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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


प्रश्न 6. मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मौर्य साम्राज्य के विघटन के कारणों का विवेचन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न

1. मौर्य सम्राज्य के पतन का कारण अयोग्य उत्तराधिकारी का होना था। समझाइए।
2. मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - मौर्य सम्राज्य का पतन

मौर्य साम्राज्य की समाधि पर खड़े होने पर स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि अशोक के निधन के इतने शीघ्र बाद ही क्यों इस साम्राज्य का पतन हुआ। महामहोपाध्याय हरिप्रसाद शास्त्री का विचार है कि इसका कारण अशोक की नीति के विरुद्ध ब्राह्मणों का वैमनस्य था। अशोक ने यज्ञों के निषेध, धम्ममहामात्रों की नियुक्ति और व्यवहार तथा दण्ड की अपनी अविषम समता के विधान में उनको नितान्त विद्वेषी बना लिया था।

चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य अशोक के समय अपनी विशालता की चरम सीमा पर पहुंच गया था। अशोक की मृत्यु के बाद स्वतः पतन प्रारम्भ हो गया था। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं -

1. स्वयं सम्राट अशोक - मौर्य वंश के पतन के लिए सम्राट अशोक स्वयं उत्तरदायी माना जाता है। महामहोपाध्याय हरिप्रसाद शास्त्री का विचार है कि सम्राट अशोक की नीति के विरुद्ध ब्राह्मणों का वैमनस्य था। अशोक ने स्वयं यज्ञों के निषेध, धम्म-महामात्रों की नियुक्ति और व्यवहार तथा दण्ड की अपनी अविषम समता के विधान में उनको नितांत विद्वेषी बना लिया था। इन विधानों ने ब्राह्मणों को कुपित बना लिया था। अशोक की अहिंसा नीति के कारण सैन्य शक्ति अधिक कमजोर हो गयी थी। 'युद्ध' नाम का शब्द अशोक के राज्य में कोई भी सामन्त, योद्धा तथा अधिकारी उच्चारण नहीं कर सकता था। इस प्रकार देखा जाये तो अन्य किसी भी कारण को महत्व न देकर सम्राट अशोक ही मौर्य साम्राज्य के पतन का मुख्य दोषी था।

2. राजतंत्रात्मक शासन तथा अयोग्य उत्तराधिकारी - राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली राज्य की क्षमता एवं योग्यता पर निर्भर होती है क्योंकि राज्य ही संपर्ण राज्य का केन्द्र बिन्द होता है। यदि इसमें जरा सी भी अस्थिरता एवं अशक्ता आयी वहीं पर राज्य की स्थिति डांवाडोल हो जाती है। अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य में ऐसा कोई सशक्त एवं दृढ़ राजा नहीं हुआ जो संपूर्ण शासन व्यवस्था को समुचित रूप से व्यवस्थित कर सके। परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा। डॉ. आर. के. मुकर्जी के अनुसार मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों में प्रमुख कारण राजवंश के राजनीतिक संगठन की कोई अन्दरूनी और स्वाभाविक कमजोरी हो सकती है। यह साम्राज्य निरंकुश राजतंत्र था, इस प्रकार की राजतंत्रात्मक प्रणाली में यह दोष रह जाता है कि कोई राजा अपने उत्तराधिकारी राजाओं में उन गुणों के होने का विश्वास नहीं दिला सकता जिसका होना निजी शासन के लिए आवश्यक है। कोई भी व्यक्ति अपनी सन्तान में अपने व्यक्तिगत गुणों का समावेश नहीं कर सकता था। यही कारण है कि जिस राज्य धर्म की स्थापना अशोक ने की थी वह उसके जीवनकाल में ही लड़खड़ाने लगी, क्योंकि वह राज्य अधिकांश जनता की इच्छा पर निर्भर नहीं था।

