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छठी शताब्दी ईसा पूर्व की भारत की राजनीतिक दशा
(Political Condition of India during the 6th Century B.C.)
प्रश्न 1. उत्तर भारत की राजनैतिक दशा को स्पष्ट करते हुए षोडश महाजनपदों का
नामोल्लेख कीजिए।
अथवा
छठी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तर भारत की राजनीतिक दशा को स्पष्ट कीजिए।
1. बौद्ध धर्म के उदय के पूर्व के भारत पर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
2. षोडस महाजनपद कौन-कौन से हैं ? बताइए।
3. 16 महाजनपदों के नाम लिखिए।
जनपदों के विषय में आप क्या जानते हैं ?
4. काशी महाजनपद को समझाइए।
5. कोशल महाजनपद को समझाइए।
6. अंग महाजनपद को समझाइये।
7. मगध महाजनपद के बारे में आप क्या जानते हैं ?
8. चार महाजनपद के नाम तथा उनकी राजधानियों के नाम बताइए।
9. अवन्ति महाजनपद पर टिप्पणी लिखिए।
10. सोलह जनपदों के नाम उनकी राजधानी सहित लिखिए।
उत्तर -
बौद्ध धर्म के उदय के पूर्व का भारत
भारत में लाखों वर्षों से लोग रहते आये हैं। यहां प्रागैतिहासिक मानव के
अगणित अवशेष पाये गये हैं। बहुत समय तक इतिहासकारों एवं वैज्ञानिकों का मत था
कि भारत में पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में ही लोगों का वर्गों में विभाजन
तथा राज्यों का आविर्भाव हो गया था। किन्तु 80 वर्ष पूर्व पुरातत्ववेत्ताओं
को सिन्धु घाटी में तीसरी-दूसरी सहस्राब्दी के नगरों के खण्डहर मिले। सिन्धु
घाटी की सभ्यता के बारे में अभी भी पूर्ण जानकारी नहीं प्राप्त हुयी है कि इस
सभ्यता का विनाश किन कारणों से हुआ होगा, यह अभी भी रहस्य बना हुआ है।
वैदिककालीन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उस काल में विश्व विजयी राजाओं ने
अपने राज्यों का गठन किया था। छठी शताब्दी ई. पूर्व भारतीय राजनीति में कई
नये परिवर्तनों का पता लगता है, बौद्ध और जैन ग्रन्थों का उद्देश्य धर्म
निरूपण है, राजनैतिक घटनाओं का वर्णन करना नहीं तथापि इन धार्मिक पुस्तकों
में भी जहाँ-तहाँ ऐतिहासिक किरण चमक जाने से मार्ग प्रकाशित हो उठता है,
इनमें से भी अनेक अख्यायिकाएं ऐसी मिल जाती हैं जिनमें भारतीय इतिहास पर जब
तब प्रकाश पड़ जाता है। ऐसे ही प्रसंगों में से वह है जिसमें भारत के षोड्स
महाजनपदों की तालिका दी हुई है। चूंकि यह सूची प्राचीनतम बौद्ध साहित्य
अंगुतर निकाय में मिली है, इसलिए इन जनपदों को बुद्ध पूर्व ही माना जायेगा |
इन जनपदों का काल इस प्रमाण से सातवीं शदी ई. पर्व के आरम्भ में ठहरता है,
स्वयं बुद्ध के जीवनकाल में इनमें से कुछ नष्ट हो गये थे. कुछ नये उठ खड़े
हुए थे तथा कुछ परिवर्तित हो गये थे। निष्कर्ष यह है कि चूंकि इनके द्वारा
प्रदर्शित भारतीय राजनीतिक परिस्थिति बुद्धकालीन नहीं है, अतः यह बुद्ध से
पहले की होगी।
राजनीतिक दशा - छठी शताब्दी ई. पूर्व से लेकर चौथी शताब्दी ई. पूर्व तक कोई
एकछत्र सम्राट नहीं हुआ, भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्य थे, जिन्हें जनपद कहा
जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्ध युग तक भारत के बहुत से पुराने जनपदों
की स्वतन्त्रता और पृथक सत्ता का अन्त हो गया था और उनका स्थान सोलह
