लोगों की राय

इतिहास >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


प्रश्न 3. शक-सातवाहन संघर्ष के विषय में बताइए।
अथवा
शक और सातवाहन संघर्ष पर विस्तृत विवेचन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न

1. शक-सातवाहन संघर्ष का ब्योरा दीजिए। .
2. शक-सातवाहन आक्रमण का वर्णन कीजिए।
3. शक-सातवाहन के युद्ध-क्रम को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -
शक-सातवाहन संघर्ष

सातवाहन नरेश शातकर्णि प्रथम की मृत्यु के बाद सातवाहनों का इतिहास अन्धकारपूर्ण हो गया। लगभग 17 ई.पू. से 106 ईस्वी तक का काल सातवाहनों के ह्रास एवं पतन का काल है। इसी बीच दक्षिण में शकों के आक्रमण हए तथा सातवहानों को शकों के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा। सातवाहन साम्राज्य के पश्चिमी तथा उत्तरी प्रदेशों पर शकों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। यहीं से शक-सातवाहन संघर्ष का इतिहास प्रारम्भ होता है।

दक्षिणी-पश्चिमी भारत पर संप्रभुता स्थापित करने के उद्देश्य से शक-सातवाहनों के बीच यह संघर्ष चार चरणों में हुआ था।

प्रथम चरण - दुर्बल सातवाहन शासकों के समय जब शक पश्चिम से आकर सातवाहनों के भू-भाग में प्रवेश करने लगे तब यहीं से सम्प्रभुता के लिये शक-सातवाहन संघर्ष का प्रथम चरण प्रारम्भ हुआ जो सातवाहन वंश के अन्तिम शासक यज्ञश्री शातकर्णि के समय तक चलता रहा। शक ईरान की ओर से आकर, सिन्धु घाटी को केन्द्र बनाकर दक्षिण-पश्चिम को आक्रान्त करने लगे। पेरीप्लस के लेखक के अनुसार गुजरात, काठियावाड़, राजपूताना तथा भड़ौच पर मेम्बेरस नामक (शक) राजा ने अधिकार कर लिया था तथा कल्याण से आने वाले जहाजों को वह बेरीगाजा (भड़ौच) ले जाता था। इस प्रकार उसने सातवाहनों से उत्तरी प्रदेशों को छीनकर उनके व्यापार को हानि पहुँचाई थी।

मेम्बेरस के बाद पश्चिमी भारत में शकों के एक दूसरे वंश का राज्य स्थापित हुआ जिसे 'क्षहरात' नाम से जाना जाता है। इस वंश का प्रथम शासक भूमक था। उसके सिक्के मालवा, गुजरात, काठियावाड़ के तटीय प्रदेश तथा राजपूताना के अजमेर क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं जो इन प्रदेशों पर उसका अधीकार सिद्ध के पश्चात नहपान इस वंश का दूसरा राजा था। तत्कालीन सिक्कों तथा अभिलेखों से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि महाराष्ट्र, उत्तरी कोंकण, राजपूताना तथा मध्य प्रदेश पर जहाँ सातवाहन शासन था, वहाँ नहपान का अधिकार हो गया था। इसी समय सातवाहन शासक गौतमीपुत्र के आगमन से इस वंश की शक्ति को पुनः संगठित होने का अवसर प्राप्त हुआ।

द्वितीय चरण - दूसरे क्रम का संघर्ष गौतमीपुत्र शातकर्णि और क्षत्रप नहपान के बीच हुआ था। नासिक प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि अपने राज्यारोहण के अठारहवें वर्ष गौतमीपुत्र ने व्यापक सैनिक तैयारियों के साथ क्षहरातों के राज्य पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में नहपान तथा उसका दामाद ऋषभदत्त मार डाले गये। गौतमीपुत्र ने उत्तरी कोंकण, नर्मदा घाटी, सुराष्ट्र, कुक्कुर (पश्चिमी राजपूताना), पूर्वी-पश्चिमी मालवा के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

गौतमीपुत्र की नहपान के विरुद्ध इस विजय की पुष्टि नासिक जिले के जोगलथम्बी में मिले सिक्कों के ढेर से भी हो जाती है। यहाँ नहपान के ऐसे बहुत से चाँदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं जो गौतमीपुत्र द्वारा पुनर्अंकित किये गये थे। ऐसा अनुमान है कि जोगलथम्बी में क्षहरात नरेश नहपान का राजकीय कोषागार था। गौतमीपुत्र ने उसे पराजित कर उसके कोषागार पर अधिकार कर लिया। यह शकों के विरुद्ध सातवाहनों की प्रथम उल्लेखनीय सफलता थी।

तृतीय चरण - रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि यह संघर्ष क्षत्रप रुद्रदामन तथा वशिष्ठीपत्र पुलुमावी के बीच गौतमीपुत्र शातकर्णि के अन्तिम काल में हुआ था। कार्दमक शकों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण सफलता चष्टन के पौत्र रुद्रदामन के समय में मिली। जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार, आकर-अवन्ति (पूर्वी-पश्चिमी मालवा), अनूप (नर्मदा घाटी), सुराष्ट्र, कुक्कुर (पश्चिमी राजपूताना) तथा - अपरान्त (उत्तरी कोंकण) के प्रदेशों पर रुद्रदामन का अधिकार था। गौतमीपुत्र की नासिक प्रशस्ति से इन्हीं प्रदेशों पर सातवाहनों का भी अधिकार सूचित होता है। अतः स्पष्ट है कि रुद्रदामन ने इन प्रदेशों को गौतमीपुत्र के उत्तराधिकारी शासक पुलुमावी से जीता होगा।

चतुर्थ चरण - शक-सातवाहन संघर्ष का अन्तिम चरण सातवाहन नरेश यज्ञश्री शातकर्णि (174-203 ई.) के समय प्रारम्भ हुआ। उसने शकों से अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करने के लिये उनके विरुद्ध अभियान छेड़ दिया। उसके शासनकाल के सोलहवें वर्ष का एक लेख अपरान्त (उत्तरी कोंकण) से मिलता है जो इस बात का प्रमाण है कि उसने अपरान्त को पुनः जीत लिया था। सोपरा से मिले उसके कुछ सिक्के रुद्रदामन के चाँदी के सिक्कों के अनुकरण पर ढलवाये गये हैं। उसके सिक्कों का विस्तार गुजरात, काठियावाड़, मालवा, मध्य प्रदेश तथा आन्ध्र प्रदेश तक है। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि उसने शकों को परास्त कर अपरान्त, पश्चिमी भारत का कुछ भाग तथा अनूप (नर्मदा घाटी) को फिर से जीत लिया था। इस प्रकार गौतमीपुत्र की पराजय का बदला उसने चुका लिया और इसके साथ ही शक-सातवाहन संघर्ष का अन्त हुआ।

इसके बाद शक तथा सातवाहन दोनों ही वंश अपनी-अपनी आन्तरिक समस्याओं में व्यस्त हो गये जिसके फलस्वरूप उनकी पारस्परिक शत्रुता का स्वाभाविक रूप से अन्त हो गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

लोगों की राय

No reviews for this book