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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


प्रश्न 5 - 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है ? प्रकाश डालिए।
अथवा अशोक का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
अथवा शासक के रूप में अशोक का मूल्यांकन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न

1. अशोक का भारतीय इतिहास में क्या स्थान है ?
2. अशोक की महानता के कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर -
अशोक का भारतीय इतिहास में स्थान (Place of Ashoka in Indian History)

अशोक निःसन्देह प्राचीन जगत में महानतम् व्यक्तियों में से है। इतिहास के महान व्यक्ति कन्सटेनटाइन, मार्क्स आरिलियस, अकबर खलीफा, उमर और दूसरों के साथ उसकी तुलना की गयी है।

ये तुलना वास्तव में सर्वथा उचित नहीं है। अशोक उदारता की मूर्ति था और मानवता का सदा पुजारी रहा। उसकी सहानुभूति और स्नेह मानव जगत को लांघ प्राणिमात्र तक पहुंचते थे। उसको अपने कर्त्तव्य का गहरा ध्यान रहता था। जिस कारण उसने अपने पद और स्थान से सम्बन्धित सुख तक को त्याग दिया और जिसके संपादन के लिए वह निरन्तर श्रम करता था, हर घड़ी और हर स्थान पर शासन के कार्यों और प्रजा के कल्याण हेतु वह सदैव तत्पर रहता था। अपने साम्राज्य के सारे साधन उसने मनुष्यमात्र के दुःख मोचन और अपने 'धम्म' के प्रचार के लिए लगाये। वस्तुतः प्राणिमात्र विशेषकर अपनी प्रजा के हित और सुख की भावना उसके जीवन में इतनी प्रबल हो गयी थी कि अपने कार्यों और परिश्रम से वह कभी सन्तुष्ट न हो पाता था। उसके शासनकाल में कला को अद्भुत शक्ति और स्फूर्ति मिली और पाली अथवा मागधी जिनमें उसके अभिलेख खुदे हैं भारत की राष्ट्र भाषा बन गयी, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि अशोक की 'धम्म विजय' संबंधी नीति के कारण राजनीतिक महत्ता को अवश्य धक्का लगा।

कलिंग विजय के बाद उसने मौर्य प्रशासन नीति को रोक दिया और इस प्रकार. अपने 'धम्म विजय' के कारण मगध का विस्तार भी रोक दिया। जनता का सामरिक उत्साह जो ठंडा पड गया उससे देश विदेशी लुटेरों का शिकार हो चला। भारत की उत्तरी सीमा के समीप ही बाख्खी (बल्हीक) में ग्रीकों का एक उपनिवेश राज्य था। उस आधार से उन राजाओं के आक्रमण का आरम्भ हुआ। भारतीय इतिहास में हिन्दू ग्रीक कहते हैं। शीघ्र उन विदेशियों की चोटों से भारत क्षत-विक्षत हो उठा और इसका दूरस्थ कारण निःसन्देह अशोक की अराजनीतिक करुण नीति थी। डॉ. रीज डेविस के अनुसार अशोक की तुलना कान्स्टैनटाइन से करके उसे बौद्ध धर्म के पतन के लिए उत्तरदायी ठहराना तर्कसंगत नहीं है। डॉ. आर. के. मुकर्जी का कथन है कि "संपूर्ण इतिहास में कोई भी राजा ऐसा नहीं, जिसका जीवन ‘मानव अशोक' या 'राजा अशोक' की तुलना में लाया जा सके। सम्राट अशोक की महत्ता को स्पष्ट करने के लिए उसकी तुलना इतिहास की अन्य विभूतियों से की गयी है। इस तुलना में अशोक के सम्मुख अनेक नवीन और प्राचीन ईसाई, यवन, आस्तिक तथा नास्तिक आदि अनेक व्यक्तियों को खड़ा किया गया है। अपने संपूर्ण राज्य में बौद्ध धर्म को स्थापित करने की अशोक की अभिलाषा उसे इजराईल के डेविड और सोलोमन के सम्मुख ला खड़ी करती है। इन दो राजाओं के राज्यकाल में इजराईल उन्नति के शिखरं पर था। अशोक ने स्थानीय धर्म को विश्व धर्म का रूप दे डाला था।