शक्तिशाली जनपदों ने ले लिया था जो अब महाजनपद कहलाने लगे थे। षोडश महाजनपद
निम्नलिखित हैं -
1. काशी - इसकी राजधानी काशी अथवा वाराणसी थी। ब्रह्मदत्त के शासनकाल में यह
अत्यन्त फूली-फली। जैन तीर्थाङ्कर पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के
प्राचीन राजाओं में से एक माने जाते हैं। जातक कथाओं के अनुसार वाराणसी का
विस्तार 12 योजन था और यह भारत की सबसे बड़ी नगरी थी। इसके राजा भी बड़े
प्रतापी और महत्वाकांक्षी थे। काशी जनपद तथा कोशल जनपद में प्रायः संघर्ष
होता रहता था। बाद में कोशल राजाओं ने इसे जीत लिया और अपने राज्य के
अन्तर्गत कर लिया।
2. कोशल - इसके अन्तर्गत अवध का प्रदेश आता था। यह उत्तर में नेपाल से लेकर
दक्षिण में सई नदी तथा पश्चिम में पंचाल से लेकर पूर्व में गण्डक नदी तक फैला
हुआ था। इस महाजनपद की राजधानी श्रावस्ती थी, कोशल की प्रसिद्ध नगरी साकेत
(अयोध्या) थी, इसमें ऐक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा राज्य करते थे। छठी
शताब्दी ई. पूर्व के प्रारम्भ में कोशल का राजा महाकोशल था जिसकी कन्या का
विवाह मगध श्रेणिय बिम्बिसार के साथ हुआ था। इस समय तक काशी जनपद की शक्ति
क्षीण हो चुकी थी। उसके अनेक प्रदेश कोशल की अधीनता में आ चुके थे। महाकोशल
के बाद उसका पुत्र प्रसेनजित श्रावस्ती के राजसिंहासन पर बैठा था। उसके
शासनकाल में न केवल सम्पूर्ण काशी जनपद कोशल की अधीनता में आ गया अपितु, अनेक
गणराज्यों की स्वतंत्रता भी उसके द्वारा समाप्त की गयी। शाक्यगण और मल्लगण को
जीतकर उनको अपने अधीन कर लिया था। महात्मा बुद्ध अनेक बार कोशल की राजधानी
श्रावस्ती गये थे। प्रसेनजित ने भी अपनी पुत्री का विवाह बिम्बिसार के पुत्र
अजातशत्रु के साथ कर दिया था ताकि कोशल और मगध में संघर्ष न होने पाये।
3. अंग - यह महाजनपद मगध के पूर्व था जो आज भागलपुर के समीप है। मगध और अंग
के बीच चम्पा नदी बहती थी जो इन दोनों जनपदों की सीमा का कार्य करती थी अंग
की राजधानी चम्पा थी। बिम्बिसार के समय में अंग को मगध राज्य के अन्तर्गत
मिला लिया गया था। ब्रह्मदत्त और अंग के कुछ अन्य राजाओं ने मगध के समसामयिक
राजाओं को पराजित किया था। अन्त में इस संघर्ष में मगध ही विजयी हुआ था ।
दक्षिणी अनाम के क्षेत्र में भारतीयों के एक उपनिवेश का नाम भी चम्पा था।
निःसन्देह अंग प्रदेश की राजधानी के नाम पर ही उसका यह नाम रखा गया था। अंग
प्राच्य जनपद था और उसमें भी साम्राज्य विस्तार की प्रवृत्ति विद्यमान थी।
वहाँ भी ऐसे राजा हुए जिन्होंने पड़ोस के राज्यों को जीतकर अपने अधीन करने का
प्रयत्न किया। विधुर पण्डित जातक में राजगृह को अंग जनपद के अन्यतम नगर के
रूप में उल्लिखित किया गया है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व मध्य तक अंग मगध की
अधीनता में आ चुका था। बाद में अंग मगध राज्य के अन्तर्गत हो गया था और फिर
कभी स्वतन्त्रता प्राप्त न कर सका।
4. मगध - इस महाजनपद में पटना और गया के आधुनिक जिले सम्मिलित थे, इसकी
राजधानी गिरिब्रज थी| इस राज्य के उत्तर में गङा नदी और पश्चिम में सोण नदी
बहती थी। सीमा थी और दक्षिण में विंध्याचल की पर्वत माला थी। कालान्तर में यह
उत्तरीय भार शक्तिशाली महाजनपद बन गया था। कछ समय पश्चात मगध की राजधानी
