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ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2271
आईएसबीएन :0

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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।

प्रश्न 4. भौतिक विज्ञान शिक्षण में सूक्ष्म शिक्षण सेआप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ बताइए।
अथवा
सूक्ष्म शिक्षण क्या है? इसकी प्रकृति एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

1. भौतिक विज्ञान शिक्षण में सूक्ष्म-शिक्षण का अर्थ बताइए तथा इसे परिभाषित कीजिए।
2. सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ बताइए।
3. सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया की अवस्थाओं का विश्लेषण कीजिए।
4. सूक्ष्म शिक्षण के लाभ एवं दोष बताइए।
5. सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणाओं को समझाइए।
6. सूक्ष्म शिक्षण के पदों का वर्णन कीजिए तथा सूक्ष्म शिक्षण कौशलों की उपयोगिता बताइए।

7. सूक्ष्म शिक्षण के आधारभूत तत्व क्या हैं?

उत्तर-सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण का विकास ऐलन द्वारा 1963 मे किया गया था। सूक्ष्म शिक्षण का मुख्य उद्देश्य शिक्षण व्यवहारों एवं शैक्षिणक क्रियाओं का विकास करना है। शिक्षण क्रियाओं को शिक्षण कौशलों (Teaching Skill) के नाम से भी जाना जाता है।

डॉ. ऐलन के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटता है।"

ऐलन और ईव के अनुसार, “यह एक नियन्त्रित अभ्यास प्रक्रिया है जो विशिष्ट शिक्षण व्यवहार पर केन्द्रित होती है तथा शिक्षण अभ्यास को नियन्त्रित परिस्थितियों में सम्भव बनाती है।"

आर. एन. बुश के अनुसार, "सूक्ष्म-शिक्षण अध्यापक शिक्षा की एक तकनीक है जो अध्यापकों को स्पष्ट रूप में परिभाषित शिक्षण कौशलों का, वास्तविक विद्यार्थियों के एक छोटे से समूह में 5 से 10 मिनट शिक्षा प्रदान करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किए पाठों में प्रयोग करने के लिए अपनाई जाती है और जो प्रायः परिणामों को वीडियो टेप के माध्यम से देखने का अवसर भी देती है।"

मैक एलीज एवं अन्विन के अनुसार, "शिक्षक प्रशिक्षार्थी द्वारा सरलीकृत वातावरण में किए गए शिक्षण व्यवहारों को तत्काल प्रतिपुष्टि प्रदान करने के लिए क्लोज सर्किट टेलीविजन के प्रयोग को प्रायः सूक्ष्म-शिक्षण कहा जाता है।"

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro Teaching) - सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

(1) सूक्ष्म-शिक्षण को अध्यापक प्रशिक्षण और विशेषतया शिक्षण कला के अभ्यास क्षेत्र में अपेक्षाकृत एक नवीन प्रयोग अथवा नवाचार (Innovation) के रूप में देखा जाना चाहिए।

(2) यह अध्यापकों को शिक्षण कौशलों का अभ्यास कराने हेतु अपनाई गई एक प्रशिक्षण तकनीक (Training Technique) है, अत: इसे किसी भी अवस्था में शिक्षण तकनीक (Teaching Technique) नहीं समझा जाना चाहिए।

(3) यह शिक्षण का अति लघु और सरलीकृत रूप है जिसमें वास्तविक शिक्षण की जटिलताओं को कम करने के हर संभव प्रयत्न किये जाते हैं।

(4) सूक्ष्म-शिक्षण पाठ की समाप्ति के तुरन्त बाद ही एक अध्यापक को उसका शिक्षण कैसा रहा, इस बात की जानकारी मिल जाती है। इस प्रकार की जानकारी पर्याप्त प्रतिपुष्टि प्रदान करने में काफी सहायक होती है।

(5) शिक्षण कार्य में अनेक अति विशिष्ट शिक्षण कौशलों (Very sepcific teaching skills) का समावेश होता है। परम्परागत शिक्षण-प्रशिक्षण द्वारा इन कौशलों में प्रवीण होना सम्भव नहीं है। सूक्ष्म-शिक्षण ही एक ऐसी तकनीक है जो इन कौशलों में पारंगत होने का अवसर देती है।

(6) सूक्ष्म-शिक्षण एक बहुत ही वैयक्तिक प्रशिक्षण तकनीक है जिसमें एक समय में एक ही व्यक्ति को बहुत ही नियंत्रित परिस्थितियों में किसी एक कौशल का अभ्यास करने का अवसर मिलता है।

सूक्ष्म शिक्षण की उपरोक्त विशेषताओं के सन्दर्भ में इसकी परिभाषा अब निम्न रूप में की जा सकती है-