अतः इस दृष्टि से अशोक के उपदेश आलिवर क्रामवेल के भाषणों से मिलते हैं। अन्त में उसे खलीफा उमर और सम्राट अकबर के सम्मुख खड़ा किया जा सकता है।

डॉ. आर. के. मुकर्जी तथा डॉ. भंडारकर महोदय ने बताया है कि अशोक ने बौद्ध धर्म को एक स्थानीय धर्म से विश्वव्यापी धर्म बनाया था। मैकपेल (Macphail) ने अपनी पुस्तक में अशोक की तुलना मार्क्स आरलिपस, इण्डोनियस से की है जिसने 121 ई. से 180 ई. तक रोम में शासन किया था। यद्यपि यह व्यक्तिगत सदाचार के लिए अशोक की कोटि में रखा जाता है परन्तु आदर्श की श्रेष्ठता तथा उत्साह एवं लगन की उत्कृष्टता के प्रदर्शन में भारतीय सम्राट आरलिपस को मात कर देता है। अशोक ने संपूर्ण मानव समाज की उन्नति एवं प्रगति के लिए अथक प्रयास किया था। अतएव आरलिपस से उसकी तुलना नहीं की जा सकती है।

विश्व के महान इतिहासकार विश्व के महानतम् सम्राट अलेक्जेण्डर, महान सीजर एवं नेपोलियन. से अशोक की समता करते हैं। वे वस्तुतः अशोक से बढ़-चढ़कर वीर योद्धा एवं शासक थे परन्तु किसी भी योद्धा एवं शासक में महान होना सम्राट अशोक की उपाधि से विभूषित नहीं किया जा सकता है। एच. जी. वेल्स ने कहा है -

“What were their permanent contributions to humanity there three who have appropriated so many of the pages of our history ?'

इन तीनों व्यक्तियों ने राष्ट्र के लिए यद्यपि बहुत कुछ किया परन्तु मानवता के कल्याण के लिए तीनों ने कार्य नहीं किया। अशोक के संबंध में सबसे बड़ी बात यह है कि बौद्ध धर्म के प्रति उसके असीम उत्साह ने उसे कभी राजा के कर्त्तव्य से च्युत नहीं होने दिया। वस्तुतः सारे संसार के प्राचीन और अर्वाचीन महान राजाओं में उसकी गणना की जा सकती है। अशोक की महानता के निम्नलिखित कारण दृष्टिगोचर होते हैं -

1. एक महान आदर्श विजेता (A Great and Idealist Conquerors) - अन्य सम्राटों के समान अशोक की विजय शक्ति पर आधारित न होकर अहिंसा और शान्ति पर आधारित थी। कलिंग का युद्ध उसके जीवन का प्रथम और अन्तिम युद्ध था। इसके पश्चात् उसने अपनी तलवार को सदैव के लिए म्यान में बन्द कर दिया था। इस प्रकार अशोक मानव हृदय विजेता था।

2. एक महान शासक (A Great Administration) - अशोक की शासन व्यवस्था आध्यात्मिकता पर आधारित थी। उसने झूठ और अन्धकार की ओर अग्रसर होती हुई प्रजा को सत्य, ज्ञान और आलोक का मार्ग दिखाया था। उसने अपने अधिकारियों के सामने अपने चरित्र का आदर्श प्रस्तुत करते हुए उनके आध्यामिक स्तर को विकसित किया था। उसने पग-पग पर प्रजा की भलाई के लिए कार्य किया। उसका कथन था कि "सर्व लोकहित से बढ़कर किसी का कोई भी दसरा कर्त्तव्य नहीं है।"

3. एक महान धर्मपरायण व्यक्ति (A Great Religiousman) - ऐतिहासिक रंगमंच पर संभवतः बहुत कुछ ऐसे सम्राट अवतरित हुए हैं जिन्होंने आध्यात्मिकता को मूलमंत्र मानकर विश्व कल्याण के लिए प्रयास किया है। अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बुद्ध और संघ की शरण में जाकर मन, वचन और कर्म द्वारा भगवान बुद्ध के उपदेशों का प्रचार किया। उसने राजप्रासादों के वैभव और विलासितापूर्ण जीवन को त्यागकर सरल और सादा जीवन व्यतीत किया था।

