हिन्दी भाषा >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष हिन्दी भाषा प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष हिन्दी भाषा प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष हिन्दी भाषा प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न ७- पुरानी हिन्दी की विशेषताओं की विवेचना कीजिए?
उत्तर - पुरानी हिन्दी या सन्धा भाषा : सन्धा भाषा को हरप्रसाद शास्त्री
महाशय 'प्राचीन बंगला का नमूना, सुनीतिकुमार चटर्जी शौरसेनी अपभ्रंश' का
प्राचीन रूप. बनिकान्त काकती महाशय 'असमी भाषा का प्राचीन रूप', आर्तवल्लभ
महन्ती 'उडिया भाषा का प्राचीन रूप' काशीप्रसाद जयसवाल एवं राहुल जी ने
'प्राचीन मगही या पुरानी हिन्दी या हिन्दी का आदि रूप तथा जयकान्त मिश्र
प्राचीन मैथिली मानते है। आठवी से बारहवीं सदी तक की केन्द्रीय साहित्यिक
भाषा होने के कारण ही सन्धा भाषा में होने के कारण ही सन्धा भाषा में असमी,
उडिया, बंगला, मैथिली, मगही की कुछ विशेषताएँ उपलब्ध होती है। इसी समय
केन्द्रीय साहित्यिक भाषा के रूप में जो स्थान सन्धा भाषा का रहा, वही स्थान
दसवीं सदी के लगभग हिन्दी को प्राप्त हुआ। राजस्थान की वीरगाथाओं तथा पूर्वी
प्रदेश के सतों का साहित्य हिन्दी में लिखा गया। अतएव सन्धा भाषा में हिन्दी
का आदि रूप देखना युक्तियुक्ति ही है।
पुरानी हिन्दी का साहित्य - इस भाषा का साहित्य दोहों तथा चर्यागीतों में
मिलता है। दोहों में : सिद्ध सम्प्रदा तथा अध्यात्म सम्बन्धी अनुभूतियों का
चित्रण साधनागत अवस्थाओं का परिचय, सहज सम्प्रदाय की भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक
क्रियाओं की व्याख्या, 'सहजोट का विस्तृत विवेचना स्वरूप एवं महात्मय महासुह
(महासुख) की भावना, शून्यता व करुणा की व्याख्या की गई है। कतिपय समीक्षकों
का मत है कि उलट बॉसी के कारण सन्धा भाषा की शैली बहुत प्रभावपूर्ण हो गई है।
धर्म का वास्तविक रूप समझाने के कारण सन्धा भाषा मे रहस्यवाद का समावेश
स्वाभाविक रूप से हो गया है।
पुरानी हिन्दी की विशेषताएँ - भाषाओं के आकृति मूलक वर्गीकरण के अनुसार
संस्कृत संश्लिस्ट भाषा है जबकि हिन्दी विश्लिष्ट (वियोग प्रधान) भाषा है।
हिन्दी की इस प्रवृत्ति का आरम्भ सन्धा भाषा में हो गया था। यथा -
१. विश्लिष्ट भाषा के संज्ञा रूपों में विभक्तियाँ अलग से जुड़ी रहती है।
सन्धा भाषा में यह प्रत्यक्ष है, करि कू, शूण में।
२. संश्लिष्ट से विश्लिष्ट होने की प्रक्रिया में ध्वनियों सरल हो जाती हैं,
संयुक्त स्वरों का प्रचलन कम होने लगता है। सन्धा भाषा के व्यंजन हिन्दी का
आदि रूप प्रस्तुत करते हैं।
कार्य - कज्ज - काज
कर्म . कम्म - काम
३. विश्लेषण की दृष्टि से देखे तो संस्कृत में प्रचलित तुलनात्मक विशेषणों की
प्रणाली हिन्दी की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। सन्धा भाषा में तुलनात्मक
विशेषणों के अभाव से यह स्पष्ट हो जाता है कि उसमें हिन्दी का आदि रूप
अधिकांश में वर्तमान है।
४. क्रिया रूप की दृष्टि से सन्धा भाषा में क्रिया रूपों की बनावट अपेक्षाकृत
सरल हो गई है।
५. क्रिया विशेषणों की दृष्टि से भी सन्धा भाषा के क्रिया विशेषणों की भॉति
सज्ञा, सर्वनाम तथा प्राचीन क्रिया विशेषणों से हुई है।
६. उपसर्गों तथा परसर्गों के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सन्धा भाषा
के उपसर्ग तथा प्रत्यय अपने मूल संस्कृत रूप में अलग होने लगे थे तथा हिन्दी
के निकट आ रहे थे। सरकत का अभाव सूचक उपसर्ग वि सन्धा में 'वे' के रूप में
मिलता है जो हिन्दी के निकट है।
७. वाक्य रचना की दृष्टि से सन्धा का पदक्रम हिन्दी के निकट है तथा
हिन्दी के समान इसमें भी कर्तृपद तथा क्रिया पद के लोप के उदाहरण भी मिलते
हैं।
८. छन्दों की दृष्टि से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का मत उल्लेखनीय है कि
सन्धा के दोहों व पदावलियो की परम्परा अविच्छिन्न रूप से हिन्दी में चली।
बंगला में वह उतनी लोकप्रिय न हो सकी।
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