राजगह हो गयी स्थिति वर्तमान में राजगिरि के समीप ही थी। महाभारत के समय मगध
का राजा जरासन्ध था, जो बृहद्रथ के वंश का था । इन्द्रप्रस्थ में पाण्डवों के
उत्कर्ष के कारण जब जरासन्ध का पतन हुआ तो मगध की शक्ति क्षीण हो गयी थी।
बृहद्रथ वंश का अन्तिम राजा रिपुञ्जय था। उसके अमात्य पुलिक ने स्वामी के
विरुद्ध विद्रोह कर उसे मार डाला और अपने पुत्र को मगध के राजसिंहासन पर आसीन
कराया। पुराणों में पुलिक को 'प्रणत-सामन्त', 'नयवर्जित' विशेषणों से विभूषित
किया गया है। प्राचीन साहित्य में भट्टिय और बिम्बिसार दोनों को श्रेणिक कहा
गया है। बिम्बिसार का उत्तराधिकारी राजा अजातशत्रु हुआ जिसने न केवल अवन्ति
के राजा के आक्रमण से मगध की रक्षा की थी, अपितु वज्जिसंध को परास्त कर
उत्तरी बिहार में अपनी शक्ति का विस्तार किया।
5. वृजि या वज्जि - डा. रिहस डेविड्स (Rhys Davids) का मत था है कि वज्जि
राज्य में आठ कबीले सम्मिलित थे। लिच्छवि, विदेह और सात्रिक इनमें मुख्य थे।
विदेह की राजधानी मिथिला, लिच्छवि की राजधानी वैशाली और सात्रिक की राजधानी
कुण्डग्राम थी। आधुनिक बिहार के अन्तर्गत ये सारे राज्य आते थे। महात्मा
बुद्ध के समय वज्जि स्वतन्त्र राज्य था परन्तु बाद में अजातशत्रु ने इसे अपने
राज्य में मिला लिया था। सूत्र कृदंग के एक सन्दर्भ में उग्र, भोग, ऐक्ष्वाक
और लिच्छवियों और ज्ञातकों के साथ उल्लेख किया गया है। वर्तमान समय के बिहार
राज्य में गंगानदी के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में उत्तरी बिहार के जो
राज्य हैं वे तिरहुत कहलाते हैं। वैशाली अत्यन्त भव्य और समृद्धशाली नगरी थी।
जातक कथाओं के अनुसार वैशाली तीन प्राचीरों से घिरी हुयी थी और प्रत्येक
प्राचीर एक दूसरे से दूरी पर स्थित थे। इन प्राचीरों में तीन विशाल प्रवेश
द्वार थे, जो ऊंचे तोरणों और बुर्जों से सुशोभित थे। वज्जिसंघ और उसके
अन्तर्गत गणराज्यों की स्वतन्त्रता का अन्त मगध के राजा अजातशत्रु द्वारा
अपने अमात्य वत्स की सहायता से किया गया।
6. मल्ल - मल्ल राज्य एक संघीय प्रजात आत्मक राज्य था। इस राज्य के मल्लों की
दो शाखाएँ थीं - एक कुशीनगर की मल्ल शाखा और दूसरी पावा की मल्ल शाखा। इस संघ
राज्य की स्थिति वज्जिसंघ के ठीक पश्चिम में थी। पूर्वी गोरखपुर में कसिया के
समीप एक विशाल स्तूप में एक ताम्रपत्र उपलब्ध हुआ, जिस पर 'परिनि वाणि चैल्य
ताम्र पर इति' शब्द उत्कीर्ण हैं। इससे अब स्पष्ट हो गया है कि जहाँ अब कसिया
(कुशीनगर) है वहीं पर प्राचीन समय में कुशीनगर की स्थिति थी और यही मल्लगण
प्रदेश था। यह महत्व की बात है कि बुद्ध काल से पूर्व मल्लों में राजतन्त्र
शासन था। पावा की स्थिति के सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। परन्तु
यह नगरी भी गोरखपुर के क्षेत्र में ही थी, और बुद्ध का मल्ल संघ इसी प्रदेश
में विद्यमान था, मल्लसंघ की स्वतन्त्रता का अन्त भी मगध के राजा अजातशत्रु
द्वारा किया गया था।
7. वत्स - यह चेदि राज्य के उत्तर पूर्व में यमुना नदी के किनारे स्थित था।
इसकी राजधानी कौशाम्बी अथवा कोसंबी (इलाहाबाद से 30 मील दूर आधुनिक कोसम का
गाँव) थी। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार जनमेजय के वंशज निचक्षु के समय में
