शिक्षाशास्त्र >> ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षणईजी नोट्स
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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
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विज्ञान प्रयोगशाला एवं इसके उपयोग
(Science Laboratory and Its Uses)
प्रश्न 1. प्रयोगशाला विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए एवं माध्यमिक स्तर विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला विधि को अनिवार्य किये जाने के बारे में सुझाव दीजिए।
अथवा
प्रयोगशाला विधि का अर्थ बताते हुये इसके गुण व दोषों को बताइये।
अथवा
विज्ञान प्रयोगशाला के प्रमुख गुण लिखिए।
1. प्रयोगशाला विधि क्या है?
2. प्रयोगशाला विधि के गुण व दोष बताइये।
3. माध्यमिक स्तर विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला विधि को अनिवार्य किये जाने के बारे में सुझाव दीजिये।
उत्तर-प्रयोगशाला विधि
(Laboratory Method)
विज्ञान के सभी विषय इस प्रकार के हैं कि उनके लिए प्रयोगशाला का होना आवश्यक है। उदाहरण के तौर पर, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीव विज्ञान, भू-विज्ञान आदि। इन विषयों की वास्तविक शिक्षा के लिए प्रयोगशाला के द्वारा सही ज्ञान बालक को मिलता है। प्रयोगशाला में विद्यार्थी स्वयं प्रयोग करता है। उसे निरीक्षण करने का सुअवसर मिलता है तथा अपने ही प्रयासों से परिणाम निकालने की कोशिश करता है। प्रयोगशाला में अध्यापक उसके कार्य का निरीक्षण करते हैं और विद्यार्थी लिखित कार्य भी करते हैं। इसीलिए आजकल की शिक्षा प्रणाली में विज्ञान अनिवार्य है और विज्ञान कक्षाओं के लिए हर विद्यालय में प्रयोगशाला का होना भी आवश्यक है। इन प्रयोगशालाओं में विज्ञान सम्बन्धी साज-सामान, उपकरण तथा रासायनिक पदार्थ मेजों पर क्रमानुसार रखे जाते हैं। सामान को देखकर बालक प्रयोगशाला में आते ही कार्य में लग जाते हैं। जिस प्रयोग को बालक करना चाहते हैं, उसके बारे में एक दिन पहले पूर्व ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। अपने अध्यापक की देख-रेख में बालक प्रयोगशाला में प्रयोग करते हैं। प्रयोगशाला विधि में बालक खोजकर्ता की तरह कार्य करते और जो परिणाम निकलते हैं, उनको अपनी कापी में लिख सकते हैं।
प्रयोगशाला विधि के गुण -
(1) यह विधि बालकों में वैज्ञानिक क्षमता उत्पन्न करती है। बालक कार्य करते समय बड़े उत्साह और उत्सुकता से भर जाता है और कुछ-न-कुछ निकालने की तलाश में रहता है।
(2) इस प्रणाली में अधिकतर बालक सक्रिय रहते हैं क्योंकि प्रत्येक को अपनी सीट पर खड़े होकर कार्य करना पड़ता है और सबकी यही एकमात्र कोशिश होती है कि निश्चित लक्ष्य को प्राप्त किया जाये।
(3) इस विधि में विद्यार्थी पुस्तक में पढ़े हुए अथवा अध्यापक द्वारा समझाये गये ज्ञान का सत्यापन स्वयं प्रयोगशाला में करते हैं। उन्हें प्रयोगशाला में पाई जाने वाली वस्तुओं और उपकरणों का सही उपयोग करने का अवसर भी मिलता है।
(4) विद्यार्थी स्वयं प्रयोग करता है इसलिए उनका दृष्टिकोण (पूर्णतः वैज्ञानिक हो जाता है। इस प्रकार स्वयं प्रयोग करने, उपकरणों का प्रयोग करने तथा निरीक्षण करने के लिए विवेकपूर्ण चिन्तन की दक्षता प्राप्त करता है।
(5) प्रयोगशाला में विद्यार्थी मान्य वैज्ञानिक परिणामों की स्वयं जांच करता है इसलिए उसके मन मस्तिष्क में तथा अथवा सिद्धान्त पूर्व रूप से स्पष्ट हो जाते हैं और स्थाई बनकर याद भी हो जाते हैं।
दोष-(1) यह विधि छोटी दशाओं के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि बालक प्रयोगशाला में ठीक प्रकार से न तो प्रयोग कर पायेंगे और न उनकी समझ में ही कुछ आयेगा। वे उपकरणों का प्रयोग भी ठीक से नहीं कर पायेंगे।
