प्रश्न 2- सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।
अथवा
"विश्व के इतिहास में कलिंग युद्ध एक निर्णयात्मक घटना थी।' इस कथन की
विवेचना कीजिए।
अथवा
अशोक के कलिंग विजय की विवेचना कीजिए और उसके साम्राज्य की सीमाओं का
निर्धारण कीजिए।
अथवा
अशोक के कलिंग युद्ध तथा उसके परिणाम का उल्लेख कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1: सम्राट अशोक का राज्य विस्तार बताइए।
2. अशोक की अन्तिम विजय पर टिप्पणी लिखिए।
3. कलिंग विजय पर टिप्पणी लिखिए।
4. अशोक के कलिंग युद्ध पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -अशोक का राज्य विस्तार
राजा अशोक के शासन से सम्बन्ध रखने वाली घटनाओं की पूर्ण जानकारी नहीं मिलती
है। इसका कारण यह है कि दिव्यावदान, महावंशों आदित्रित ग्रन्थों में अशोक के
जीवन वृत्त का विशुद्ध रूप से विवरण मिलता है। इनकी रचना बौद्ध धर्म की
दृष्टि में रखकर की गयी थी। इनके लेखक अशोक को बौद्ध धर्म के सहायक, संरक्षक
और प्रचारक के रूप में देखते थे। इसी कारण अशोक की राजनीतिक शक्ति, राज्य
विस्तार, शासन आदि के संबंध में उसके कोई विशेष महत्वपूर्ण निर्देश नहीं
मिलते। अशोक की धर्म लिपियों का संबंध भी प्रधानतया धर्म विजय की नीति के साथ
है। ये सब होते हुए भी विविध ऐतिहासिक साधनों द्वारा अशोक के शासन और राज्य
विस्तार आदि के विषय में कतिपय तथ्य ज्ञात हो सके हैं।
राजा बिन्दुसार से अशोक को एक विशाल साम्राज्य उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ
था। यह साम्राज्य पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लगाकर पश्चिम में हिन्दुकश
पर्वत के परे तक विस्तीर्ण था। इसके उत्तर में हिमालय की दुर्गम पर्वत
श्रृंखलायें थीं, दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश और उसके भी दक्षिण में स्थित अनेक
प्रदेश इस साम्राज्य के अन्तर्गत थे। अशोक ने इस साम्राज्य को और भी अधिक
विस्तृत किया। राज्याभिषेक को हुए आठ वर्ष व्यतीत हो जाने पर 261-60 ई. पूर्व
अशोक ने कलिंग देश पर आक्रमण किया और उसे जीतकर अपने अधीन कर लिया। कलिंग देश
की स्थिति बंगाल की खाड़ी के साथ गोदावरी और महानदी के बीच प्रदेश में थी।
इसी को आजकल उड़ीसा कहा जाता है। कलिंग उस युग के अत्यन्त शक्तिशाली राज्यों
में एक था। ग्रीक लेखक प्लिनी के अनुसार कलिंग लोगों का निवास समुद्र के समीप
था और उनकी राजधानी ‘पर्थलिस' कहलाती थी। 60 हजार पदाति, एक हजार घुड़सवार और
700 हाथी कलिंग के राजा की सेना में थे। कलिंग की सैन्य शक्ति के संबंध में
प्लिनी द्वारा उल्लिखित यह विवरण संभवतः मेगस्थनीज के यात्रा वृत्तान्त पर
आधारित है। चंद्रगुप्त मौर्य के समय में कलिंग राज्य स्वतंत्र राज्य था।
चतुर्दश शिलालेखों के 13वें लेख में अशोक ने कलिंग विजय और उसके परिणामस्वरूप
युद्धों के प्रति ग्लानि की भावना को प्रकट किया है।
कलिंग युद्ध - बिन्दुसार के उत्तरकाल में कलिंग स्वतंत्र राज्य हो गया होगा।
कलिंग की पुनर्विजय का भार अशोक पर पड़ा। अशोक के आक्रमण के विरुद्ध कलिंग के
