शिक्षाशास्त्र >> ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षणईजी नोट्स
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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 6. भौतिक विज्ञान शिक्षण में सेमिनार से आप क्या समझते हैं? इसके
उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सेमिनार क्या है? इसके महत्व का वर्णन कीजिए।
अथवा
भौतिक विज्ञान शिक्षण में सेमिनार की भूमिका बताइए एवं इसकी सीमाओं का वर्णन
कीजिये।
1. भौतिक विज्ञान शिक्षण में सेमिनार का क्या अर्थ है?
2. सेमिनार की विशेषताएँ बताइए।
3. सेमिनार के लाभ एवं दोष बताइए।
4. सेमिनार की उपयोगिता बताइए।
5. सेमिनार की सीमायें बताइए।
उत्तर-सेमिनार का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Seminar)
सेमिनार उच्च अध्ययन की एक अनुदेशनात्मक प्रविधि है जिसके अन्तर्गत किसी विषय
पर पत्र प्रस्तुत किया जाता है। यह पत्र एक या कई लोगों द्वारा अलग-अलग
प्रस्तुत किया जा सकता है। पत्र प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को विषय का गहन
ज्ञान होना आवश्यक है ताकि सम्बन्धित सामग्री का चयन ठीक से किया जा सके। यह
संग्रहीत सामग्री ही पत्र के रूप में प्रस्तुत की जाती है। सेमिनार या संगोष्ठी
एक शैक्षणिक प्रक्रिया है जो उच्च शिक्षा तक ही सीमित नहीं है वरन् सामान्य है
जिसमें शोध अथवा उच्च अध्ययन में संलग्न विद्यार्थियों का एक समूह पारस्परिक
रुचि की समस्याओं के विवेचनार्थ एक या अधिक मार्गदर्शकों के सामान्य निर्देशन
के अन्तर्गत मिलता है।
सेमिनार के उद्देश्य
(Objectives of Seminar)
सेमिनार के उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
1. ज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive Objectives) - इसके अन्तर्गत निम्नलिखित
उद्देश्य आते है-
(i) सूक्ष्म निरीक्षण करने की योग्यता का विकास करना तथा अपनी भावनाओं को
प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना।
(ii) प्रतिक्रिया व्यक्त करने की योग्यता का विकास करना। * (iii) इस उद्देश्य
के अन्तर्गत परिस्थिति का ठीक से आकलन कर उसका मूल्यांकन, संगठन एवं विशेषीकरण
करना।
(iv) स्पष्टीकरण प्राप्त करने की योग्यता का विकास करना तथा दूसरों के विचारों
को प्रभावी तरीके 'से पक्ष के अनुसार लेना।
(v) विषय का गम्भीरता से अध्ययन कर विचार-विमर्श प्रक्रिया में भाग लेने की
योग्यता को विकसित करना।
2. भावात्मक उद्देश्य (Affective Objectives) - इसके अन्तर्गत निम्नलिखित
उद्देश्य आते हैं-
(i) सेमिनार के प्रतिभागियों में आपस में भावनात्मक स्थायित्व विकसित करना।
(ii) प्रतिभागियों में परस्पर अच्छे गुणों एवं कौशलों का विकास करना।
(iii) प्रतिभागियों में प्रश्नों के पूछने एवं उनके उत्तर देने में अपने
व्यक्तित्व की प्रभावी छाप छोड़ने की योग्यता को विकसित करना।
(iv) दूसरों के विरोधी विचारों को सहन करने की शक्ति विकसित करना।
(v) प्रतिभागियों में परस्पर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना को विकसित करना।
सेमिनार सम्बन्धी विभिन्न भूमिकाएँ
(Various Roles in Seminar)
सेमिनार के सफल आयोजन के लिये अलग-अलग भूमिकाएँ दी जाती हैं जो कि निम्नलिखित
हैं -
1. संगठनकर्ता (The Organizer) - संगठनकर्ता सेमिनार के सम्पूर्ण कार्यक्रम की
योजना तैयार करता है। वह सेमिनार के लिये उपयुक्त विषय का चयन करता है तथा इसके
बाद विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग वक्ताओं में विभाजित करता है। सेमिनार के बारे
में दिनांक, समय तथा स्थान का चयन भी वह स्वयं ही करता है। वही सेमिनार के
संरक्षक के नाम का सुझाव देता है। इस प्रकार वह पूरे सेमिनार का आयोजन तैयार
करता है।
2. अध्यक्ष (The President)- प्रतिभागी अध्यक्ष के रूप में किसी वक्ता का नाम
सुझाते हैं जो सेमिनार के विषय से पूरी तरह अवगत हो। अध्यक्ष को अपने पद को
