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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


(10)

कलिंग नरेश खारवेल
(King Kharvela of Kalinga)
दीर्घ एवं लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कलिंग नरेश खारवेल के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
अथवा
कलिंगराज खारवेल पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
अथवा
कलिंगराज खारवेल के जीवन तथा व्यक्तित्व के विषय में बताइये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. खारवेल के जीवन का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
2. राजा खारवेल के विषय में आप क्या जानते हैं ?
3. कलिंगराज खारवेल के जीवन व व्यक्तित्व को समझने के लिए अभिलेखीय साक्ष्य के विषय में बताइए।
4. हाथीगुम्फा अभिलेख पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
5. "कलिंगराज खारवेल एक सर्वगुणसम्पन्न नरेश था।' समझाइये।
6. हाथी गुम्फा अभिलेख से किस राजा के जीवन तथा उपलब्धियों पर प्रकाश पड़ता है ?

उत्तर -

कलिंग नरेश खारवेल
(Kalinga King Kharvela)

मौर्य वंश के समाप्त होने पर जब मगध साम्राज्य के अनेक सुदूरवर्ती प्रदेश मौर्य सम्राटों की आधीनता से मुक्त होने लगे तो कलिंग भी स्वतन्त्र हो गया। यद्यपि कलिंग को अशोक ने जीतकर मौर्य साम्राज्य का अंग बनाया था, परन्तु वह अधिक समय तक मौर्यों के अधीन न रहा। उड़ीसा के भुवनेश्वर नामक स्थान से तीन मील दूर उदयगिरि की पहाड़ी पर एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है जो हाथीगुम्फा अभिलेख के नाम से विख्यात है।

हाथीगुम्फा अभिलेख - उड़ीसा प्रान्त के पुरी जिले में भुवनेश्वर मन्दिर से तीन मील पश्चिम दिशा में उदयगिरि-खण्डगिरि की पहाड़ियाँ स्थित हैं जिनमें प्राचीन जैन गुफाएँ खोदी गई है। इन्हीं में से एक का नाम हाथीगुम्फा है। इसमें सत्रह पंक्तियों में लेख खुदा हुआ है जिसकी लिपि ब्राह्मी है। इसकी भाषा प्राकृत है जो पालि से मिलती-जुलती है। इस लेख में कोई तिथि नहीं दी गई है। लिपिशास्त्र के आधार पर इसे ईसा पूर्व पहली शताब्दी का माना जाता है। इसके रचयिता का नाम भी अज्ञात है। यह लेख एक प्रशस्ति के रूप में है जिसका मुख्य उद्देश्य खारवेल के जीवन तथा उपलब्धियों को प्रस्तुत करना है।

खारवेल की जीवनी - हाथीगुम्फा अभिलेख के अनुसार कलिंगराज खारवेल चेदि वंशीय क्षत्रिय था जो महा मेघवाहन की तीसरी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था। इसने 13 वर्ष शासन किया और इन 13 वर्ष की घटनाओं का ब्यौरा इससे उपलब्ध होता है। इस अभिलेख से यह जानकारी प्राप्त होती है कि उसने अनेक विषयों की शिक्षा प्राप्त की थी, उसने लेखन कला, गणित, कानून तथा अर्थशास्त्र का गम्भीर अध्ययन किया था। 15 वर्ष की आयु में वह युवराज बन गया था। 9 वर्ष तक युवराज रहने के पश्चात् 24 वर्ष की आयु में कलिंगराज सिंहासन पर बैठा। राजा बनने पर उसने कलिंगाधिपति और कलिंग चक्रवर्ती उपाधियों को धारण किया।

खारवेल की शासन तिथि - खारवेल के उत्थान के बारे में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। कुछ विद्वान इसे शुंगों का समकालीन और कुछ विद्वान सातवाहन राजा शातकर्णी का समकालीन मानते हैं। परन्तु विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर खारवेलों का उत्कर्ष काल ई. पूर्व प्रथम शताब्दी में रखना उचित प्रतीत होता है। उपर्युक्त तथ्य का समर्थन प्रो. बरुआ, प्रो. वी. आर. चन्दा और डा. राय चौधरी भी करते हैं।

राजनीतिक गतिविधियाँ : खारवेलों का उत्कर्ष तथा युद्ध - राज्यारोहण के प्रथम वर्ष में उसने तूफान से क्षतिग्रस्त कलिंग के प्राचीन प्राचीरों, भवनों एवं द्वारों का पुनर्निर्माण कराया तथा तालाबों का निर्माण और खेती की व्यवस्था पर भी ध्यान दिया। इस प्रकार उसने 35,00,000 प्रजा को सुखी रखा।