"सूक्ष्म-शिक्षण से अभिप्राय एक ऐसी विशिष्ट प्रशिक्षण तकनीक है जिसके द्वारा कक्षा आकार, समय और विषय-सामग्री को अल्प मात्रा में सीमित कर अनुभवहीन अथवा अनुभवी अध्यापकों को कुछ विशिष्ट शिक्षण कौशलों के अभ्यास का समुचित अवसर देकर उनकी शिक्षण-कला में निखार लाने का प्रयास किया जाता है।"

सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया
(Process of Micro Teaching)

क्लिफ्ट एवं उसके सहयोगियों (1976) के अनुसार, सूक्ष्म-शिक्षण प्रक्रिया निम्न तीन अवस्थाओं में सम्पन्न होता है -

(1) सूक्ष्म-शिक्षण पूर्वावस्था या ज्ञानार्जन अवस्था,
(2) सूक्ष्म-शिक्षण अवस्था या कौशल-अर्जन अवस्था,
(3) सूक्ष्म-शिक्षण उत्तरावस्था या कौशल उपयोग अवस्था।

इन तीनों अवस्थाओं में सम्पन्न विभिन्न कार्यों की जानकारी निम्न चित्र द्वारा दी जा सकती है-

उपरोक्त अवस्थाओं और उनसे सम्बन्धित कार्यों के आधार पर यदि अच्छी तरह सोचा जाए तो सूक्ष्म-शिक्षण अभ्यास पाठों के लिए अपनाई जाने वाली कार्य-पद्धति में अपने देश की परिस्थितियों के सन्दर्भ में निम्न सोपानों का समावेश होना चाहिए-

(1) सूक्ष्म-शिक्षण के बारे में सैद्धान्तिक ज्ञान देना–प्रारम्भ में छात्राध्यापक को सूक्ष्म-शिक्षण सम्बन्धी आवश्यक सैद्धान्तिक जानकारी की दृष्टि से निम्न बातें बताई जानी चाहिए-

(i) सूक्ष्म-शिक्षण का अर्थ एवं संप्रत्यय।
(ii) सूक्ष्म-शिक्षण का महत्त्व अथवा उपयोग।
(iii) सूक्ष्म-शिक्षण की कार्य-पद्धति।
(iv) सूक्ष्म-शिक्षण तकनीक को अपनाये जाने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ एवं साधन।

(2) शिक्षण कौशलों की चर्चा इस सोपान के अन्तर्गत निम्न बातों का ज्ञान कराया जाना चाहिए-

(i) शिक्षण का शिक्षण कौशल घटकों के रूप में चर्चा।
(ii) शिक्षण कार्य में इन शिक्षण कौशलों के उपयोग अथवा महत्त्व के विषय में चर्चा।
(iii) शिक्षण कौशलों के अन्तर्गत शामिल अध्यापक व्यवहार सम्बन्धी घटकों की चर्चा।

(3) किसी विशिष्ट कौशल का चयन—सूक्ष्म-शिक्षण में किसी एक समय में एवं शिक्षण कौशल का ही अभ्यास कराया जाता है। इसलिए छात्राध्यापकों को अभ्यास हेतु किसी एक कौशल का चुनाव करने के लिए प्रेरित किया जाता है। उन्हें इस कौशल का अभ्यास करने के लिए आवश्यक जानकारी एवं सामग्री भी प्रदान की जाती है। इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) में पर्याप्त सामग्री मिल सकती है।

सूक्ष्म शिक्षण की अवस्थाएँ

(4) आदर्श पाठ इस सोपान के अन्तर्गत प्रशिक्षणार्थियों के सामने शिक्षण-कौशल का अभ्यास कराने से सम्बन्धित एक आदर्श पाठ प्रस्तुत किया जाता है। इस आदर्श पाठ के माध्यम से छात्राध्यापकों से यह आशा की जाती है कि वे शिक्षण कौशल से सम्बन्धित आवश्यक क्रियाओं और शिक्षक व्यवहार का अच्छी तरह अनुकरण कर लें।

