इतिहास >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
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सम्राट अशोक
(Emperor Ashoka)
दीर्घ एवं लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि वह किस
प्रकार सिंहासन पर बैठा था ?
अथवा
"अशोक को सिंहासन प्राप्त करते समय बड़ा संघर्ष करना पड़ा था।' इस कथन की
विवेचना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर टिप्पणी कीजिए।
2. अशोक ने राज्य के लिए क्या गृह-कलह मचाया था ?
3. अशोक के सिंहासनारोहण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - अशोक का प्रारम्भ - पुराणों के अनुसार बिन्दुसार ने केवल 25 वर्ष
राज्य किया परन्तु पाली ग्रन्थों में उसके 27 या 28 वर्ष के शासन का उल्लेख
हुआ है। पौराणिक विधि को यदि सत्य माना जाये तो बिन्दुसार की मृत्यु 272 ई.
पूर्व होनी चाहिए। बिन्दुसार के बाद उसका पुत्र अशोक गद्दी पर बैठा। उसने
अपने पिता के शासक के अधिकार से उज्जैन और तक्षशिला दोनों प्रान्तीय
केन्द्रों में शासन किया था। अशोक विश्व के इतिहास में महानतम सम्राटों में
से एक था।
राज्य के लिए गृह-कलह - सिंहली वृतान्तों में अशोक को राज्यारोहण से पूर्व
निर्दयी चित्रित किया गया है। उसमें लिखा है कि उसने अपने सहोदर भाई त्रिज्य
को छोड़कर 99 भाइयों को तलवार से मृत्यु के घाट उतार दिया और इस प्रकार रक्त
का समुद्र पार कर वह मगध के सिंहासन पर बैठा था। अशोक के पांचवें शिलालेख में
भाइयों के प्रति उसके संकेत के आधार पर अनेक विद्वान सिंहली इतिहास के इस
वृत्तान्त पर सन्देह करते हैं। इस अभिलेख का प्रमाण यद्यपि सर्वथा असंदिग्ध
नहीं है क्योंकि इसमें वस्तुतः जीवित भाइयों के नहीं वरन् उनके परिवार के
प्रति अशोक की कल्याण बुद्धि का निर्देश मिलता है तथापि इसमें सन्देह नहीं है
कि यह दक्षिणी विवरण अतिशयोक्तिपूर्ण है। सम्भव है ऐसा करने में भिक्षुओं का
तात्पर्य यह सिद्ध करना रहा हो कि बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होने के
पूर्व अशोक अत्यन्त क्रूर और भीषण निर्दयी था, परन्तु बौद्ध होते ही वह
राक्षस से देवता बन गया। इतना विश्वसनीय अवश्य है कि अशोक का राज्यारोहण
स्वाभाविक नहीं हुआ होगा, क्योंकि वह अपने पिता का ज्येष्ठ पुत्र नहीं था।
दीपवंश से ज्ञात होता है कि बिन्दुसार की 16 रानियाँ थीं जिनसे 101 पुत्र हुए
थे, सबसे बड़े लड़के का नाम सुमन था परन्तु दिव्यावदान में सबसे बड़े लड़के
का नाम सुशाम बताया गया है।
मगध साम्राज्य का वास्तविक अधिकारी उसका अग्रज भाई सुशीम अथवा सुमन था, जो
पहले तक्षशिला का शासक रह चुका था। इसके स्थानीय विद्रोह को न दबा सकने के
कारण अशोक को उज्जैन से तक्षशिला जाना पड़ा था। इससे गद्दी पाने के पूर्व
अशोक का अपने भाइयों से संघर्ष करना स्वाभाविक था। उत्तराधिकार का यह संघर्ष
सचमुच हुआ। इससे सिद्ध होता है कि अशोक के राज्यारोहण और राज्याभिषेक के बीच
प्रायः 3-4 वर्ष का अन्तर है।
दिव्यावदान से ज्ञात होता है कि अशोक की मां एक ब्राह्मण की कन्या थी,
बिन्दुसार ने उसे अपनी पटरानी बनाया, उसके गर्भ रह जाने के 9 महीने पश्चात्
एक पुत्र का जन्म हुआ, राजा बिन्दुसार ने रानी से इसका नाम रखने के लिए कहा।
रानी ने उत्तर दिया - इसके उत्पन्न होने से मैं अशोका हो गयी हूँ इसलिए इसका
नाम अशोक रखा जाये। इसके पश्चात् रानी ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम
विगतशोक रखा गया।
कुमार अशोक का शरीर ऐसा नहीं था कि उसके स्पर्श से सुख प्राप्त होता हो। वह
दुःख स्पर्श मात्र था -'इसलिए राजा बिन्दुसार उससे प्रेम नहीं करते थे। एक
समय बिन्दुसार ने अपने समस्त पुत्रों में यह जानने की कोशिश की कि कौन सबसे
लायक होगा ? राजा ने इस जांच के लिए परिव्राजक पिङ्गल वत्साजीव को बुलाया। इस
समय अशोक की मां ने भी उस परीक्षा में जाने के लिए कहा था -"तू भी वहाँ चला