राज्याभिषेक के दूसरे वर्ष उसने अपनी सेनाएं सातवाहन तथा शातकर्णी की उपेक्षा करते हुए पूर्व की ओर भेजी। कृष्णा नदी के तट पर स्थित भूमिक नगर को उसकी सेनाओं ने नष्ट किया। यह नगर शातकर्णी के राज्य के बाद पड़ता था। अतः यह सिद्ध होता है कि शातकर्णी से खारवेल को युद्ध नहीं करना पड़ा।

अपने राज्य के चौथे वर्ष उसने अपनी सेना को पुनः पश्चिम भेजकर रठिकों और भोजकों को अधीनस्थ किया। भोजकों का राज्य स्थान वरार और रठिकों का राज्य स्थान पूर्वी खानदेश व अहमद नगर था। ये गणराज्य सातवाहनों की अधीनता में थे, जिनकी उपेक्षा खारवेल ने की थी। इस प्रकार खारवेलों के आगे शातकर्णी क शौर्य फीका पड़ गया था, इस प्रकार उसने सुदूर पश्चिम के भू-भागों को विजय कर कलिंग साम्राज्य का विस्तार किया।

शासन के आठवें वर्ष में खारवेल ने उत्तरी क्षेत्र पर विजय प्राप्त की। उसकी सेना ने गया जिले के बारबर पहाड़ियों में स्थित गोरथगिरि के दुर्ग पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की।

जिस समय खारवेल दूसरी विजयों में व्यस्त था उसी समय यवन भारत पर आक्रमण करते हुए मध्य प्रदेश तक पहुँच गये थे। परन्तु वे खारवेल की कीर्ति और यश को सुनकर भयभीत हो गये और मथुरा की ओर वापस चले गये। इतिहासकारों के अनुसार यह भयभीत राजा डिमेट्रियस था।

खारवेल ने अपने शासन के नवें वर्ष राज्य की नदी के तट पर 'महाविजय प्रासाद' नामक राजप्रासाद का निर्माण कराया जो उसकी उत्तरापथ की विजय को सूचित करता है।

खारवेल ने अपने शासनकाल के 11वें वर्ष दक्षिण दिशा को आक्रान्त किया और वहाँ उसने विथण्ड (पितण्ड) को विजय कर राजा को उपहार देने के लिए विवश किया। शक्तिशाली मौर्य सम्राट भी अपनी अधीनता में न ला सके थे परन्तु खारवेल इन सबको परास्त करने में सफल रहा।

हाथीगुम्फा अभिलेख में खारवेल द्वारा हराये गये तमिल देश संघात का उल्लेख है। अपने शासन के 12वें वर्ष पुनः एक बार फिर उत्तर दिशा को अपनी सेना से आक्रान्त किया और अपनी सेना के हाथी, घोड़ों को गंगाजल से स्नान कराया और मगध राजा को अपने पैरों पर गिरने पर मजबूर किया तथा नन्दों द्वारा कलिंग से लाई गयी भगवान महावीर की मूर्तियों को वापस लाया। इन मूर्तियों के अतिरिक्त बहुत सी कीमती सामग्री खारवेल के हाथ लगी। इस लूट की सम्पत्ति से उसने उड़ीसा में एक मन्दिर का निर्माण कराया जिसका उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है। खारवेल ने कलिंग में स्तम्भ बनवाये जिनके अन्दर नक्कासी का कार्य देखने को मिलता है। इसके अन्दर पाण्ड्य राज्य से प्राप्त हाथीदांत से निर्मित जहाज की भेटों को इसने रखवाया।

खारवेल का धर्म - खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था। वह मगध से जैन शीतलनाथ की मूर्ति उठा लाया था। उसने जैन भिक्षुओं के रहने एवं साधना करने के लिए गुफाओं का निर्माण कराया तथा जैन भिक्षुओं के लिए कुमारी पर्वत पर एक सभा-भवन बनवाया था। डा. के. पी. जायसवाल के अनुसार, "खारवेल ने जैन विद्वानों की एक सभा बुलाकर जैन ग्रन्थों का सम्पादन कराया। खारवेल अन्य धर्मों के प्रति उदार और सहिष्णु था। उसने तमाम देव मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया।''

खारवेल को शान्ति और समृद्धि का सम्राट कहा गया है। उसे भिक्षु सम्राट तथा धर्मराज भी कहा जाता था जिसने अपना बहुत-सा समय कल्याणकारी कार्य करने, देखने और सुनने में बिताया। हाथीगुम्फा लेख की अन्तिम पंक्ति इसकी राजनीतिक कीर्ति को दुहरा देती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि खारवेल बड़ा ही पराक्रमी सम्राट था जिसने कलिंग राज्य की सीमाओं को सुदूर तक विस्तृत करके अपने यश में चार चांद लगा दिये। प्रो. कश्यप ने खारवेल के विषय में बिल्कुल सत्य लिखा है, "भारतीय इतिहास के गगन में वह धूमकेतू के समान उदित हुआ और चारों ओर खलबली मचा कर फिर अस्त हो गया।''

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