(5) आदर्श पाठ निरीक्षण एवं समालोचना आदर्श पाठ जिस रूप में विद्यार्थियों द्वारा देखा, सुना अथवा पढ़ा जाता है, उसका उनके द्वारा सावधानी से विश्लेषण किया जाता है। इस कार्य के लिए उन्हें आदर्श पाठ देने से पहले ही यह बता दिया जाता है कि उन्हें क्या-क्या नोट करना है। पर्यवेक्षण करने से . सम्बन्धित निरीक्षण अनुसूची अथवा प्रपत्र (Observation Schedule) भी उन्हें पहले ही वितरित कर दिये जाते हैं और इन प्रपत्रों की समुचित प्रयोग विधि भी उन्हें समझा दी जाती है। इस प्रकार का पर्यवेक्षण जहाँ एक ओर छात्राध्यापकों को आवश्यक शिक्षण कौशल अर्जित करने में सहायता करता है, वहीं दूसरी ओर आदर्श पाठ प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को भी इससे आवश्यक प्रतिपुष्टि (Feedback) मिल सकती है।

(6) सूक्ष्म पाठ-योजना तैयार करना इस सोपान के अन्तर्गत छात्राध्यापकों से यह आशा की जाती है कि वे सम्बन्धित शिक्षण कौशलों का अभ्यास करने के लिए किसी उचित उपविषय का चुनाव करके एक आदर्श पाठ-योजना तैयार करें। इस कार्य के लिए अपने-अपने प्राध्यापकों से परामर्श कर सकते हैं और शिक्षण-प्रशिक्षण पर उपलब्ध सामग्री और पुस्तकों का अध्ययन भी कर सकते हैं।

(7) सूक्ष्म-शिक्षण सम्बन्धी उचित परिस्थितियों का आयोजन—इस सोपान के अन्तर्गत एक शिक्षण कौशल का अभ्यास करने हेतु आवश्यक सुविधाएँ जुटाने एवं उचित परिस्थितियों के निर्माण करने का प्रबन्ध किया जाता है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) ने भारतीय परिवेश के सन्दर्भ में निम्न प्रारूप सुझाया है-

(i) छात्रों की संख्या-5 से 10 तक। (ii) छात्र वास्तविक या सहपाठी छात्राध्यापक। (iii) पर्यवेक्षणकर्ता शिक्षण प्रशिक्षण और सहपाठी छात्राध्यापक। (iv) सूक्ष्म पाठ की अवधि–6 मिनट। (v) सूक्ष्म-शिक्षण चक्र (Micro-teaching cycle) की अवधि = 36 मिनट। इस अवधि का विभाजन निम्न प्रकार से है -

शिक्षण सत्र (Teaching Session)  : 6 मिनट
प्रतिपुष्टि सत्र (Feedback Session) : 6 मिनट
पुनर्योजना सत्र (Re-plan Session) : 12 मिनट
पुनः अध्यापन सत्र (Reteach Session) : 6 मिनट
पुनः प्रतिपुष्टि सत्र (Re-feedback Session) : 6 मिनट
कुल समय  : 36 मिनट

(8) शिक्षण अभ्यास-शिक्षण सत्र—इस सोपान के अन्तर्गत छात्राध्यापक 5 से लेकर 10 विद्यार्थियों अथवा सहपाठी छात्राध्यापकों की कक्षा में अपने तैयार सूक्ष्म पाठ को 6 मिनट पढ़ाता है। पर्यवेक्षण का कार्य, शिक्षक, प्रशिक्षक और सहपाठी छात्राध्यापकों दोनों के द्वारा निर्धारित निरीक्षण प्रपत्र (Observation Schedule) के माध्यम से किया जाता है। कुछ परिस्थितियों में इस कार्य के लिए वीडियो टेप अथवा ऑडियो टेप की सहायता भी ली जा सकती है।

(9) प्रतिपुष्टि प्रदान करना—सूक्ष्म-शिक्षण की सबसे अधिक उपयोगिता उसके इस गुण में है कि इसके द्वारा एक अध्यापक को अपने पढ़ाये हुये पाठ के विषय में तत्काल प्रतिपुष्टि प्राप्त हो सकती है। किसी शिक्षण कौशल से सम्बन्धित शिक्षा व्यवहार घटकों (Component teaching behaviour) का प्रयोग उसके द्वारा किस रूप में किया गया है, इसका ज्ञान होने पर इन व्यवहारों का उपर्युक्त परिमार्जन एवं संशोधन किया जा सकता है। अपने देश की परिस्थितियों में इस प्रकार की प्रतिपुष्टि प्राय: शिक्षक, प्रशिक्षक और सहपाठी छात्राध्यापकों से जो एक पर्यवेक्षक के रूप में कार्य करते हैं, मिलती है। अगर सम्भव हो सके तो वीडियो टेप, ऑडियो टेप और क्लोज सर्किट टेलीविजन आदि की भी सहायता इस कार्य हेतु ली जा सकती है।

(10) पुन:पाठयोजना बनाना विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर छात्राध्यापक अपने सूक्ष्म शिक्षण पाठ की योजना पुनः बनाता है। इस कार्य के लिए उसे 12 मिनट का समय लगता है। इस सत्र को पुनर्योजना सत्र (Replan Session) कहा जाता है।