3. केन्द्रीय प्रशासन की कमजोरी - अशोक के बाद मौर्य वंश का कोई यशस्वी राजा नहीं हुआ जो संपूर्ण शासन को सुव्यवस्थित रख पाता, फलतः प्रान्तीय शासन स्वतंत्र होने लगे| कल्हण की राजतंरगिणी के अनसार अशोक की मृत्य के पश्चात काश्मीर का शासक जालौक बन गया था। उसने काश्मीर को जीत लिया था। तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के अनुसार वीरसेन गन्धार देश का राजा हो गया। कालिदास द्वारा रजित मालाविका अग्निमित्रम नाटक के अनुसार विदर्भ मौर्य साम्राज्य से स्वतंत्र हो गया। यूनानी लेखक पालोनियस के अनुसार मगध का उत्तरी भाग छिन जाने के कारण एण्ट्योकस ने हिन्दूकश पार किया और भारत आ पहुंचा। उसने सुभगसेन से फिर से मैत्री संबंध स्थापित किये। अब उसके पास 150 हाथी हो गये। सुभगसेन द्वारा दी जाने वाली सारी संपत्ति को अपने देश पहुंचाने का भार सिजियस के अण्डोस्थेनीज को सौंपकर अपनी सारी सेना कि लिए रसद लेकर वह अपनी सैनिक टुकड़ियों के साथ आगे की ओर चल दिया। इससे ज्ञात होता है कि सुभगसेन एक राजा के रूप में उत्तरी प्रान्त में राज्य करता था। अतः केन्द्रीय शासन की दुर्बलता के फलस्वरूप ही अधीनस्थ प्रान्तीय शासक होने लगे। परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ।

4. प्रान्तीय शासकों के अत्याचार - सुदूर प्रान्तों में शासकों तथा वहाँ के कर्मचारियों ने जनता पर अत्याचार करने प्रारम्भ कर दिये थे। ये अत्याचार बिन्दुसार के समय से ही प्रारम्भ हो गये थे। तक्षशिला में जनता के विद्रोह का उल्लेख मिलता है जिसे क्रमशः अशोक तथा कुणाल ने शान्त किया।

डॉ. राय चौधरी के अनुसार मंत्रियों के अत्याचारों का प्रमाण कलिंग के शिलालेख से ज्ञात होता है जिसमें अशोक स्वयम् कहता है-"सभी लोग मेरी सन्तान हैं। जैसे मेरी सन्तानें सुख भोगें और परलोक प्राप्त करें वैसे ही मैं अपनी प्रजा की भी सुख-समृद्धि की कामना करता हूँ। पर तुम लोग मेरी सत्यता को पूरी तरह नहीं निभाते हो। यदि जनता को कष्ट मिलता है तो इसके कारण का पता लगाकर उचित उपाय किया जाये। मैं इस कार्य हेतु हर पंच वर्ष बाद पवित्र संयमी नम्र जीवन बिताने को व्यक्तियों को भेजूंगा जो जनता के कष्ट को दूर करने में सहायक हों। अतः यह सिद्ध होता है कि अशोक के बाद इन लोगों ने विद्रोह करना प्रारम्भ कर दिया हो, फलतः मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ।

5. राज्यों में गुटबन्दी तथा व्यक्तिगत राग-द्वेष - राज्यों में विभिन्न दलों में गुटबन्दी होने के कारण वे राष्ट्रीय दृष्टिकोण को भुला देते थे और व्यक्तिगत ईर्ष्या-द्वेष में फंसे रहते थे। राजमहल में तो रानियाँ और राजकुमार भी षड्यन्त्र रचा करते थे। अशोक के समय उसकी रानियाँ एवं पुत्र के एक-दूसरे के विरुद्ध कुचक्र रचने का उल्लेख प्राप्त होता है। अतः सम्राट को पूर्ण सहयोग न मिलने के कारण मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ।

6. करों का आधिक्य - मौर्य साम्राज्य में करों की व्यापकता के कारण ही साम्राज्य का पतन हुआ पतंजलि के महाभाष्य में करों के लिए मौर्य सम्राटों ने जिस नीति का अनुसरण किया वह जनअसन्तोष की नींव का कारण बनी।

7. रिक्त राजकोष - मौर्य सम्राटों ने अपने शासनकाल में निर्माण तथा स्थापत्य कार्य में राजकोष की आय का अधिकांश भाग व्यय कर दिया था। अशोक ने अपने शासनकाल में स्तूप, स्मारकों, मठों एवं दानशालाओं तथा शिलालेख और अभिलेखों पर असंख्य रुपया व्यय किया, जिसके कारण आगे चलकर उसके उत्तराधिकारियों को राजकीय कार्यों हेतु धन की कमी महसूस हुई और आवश्यक कार्यों को वे पूर्ण न कर सके। फलस्वरूप साम्राज्य की सुरक्षा और स्थिरता को खतरा उत्पन्न हो गया जो धीरे-धीरे पतन के रूप में परिवर्तित हो गया।

