शिक्षाशास्त्र >> ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षणईजी नोट्स
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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 3. 'अभिक्रमित अनुदेशन' के सिद्धान्तों, उद्देश्यों एवं प्रक्रिया
का वर्णन कीजिए। किसी विद्यालयी विषय-वस्तु पर एक शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन
विकसित कीजिए।
उत्तर-अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ एवं परिभाषाएँ
(Meaning and Definition of Programmed Instruction)
अभिक्रमित अनुदेशन के अर्थ को समझने से पहले कुछ महत्त्वपूर्ण प्रत्यय जैसे
शिक्षण व अनुदेशन को जानना आवश्यक होगा। शिक्षण एक वृहत् प्रत्यय है जिसमें
अनुदेशन निहित है। इस अनुदेशन को जब अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित कर पूर्व
नियोजित कर लिया जाता है कि कौन-कौन से प्रश्न पूछे जाने हैं, कौन-कौन सी
क्रियाएँ करानी हैं तथा बालक जब इन सबको अपनी सीखने की रफ्तार से सीखने को
स्वतन्त्र होता है, यह अभिक्रमित-अनुदेशन कहलाता है। पाठ-योजना तथा अभिक्रमित
अनुदेशन में निम्नलिखित अन्तर हैं-
1. पाठ-योजना से अध्यापक समूह-शिक्षण करता है जबकि अभिक्रमित-अनुदेशन में हर
बालक अपनी-अपनी सीखने की रफ्तार से सीखता है। कोई बालक तीव्र गति से सीखता है
तथा कोई बालक धीमी गति से सीखता है। पाठ-योजना में सभी बालक चाहे जो भी उनकी
सीखने की गति हो, एक रफ्तार से सीखने को बाध्य रहते हैं।
2. पाठ-योजना अध्यापक की शिक्षण करने में सहायता करती है। अध्यापक स्वयं निर्णय
करता है कि कौन-सी शैक्षिक-क्रिया कब करनी है जबकि अभिक्रमित-अनुदेशन पर आधारित
सामग्री से बालक स्वयं सीखता है, उसे सीखने में अध्यापक की कोई विशेष आवश्यकता
नहीं पड़ती है।
इस प्रकार पाठ-योजना को अभिक्रमित अनुदेशन नहीं कहा जा सकता है।
अभिक्रमित अनुदेशन सक्रिय अनुबन्ध-अनुक्रिया-सिद्धान्त (Operant Conditioning
Theory) पर आधारित एक ऐसी प्रविधि है जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
1. अनुदेशन-सामग्री को एक तार्किक क्रम (Logical Sequence) में विद्यार्थी के
समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
2. छात्र की सही अनुक्रिया को पुनर्बलित (Reinforce) किया जाता है।
3. प्राप्त-उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखा जाता है।
4. अनुदेशन-सामग्री का स्तर आसान होता है ताकि कमजोर छात्र भी इसे समझ सकें।
5. पाठ्य-वस्तु छोटे-छोटे पदों में छात्र के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।
6. छात्र स्वयं की सीखने की गति से विषय-वस्तु को सीख सकता है।
7. इससे ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रत्येक छात्र को अनुक्रिया करनी पड़ती है
जिससे वह सदैव क्रियाशील रहता है।
8. अभिक्रमित-अनुदेशन से छात्रों की कमजोरियों का पता लगाकर उनका उपचारात्मक
शिक्षण किया जा सकता है।
इस प्रकार अभिक्रमित-अनुदेशन एक प्रविधि है जिसमें अधिगम-अनुभवों को तार्किक
क्रम में व्यवस्थित कर विद्यार्थी को स्वयं को सीखने की गति से पढ़ने तथा सीखे
ज्ञान की प्रतिपुष्टि करने का प्रावधान होता है।
अभिक्रमित अनुदेशन उद्देश्य
अभिक्रमित अनुदेशन निम्नलिखित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर दिया जाता है -
1. छात्रों को, उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं के अनुरूप सीखने का अवसर प्रदान करना।
2. विद्यार्थियों को स्वाध्याय हेतु अभिप्रेरित करना।
3. नियमित अध्ययन के अवसर से वंचित छात्रों को सहज, सुगम पाठ्य-वस्तु उपलब्ध
कराना।
4. शिक्षक के अभाव में भी अधिगम की सुगम पद्धति द्वारा अध्ययन का अवसर प्राप्त
कराना।
5. छात्रों को लघु इकाइयों के द्वारा ज्ञान कराना।
