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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


प्रश्न 3. सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय
प्रश्न 1. मौर्य शासक बिन्दुसार के विषय में आप क्या जानते हैं ?
2. चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद किसने शासन सम्भाला ?
3. बिन्दुसार की दक्षिण विजय का वर्णन कीजिए।
4. बिन्दुसार के शासनकाल में हुए विद्रोह पर टिप्पणी लिखिए।
5. बिन्दुसार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
6. शासक के रूप में बिन्दुसार का मूल्याँकन कीजिए।

उत्तर -

बिन्दुसार (Bindusar)

चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार "अमित्रधाक" उपाधि धारण कर 298 ई. पू. में सिंहासन पर आसीन हुआ। इसके विषय में अधिक जानकारी नहीं मिलती। ग्रीक लेखकों ने 'अभिन्न चेरीज' (अधेनवस) अथवा अल्लिट्रोचेदिन एट्री (स्ट्रैबो) लिखा है। यह शब्द प्रमाणतः संस्कृत अभिन्नघात अथवा अभिन्नखाद का अपभ्रंश जान पड़ता है।
 
दक्षिण विजय - कुछ विद्वानों का मत है कि दक्षिण विजय बिन्दुसार ने की थी। उनका यह वृत्तान्त तारानाथ ने अपने शब्दों में इस प्रकार लिखा है - "अपने को पूर्व और पश्चिमी समुद्र के बीच के भूखण्ड का स्वामी बना लिया।' यह निश्चित है कि अशोक ने मैसूर की उत्तरी सीमा के भू-भाग पर शासन किया था। यद्यपि विजय उसने केवल कलिंग पर की थी। अतः दक्षिण की विजय उसके पिता या पितामह ने की होगी, चन्द्रगुप्त का चरित्र ओजस्वी, उदात्त और युद्धप्रिय था और जै उसका सम्बन्ध मैसूर से स्थापित हो जाता है, सम्भवतः यह विजय उसने ही की होगी।

जैन साहित्य के अनुसार बिन्दुसार की माता का नाम दुर्धरा था। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उसकी पत्नी का नाम धम्मा थ। दीपवंश या महावंश उसकी 16 रानियाँ और 101 पुत्रों का उल्लेख करते हैं। बिन्दुसार के पुत्रों में सबसे बड़ा अशोक और छोटा सुसीम था।

राज्यकाल में विद्रोह - बिन्दुसार का शासनकाल तूफान और आपत्तियों का था। तक्षशिला में विद्रोह हो गया था जिसे उसके ज्येष्ठ पुत्र अशोक ने दबाया था और दूसरा विद्रोह बिन्दुसार की मृत्यु के बाद हुआ जिसे दबाया न जा सका। चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् चाणक्य ने बिन्दुसार की भी मदद की थी और उसके सामन्तों को मारकर उसे चक्रवर्ती बना दिया था। इसका जोरदार समर्थन तिब्बती इतिहासकार तारानाथ ने किया है। ग्रीक इतिहासकारों ने इसे एक आमोद-प्रमोद का प्रिय शासक स्वीकार किया है।

विदेशों से सम्पर्क - बिन्दुसार ने अपने पिता चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह विदेशी राजाओं से मैत्री की थी। उसका सम्बन्ध ग्रीक राजाओं से बराबर बना रहा। बिन्दुसार और एन्टिओकस प्रथम सोटर के बीच एक अद्भुत पत्र व्यवहार इस सत्य की प्रतिष्ठा करता है। इससे सिद्ध होता है कि बिन्दुसार ने अपने ग्रीक मित्र से मधुर मदिरा, अंजीर और एक दार्शनिक मांगा था, ग्रीक राजा ने उसे उत्तर में लिखा था - "पत्र की प्रथम दो वस्तुओं को भेजने में बड़ी प्रसन्नता होगी परन्तु दार्शनिक वह नहीं भेज सकेगा, क्योंकि उसके देश का कानून इस प्रकार के व्यापार का निषेध करता है। सीरिया के सम्राट ने बिन्दुसार के दरबार में भी डेइमेकस नाम का राजदूत भेजा था।"

बिन्दुसार की मन्त्रिपरिषद - दिव्यावदान के अनुसार बिन्दुसार के मंत्रियों की संख्या 500 थी। तारानाथ के अनुसार जैन ग्रन्थ परिशिष्टपर्वन में आचार्य चाणक्य का महामन्त्री के रूप में उल्लेख मिलता है जो किसी बात पर नाराज होकर जंगल में तपस्या करने चला गया था, परन्तु बिन्दुसार के द्वारा क्षमा मांगने पर वह राजधानी वापस चला आया था।

शासनकाल - पुराणों के अनुसार बिन्दुसार का शासनकाल 25 वर्ष का था अतः उसने 298 ई. पूर्व से 273 ई. पूर्व तक राज्य किया था। बिन्दुसार ने दार्शनिकों, विद्वानों, धर्माचार्यों, सुयोग्य मंत्रियों तथा विदेशी राजदूतों को अपने दरबार में स्थान दिया था। सम्भवतः आजीवन सम्प्रदाय की ओर उसका झुकाव था फिर भी वह इस विशाल साम्राज्य को मजबूत बनाये रखने में असमर्थ रहा।

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