(11) पुनः अध्यापन 6 मिनट के इस सत्र को पुनर्निर्मित पाठ-योजना के आधार पर पुनर्व्यवस्थितियों में छात्राध्यापक अपने सूक्ष्म-शिक्षण पाठ को एक बार फिर पढ़ाता है। इस सत्र को पुन: शिक्षण सत्र का नाम दिया जाता है।

(12) पुनः प्रतिपुष्टि प्रदान करना—पुनः पढ़ाये गये पाठ शिक्षण का शिक्षण प्रशिक्षक और सहयोगी छात्राध्यापकों द्वारा एक बार फिर पर्यवेक्षण किया जाता है और परिणामस्वरूप इसके द्वारा आवश्यक प्रतिपुष्टि प्रदान की जाती है। यह सत्र 6 मिनट का होता है।

(13) सूक्ष्म-शिक्षण चक्र की पुनरावृत्ति—किसी शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए प्रयुक्त सूक्ष्म शिक्षण चक्र में योजना से लेकर पढ़ाने, प्रतिपुष्टि प्रदान करने, पुन: योजना बनाने, पुन: शिक्षण करने और पुन: प्रतिपुष्टि करने आदि से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों का समावेश होता है। इनके आपसी सम्बन्ध को अग्र चित्र द्वारा समझा जा सकता है-

एक छात्राध्यापक किसी विशेष शिक्षण-कौशल के लिए प्रयुक्त एक सूक्ष्म शिक्षण चक्र की तब तक पुनरावृत्ति करता रहता है जब तक कि वह उस कौशल में पूर्णतया पारंगत न हो जाये।

(14) शिक्षण-कौशलों का एकीकरण—यह सोपान उन सभी शिक्षण कौशलों को एकीकृत या समन्वित करने (Integration) से सम्बन्धित है जिन्हें पृथक्-पृथक् रूप में सूक्ष्म-शिक्षण अभ्यास द्वारा छात्राध्यापक अर्जित करते हैं। शिक्षण कौशलों को इस प्रकार एकीकृत करना काफी आवश्यक होता है, क्योंकि वास्तविक शिक्षण में कभी भी शिक्षण कौशलों का पृथक्-पृथक् उपयोग नहीं किया जाता। एकीकृत रूप में ही इनका उपयोग होता है।

सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणायें (Assumptions of Micro teaching) -

(1) इसके द्वारा शिक्षा की जटिलताओं को कम किया जा सकता है।
(2) इसके द्वारा शिक्षण कौशलों का विकास होता है।
(3) मूल्यांकन करने में आसानी होती है।
(4) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा अभ्यास कार्य को नियन्त्रित किया जा सकता है।
(5) यह एक प्रकार का व्यक्तिगत प्रशिक्षण है।

सूक्ष्म शिक्षण के पद (Steps) - सूक्ष्म शिक्षण में निम्नलिखित पदों का प्रयोग किया जाता है -

(1) विशिष्ट कौशलों की रूपरेखा तैयार करना।
(2) कौशलों (Skills) की रूपरेखा तैयार करना।
(3) सूक्ष्म पाठ योजना तैयार करना।
(4) छोटे समूह (Groups) में शिक्षण करना।
(5) प्रतिपुष्टि या Feedback प्राप्त करना।
(6) पुनः मूल्यांकन करना।

सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण कौशलों की उपयोगिता
(Utility of Teaching Skills in Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण-शिक्षण को एक जटिल क्रिया मानता है तथा यह मानता है कि शिक्षण को आसान एवं सरल घटकों में विभक्त किया जा सकता है जिन्हें शिक्षण कौशल के नाम से जाना जाता है। सूक्ष्म शिक्षण के अनुसार प्रत्येक कौशल को अभ्यास के द्वारा एक-एक करके प्राप्त किया जा सकता है और जब विभिन्न शिक्षण कौशलों पर पूर्ण रूप से स्वामित्व प्राप्त कर लिया जाता है तो उनका एकीकरण करके शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। विभिन्न कौशलों के एकीकरण के सम्बन्ध में अभी विवाद है। कुछ मनोवैज्ञानिक कौशलों के एकीकरण को सम्भव नहीं मानते तथा कुछ इसे पूर्ण रूप से सम्भव मानते हैं। इस दिशा में अनेक अनुसन्धान किये जा रहे हैं। डॉ. एन. के. जंगीरा का Integration of Teaching Skills' नामक प्रयास अति महत्त्वपूर्ण है।

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