कर्तव्य, अधिकारों एवं गरिमा का आभास होना चाहिये क्योंकि सेमिनार की समस्त
गतिविधियाँ उसी के द्वारा संचालित की जाती हैं। उसे सेमिनार को सफल बनाने के
सम्पूर्ण प्रयास करने होते हैं और इसी अर्थ से वह प्रतिभागियों को विचार-विमर्श
में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है। अन्त में वह सम्पूर्ण
विचार-विमर्श को संक्षेप में तथा अपने शब्दों में प्रस्तुत करता है। साथ ही वह
सभी प्रतिभागियों, वक्ताओं, मेहमानों, निरीक्षकों आदि का धन्यवाद करता है।
3. वक्ता (The Speakers) - संगठनकर्ता सेमिनार में भाग लेने वाले वक्ताओं का
विषयों के अनुसार विभाजन करते हैं जिसका वे गहन अध्ययन कर अपना पत्र तैयार करते
हैं। सेमिनार शुरू होने से पहले सभी प्रतिभागियों में इन पत्रों की छायाप्रति
वितरित कर दी जाती है ताकि वे भी स्वयं को पत्र प्रस्तुतीकरण के बाद
विचार-विमर्श में भाग लेने के लिये तैयार रखें। इस सन्दर्भ में वक्ताओं को अपना
पक्ष प्रस्तुत करने के लिये तथा स्वयं के बचाव के लिये तैयार रहना चाहिये। साथ
ही उन्हें अपनी आलोचनाओं के लिये भी तैयार रहना चाहिये तथा सहनशीलता का परिचय
देना चाहिये।
4. प्रतिभागी (TheParticipants)-सेमिनार में लगभग 25-40 प्रतिभागी होते हैं।
प्रतिभागियों को सेमिनार के विषय से पूरी तरह से अवगत होना चाहिये। उन्हें अन्य
वक्ताओं के प्रस्तुतीकरण की प्रशंसा करनी चाहिये और उनका वस्तुनिष्ठ तरीके से
मूल्यांकन करना चाहिये। प्रतिभागियों में यह योग्यता होनी चाहिये कि वे लोगों
द्वारा पूछे गये प्रश्नों का सटीक उत्तर दे सकें व उनकी जिज्ञासाओं को शान्त कर
सकें। प्रतिभागियों को वक्ताओं से सीधे प्रश्न नहीं पूछने चाहिये।
5. निरीक्षक (The Observers)-सेमिनार में कुछ विशिष्ट अतिथियों एवं निरीक्षकों
को भी सेमिनार की गतिविधियाँ देखने के लिये आमन्त्रित किया जाता है। इसके
अतिरिक्त कुछ विद्यार्थी व सामान्यजनों को भी सेमिनार में अध्यक्ष की अनुमति से
भाग लेने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है। कुछ विद्यार्थी सेमिनार के
कार्यक्रमों में भाग लेने की इच्छा प्रकट करते हैं।
सेमिनार के लाभ
(Advantages of a Seminar)
सेमिनार आयोजन के लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) इसके द्वारा प्रतिभागियों में विभिन्न प्रकार की योग्यताएँ विकसित करने की
क्षमता प्राप्त की जा सकती है।
(2) सेमिनार के माध्यम से उच्च मानसिक योग्यताओं का विकास किया जा सकता है।
(3) इस प्रकार के आयोजनों से भावात्मक योग्यताएँ विकसित की जा सकती है। (4) इस
प्रकार के आयोजनों में समूह व्यवहार की मर्यादा का पालन किया जाता है।
(5) सेमिनार के माध्यम से अच्छी अधिगम आदतों का विकास होता है।
(6) सेमिनार उच्च शिक्षा तक सीमित रहने के बावजूद अनुदेशन के सभी स्तरों पर
स्वाभाविक अधिगम प्रक्रिया को बढ़ावा देता है।
सेमिनार की सीमायें
(Limitations of a Seminar)
सेमिनार की सीमायें निम्नलिखित हैं-
(1) सेमिनार सभी विषयों पर आयोजित नहीं किया जा सकता। इसके लिये ऐसा विषय चुनना
होता है जिस पर विचार-विमर्श आसानी से किया जा सके।
(2) यह शिक्षा के सभी स्तरों पर आयोजित नहीं किया जा सकता।
(3) कुछ गिने-चुने वक्ताओं के सेमिनार पर हावी होने से दूसरे लोगों को इसमें
भाग लेने के अवसर प्राप्त नहीं हो पाते।
(4) कुछ लोग सेमिनार आयोजन को गम्भीरता से नहीं लेते और वे इसे मात्र एक
मनोरंजन या अपने इष्ट मित्रों से मिलने का माध्यम समझते हैं।
5. जब सेमिनार के विषय को लेकर ही वक्ताओं में दो समूह विचारधारा को लेकर बनने
लगें तथा वक्ता एक दूसरे के पक्ष को नकारना प्रारम्भ करे दें तो सेमिनार का
उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
6. कुछ लोगों की विरोध करने की प्रवृत्ति बन जाती है और वे विरोध के लिये ही
विरोध करते हैं जो किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता।
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