इतिहास >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 6 - मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट
कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को बताइए।
2. बिन्दुसार के साम्राज्य विस्तार को स्पष्ट कीजिए।
3. मौर्य सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार व उसकी सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
मौर्य सम्राटों द्वारा किया गया साम्राज्य विस्तार
भारतीय इतिहास में मौर्य वंश के शासकों में क्रमशः चन्द्रगुप्त मौर्य,
बिन्दुसार तथा अशोक शक्तिशाली व महान सम्राट हुए जिन्होंने मौर्य साम्राज्य
को विस्तृत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मौर्य वंश के इन शासकों
द्वारा किये गये साम्राज्य विस्तार व उनकी सीमओं को निम्न प्रकार से समझा जा
सकता है :
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार : चन्द्रगुप्त मौर्य अपने वंश का
महान विजेता और साम्राज्य निर्माता था। उसका साम्राज्य विस्तार सम्पूर्ण भारत
में था। प्लूटार्क के विवरण से ज्ञात होता है कि "उसने छ: लाख की सेना लेकर
सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और उस पर अपना अधिकार कर लिया। मगध साम्राज्य के
उत्कर्ष की जो परम्परा बिम्बिसार के समय से प्रारम्भ हुई थी, चन्द्रगुप्त के
समय में वह पराकाष्ठा पर पहुंच गई। उसका विशाल साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में
ईरान की सीमा से लेकर दक्षिण में वर्तमान उत्तरी कर्नाटक तक विस्तृत था।
पूर्व में मगध से लेकर पश्चिम में सुराष्ट्र तथा सोपारा तक का सम्पूर्ण
प्रदेश उसके साम्राज्य के अधीन था।
इतिहासकार स्मिथ के अनुसार हिन्दुकुश पर्वत भारत की सामाजिक सीमा थी। यूनानी
लेखक इसे पैरोपेनिसस अथवा 'इण्डियन काकेशस' कहते थे। यही चन्द्रगुप्त तथा
सेल्युकस के साम्राज्यों की सीमा थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को हराकर
भारत की उस सामाजिक सीमा के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था जिसे प्राप्त करने
के लिये मुगल तथा अंग्रेज शासक व्यर्थ का प्रयास करते रहे।
बिन्दुसार 'अमित्रघात' का साम्राज्य विस्तार : चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु
के पश्चात् उसके पुत्र बिन्दुसार ने मौर्य वंश की गद्दी सम्भाली। यद्यपि
बिन्दुसार की विजयों के विषय में कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं होता, तथापि
तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के विवरण से यह ज्ञात होता है कि "उसने 6 नगरों
तथा उनके राजाओं को नष्ट कर पूर्वी और पश्चिमी समुद्रों के बीच के सम्पूर्ण
भाग पर अधिकार कर लिया था। यह विवरण कहाँ तक सत्य है, किसी ठोस प्रमाण के
अभाव में यह निश्चित कह पाना दुष्कर है परन्तु यह सत्य है कि बिन्दुसार ने
अपने पिता से जिस विशाल साम्राज्य को उत्तराधिकार में प्राप्त किया था, उसे
अक्षुण्ण बनाये रखा।
अशोक 'प्रियदर्शी' का साम्राज्य विस्तार : बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात्
उसका सुयोग्य पुत्र अशोक विशाल मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। वह एक महान
साम्राज्य निर्माता था। उसके अभिलेखों के आधार पर हम निश्चित रूप से उसकी
साम्राज्य सीमा का निर्धारण कर सकते हैं। शाहबाजगढ़ी (पेशावर), मानसेहरा
(हज़ारा), शरेकुना (कन्दहार), लघमान (जलालाबाद) आदि स्थानों से अशोक के
अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इन अभिलेखों के प्राप्ति-स्थानों से यह स्पष्ट होता
है कि उसके साम्राज्य में हिन्दूकुश, एरिया, आरकोसिया तथा जेड्रोसिया
सम्मिलित थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि अशोक के साम्राज्य में अफगानिस्तान का
एक बड़ा भाग सम्मिलित था।
रुमिन्ददेई तथा निग्लीवा के स्तम्भ लेखों से ज्ञात होता है कि उत्तर में
हिमालय क्षेत्र का एक बड़ा भू-भाग भी उसके साम्राज्य का अंग था। दक्षिण की ओर
वर्तमान कर्नाटक राज्य के ब्रह्मगिरि, मास्की, जटिंग-रामेश्वरम् तथा सिद्धपुर
से उसके लघु शिलालेख मिलते हैं। इनसे उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा कर्नाटक
राज्य तक जाती है। इसी प्रकार सुदूर दक्षिण के भाग को छोड़कर सम्पूर्ण भारत
अशोक के अधिकार में था। तेरहवें शिलालेख में अशोक के समीपवर्ती राज्यों की
सूची में योन, कम्बोज, गन्धार, रठिक, भोजक, पितिनिक, आन्ध्र, नाभक, पारिमिदस
आदि प्रदेशों के नाम मिलते हैं। इनमें योन (यवन), कम्बोज तथा गन्धार
उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर स्थित थे। भोज बरार और कोंकण में तथा रठिक (राष्टिक)
महाराष्ट्र में निवास करते थे। पितिनिक पैठन में तथा आन्ध्र राज्य कृष्णा और
गोदावरी नदियों के बीच स्थित था। नाभक राज्य पश्चिमी तट तथा उत्तरी पश्चिमी
सीमा प्रान्त के बीच कहीं बसा था। इसी प्रकार पश्चिम में काठियावाड़ में
जूनागढ़ के समीप गिरनार पहाड़ी तथा उसके दक्षिण में महाराष्ट्र के थाना जिले
के सोपारा नामक स्थान से उसके शिलालेख मिलते हैं। उड़ीसा के दो स्थानों -
धौली तथा जौगढ़ से भी उसके शिलालेख मिलते हैं। इन सभी अभिलेखों की
प्राप्ति-स्थानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अशोक का साम्राज्य
उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त (अफगानिस्तान) से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तथा
पश्चिम में काठियावाड़ से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत था।
कल्हण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि उसका कश्मीर पर भी अधिकार था। उसके
साम्राज्य की उत्तरी सीमा हिमालय पर्वत तक जाती थी। इस प्रकार वह अपने समय के
विशालतम साम्राज्य निर्माताओं में से एक था।
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