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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


प्रश्न 5. कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं ?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कौटिल्य कौन था ?
2. कौटिल्य के विषय में आप क्या जानते हैं ?
3. मैगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर -कौटिल्य

कौटिल्य को इतिहास में विष्णुगुप्त तथा चाणक्य इन दो नामों से भी जाना जाता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में कौटिल्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ब्राह्मण तथा बौद्ध ग्रन्थों से उसके जीवन के विषय में जो सूचना मिलती है उससे स्पष्ट होता है कि वह तक्षशिला के ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न हुआ था। वह वेदों तथा शास्त्रों का ज्ञाता था और तक्षशिला के शिक्षा केन्द्र का प्रमुख आचार्य था। परन्तु वह स्वभाव से अत्यन्त रूढ़िवादी तथा क्रोधी था। पुराणों में उसे "द्विजर्षभ' (श्रेष्ठ ब्राह्मण) कहा गया है। कहा जाता है एक बार नन्द राजा ने अपनी यज्ञशाला में उसे अपमानित किया जिससे क्रोध में आकर उसने नन्द वंश को समूल नष्ट कर डालने की प्रतिज्ञा कर डाली और चन्द्रगुप्त मौर्य को अपना अस्त्र बनाकर उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

जब चन्द्रगुप्त मौर्य भारत का एकछत्र सम्राट बना तो कौटिल्य प्रधानमंत्री तथा प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन हुआ। जैन ग्रन्थों से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त की मृत्यु के बाद बिन्दुसार के समय में भी चाणक्य कुछ काल तक प्रधानमंत्री बना रहा। बाद में उसने शासन-कार्य त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया तथा वन में तपस्या करते हुए उसने अपने जीवन के अन्तिम दिन व्यतीत किये। वह राजनीतिशास्त्र का प्रकाण्ड पडित था और उसने शासकीय प्रणाली को नियमबद्ध करने के लिए  'अर्थशास्त्र' नामक अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की। यह उस समय के राजकीय शासन पर उपलब्ध प्राचीनतम रचना है।

मेगस्थनीज

मेगस्थनीज सेल्यूकस द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य की राज्य सभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था। इसके पूर्व वह आरकोसिया के क्षत्रप के दरबार में सेल्यूकस का राजदूत रह चुका था। सम्भवतः वह ईसा पूर्व 304 से 299 के बीच किसी समय पाटलिपुत्र की सभा में उपस्थित हुआ था। मेगस्थनीज ने काफी समय तक मौर्य दरबार में निवास किया। भारत में रहकर उसने जो कुछ भी देखा सुना उसे उसने 'इण्डिका' नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया। दुर्भाग्यवश यह ग्रन्थ अपने मूलरूप में आज प्राप्त नहीं है तथापि उसके अंश उद्धरण रूप में बाद के अनेक यूनानी-रोमीय लेखकों - एरियन, स्ट्रेबो,' प्लिनी की रचनाओं में मिलते हैं। स्ट्रेबो ने मेगस्थनीज के वृतान्त को पूर्णतया असत्य एवं अविश्वसनीय कहा है।

मेगस्थनीज के विवरण से पता चलता है कि मौर्य युग में शन्ति - समृद्धि व्याप्त थी। जनता पूर्णरूप से आत्मनिर्भर थी तथा भूमि बहुत उर्वर थी। लोग नैतिक दृष्टि से उत्कृष्ट थे तथा सादगी का जीवन व्यतीत करते थे। भारतीय साहसी, वीर तथा सत्यवादी होते थे। उनकी वेशभूषा सादी होती थी। गेहूँ तथा जौ प्रमुख खाद्यान्न थे।

मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त की राजधानी पाटलिपुत्र की काफी प्रशंसा की है। वह लिखता है कि गंगा तथा सोन नदियों के संगम पर स्थित यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा नगर था। यह 80 स्टेडिया (16 किमी.) लम्बा तथा 15 स्टेडिया (3 किमी.) चौड़ा था। इसके चारों ओर 185 मीटर चौड़ी तथा 30 हाथ गहरी खाई थी। नगर चारों ओर से एक ऊँची दीवार से घिरा था जिसमें 64 तोरण (द्वार) तथा 570 बुर्ज थे। नगर का प्रबन्ध नगर परिषद् द्वारा होता था जिसमें पाँच-पाँच सदस्यों वाली छ: समितियाँ काम करती थीं। नगर के मध्य चन्द्रगुप्त का विशाल राजप्रासाद स्थित था।

मेगस्थनीज के विवरण से मौर्य सम्राट की कर्मठता तथा कार्यकशलता की जानकारी मिलती है। वह लिखता है कि राज सदा प्रजा के आवेदनों को सुनता रहता था। दण्ड विधान कठोर थे। अपराध बहुत कम होते थे। जबकि सामान्यतः लोग घरों तथा सम्पत्ति की रखवाली नहीं करते थे। सम्राट अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा का विशेष ध्यान रखता था। मेगस्थनीज के विवरण से मौर्ययुगीन भारत में व्यापार व्यवसाय के भी काफी विकसित दशा में होने का संकेत मिलता है। उसने व्यापारियों के एक बड़े वर्ग का उल्लेख किया है जिसका समाज में अलग संगठन था।

इस प्रकार मेगस्थनीज के विवरण के आधार पर चन्द्रगुप्त मौर्य समय की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा पर कुछ प्रकाश पड़ता है।

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