प्रश्न ४ . हिन्दी को बोलियों का नाम लिखिए। किन्हीं दो बोलियों का
साहित्यिक एवं व्याकरणिक परिचय दीजिए।
उत्तर : हिन्दी और उसकी बोलियाँ : बोलियों की दृष्टि से हिन्दी भाषा का विशेष
महत्व है। इसकी बोलियों की संख्या भारत की ही नहीं विश्व की सभी भाषाओं से
अधिक है, क्योकि यह एक वृहत्तर क्षेत्र की भाषा है। हिन्दी बोलियों की सबसे
बड़ी विशेषता यह है कि इनकी संख्या अधिक होने पर भी उनमें परस्पर बहुत साम्य
मिलता है। विश्व की शायद ही कोई ऐसी भाषा हो जिसमें इतनी अधिक बोलियों होते
हुए भी उनमें इतना नैकट्य बना हुआ हो जितना हिन्दी में है। ये बोलियाँ अपनी
सीमा रेखा से नहीं हैं वरन दूसरी बोली में भी प्रविष्ट होती चली गयी हैं
जिसमें पारस्परिक साम्य के कारण विभाजक रेखा खींचना कठिन हो जाता है। ध्वनि
व्याकरण, शब्दकोश प्रकृति-प्रत्यय आदि की दृष्टि से इन सभी बोलियों में साम्य
की स्थिति देखकर आश्चर्य प्रतीत होता है। ये सारी बोलियां अलग-अलग होने पर भी
सम्पूर्ण हिन्दी प्रदेश के लोगों द्वारा शत-प्रतिशत समझ ली जाती है।
सामान्य विशेषतायें : यह निम्न प्रकार हैं।
ध्वनि : हिन्दी की सभी बोलियों में समान ध्वनिग्राम मिलते हैं। म्ह न्ह रह
ल्ह जैसे महाप्राण व्यजन भी सभी बोलियो में है। शब्द मध्य ड ढ सभी बोलियों
में पाये जाते है। इसी प्रकार अतिहरव अ, इ, उ सभी बोलियों में है। स्वर संयोग
एवं व्यंजन संयोग की स्थिति भी प्राय सभी बोलियों में समान है। श और ष के
स्थान पर स ऋ के लिए अ,इ, उ, रिय के स्थान पर ज और व के स्थान पर ब का प्रयोग
भी सभी बोलियों में समान रूप से मिलता है तथा केवल मानक भाषा में इनका
मानवीकरण किया गया है। अंग्रेजी और फारसी ध्वनियों का हिन्दीकरण भी सभी
बोलियों में यथावत हुआ है।
व्याकरण : हिन्दी की सभी बोलियों में दो वचन, दो लिंग और तीन पुरुष होते हैं।
स्त्री प्रत्ययों मे /ई. /नी, /इनी/अनी/आइन/इया और इन सभी बोलियो में
अत्यल्प- उच्चारण भेद से मिलते है। व्याकरणिक विन्यास एवं वाक्य रचना की
प्रक्रिया भी सभी बोलियों में समान है। सभी बोलियों में मूल और विकारी रूपों
से कारकीय प्रयोग समान रूप से मिलते हैं। सर्वनामों में हम, तुम, वह, कोई आदि
उच्चारण भेद भी बोलियों में समान रूप से उपलब्ध हैं। हिन्दी की विभिन्न
बोलियों में समानता का यह क्रम इस रूप से जाना जा सकता है कि प्रायः सभी
बोलियों की शब्दावली का रूप एक जैसा है और लगभग ६०% शब्द उच्चारण भेद से सभी
बोलियों में एक जैसे हैं। देशज शब्दो के निर्माण एवं विदेशी शब्दों के
परिवर्तन की प्रक्रिया भी सभी बोलियों में समान है। इसी प्रकार क्रिया-रूपों
में भी आश्चर्यजनक समानता मिलती है। इतने विस्तृत भूभाग में बोली जाने और
विभिन्न भाषाओं के संपर्क में रहने के बावजूद यह समानता इस बात को द्योतित
करती है कि इन सभी बोलियों की आत्मा एक है और युगों से मध्य प्रदेश की भाषा
की परम्परा को हिन्दी प्राणवान् बनाये हुए है। इसके बावजूद जैसा कि भाषाओं का
नियम है, क्षेत्रीय प्रभाव भौगोलिक परिवेश, बाह्य सम्पर्क एवं देशज शब्दों की
परम्परा की दृष्टि से प्रत्येक बोली की अपनी निजी विशेषतायें है। हिन्दी की
बोलियों की इन्हीं विशेषताओं के कारण उनको अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया
जाता है। चूंकि ये बोलियों भी समय-समय पर साहित्य में प्रयुक्त होती रही है।
अतः इन बोलियों का अपना विशाल साहित्य भी है।
हिन्दी बोलियों का वर्गीकरण : हिन्दी की बोलियों का वर्गीकरण इस रूप में किया
जा सकता है
राजस्थानी : मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी।
पश्चिमी हिन्दी : खड़ी बोली (कौरवी), ब्रज (बॉगरू), बुंदेली, कन्नौजी,
हरियाणवी, दक्खिनी हिन्दी।
पूर्वी हिन्दी : अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी।
बिहारी : भोजपुरी, मगही, मैथिली।
पहाड़ी : गढवाली कुमायुनी, नेपाली।
उपर्युक्त सभी बोलियाँ प्राचीन भारतीय आर्यभाषा संस्कृत से विकसित हुई है तथा
आधुनिक काल में उनके व्याकरण शब्द भण्डार, स्वर-व्यजन, अदभुत समानता रखते हैं
फिर भी उनकी अपनी भाषा की वैज्ञानिक एवं साहित्यिक विशेषतायें है। समापवर्तक
रूप में ये जहाँ एक सर्वस्वीकृत हिन्दी को समृद्ध बनाती है वही अपने क्षेत्र
में साहित्य एवं संस्कृति की संग्राहिका रही है।
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