हस्तिनापुर गंगा की बाढ़ में बह गया था, जिस कारण विवश होकर राजा निचक्षु
कौशाम्बी में जा बसा था। इसी भरत कुल में बुद्ध के समकालीन नृपति उद्यन के
पिता परन्तप हुए थे। संस्कृत साहित्य में उद्यन सम्बन्धी कहानी का वर्णन
मिलता है, जिसका अवन्ति के राजा प्रद्योत से निरन्तर संघर्ष रहा। इसी संघर्ष
को लेकर महाकवि भास ने 'स्वप्नवासवदत्ता' और 'प्रतिज्ञायोगन्धरारायण' नामक
नाटक लिखे थे, उदयन जहाँ अत्यन्त वीर था, वहाँ चतुर राजनीतिज्ञ भी था।
प्राचीन अनुश्रुति के अनुसार उदयन ने पूर्व में वंग और कलिंग की विजय की थी
और दक्षिण में चोल और केरल राज्यों की कथासरित्सागर में उसकी दिग्विजय का जो
वर्णन है उसमें लाल देश (दक्षिण गुजरात) सिन्ध, पारसीक आदि देशों को भी जीते
जाने का उल्लेख है। उदयन के पश्चात् चार अन्य राजाओं ने कौशाम्बी में शासन
किया, परन्तु ये राजा अधिक समय तक अपनी स्वतन्त्रता को कायम न रख सके। मगध के
सम्राटों ने वत्स देश को जीतकर अपने अधीन कर लिया था।
8. चेदि अथवा चेति - इस काल के चेति प्राचीनकाल के चेति ही हैं। चेतियों की
भूमि यमुना के समीप थी और इसका प्रसार प्रायः बुन्देलखण्ड और उसकी समीपवर्ती
भूमि पर था। इसकी राजधानी शक्तिमती नगरी थी, जो शक्तिमती (केन) नदी के तट पर
स्थिति थी। जातक कथाओं मे इसी को 'सोत्थिवती' नगरी कहा गया है। पौराणिक
जनश्रुति के अनुसार हस्तिनापुर के भरत वंश में उत्पन्न राजा वसु ने चेदि को
जीतकर अपने अधीन किया था और उसके वंशज वहाँ चिरकाल तक शासन करते रहे थे।
शिशुपाल यहीं का राजा था, महाभारत से इसकी जानकारी मिलती है। बौद्धकाल तक भी
चेदि एक स्वतन्त्र व पृथक राज्य था जो बाद में मगध के विजिगीषु राजाओं द्वारा
जीत लिया गया।
9. पंचाल - इस जनपद राज्य का विस्तार रुहेलखण्ड और गंगा-यमुना दोआब के एक भाग
पर था। कोशल तथा वत्स के पश्चिम और चेदि के उत्तर में यह राज्य स्थित था। यह
जनपद दो भागों में विभक्त था, उत्तर पंचाल तथा दक्षिण पंचाल। उत्तर पंचाल की
राजधानी अहिछत्र और दक्षिण पंचाल की राजधानी काम्पिल्य थी। उत्तर प्रदेश में
बरेली जिले में आंवला नामक कस्बा है, जिससे सात मील के लगभग दूर प्राचीन
अहिछत्र के अवशेष अभी भी विद्यमान हैं। काम्पिल्य गंगा के तट पर कन्नौज के
समीप था। दक्षिण और उत्तर पंचाल जनपदों को गंगा नदी विभक्त करती थी। अत्यन्त
प्राचीनकाल में कुरु और पंचाल भारतीय धर्म, सभ्यता और संस्कृति के महत्वपूर्ण
केन्द्र थे।
विदेह के राजा जनक की राजसभा में जो विद्वान दार्शनिक एकत्र होते थे, उनमें
कुरु पंचाल के ब्राह्मणों का स्थान सर्वोच्च था। महाभारत के समय में पंचाल का
राजा द्रुपद था जिसकी कन्या द्रौपदी का विवाह पाण्डव पुत्र अर्जुन के साथ हुआ
था। एक अन्य राजा दुर्मुख भी हुए थे। छठी सदी के आरम्भ तक पंचाल में
राजतन्त्र शासन की सत्ता थी। प्रसिद्ध जैन ग्रन्थ उत्तरा अध्ययन सूत्र में
काम्पिल्य के राजा संजय ने शासन का परित्याग कर मुनि व्रत स्वीकार कर लिया था
परन्त बाद में विदेह जनपद के समान पंचाल से भी राजतन्त्र शासन का अन्त हो गया
और वहाँ गणतन्त्र स्थापित हुआ। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में पंचाल की गणना
राजशद्वीपत्री विसंघों में की गयी है।