निवासियों ने पूरी तत्परता दिखाई और उसका सामना करने के लिए एक विशाल सेना
रणक्षेत्र में उतर पड़ी। 13वें लेख में लिखा है - "1,50,000 शत्रु बन्दी हुए,
1,00,000 घायल हुए और उनसे कई गुना अधिक मर गये। यह पिछली मृत्यु संख्या
संभवतः युद्ध के अन्तर की व्याधियों आदि की ओर संकेत करती है। इससे यह सिद्ध
होता है कि संग्राम भीषण हुआ और कलिंगों के बलिदानों के बावजूद भी उनका देश
जीत लिया गया। संग्राम की भीषणता और वर्णनीय कष्ट ने विजेता के मर्म को छूू
लिया।
अशोक का हृदय इस घटना से इतना प्रभावित हुआ कि उसने शपथपूर्वक प्रतिज्ञा की
कि साम्राज्य विस्तार के लिए वह अब कभी अस्त्र नहीं ग्रहण करेगा। इसके बाद
'भेरी घोष' सदा के लिए मूक हो गया और धम्मघोष का शांतिप्रद और नेहसिंचित नाद
दिगन्त में गूंज उठा। "
अशोक ने अपनी धर्म लिपियों में कलिंग युद्ध का प्रयोग बहुवचन (कलिङ्ग कलिनेषु
आदि) में किया है। भारत के प्राचीन जनपदों के लिए प्राचीन साहित्य में बहुवचन
ही प्रयुक्त किया गया है। पाणिनि की अष्टाध्यायी और उसकी टीका में अङ्गा,
बङ्गा आदि बहुवचनात्मक युद्धों द्वारा अङ्ग, बङ्ग आदि जनपद ही अभिप्रेत हैं।
चतुर्दश शिलालेख 12वें और 13वें लेख इन शिलाओं पर उत्कीर्ण नहीं कराये गये
थे। उनके स्थान पर वहाँ दो ऐसे विशेष लेख उत्कीर्ण कराये गये थे जिनका संबंध
कलिंग के शासन के साथ है। इन लेखों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि नये जीते
हुए कलिंग को मौर्य साम्राज्य के एक पृथक प्रान्त के रूप में परिवर्तित कर
दिया गया था और उसका शासन चलाने के लिए एक कुमार (राजकुल के व्यक्ति) की
नियुक्ति की गयी थी। कलिंग की राजधानी तोसली थी ओर धौली की शिला पर उत्कीर्ण
कलिंग संबंधी अतिरिक्त लेख तोसली के महामात्यों को ही सम्बोधन किये गये हैं।
कलिंग की एक अन्य महत्वपूर्ण नगरी समापा थी, जो सम्भवतः कलिंग के एक भाग की
राजधानी थी। जौगढ़ की शिला पर उत्कीर्ण अतिरिक्त लेख समापा के महामात्यों को
ही संबोधित है। नये जीते हुए कलिंग के संबंध में अपनी शासन नीति को अशोक ने
इस प्रकार प्रकट किया है - "सब मनुष्य मेरी प्रजा (सन्तान) हैं। जिस प्रकार
मैं सन्तान के लिए हित चाहता हूँ कि वे सब हित और सुख, ऐहलौकिक और पारलौकिक
प्राप्त करें, उसी प्रकार मैं सब मनुष्यों के लिए भी कामना करता हूँ।'
जिस कलिंग की विजय के प्रति अशोक ने लाखों मनुष्यों का वध किया, उसके सुशासन
के लिए वह अत्यन्त उत्सुक था, वह वहाँ के निवासियों के प्रति सन्तान की भावना
रखता था और उनके हित तथा सुख के लिए प्रयत्नशील था।
कलिंग युद्ध का परिणाम एवं महत्व (Consequences and Importance of Kalinga
War) - कलिंग विजय के पश्चात अशोक की मानसिक वृत्ति बदल गयी। उसने शस्त्रों
द्वारा विजय करना छोड़कर धर्म के लिए उद्योग आरम्भ किया। पर मगध साम्राज्य
कलिंग विजय के बाद अपने विकास की चरम सीमा को पहुंच गया था और सुदूर दक्षिण
के कुछ तामिल प्रदेशों को छोड़कर सम्पूर्ण भारत एक सम्राट की अधीनता में आ
गया था। खून की नदी बहाकर जिस कलिंग पर विजय प्राप्त की गयी थी उसके सुशासन