8. विशाल साम्राज्य - चंद्रगुप्त की विजयों और अशोक की धर्म-विजयों के द्वारा मौर्य साम्राज्य सदूर दक्षिण तक फैल गया था। राज्य में यातायात के साधनों का भी अभाव था। अतः संपूर्ण राज्य को एक ही केन्द्र से नियंत्रित करना अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारियों के लिए असंभव हो गया था, फलतः अधीनस्थ राज्य अपनी-अपनी स्वतंत्रता घोषित करने में लग गए, इस कारण मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ।

9. कर्मचारियों का सम्बन्ध राजा से होना - मौर्य शासन प्रणाली के अंतर्गत सभी कर्मचारी सीधे राजा के अधीनस्थ होते थे, अतः उनका राज्य के प्रति क्या कर्त्तव्य है, इससे वे अनभिज्ञ रहते थे। सम्राट के बदलने से वे भी बदल गये। इस कारण वरिष्ठ तथा अनुभवी लोगों की कमी के कारण राज्य की नींव हिल गयी तथा साम्राज्य का पतन हुआ।

10. राष्ट्रीय एकता की कमी - राष्ट्रीय एकता की कमी के कारण भी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ. डॉ. प्रमिला थापर ने भी मौर्य साम्राज्य के पतन के रूप में राष्ट्रीय एकता की कमी को माना है।

11. भूमि स्वामित्व और आर्थिक विषमता - मौर्य शासनकाल में भूमि राजा की होती थी, जनता का भूमि पर स्वामित्व नहीं होता था जिस कारण जनता उत्पादन में विशेष रुचि नहीं लेती थी। इसके साथ ही साथ समाज में आर्थिक विषमता के फलस्वरूप भी मौर्य सम्राज्य का पतन हुआ। डॉ. प्रमिला थापर ने इस कारण को भी मौर्य साम्राज्य के पतन के रूप में स्वीकार किया है।

12. विदेशी आक्रमण - डॉ. आर. सी. मजूमदार के अनुसार "आन्ध्रों का सफल विद्रोह, यूनानी राजा का मगध साम्राज्य में दूर तक सफल आक्रमण तथा उत्तर पश्चिमी अधिराज्यों के अलग हो जाने से मौर्य साम्राय की शक्ति और सम्मान को गंभीर धक्का लगा। इस कारण भी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ।

13. ब्राह्मणों का विरोध - ब्राह्मणों ने भी मौर्य साम्राज्य के पतन में अपना पूर्ण हिस्सा लिया। ब्राह्मण अशोक की बौद्ध नीतियों तथा अहिंसा की नीति से पूर्णतया असन्तुष्ट थे| महामहोपाध्याय हरिप्रसाद शास्त्री के अनुसार अशोक द्वारा पशुवध को वर्जित ठहराना तथा धर्म महामात्रों की नियुक्ति करना ब्राह्मणों पर सबसे करारी चोट थी। इसके साथ ही साथ दंड समन्त और व्यवहार समन्त के सिद्धान्तों को अपने कर्मचारियों द्वारा बलपूर्वक लागू करना भी अपने आप में एक कारण था। क्योंकि इसके अनुसार सभी के साथ समान व्यवहार एवं समान दंड दिया जाये। ब्राह्मणों को अभी तक कठिन दंड अथवा मृत्युदंड नहीं दिया जाता था।

इस प्रकार प्रान्तों में अत्याचारों की सीमा नहीं रही। उनको संयत और मर्यादित रखने के लिए अशोक अब जीवित न था जिससे जनता में उनके प्रति विरक्ति और क्षोभ तीव्र गति से बढ़ने लगा। साम्राज्य की समस्त शक्ति नष्ट हो चुकी थी और जब तूफान उठा तब उसके प्रान्त शीघ्र ही तितर-बितर हो गये।

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