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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष हिन्दी भाषा प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2017
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष हिन्दी भाषा प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।

प्रश्न ३. पहाड़ी हिन्दी की बोलियों का निरूपण कीजिए।

उत्तर :
पहाड़ी हिन्दी-पहाड़ी क्षेत्रों की बोली होने के कारण इसे पहाड़ी हिन्दी कहा गया है। नेपाली, कुमायूँनी, गढवाली इसकी प्रमुख बोलियाँ है | प्राचीन काल में यहाँ अनार्य जातियाँ निवास करती थी, किन्तु इस क्षेत्र में ऋषि-मुनियों के साधना केन्द्र स्थापित हो जाने से आर्य भाषाओं का प्रभाव बढ़ता रहा। पहाड़ी की ध्वनि व्यवस्था प्राय हिन्दी के समान है, आ का उच्चारण कहीं-कहीं अधिक विवृत है। ए, ऐ का उच्चारण तत्सम शब्दों के साथ अइ, अउ, आइ, आउ करने का प्रयत्न किया जाता है।

कुमायुँनी : कुमायूँ की भाषा को कुमायुँनी कहा जाता है। ग्रियर्सन ने मध्य पहाड़ी की भाषाओं को हिन्दी की उपभाषा के रूप में स्वीकार किया है। मूलतः ये अनार्य जातियों का क्षेत्र था तथा बाद में इन भाषाओं के प्रति अनुराग बढ़ा और वहाँ के निवासियों से उनके सम्बन्ध घनिष्ठ हुए, जिनके परिणामस्वरूप वहाँ की भाषा में आर्यभाषा के तत्व बढ़ते गये और धीरे-धीरे वहाँ की भाषाएँ हिन्दी वर्ग में आ गयी। मध्य पहाड़ी भाषा का पूरा क्षेत्र हिन्दी की उपभाषा के रूप में विकसित हुआ।

कुमायुं मध्य पहाड़ी क्षेत्र का प्रसिद्ध अंचल है। प्राचीन ग्रन्थों में इस देश के लिए कूमाञ्चल नाम मिलता है। कूमाञ्चल का ही परवर्ती रूप कुमायूं है। इसके अन्तर्गत पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और नैनीताल जनपद आते हैं। कुमायुँनी इन्हीं जनपदों की भाषा है। इसमें मानक साहित्य नहीं मिलता परन्तु कुछ लोक कवियों की रचनाएँ प्रख्यात हैं, जिनमें गुमानी पन्त और कृष्ण पाण्डेय प्रमुख रहे हैं।

विशेषताएँ : १. कुमायुँनी पर विभिन्न भाषाओं के प्रभाव से मानक हिन्दी में अनेक परिवर्तन हुए है। दरदी के प्रभावस्वरूप कुमायुँनी में अल्प प्राणीकरण की प्रवृत्ति अधिक मिलती है।
३. इसी प्रकार खड़ी बोली के प्रभाव के कारण ए, ओ का या, वा मिलता है, जैसे - चेला- च्याला, बोझ - बाझा आदि।
४. कारक परसर्गों में खड़ी बोली से जो अन्तर हुआ है वह अवलोकनीय है। अन्य रूपों के अतिरिक्त ने के स्थान पर ले और को, के स्थान पर की मिलता है।
५. सम्बन्ध कारक में को, का की, के तो है ही उनके अतिरिक्त थे, भी मिलता है जो राजस्थानी से प्रभावित है।
६. क्रिया-रूपों में वर्तमान के साथ - न, भूतकाल में ओ, आई और भविष्य काल में ल जोड़ा जाता है जैसे - को आने - कौन आता है।
७. कुमायुंनी की सबसे बड़ी विशेषता आर्य एवं अनार्य तत्वों का मिश्रण है।

गढ़वाली : गढ़वाली उत्तराखण्ड की प्रमुख बोली है भारतीय धार्मिक रचनाओं में इस क्षेत्र को देवभूमि कहा गया है यह क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। यहाँ पर सदैव बाह्य आक्रमण भी होते रहे हैं। यहाँ पवार राजपूतों और बंगला के पाल शासकों का शासन बहुत दिनों तक रहा। यहाँ की भाषा को ही गढवाली कहा जाता है। गढ़वाल यद्यपि आधुनिक युग में एक जिला है, परन्तु गढ़वाली के जनपद सम्मिलित है। कुमायुँनी की भाँति गढ़वाली पर भी विदेशी और अनार्य भाषाओं का प्रभाव रहा है।

गढ़वाली में लोक साहित्य ही मिलता है, जिसका संग्रह किया जा रहा है। लोक साहित्य के अतर्गत कुछ रचनाएँ भी मिल जाती है। कुछ गद्य लेखन भी गढ़वाली में हुआ है, परन्तु समग्र रूप से गढ़वाली का साहित्यिक दृष्टि से विशेष महत्व नहीं है।

विशेषताएँ : गढ़वाली की ध्वनियों के स्थान एव उच्चारण प्रयत्न में पर्याप्त अन्तर मिल जाता है। अनुनासिकता गढ़वाली की प्रवृत्ति सी बन गयी है, क्योंकि अधिकांश शब्द अनुनासिक हैं, जैसे - पैस.. प्यार छाया।

सर्वनामों की स्थिति ब्रजभाषा के समान है। क्रिया पदों में संज्ञार्थक क्रिया पढ़णू, प्रेरणार्थक क्रिया में आ, जैसे दिखाणूँ पूर्वकालिक - मारिइ वर्तमान कृदन्त में द - चल दो, तथा भविष्यत में - ल रूप उल्लेखनीय हैं, जो कहीं ब्रजभाषा कहीं पजाबी और कहीं राजस्थानी से प्रभावित होते है। पहाड़ी हिन्दी पूरी प्रकृति के अनुरूप ढल चुकी है।

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