6. छात्रों को अध्ययन की दिशा में प्रेरित करना।
7. स्व-मूल्यांकन का छात्रों को अवसर प्रदान करना।
अभिक्रमित अनुदेशन के प्रमुख प्रत्यय
(1) पद या फ्रेम - यह अभिक्रमित-अनुदेशन में सर्वाधिक प्रचलित शब्द है। इसके
सामान्यतः तीन भाग अर्थात् सूचना प्रदान करने वाला भाग जिसे विद्यार्थी पढ़कर
सूचनाएँ ग्रहण करता है, इसे उद्दीपन वाला भाग भी कहते हैं। दूसरा भाग प्रश्न के
पूछे जाने अथवा रिक्त स्थान की पूर्ति करने से सम्बन्धित है, इसे अनुक्रिया
वाला भाग कहते हैं। तीसरा भाग सही उत्तर वाला भाग है जिससे बालक को अपने उत्तर
के सही अथवा गलत होने का ज्ञान होता है। फ्रेम तथा एक साधारण गद्यांश में अन्तर
है। गद्यांश में बहुत-सी सूचनाएँ एक साथ दी जाती हैं, जबकि फ्रेम में एक सूचना
एक बार में दी जाती है। गद्यांश में छात्र-अनुक्रिया हेतु प्रश्न नहीं पूछे
जाते जबकि फ्रेम में अधिगम को क्रियाशील बनाये रखने के लिए प्रश्न पूछे जाते
हैं तथा छात्र के उत्तरों की जाँच भी तत्काल की जाती है।
(2) उद्दीपक - उद्दीपक से यहाँ अर्थ है वातावरण या परिस्थितिजन्य घटना जो
व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित कर उसका मार्ग-दर्शन प्रदान करती है। फ्रेम
में दी गई सूचनाएँ तथा पूछे गए प्रश्न उद्दीपक का कार्य करते हैं अर्थात् बालक
क्या व्यवहार करे, इस सन्दर्भ में मार्ग-दर्शन देते हैं।
(3) अनुक्रिया (Response) - बालक प्रश्न को समझकर जो उत्तर अपनी उत्तर-पुस्तिका
में लिखता है उसे अनुक्रिया कहते हैं। अभिक्रमित-अनुदेशन में केवल वे ही
अनुक्रियाएँ कराई जाती हैं जो कि बालक के व्यवहारगत परिवर्तन से सम्बन्धित हैं।
शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन
(Branching Programmed Instruction)
रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन में विद्यार्थी को प्रत्येक फ्रेम को पढ़ना पड़ता था।
इसकी आवश्यकता न हो तो इसे रेखीय न कह कर शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन कहते हैं। इस
प्रकार की व्यवस्था में 'विद्यार्थी को एक फ्रेम पढ़ने को कहा जाता है। फिर
प्रश्न का उत्तर तीन या चार विकल्पों में से एक को चुनना होता है, चूँकि केवल
एक उत्तर ही सही उत्तर होता है, विद्यार्थी को गलत उत्तर चुनने पर उसका निदान
करने के लिए शाखाओं में होकर पढ़ना पड़ता है। सही उत्तर चुनने पर वह अगले फ्रेम
पर पहुँच जाता है। यह अग्र उदाहरण से स्पष्ट हो सकेगा-
उक्त चित्र से यह स्पष्ट है कि फ्रेम संख्या-1 में पूछे गये प्रश्न के तीन
उत्तर क्रमश: ए, बी व सी हैं। इनमें ए और बी विकल्प गलत हैं। यदि छात्र इसमें
से कोई एक चुनता है तो वह एक के लिए 1(ए) फ्रेम तथा बी के लिए 1 (बी) फ्रेम को
पढ़ेगा तथा वहाँ यह समझेगा कि उसका यह उत्तर ठीक क्यों नहीं है? वह पुनः
फ्रेम-1 को पढ़ सही उत्तर ढूँढेगा। यदि वह सी अर्थात् सही उत्तर को चुनता है तो
उसे शाखाओं में जाने की आवश्यकता नहीं है, वह सीधे ही फ्रेम संख्या-2 पर आ जाता
है। इस प्रकार वह त्रुटि करने पर बार-बार उपचारात्मक शिक्षण के लिए शाखाओं के
फ्रेम में पढ़ता है। चूंकि इसमें शाखाओं (Branching) की व्यवस्था है, इसलिए इसे
शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन कहते हैं।
शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन के प्रतिपादक नार्मन ए० क्राउडर (Norman A. Crowder)
हैं। इस कारण इसे कभी-कभी क्राउडेरियन अनुदेशन भी कहते हैं। इसमें विद्यार्थी
अपने पढ़ने की दिशा स्वयं निर्धारित करता है अर्थात् त्रुटि करने पर वह शाखाओं
में तथा न करने पर अगले फ्रेम का अध्ययन करता है चूँकि यह निर्णय आन्तरिक
(Instrinsic) है अत: इसे आन्तरिक अनुदेशन (Instrinsic Instruction) भी कहते
हैं।
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