10. कुरु - कुरुओं का देश दिल्ली के चातुर्दिक था। इस महाजनपद की राजधानी
इन्द्रप्रस्थ थी। इस नगर की स्थिति वर्तमान दिल्ली के समीप यमुना नदी के तट
पर थी। मेरठ, दिल्ली और उसके समीप के प्रदेश जनपद के अन्तर्गत थे। मूलसोम
जातक के अनुसार इसमें 300 संघ थे। महाभारत काल का हस्तिनापुर नामक नगर कदाचित
इसी राज्य का अंग था क्योंकि हस्तिनापुर का उल्लेख अनेक स्थानों पर मिलता है।
जैन सूत्रों के अनुसार इच्छवाकु नामक राजा कुरु देश का राजा था। जातक कथाओं
के अनुसार सुत, सोम, कौरव और धनंजय कुरु देश के राजा थे। यहाँ पहले राजतन्त्र
शासन था पर बाद में गणतन्त्र व्यवस्था स्थापित हो गयी थी। महात्मा बुद्ध के
समय यह जनपद गणतन्त्र था, परन्तु इसका प्रभाव क्षीण होने लग गया था। दष्यन्त
तथा भरत जैसे प्रतापी राजा कुरु देश के ही थे।
11. मत्स्य अथवा मच्छ - मत्स्य भूमि यमुना के पश्चिम और कुरुओं के दक्षिण में
थी। इसकी राजधानी विराटनगर (वैराट, जैपुर राज्य) थी। महाभारत के अनुसार गहाज
नामक राजा ने चेदि तथा मत्स्य पर शासन किया था। पहले मत्स्य का राज्य चेति
राज्य के अधीन हो गया था। इस कारण दोनों का एक ही शासन था। बाद में मगध के
अधीन कर लिया गया। यह क्षेत्र यमुना नदी के पश्चिम तथा कुरु के दक्षिण-पश्चिम
में स्थित था और अलवर, जयपुर और भरतपुर के प्रदेश इसके अन्तर्गत थे। अत्यन्त
प्राचीनकाल में इसमें भी अनेक राजा ऐसे हुए जो बड़े प्रतापी थे और उन्होंने
अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान कर चक्रवती पद भी प्राप्त किया था। शतपथ ब्राह्मण
के अनुसार ऐसा एक राजा ध्वसन द्वैतवन था। परन्तु मत्स्य का राजनीतिक इतिहास
प्रायः अज्ञात है। ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्ध युग तक भी इस मत्स्य राज्य की
पृथक व स्वतन्त्र रूप से सत्ता कायम रही थी और उत्तरापथ के अन्य राज्यों के
समान मगध के विजिगीष राजाओं ने ही उसकी स्वतन्त्रता का अन्त किया था।
12. सूरसेन - मत्स्य राज्य के दक्षिण में सूरसेन राज्य था। सूरसेनों के जनपद
राज्य की राजधानी मथुरा थी। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अवन्तिपुत्र वहां का
राजा था। अवन्तिपुत्र बुद्ध का समकालीन था। वहाँ पर पहले गणतन्त्र राज्य था,
बाद में इस जनपद में राजतन्त्र स्थापित हो गया। महाभारत के समय का प्रसिद्ध
अन्धक वृष्णि संघ इसी प्रदेश में स्थित था। महान राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ
भगवान
श्रीकृष्ण इसी संघ से जुड़े थे। अनेक बार अन्धक वृष्णि संघ पर आक्रमण किये
गये थे और इन्हीं आक्रमणों से परेशान होकर अन्धक वृष्णि संघ सूरसेन को छोड़कर
सुदूर द्वारिका में जा बसा था। ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में किसी समय अन्धक
वृष्णि लोग पुनः सूरसेन में आकर बसे थे और उनके जनपद से गणतन्त्र शासन का
अन्त होकर वंशानुक्रमानुगत राजाओं का शासन स्थापित हो गया था। मज्जिम निकाय
में सूरसेन के एक राजा का उल्लेख है जिसका नाम अवन्तिपुत्र था। शाक्यमुनि के
अन्यतम शिष्यों में महाकश्यप इसका समकालीन था। इसी कारण मथुरा के क्षेत्र में
बौद्ध धर्म का प्रवेश हुआ था। उत्तरी भारत के अन्य जनपदों के समान सूरसेन की
स्वतन्त्रता का भी मगध द्वारा अन्त किया गया।
