शिक्षाशास्त्र >> ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षणईजी नोट्स
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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 1. विज्ञान शिक्षण में लक्ष्य निर्धारित करने के प्रमुख कारकों का
वर्णन कीजिए।
उत्तर - वर्तमान शिक्षाशास्त्रीय धारणाओं के अनुसार सामान्य और दीर्घकालीन
लक्ष्यों के निर्धारण में निम्नलिखित कारकों की प्रमुख भूमिका है-
(1) कक्षा स्तर एवं आयु स्तर।
(2) अधिकर्ताओं की आवश्यकताएँ एवं अभिरुचियाँ।
(3) भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण।
(4) सम्बन्धित ध्येय एवं मूल्य।
विज्ञान शिक्षण के लक्ष्यों को सूचीबद्ध करने के लिए सर्वप्रथम कक्षा स्तर और
आयु स्तर पर ध्यान देना आवश्यक है। प्राथमिक स्तर को हम प्राथमिक (कक्षा 1-5
अर्थात् 7 वर्ष से 11 वर्ष) और उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8 अर्थात् 12 वर्ष से 14
वर्ष) में विभाजित करते हैं। इसके बाद माध्यमिक स्तर को माध्यमिक और उच्चतर
माध्यमिक में विभक्त करते हैं। माध्यमिक स्तर कक्षा 9, 10 एवं उच्चतर माध्यमिक
में कक्षा 11, 12 शामिल हैं। माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्तरों के लिए
सामान्यत: आयु सीमाएँ क्रमश: 15-16 वर्ष और 17-18 वर्ष हैं।
मनोविज्ञान का विद्यार्थी जो कि विकास और अभिवृद्धि का अध्ययन कर चुका है,
बाल्यावस्था, किशोरावस्था में भिन्नताओं और अवस्था समूह की भिन्नताओं से भली
प्रकार परिचित है। इन चार स्तरों में अधिकर्ताओं की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक
आवश्यकताएँ भिन्न हैं।
स्वाभाविक रूप से विज्ञान शिक्षण विधि को प्रभावित करने वाले कारकों को
निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटा गया है -
1. छात्र से सम्बन्धित कारक (Factors Related to Student)-छात्र किसी भी शिक्षण
विधि का केन्द्र-बिन्दु होता है, अतएव किसी भी विधि का चयन करते समय छात्र की
वर्तमान शैक्षिक स्थिति को दृष्टिगत रखना चाहिए। छात्र को विज्ञान-शिक्षा का
लक्ष्य निर्धारण करना, अनुदेशन के लिए अलग-अलग विषयों, कार्यक्रमों आदि के
स्वरूप उनको निर्धारित करना, पाठ्यक्रम का निर्माण, अनुदेशन लक्ष्य को सूत्र
द्वारा प्रतिपादित करना एवं पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण इसके अंग हैं।
2. शिक्षक सम्बन्धित कारक (Factors Related to Teacher)- शिक्षण विधि वह
प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इसके अन्तर्गत
पाठ्य-वस्तु को किसी एक क्रम में रखते हैं। सम्पूर्ण शिक्षण विधि में सर्वाधिक
सक्रिय भूमिका शिक्षक की होती है। उसके अपने व्यक्तित्व के अतिरिक्त उसकी
सम्प्रेषण क्षमता एवं उसके पास उपलब्ध समय किसी भी शिक्षण विधि के चयन को
प्रभावित कर सकते हैं।
3. पाठ्य-वस्तु से सम्बन्धित कारक (Factors Related with Content)-पाठ्य-वस्तु
ही वह साधन है जिसका सम्प्रेषण शिक्षण का आधार होता है। पाठ्य-वस्तु की विशिष्ट
प्रकृति शिक्षण विधि के चयन पर प्रत्यक्षतः प्रभाव डालती है।
4. शिक्षण उद्देश्य से सम्बन्धित कारक (Factors Related with Teaching
Objectives) - इसमें आयु, मानसिक योग्यता, व्यक्तित्व, अधिगम प्रारूप द्वारा एक
लब्ध स्थायित्व, अभिज्ञान की दिशा, विधियों, प्रक्रमों, सिद्धान्तों, स्थायी
भावों और आदर्शों का पालन शामिल है। इसी कारण शिक्षण उद्देश्यों की उपयोगिता,
सामयिकता, योग्यता, औचत्य एवं व्यावहारिकता शिक्षण विधि के चयन पर प्रभाव डालते
हैं।
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