के लिए अशोक ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इस प्रदेश को एक नवीन प्रान्त के रूप में
परिणित किया गया।
कलिंग विजय के अतिरिक्त अशोक ने अन्य किसी प्रदेश को जीतकर मगध साम्राज्य में
सम्मिलित नहीं किया। कलिंग के समीप बहुत-सी आसविक जातियाँ निवास करती थीं
जिन्हें काबू में ला सकना सुगम बात नहीं थी। जब उसके राजकर्मचारियों ने अशोक
से पूछा कि क्या इनका दमन करने के लिए युद्ध किया जाये, तो उसने यही आदेश
दिया कि इन वनवासिनी जातियों को भी धर्म द्वारा ही वश में लाया जाये। उसने एक
शिलालेख में कहा "कदाचित आप यह जानना चाहेंगे जो सीमान्त जातियाँ नहीं जीती
गयी हैं, उनके संबंध में हम लोगों के प्रति राजा की क्या आज्ञा है तो मेरा
यही उत्तर है कि राजा चाहते हैं कि वे सीमान्त जातियाँ मुझसे न डरें, मुझ पर
विश्वास करें और मुझसे सुख ही प्राप्त करें, कभी दुःख न पावें। वे यह भी
विश्वास रखें जहाँ तक क्षमा का व्यवहार हो सकता है वहाँ तक राजा हम लोगों के
साथ क्षमा का बर्ताव करेगा। अब इस शिक्षा के अनुसार चलते हुए आपको ऐसा काम
करना चाहिए कि सीमान्त जातियाँ मुझ पर भरोसा करें और समझें कि राजा हमारे लिए
वैसे ही हैं जैसे कि पिता।''
डॉ. चौधरी के शब्दों में-"मगध के इतिहास में कलिंग विजय वास्तव में एक महान
घटना है। इसके साथ ही प्रादेशिक विजय, बलपूर्वक राज्य विस्तार का युग जो
बिन्दुसार के द्वारा अंग राज्य पर अधिकार करने के साथ आरम्भ हुआ था, समाप्त
हो जाता है। उसके स्थान पर एक ऐसे युग का आरम्भ हुआ है जिसमें शान्ति,
सामाजिक उन्नति, धर्म प्रसार का व्यापक रूप से प्रचार होता है। किन्तु उसके
साथ ही राजनैतिक अचेतना और शायद सैनिक दुर्बलता भी आ जाती है, जिसका परिणाम
यह होता है कि मगध साम्राज्य सैनिक कृति के प्रयोग के अभाव में धीरे-धीरे
नष्ट हो जाता है। इस प्रकार सैनिक विजय अथवा दिग्विजय का युग समाप्त हो जाता
है और हम आध्यात्मिक विजय के युग में प्रवेश करते हैं।
अन्तिम विजय - यह तो स्पष्ट है कि कलिंग विजय के पश्चात अशोक ने किसी अन्य
प्रदेश पर आक्रमण नहीं किया और शस्त्र विजय को हेय मानकर धर्म विजय के लिए
उद्योग करना प्रारम्भ किया। पर प्रश्न यह है कि क्या कलिंग विजय अशोक की
अन्तिम विजय होने के साथ-साथ प्रथम विजय भी थी ? कल्हण द्वारा रचित
राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि "मौर्य राजाओं में सबसे पूर्व अशोक ने ही
काश्मीर में शासन किया था। इसके पश्चात् अशोक नामक नृपति ने बसुन्धरा का शासन
किया। यह राजा बहुत शान्त और सत्य सिद्ध था और 'जिन' के धर्म का अनुसरण करने
वाला था। इसने वितस्ता (झेलम) नदी के तटों को स्तूप मंडलों द्वारा आच्छादित
कर लिया और धर्मार्थ अनेक विहारों का निर्माण कराया। इसने श्रीनगरी नामक नगरी
को बसाया, जिसमें लक्ष्मी से युक्त 96 लाख घर थे। श्री विजपेश के टूटे-फूटे
दुर्ग को हटाकर उसके स्थान पर इस राजा ने सब दोषों से रहित विशुद्ध पत्थरों
का एक विशाल दुर्ग निर्माण कराया और समीप ही एक विशाल प्रासाद बनवाया जिसका
नाम अशोकेश्वर रखा गया।
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