इतिहास >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
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आन्ध्र-सातवाहन (Andhras-Satvahana)
दीर्घ एवं लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1- सातवाहन युगीन दक्कन पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सातवाहनकालीन दक्षिण भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक स्थिति को स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर -
सातवाहन युगीन दक्कन
दक्कन शब्द का प्रयोग विंध्य के दक्षिण के भू-भागों के लिये प्रायः हुआ है पर
विशेष रूप से इससे अभिप्रेत है महाराष्ट्र प्रदेश और उससे सटा भू-भाग। यद्यपि
बाद के कुछ सातवाहन शासकों ने सम्पूर्ण दक्षिण पर अधिकार की बात की। उनका
अधिकार उसके कुछ भाग पर ही था क्योंकि इनके सबसे शक्तिशाली शासक गौतमीपुत्र
शातकर्णी का भी अधिकार विंध्य के दक्षिण कृष्णा नदी तक दक्षिण में और उत्तर
में मालवा और सौराष्ट्र तक था।
सातवाहन युगीन दक्कन में कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इस काल में
दक्कन की शासन व्यवस्था, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक दशा और भाषा एवं
साहित्य के क्षेत्र में विशेष रूप से उन्नति हुई जिसका विवरण निम्न प्रकार से
है -
शासन व्यवस्था - सातवाहन युगीन दक्कन में शासन का स्वरूप राजतन्त्रात्मक था।
सम्राट प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था। सातवाहन नरेश 'राजन', 'राजराज',
"महाराज' तथा शकों के अनुकरण पर "स्वामिन' जैसी उपाधियाँ धारण करते थे।
रानियाँ 'देवी' या "महादेवी' के नाम धारण करती थीं। यद्यपि राजाओं के नाम
मातृ-प्रधान हैं तथापि ऐसा माना जाता है कि उत्तराधिकार पुरुष वर्ग में ही
सीमित था तथा वंशानुगत होता था। कभी-कभी राजा की मृत्यु के बाद यदि उसका
पुत्र नाबालिग होता था तो उसके भाई को राजपद दे दिया जाता था। स्थानीय शासन
अधिकांशतः सामन्तों द्वारा चलाया जाता था। प्रशासन की सुविधा के लिये
साम्राज्य को अनेक विभागों में बाँटा गया था जिन्हें 'आहार' कहा जाता था।
सामाजिक व्यवस्था - सातवाहन युगीन दक्कन में समाज वर्णाश्रम धर्म पर आधारित
था। चारों वर्गों में ब्राह्मणों का स्थान सर्वोपरि था। सातवाहन नरेश स्वयं
ब्राह्मण थे। इस काल के समाज की प्रमुख विशेषता शकों तथा यवनों का भारतीयकरण
है। समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। कभी-कभी वे शासन के कार्यों में भी
भाग लिया करती थी। सातवाहन राजाओं के नाम का मातृ-प्रधान होना स्त्रियों की
सम्मानपूर्ण सामाजिक स्थिति का सूचक माना जा सकता है।
आर्थिक दशा - सातवाहन युग दक्षिण भारत के इतिहास में समृद्धि एवं सम्पन्नता
का युग था। राजा के पास अपनी निजी भूमि होती थी। किसान भी भूमि के स्वामी
होते थे। राजा कृषकों की उपज का छठा भाग कर के रूप में प्राप्त करता था। कृषि
की उन्नति के साथ ही साथ व्यापार- व्यवसाय की बहुत अधिक प्रगति हुई। इस काल
में कुम्भकार, लोहार, स्वर्णकार, अनाज के व्यवसायी, बाँस का काम करने वाले,
तेली, काँसे के बर्तन बनाने वाले आदि व्यवसायियों का उल्लेख मिलता है।
व्यापार-व्यवसाय में चाँदी एवं ताँबे के सिक्कों का प्रचलन था। सातवाहन
नरेशों के कुछ सिक्कों पर 'दो पतवारों वाले जहाज' के चित्र भी प्राप्त हुए
हैं। सातवाहन साम्राज्य आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध माना जाता है।
धार्मिक दशा - सातवाहन राजाओं का शासनकाल दक्कन में वैदिक तथा बौद्ध धर्म की
उन्नति का काल था। स्वयं सातवाहन नरेश वैदिक (ब्राह्मण) धर्म के अनुयायी थे।
इस काल में इन्द्र, कृष्ण, पशुपति एवं गौरी की पूजा का उल्लेख मिलता है।
सातवाहन लेखों में शिवपालित, शिवदत्त, कुमार आदि नाम मिलते हैं जिनसे शिव तथा
स्कन्द की पूजा की सूचना मिलती है। इसी प्रकार विष्णुपालित जैसे नामों से
विष्णु-पूजा का संकेत मिलता है! सातवाहन नरेश अन्य धर्मों के प्रति भी
सहिष्णु थे। उन्होंने अपने शासन में बौद्ध धर्म को भी संरक्षण प्रदान किया
था। सातवाहन काल में दक्कन की सभी गुफायें बौद्ध धर्म से ही सम्बन्धित हैं।
भाषा एवं साहित्य - इस युग में महाराष्ट्री प्राकृत भाषा दक्षिण भारत में
बोली जाती थी। यही इस समय की राष्ट्रभाषा थी। इसी भाषा में कुल 700 आर्या
छन्दों का संग्रह है जिसका प्रत्येक पद्य अपने आप में पूर्ण तथा स्वतन्त्र
है। शर्ववर्मन ने 'कातन्त्र' नामक संस्कृत व्याकरण ग्रन्थ की रचना की थी।
इसकी रचना अत्यन्त सरल शैली में हुई। इसमें अति संक्षेप में पाणिनीय व्याकरण
के सूत्रों का संग्रह हुआ है। ऐसी धारणा है कि इस समय संस्कृत भाषा का भी
दक्कन में व्यापक प्रचार था। बृहत्कथा से ज्ञात होता है कि हाल की एक रानी
मलयवती संस्कृत भाषा की विदुषी थी। उसी ने हाल को संस्कृत सीखने के लिए
प्रेरित किया था जिसके परिणामस्वरूप 'कातन्त्र' की रचना की गयी थी।
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