प्रश्न ६. आधुनिक आर्यभाषा का वैशिष्ट्य निरूपित कीजिए।
उत्तर: आधुनिक भारतीय आर्यभाषा अपभ्रंश भाषाओं से विकसित आर्यभाषाएँ, आधुनिक
भारतीय आर्यभाषाएँ है। शौरसेनी, अपवंश, मागधी, अर्द्ध मागधी तथा महाराष्ट्री
अपदंश से इन भाषाओं का सम्बन्ध है। हिन्दी के प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ.
धीरेन्द्र वर्मा ने इन भाषाओं का काल १००० ईसवी से वर्तमान समय तक माना है।
इनके अनुसार वर्तमान भारतीय आर्यभाषाओं का साहित्य में प्रयोग कम से कम १३वीं
शताब्दी के बाद से प्रारम्भ हो गया , तथा अपभ्रशों का व्यवहार १४वी शताब्दी
तक साहित्य में होता रहा। इस बात को ध्यान में रखकर कि किसी भाषा के साहित्य
में व्यवहृत होने में समय लगता है, यह कहना अनुचित न होगा कि मध्यकालीन
भारतीय आर्यभाषाओं के अन्तिम रूप की अपभ्रंशों से १०वीं शताब्दी ई. के लगभग
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का आविर्भाव हआ होगा।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में जहाँ अधिकांश उपभाषाएँ क्षेत्र विशेष तक सीमित
हैं, वहीं हिन्दी की उपभाषाएँ विभिन्न प्रान्तों में फैली है। इन्ही उपभाषाओं
की विविध बोलियों के इतिहास को हिन्दी का वास्तविक इतिहास माना जाता है। भाषा
के विकास का यह स्वाभाविक क्रम रहा है कि शिष्ट भाषा धीरे-धीरे व्याकरण के
बंधन में बंधती जाती है और एक समय ऐसा आता है कि उसका विकास रुक जाता है। उस
समय लोक भाषा का विकास होता है। आर्यभाषा का इतिहास इस क्रम का साक्षी है,
जैसे - वैदिक से संस्कृत का विकास हुआ और संस्कृत से पालि, पालि से प्राकृत.
प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय आर्यभाषाएँ विकसित हुयी।
विशेषताएँ : आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
(१) इनकी ध्वनियाँ मध्यकालीन आर्यभाषाओं से भिन्न नहीं हैं। फिर भी उनमें
न्यूनाधिक परिवर्तन दिखाई पड़ता है, जैसे - विदेशी भाषाओं के प्रभाव से क, ज,
फ, औ आदि अनेक ध्वनियाँ आधुनिक भाषाओं में आ गयी हैं। 'ज्ञ का उच्चारण 'ग्य',
ज्यं और ये होता है। 'ष', 'श की भाँति उच्चारित होने लगा।
(२) संस्कृत आदि प्राचीन भारतीय आर्य में तीन लिंगों का प्रयोग होता था,
परन्तु आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में केवल दो ही पुलिंग और स्त्रीलिंग रह गये
हैं, केवल गुजराती और मराठी में तीन लिग हैं।
(३) प्राचीन भारतीय आर्यभाषाओं में तीन वचन थे। मध्यकालीन आर्यभाषा तक
आते-आते द्विवचन का प्रयोग समाप्त हो गया। सभी आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में
वचन की संख्या दो है।
(४) आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं से पूर्व कारकों की संख्या अधिक थी। पर आधुनिक
भारतीय आर्यभाषाओं तक आते-आते बहुत से कारकों का प्रयोग समाप्त हो गया और
इनकी जगह पर परसर्ग या अनुसर्ग लगाकर काम किया जाने लगा।
(५) आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं से पूर्व की भाषाओं का शब्द भण्डार, तत्सम,
तद्भव व देशज शब्दों से सम्बद्ध था पर आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में विदेशी
का भी प्रयोग होने लगा। यह इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। अंग्रेजी, अरबी,
फारसी, पुर्तगाली आदि शब्द प्रविष्ट हो गये हैं, जिनके कारण उनकी अभिव्यजना
अधिक सशक्त हो सकी है।
(६) अपभ्रश के शब्द-रूपों की अपेक्षा आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के शब्द रूप
और भी कम है। केवल दो शब्द रूप पाये जाते है - विकृत और अविकृत । विभक्ति
सूचक तत्त्वों का अस्तित्व स्वतंत्र हो गया।
(७) अपभ्रश के समान द्वित्व व्यजन के स्थान पर एक का लोप और दूसरे पूर्ववर्ती
अक्षर में क्षतिपूर्वक दीर्घता यहाँ भी पायी जाती है, जैसे - क्रम - कम्म -
काम, अद्य - अन्ज आज ।
(८) आधुनिक आर्यभाषाएँ लगभग पूर्णतः अयोगात्मक या वियोगात्मक हो गयी हैं।
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