति व अपनी गतिशीलता के अनुरूप कार्य करता है। उसके कार्य का मूल्यांकन भी इसी सन्दर्भ में किया जाता है। अतः वैयक्तिक कार्य का इस विधि में बहुत महत्व है।

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