(2) कक्षा में पिछड़े हुए तथा मन्द बुद्धि वाले बालक प्रयोग नहीं कर पाते हैं इसलिए वे अक्सर अच्छे बच्चों की कापियों से नकल कर लेते हैं।
(3) किसी प्रयोग को करने में काफी समय लग जाता है, इसके अलावा उपकरणों को समझने में भी कठिनाई होती है। यह देखा गया है कि अक्सर प्रयोगों के चक्कर में पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं हो पाता है।
(4) चूँकि प्रत्येक विद्यार्थी अलग-अलग सीट पर अपने उपकरणों या सामग्री द्वारा प्रयोग करते हैं जिससे काफी धन खर्च होता है। अध्यापक को भी प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी सीट पर जाकर देखने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
माध्यमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला विधि को अनिवार्य किये जाने के बारे में सुझाव यदि हमारा उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी स्वयं करके सीखे, पदार्थ/सामग्री तथा उपकरणों को अपने हाथ से परिचालन करें और विज्ञान को प्रक्रिया रूप में सीखें तो माध्यमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला विधि का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। विज्ञान शिक्षण के तीन अन्तर हैं। पहला, यह यदि आपका उद्देश्य यह है कि बच्चे कुछ समय के लिए किसी चीज को याद रखें तो व्याख्यान विधि का प्रयोग करना चाहिए। दूसरा, यदि आपका उद्देश्य है कि विद्यार्थी उसे लम्बे समय तक याद रखें तो व्याख्यान-निर्देशन विधि का प्रयोग करें और यदि आपका उद्देश्य यह है कि बच्चे उसे समझ जायें और सदा के लिए याद रखें तो प्रयोगशाला विधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे यह स्पष्ट होता है कि बच्चों को दिया जाने वाला ज्ञान स्थाई हो। इसलिए माध्यमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला विधि को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। प्रयोगशाला विधि को अनिवार्य करने से छात्रों को निम्न प्रकार लाभ पहुँचाकर शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है-
(1) छात्रों में तर्कशक्ति का विकास होता है।
(2) छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।
(3) छात्रों में कार्य को स्वयं करके सत्य खोजने की प्रवृत्ति का विकास होता है। (4) छात्रों द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।
(5) छात्रों में सामाजीकरण का विकास होता है।
(6) छात्रों में आत्म-विश्वास की वृद्धि का विकास होता है।
(7) छात्र पढ़े हुए सिद्धान्तों एवं सम्पृष्ठों को स्वयं सिद्ध करते हैं।
प्रयोगशाला कार्य का आयोजन निम्नलिखित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है -
1. प्रयोगशाला कार्य का आयोजन विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रयोगों तथा विज्ञान सम्बन्धी गतिविधियों में रुचि विकसित करने के लिए होता है।
2. इसका उद्देश्य विद्यार्थियों में वैज्ञानिक घटनाओं के दृश्य अनुभव प्रदान करना होता है।
3. इसका उद्देश्य विद्यार्थियों में वातावरण के प्रति चेतना व जिज्ञासा उत्पन्न करना होता है।
4. विद्यार्थियों में वैज्ञानिक उपकरणों पर कार्य करने का कौशल विकसित करना होता है।
5. इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को समस्या हल करने की वैज्ञानिक विधि का अभ्यास कराना होता है।
6. प्रयोगशाला कार्य का आयोजन विद्यार्थियों को इस योग्य बनाता है कि वे वैज्ञानिक प्रत्ययों एवं सिद्धान्तों का विकास स्वयं कर सकें।
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