जा' अशोक ने उत्तर दिया - "राजा तो मुझे देखना भी नहीं चाहता, मैं वहाँ जाकर
क्या करूँगा।' माता ने कहा - फिर भी तेरा जाना ठीक होगा।
अशोक ने कहा था - बहुत अच्छा, परन्तु भोजन भेज देना। इसके पश्चात् अशोक हाथी
पर चढ़कर उस स्वर्ण मण्डप में पहुंचा, जहाँ पहले से ही राजा अन्य राजकुमारों
सहित पहुंचे हुए थे। परिव्राजक अशोक के आते ही समझ गया कि सबसे लायक शायद यही
हो सकता है, परन्तु राजा के सामने इस बात को कहने में उसे परेशानी यह थी कि
राजा नाराज हो गये तो मुझे प्राणदण्ड भी मिल सकता है। इसलिए परिव्राजक ने इस
बात को घुमा-फिराकर कहा कि जिसका कान शोभन है वह राजा बनेगा, यही बात भविष्य
में साकार होकर रही।
अशोक का सिंहासनारोहण (Coronation of Ashoka) - बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार
अशोक के सिंहासनारोहण होने का समय निश्चित नहीं किया जा सकता है। क्योंकि
बौद्ध ग्रन्थों में अशोक सम्बन्धी समस्त विवरण अतिशयोक्तिपूर्ण हैं।
बिन्दुसार की निधन तिथि 275 ई. पूर्व मानी जा सकती है, ये सारे विवरण पुराण
के आधार पर दिये गये हैं जिसके अनुसार अशोक की राज्याभिषेक तिथि 275 ई. पूर्व
होनी चाहिए। किन्तु बौद्ध अनुश्रुतियों के आधार पर बिन्दुसार ने 27-28 वर्ष
तक राज्य किया। यदि हम इस साक्ष्य को सच मानें तो बिन्दुसार के निधन की तिथि
272-273 ई. पूर्व सिद्ध होती है। सिंहली जनुश्रुति के आधार पर अशोक का
राज्याभिषेक बिंदुसार की मृत्यु के चार वर्ष पश्चात् अर्थात् 268-69 ई. पूर्व
में हुआ था।
श्री नीलकान्त शास्त्री के अनुसार, "जिस समय बिन्दुसार मुत्यु-शैय्या पर पड़ा
हुआ था उस समय अशोक उज्जैनी छोड़कर पुष्पपुर (पेशावर) चला आया और उसने
साम्राज्य के शासन भार को ग्रहण किया।
महावंशों के अनुसार जब अशोक ने राज्य पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया था,
उसके चार वर्ष पश्चात् पाटलिपुत्र में उसका राज्याभिषेक हुआ।
पत्वाचतूहि वस्सेहि एक रज्ज महायसे
पुरे पाटलिपुत्तास्मिं अत्तानमभिसेर्चाय, महावंशों 5/22
यह अभिषेक महात्मा बुद्ध के निर्वाण के 218 वर्ष बाद हुआ था।
जिन निब्बाण्तो पच्छा पुरे तस्साभिसेकतो
साढारसं वस्ससतद्वयमेव विजानियं महावंसोई 5/21
राज्य प्राप्ति और राज्याभिषेक में यह जो चार वर्ष का अन्तर है उसका कारण
सम्भवतः यही था कि अभी अशोक की स्थिति सुरक्षित नहीं हो पायी थी अपने भाइयों
के विरुद्ध उसका संघर्ष अभी भी जारी था और राज्य में अनेक ऐसे अमात्य व अन्य
वर्ग थे जो अशोक के विरोधी थे, चार वर्ष के निरन्तर संघर्ष के पश्चात् जब
अशोक की स्थिति सर्वथा सुरक्षित हो गयी, तभी उसने राज्याभिषेक का आयोजन किया
था। यह बात ध्यान देने योग्य है कि अशोक ने अपनी धर्म लिपियों में
राज्याभिषेक के वर्ष का उल्लेख किया है। राज्य प्राप्ति के वर्ष का नहीं, कौन
सी धर्म लिपि कब उत्कीर्ण करायी गयी थी, इस सम्बन्ध में अशोक ने इस प्रकार
सूचित किया है - सडुवीसतिवस अभिसितेन में इयं धमांलिपिलिखापिता' (षड्विशति
वर्षाभिषिक्तेन मया इयं धर्मालिपिः लेखिता)। इसका अर्थ यह है कि छब्बीस वर्ष
से अभिषिक्त मुझ द्वारा यह धर्म लिपि लिखाई गयी है। सर्वत्र अभिषेक के बाद
बीते हुए वर्षों का ही उल्लेख किया गया है। श्री भंडारकर महावंशों की कथा को
विश्वसनीय नहीं मानते हैं।
अतः अशोक के ये अभिलेख सिद्ध कर देते हैं कि अशोक किसी प्रकार भी अपने भाइयों
की हत्या नहीं कर सकता था, पर यहाँ सन्देह यह है कि तब के अशोक तथा अभिषेक के
अशोक में समय का अन्तर है। बौद्ध ग्रन्थों में अशोक को प्रारम्भ में क्रूर
बताये जाने के आधार पर भी उसको भाइयों का वध करने वाला 'चण्डाशोक' कहना
तर्कसंगत नहीं है क्योंकि इसे चण्डाशोक, कालाशोक घोषित करने में बौद्ध
ग्रन्थों का अपना निजी स्वार्थ निहित है। वे बौद्ध धर्म स्वीकार करने के
पूर्व अशोक को क्रूर बताकर बौद्ध धर्म की शक्ति में चमत्कार सिद्ध करना चाहते
थे।
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