13: अश्मक (अस्सक) - महात्मा बुद्ध के समय यह जनपद गोदावरी नदी के समीपवर्ती
प्रदेश में था। इसकी राजधानी पोतल अथवा पोतलि नगरी थी। बुद्ध काल से पूर्व
अवन्ति से इसका संघर्ष हुआ और कुछ समय पश्चात् यह अवन्ति के अधीन हो गया था।
पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार अश्मक के राजा ऐक्ष्वाकु वंश के थे और अश्मक के
नाम से एक ऐक्ष्वाकु कुमार द्वारा ही इस राज्य की स्थापना की गयी थी। बौद्ध
साहित्य में अश्मक के अनेक राजाओं के नाम उल्लिखित हैं, जिससे ज्ञात होता है
कि बौद्ध युग में एक राज्य में राजतन्त्र शासन की सत्ता थी।
14. अवन्ति - प्राचीनकाल का अवन्ति वर्तमान भारत का मामूली प्रान्त था। इसकी
राजधानी उज्जैन या उज्जैयिनी थी। अवन्ति के दो प्रमुख भाग थे - उत्तरी अवन्ति
तथा दक्षिणी अवन्ति। दक्षिणी अवन्ति की राजधानी महिष्मती थी। बौद्धकाल में यह
महाजनपद बहुत शक्तिशाली था और इसके राजा पड़ोस के अन्य राज्यों को जीतकर
साम्राज्य निर्माण में तत्पर थे। अवन्ति का राजा बुद्ध का समकालीन महासेन
प्रद्योत था, जो वत्स के राजा उदयन को जीतकर अपने अधीन करने के लिए
प्रयत्नशील था। मगध के प्रतापी राजा शिशुनाग नन्दिवर्द्धन ने आगे चलकर अवन्ति
की स्वतन्त्र सत्ता का अन्त किया था। अन्य प्रमाणों के अनुसार यहाँ हैह्यों
ने राज किया था।
15. गन्धार - यह आधुनिक अफगानिस्तान का पूर्वी भाग था। इस महाजनपद की राजधानी
तक्षशिला (आधुनिक पाकिस्तान में रावलपिण्डी में टैक्सला) थी। इसका प्रसार
संभवतः पश्चिमी पंजाब और काश्मीर में भी था। बौद्धकाल में यह स्थान शिक्षा का
प्रधान केन्द्र था। रावलपिण्डी तथा पेशावर के प्रदेश इस महाजनपद में सम्मिलित
थे। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार गन्धार के राजा द्रुह्यु के वंशज थे।
द्रुह्यु का एक वंशज गन्धार था जिसने भारत के उत्तर में गन्धार राज्य की
स्थापना की थी। इस जनपद के राजाओं के विषय में अनेक बातें साहित्य में
विद्यमान हैं। छठी शताब्दी ई. पूर्व के मध्य में गन्धार के राजसिंहासन पर
युक्कसति विराजमान था, जो मगधराज बिम्बिसार का समकालीन था। गन स्वतन्त्रता का
अन्त पहले पर्शिया (ईरान) के राजाओं द्वारा किया गया और फिर मैसेडोनिया के
आक्रान्ता सिकन्दर द्वारा हआ। बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसे मगध
साम्राज्य में सम्मिलित कर दिया था।
16. कम्बोज - यह गन्धार राज्य का पड़ोसी राज्य था। दोनों के नाम अभिलेखों तथा
साहित्य में प्रायः साथ-साथ मिलते हैं। इसकी राजधानी हाटक थी। अनेक विद्वानों
ने कम्बोज को काश्मीर के पुँछ प्रदेश के दक्षिण व दक्षिण-पूर्व में स्थित
प्रतिपादित किया है। महाभारत के अनसार कम्बोज की राजधानी का नाम राजपुर था,
इसका उल्लेख ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा विवरण में किया है। कनिंघम ने इस
राजपुर को काश्मीर के दक्षिण में राजौरी से मिलाया है, कम्पोज में पहले
वंशानुगत राजाओं का राज्य था पर बाद में यहां गणतन्त्र शासन स्थापित हो गया।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में इसकी गणना वार्तागारभोपजीवि ग्रन्थों में की गयी है।
इसके दो मुख्य नगर राजपुर और द्वारका विख्यात थे।
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