प्रश्न 4- जूनागढ़ अभिलेख के माध्यम से रुद्रदामन के जीवन तथा व्यक्तित्व पर
प्रकाश डालिए।
उत्तर - इतिहास में यह महाक्षत्रप रुद्रदामन् प्रथम के नाम से प्रख्यात है।
यह उज्जयिनी के शकों में सबसे प्रसिद्ध शक शासक था। इसके विषय में जानकारी का
सबसे प्रमुख स्रोत इसका जूनागढ़ अभिलेख है। जूनागढ़ अभिलेख रुद्रदामन की
प्रशस्ति है। इसकी तिथि 72 शक संवत् अर्थात् -150 ईस्वी है। इससे प्रकट होता
हैं। कि रुद्रदामन् ने कम से कम 150 ई. तक अवश्य राज्य किया था। जिसने
सुदर्शन झील के बाँध का पुनर्निमाण करवाया था। रुद्रदामन युद्ध विद्या में
निपुण था। वह वीर तथा कुशल शासक होने के साथ-साथ एक सुशिक्षित व्यक्ति भी था।
वह अपने शब्द (व्याकरण), अर्थ (राजनीति) गन्धर्व (संगीत) और न्याय
(तर्कशास्त्र) आदि के ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। इनके अतिरिक्त वह गद्य-पद्य
काव्यों में भी प्रवीण था। वह विजेता अवश्य था, परन्तु निरर्थक हत्या करना
उसे रुचिकर न था। उसने युद्ध के अतिरिक्त अन्यत्र हत्या न करने की प्रतिज्ञा
की थी। वह भली-भाँति जानता था कि राज्य की समृद्धि और सुरक्षा के लिए राजकोष
की सम्पन्नता आवश्यक है। इसी से इसका कोष कनक (सोना), रजत (चाँदी), वज्र
(हीरा) वैदूर्य-रत्न आदि से भरा रहता था। परन्तु कोष को भरने के लिए उसने कभी
भी प्रजा पर धर्म विरुद्ध और अन्यायपूर्ण कर विष्टि (बेगार) और प्रणय
(स्वेच्छादान) आदि नहीं लादे थे। वह न्यायप्रिय नरेश था -
"याथार्थहस्तोच्छयार्जितोक्रियधर्मानुरागेण।"
जूनागढ़ अभिलेख से प्रतीत होता है कि रुद्रादामन या उसके पूर्वजों ने द्वारका
के आस-पास का प्रदेश,सौराष्ट्र, कक्ष, सिंधु नदी का मुहाना, उत्तरी कोकण,
मारवाड आदि प्रदेश उनके राज्य में सम्मिलित थे। ऐसा प्रतीत होता है कि
रुद्रदामन या उसके पूर्वजों ने मालवा, सौराष्ट्र, कोंकण आदि प्रदेशों को
सातवाहनों से जीता था। रुद्रदामन ने दुबारा अपने समकालीन शातकर्णी को हराया।
परन्तु निकट सम्बन्धी होने को कारण उसे नष्ट नहीं किया। यह शातकर्णी सम्भवतः
वशिष्ठीपुत्र पुलुमावि था। संभवतः सिन्धु नदी की घाटी रुद्रदामन ने कुषाण
राजा से जीती थी। वह सुदर्शन झील जिसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने बनवाया था और
जिसकी मरम्मत अशोक ने करवायी थी, रुद्रदामन के समय फिर टूट गई। तब उसने अपने
निजी आय से इसकी मरम्मत करवाई और प्रजा से इसके लिए कोई कर नहीं लिया।
रुद्रदामन व्याकरण, राजनीति, संगीत एवं तर्कशास्त्र का पंडित था। जूनागढ
अभिलेख संस्कृत में है और इससे उस समय के संस्कृत साहित्य के विकास का अनुमान
लगाया जा सकता है। आन्धौ अभिलेख के अनुसार उसने चष्टन के साथ शासन किया।
चष्टन और रुद्रदामन दोनों के साथ 'राजा' की उपाधि का प्रयोग समान रूप से हुआ
है। इसने द्वैराज्य – प्रणाली का प्रयोग किया था। रुद्रदामन ने चाँदी की
मुद्राएं निर्मित कराई थी। समस्त मुद्राओं मे उसके लिए 'महाक्षत्रप' की उपाधि
का प्रयोग किया गया है। इन मुद्राओं पर 'जयदामन पुत्रस 'लिखा है और कुछ पर
'जयदाम पुत्रस'। बाद वाली मुद्राओं पर रुद्रदामन की आकृति वृद्धावस्था की सी
लगती हैं। इससे प्रकट होता है कि वह दीर्घकालीन शासन के पश्चात् ही इसकी
मृत्यु हुयी थी। जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार निम्नलिखित प्रदेश रुद्रदामन् के
राज्य के अन्तर्गत सिद्ध होते है -आकर तथा अवन्ती, अनूप, आनर्त (द्वारका)
सुराष्ट्र, स्वभ्र, मरु (मारवाड़) कच्छ, सिन्धु सौतीर कुकुर (उत्तरी'
कठियावाड़) अपरान्त (उत्तरी कोकण) निषाद (सरस्वती और पश्चिमी विन्ध्य का
प्रदेश)। इन प्रदेशों में 'सुराष्ट्र, कुकट, अपरान्त और आकरावन्ती के प्रदेश
गौतमीपुत्र शातकर्णी के अधीन थे। अतः सपष्ट है कि रुद्रदामन् ने उन्हें
गौतमीपुत्र के किसी उत्तराधिकारी से जीता था।
सातवाहनों की पराजय
जूनागढ अभिलेख का कथन है कि रुद्रदामन् ने दक्षिणापथ के राज्य शातकर्णी को दो
बार पराजित किया था। रैप्सन महोदय का मत है कि सातवाहन नरेश वासिष्ठीपुत्र
पुलुमावि था अपने अपने मत पोषण में वे कहते है कि पुलुमावि के समय में
सातवाहन राज्य संकुचित हो गया था। यही कारण है कि वशिष्ठ पुत्र अपने शासन काल
के 19 वें अभिलेख में एकमात्र 'दक्षिणापथेस्वर कहा गया है। जूनागढ़ अभिलेख
पराजित शक-नरेश को 'दक्षिणापथपति' कहता है। रुद्रदामन ने अपने विशाल
साम्राज्य को अनेक प्रदेशों में विभक्त कर रखा था और प्रत्येक प्रदेश में
अपने अमात्य नियुक्त कर रखे थे। जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार आनर्त–सुराष्ट्र के
प्रदेश से रुद्रदामन् ने सुविशाख को अपना अमात्य नियुक्त किया था। रुद्रदामन्
के चष्टन के राज्य की राजधानी उज्जैन थी। कदाचित् मन्त्रिपरिषद की भी यही
राजधानी रही होगी। जूनागढ़ अभिलेख में रुद्रदामन् को 'भ्रष्टराज्य
प्रतिष्ठापक कहा गया है। उसका नाम, उसकी राजभाषा (संस्कृत) उसकी मंत्रीपरिषद
उसके अधीन विषय, उसके विवाह सभी मिलाकर एक ही बात को प्रमाणित करते हैं कि
उसका पूर्णरूपेण भारतीयकरण हो गया था।
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