4. धार्मिक सहिष्णुता (Religious Harmony) - बौद्ध धर्मावलम्बी होते हुए भी अशोक ने अपने व्यक्तिगत विचार को जनता पर थोपने का प्रयास नहीं किया था। उसका धार्मिक दृष्टिकोण उदार था। वह सभी धर्मों को समान आदर देता था। इसकी धार्मिक सहिष्णुता के विषय में डॉ. हेमचंद्र राय चौधरी का कथन है कि "उसने ऐसे युग में धार्मिक सहिष्णुता तथा मेलजोल के सद्गुणों के उपदेश दिये थे जब धार्मिक कट्टरता अत्यधिक थी।

5. राष्ट्रीय एकता का नायक (Hero of National Unity) - अशोक ने साम्राज्य की जनता को राजनीतिक एकता के सूत्र में बांधा था। वह भारत का पहला सम्राट था जिसने राजनीतिक एकता के अभाव में सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित करने की सोची थी। उसने सम्पूर्ण राज्य के लिए एक ही भाषा का प्रयोग करने की व्यवस्था की थी।

6. एक महान आदर्शवादी (A Great Idealist) - अपने जीवन के संपूर्ण क्षणों तक. वह आदर्शवादी बनकर कार्य करता रहा। राजनीतिक क्षेत्र में विजेता और कुशल शासक होने के साथ धार्मिक क्षेत्र में वह उदार और सहिष्णु भी था। उसने "वसुधैव कुटुम्बकम" के सिद्धान्त का प्रचार किया। ये विशेषतायें विश्व के किसी सम्राट में नहीं मिलती हैं।

7. प्रजावत्सलता (Love of the Subject) - अशोक़ की महानता का कारण उसकी प्रजावत्सलता भी थी। वह अपनी प्रजा को सन्तान तुल्य मानता था, कलिंग विजय के बाद उसने अपने अभिलेखों में लिखा है कि "सभी मनुष्य मेरी सन्तान हैं। जिस प्रकार मैं चाहता हूँ कि मेरी सन्तति इस लोक और परलोक में सब प्रकार की समृद्धि और सुख भोगे ठीक उसी प्रकार मैं अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की कामना करता हूँ-

8. अशोक के शासन सुधार (Ruling Improvements by Ashoka) - अशोक ने अपने बाबा चंद्रगुप्त मौर्य की कठोर शासन व्यवस्था में कुछ सुधार किये थे। उसने कठोर व्यवस्था को नर्म और सरल बनाने का प्रयास किया था। चंद्रगुप्त मौर्य के समय दंड विधान कठोर थे परन्तु अशोक ने दंड व्यवस्था को कुछ शिथिल कर दिया था।

9. कला का उन्नायक (A Promoter of Art) - उसके शासनकाल में कला की बड़ी उन्नति हुई। उसने धर्म प्रचार का साधन कला को मानकर अनेक भवन, स्तम्भ, अभिलेख और बौद्ध बिहार बनवाये थे। न केवल कला की दृष्टि से वरन् ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अभिलेखों का बड़ा महत्व है।

10. एक महान जनसेवक (A Great Public Servant) - उसने न केवल मनुष्य के लिए वरन् पशुओं तक के लिए औषधालय खुलवाये थे| उसने लोगों के आवागमन के लिए अनेक सड़कें बनवायीं। सड़कों पर छायादार एवं फलदार वृक्ष लगवाये और यात्रियों की सुविधा के लिए स्थान-स्थान पर कुयें तथा धर्मशालायें बनवायीं। उसने न्याय तथा दान के क्षेत्र में धर्म महामात्यों की नियुक्ति की थी। उसने पशु-हत्या और मदिरापान पर प्रतिबन्ध लगाकर प्रजा का नैतिक स्तर उठाने का प्रयत्न किया था।

उपरोक्त कार्यों और आदर्शों के कारण अशोक की तुलना विश्व के महान सम्राटों में सिकन्दर, सेण्टपाल आदि से की जाती है। परन्तु इनमें से एक भी सम्राट उसके समकक्ष होने का अधिकारी नहीं है।

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