शिक्षाशास्त्र >> ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षणईजी नोट्स
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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 4. विज्ञान में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का क्या महत्त्व है? आप
अपने विद्यालय में विज्ञान क्लब की योजना एवंगठन कैसे करेंगे?
उत्तर -विज्ञान में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का महत्त्व
(Importance of Co-Curricular Activities in Science)
बालक के सर्वांगीण विकास में पाठ्यतर क्रियाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को निम्न
प्रकारसे व्यक्त किया जाता है-
(1) सामाजिक चरित्र के विकास में सहायक पाठ्यतर क्रियाएँ बालकों के सामाजिक
चरित्र के विकास में सहायक होती हैं। इन क्रियाओं की मदद से छात्रों में प्रेम,
सहानुभूति, सहकारिता, मित्रता, भाई-चारा आदि सद्भावनाओं का विकास होता है। इन
क्रियाओं से छात्रों में सामाजिकता तथा अनुकूलन की क्षमता का विकास होता है।
(2) नागरिकता की भावना का विकास–पाठ्यतर क्रियाएँ छात्रों को नागरिकता की भी
शिक्षा प्रदान करती है। आत्म अनुशासन के द्वारा छात्र नागरिकता का पहला पाठ
पढ़ते हैं, एक अच्छे नागरिक के क्या दायित्व होते हैं उनको अपने कर्तव्यों का
कब तथा कैसे निर्वहन करना होता है? यह सब कुछ पाठ्यक्रम के साथ-साथ पाठ्यतर
क्रियाओं के द्वारा भली-भाँति सिखाया जा सकता है।
(3) किशोरों के लिए आवश्यक पाठ्य सहगामी क्रियाएँ किशोर आयु के छात्र-छात्राओं
के लिए अत्यधिक लाभदायक होती हैं। किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल होता है।
छात्र की मानसिक स्थिति अत्यधिक संवेदनशील होती है ऐसे में यदि छात्र को अपनी
योग्यता एवं क्षमता को प्रकट करने का समुचित अवसर नहीं मिलता तो उनकी मन:स्थिति
असन्तुलित होकर उन्हें कोई गलत राह चुनने के लिए मजबूर कर सकती है।
(4) चारित्रिक विकास में सहायक-पाठ्यतर क्रियाओं के द्वारा छात्रों में सामाजिक
कुशलता के साथ-साथ उनका चारित्रिक विकास भी होता है। समूह में सम्पन्न होने
वाली क्रियाओं में भाग लेकर छात्र सहयोग, त्याग, निर्णय, क्षमता का विकास,
सत्यता, ईमानदारी, न्याय प्रियता इत्यादि की शिक्षा प्राप्त करता है।
(5) अनुशासन की स्थापना में सहायक-पाठ्य सहगामी क्रियाएँ छात्रों में
अनुशासनहीनता को दूर करके उनमें अनुशासन की भावना को विकसित करने में सहायक
होती हैं। पाठ्यतर क्रियाओं में भाग लेने जहाँ एक ओर छात्र में अनुशासन के
महत्त्व का ऐहसास होता है वहीं दूसरी ओर उन्हें अनुशासनहीनता करने से दूर करके
इन सहगामी क्रियाओं में व्यस्त रखते हैं।
(6) पाठ्य विषयों में सहायक—पाठ्यतर क्रियाओं के द्वारा पाठ्य विषयों को पढ़ाने
से विषय अत्यन्त रुचि पूर्ण तथा आकर्षक हो जाता है। बालक खेल-खेल में विषय को
और अधिक अच्छे ढंग से सीखते एवं समझते हैं। परिचर्चा, वाद-विवाद, निबन्ध
प्रतियोगिता तथा लघु ऐतिहासिक नाटकों के द्वारा नीरस विषयों को भी रोचक बनाया
जा सकता है।
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