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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. महात्मा बुद्ध एवं महावीर स्वामी की समकालीनता को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - ईसा पूर्व की छठी शताब्दी का भारत के धार्मिक इतिहास में विशिष्ट स्थान है, क्योंकि इसी शताब्दी में धर्म के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन हुए थे। बुद्ध तथा महावीर दोनों छठी शताब्दी ईसा पूर्व की धार्मिक क्रान्ति के अग्रदूत थे। यह सत्य है कि दोनों ने वैदिक कर्मकाण्डों तथा वेदों की अपौरुषेयता का समान रूप से विरोध किया था। अहिंसा तथा सदाचार पर दोनों ने बल दिया था तथा दोनों ही कर्मवाद, पुनर्जन्म तथा मोक्ष पर विश्वास रखते थे। दोनों ही विचारकों ने अपने अपने मतों के प्रचार के लिए भिक्षु संघ की स्थापना की थी। इन दोनों धर्मों के समकालीन होने के बाद भी इनमें निम्नलिखित असमानतायें थीं

1. महावीर ने बुद्ध की अपेक्षा अहिंसा तथा अपरिग्रह पर बल दिया है। इस विषय पर उनके विचार अतिवादी थे।

2. महावीर ने भिक्षुओं को नग्न रहने का उपदेश दिया था। इसके विपरीत बुद्ध नग्नता के घोर विरोधी थे।

3. बौद्ध धर्म आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता। बुद्ध ने सृष्टि की सभी वस्तुओं को अनित्य बताया। महावीर आत्मा पर विश्वास करते थे। उनके अनुसार आत्मायें अन्त हैं।

कुछ विद्वानों का विचार है कि जैन तथा बौद्ध ये दोनों ही धर्म वैदिक धर्म के सुधारवादी स्वरूप थे। इस प्रकार इनमें कोई नवीनता नहीं थी। परन्तु आधुनिक शोधों के आधार पर इस प्रकर का मत खण्डित हो चुका है। सत्य यह है कि इन दोनों मतों में वैदिक विचारधारा के विरोधी होने का पर्याप्त भाव था। जैन धर्म का स्पष्टतः अवैदिक श्रमण विचारधारा का पर्याप्त प्रभाव था। इसी प्रकार बौद्ध धर्म की साधना-पद्धति, कर्म के सिद्धान्त तथा संसार के प्रति निवृत्ति मार्गी दृष्टिकोण के ऊपर श्रमण विचारधारा का प्रभाव ही परिलक्षित होता है। उपरोक्त विवेचन से हमें यह ज्ञात होता है कि इन दोनों धर्मों के समकालीन होने के बाद भी इनमें असमानतायें थीं।

प्रश्न 2 - गणराज्य किसे कहते हैं ?

उत्तर -

गणराज्य
(Republics)

प्राचीन भारत में राजतन्त्रों के साथ-साथ गण अथवा संघ राज्यों के अस्तित्व का भी ज्ञान होता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में दो प्रकार के संघ अथवा गणराज्यों का उल्लेख मिलता है - वार्त्ताशस्त्रोपजीवी तथा राजशब्दोपजीवी। प्रथम के अन्तर्गत कम्बोज सुराष्ट्र आदि तथा दूसरे के अन्तर्गत लिच्छवि, वृज्जि, मल्ल, मद्र, कुकुर, पञ्चाल आदि की गणना की गई है। स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यहाँ 'राजशब्दोपजीवी' संघ से तात्पर्य उन गणराज्यों से ही है जो 'राजा' की उपाधि का प्रयोग करते थे।

गणराज्यों का शासन किसी वंशानुगत राजा के हाथ में न होकर गण अथवा संघ के हाथ में होता था। परन्तु प्राचीन भारत के गणतन्त्र आधुनिक काल के गणतन्त्र से भिन्न थे आधुनिक काल में गणतन्त्र प्रजातन्त्र का समानार्थी है, जिसमें शासन की अन्तिम शक्ति जनता के हाथों में निहित रहती है भारत के गणतन्त्र इस अर्थ में गणतन्त्र नहीं कहे जा सकते। उन्हें हम आधुनिक शब्दावली में 'कुलीनतन्त्र' अथवा 'अभिजात तन्त्र (Aristoracy) कह सकते हैं जिसमें शासन का संचालन प्रजा द्वारा न होकर किसी कुल विशेष के सम्मुख व्यक्तियों द्वारा किया जाता था। उदाहरण के लिये यदि हम वैशाली के लिच्छवि गणराज्य का नाम लेते हैं। तो हमें यह कदापि नहीं समझना चाहिए कि वहाँ के शासन में वैशाली नगर की सम्पूर्ण जनता भाग लेती थी। बल्कि तथ्य यह है कि केवल लिच्छवि कुल ही प्रमुख व्यक्ति मिलकर शासन चलाते थे।

प्रश्न 3- अपने विषय का नाम तथा इसके दोनों प्रश्नपत्रों के नाम समय के साथ लिखिए।

उत्तर - बी. ए. प्रथम वर्ष -

विषय का नाम - प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति
प्रश्नपत्र प्रथम - प्राचीन भारत का राजनीतिक इतिहास इसका समय है -
छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 606 ई. तक।
बी.ए. प्रथम वर्ष -
विषय का नाम – यूरोप का इतिहास
प्रश्नपत्र - द्वितीय
इसका समय है - 1453 से लेकर 1815 ईस्वी तक। यह स्मृति पर आधारित है।

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