इतिहास >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
|
0 |
बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
चन्द्रगुप्त मौर्य का मूल्यांकन
(Evaluation of Chandra Gupta Mauraya)
चन्द्रगप्त मौर्य ने एक साधारण स्थिति से ऊपर उठकर सम्राट की पदवी धारण की
थी। यह उसकी प्रतिभा सम्पन्नता की द्योतक है जिसने सम्पूर्ण भारत में बिखरे
हुए छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर एकता के सूत्र में बांधा। यह उसकी वीरता एवं
शौर्य का द्योतक है। अत: निम्नलिखित आधार पर उसके चरित्र का मूल्यांकन कर
सकते हैं -
1. कुशल सम्राट - चन्द्रगुप्त ने जिन परिस्थितियों में मगध का सिंहासन
प्राप्त किया वह अपने आप में अद्भुत घटना है। उसने राज्यारोहण के पश्चात् एक
कुशल प्रशासक की भाँति प्रजा की स्थिति को समझा और उनकी समस्याओं का निराकरण
किया। सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाँधना सबसे बड़ी कुशलता है तथा
जनता की इच्छानुकूल शासन प्रबन्ध स्थापित करना उसकी प्रशासनिक क्षमता की
निशानी है।
2. योग्य राजनीतिज्ञ - चन्द्रगुप्त मौर्य चाणक्य का शिष्य होने के कारण सद्यः
उत्पन्न बुद्धि वाला व्यक्ति था। उसने जब जैसी स्थिति समझी, उसी के अनुसार
अपनी नीतियों को परिवर्तित किया, जैसे - राज्य में गुप्तचरों की नियुक्ति
करना एवं सेल्यूकस से सन्धि स्थापित करना उसके कुशल राजनीतिज्ञ होने का
परिचायक है।
3. प्रजापालक - चन्द्रगुप्त मौर्य व्यक्तिगत रूप से प्रजा के कल्याण में रुचि
रखता था। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में प्रजाहित को सर्वोपरि माना है। अतः
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में प्रजाहित सम्बन्धी कार्य विभिन्न क्षेत्रों
में किये गये।
4. धर्मपरायण शासक - चन्द्रगुप्त प्रारम्भ में वैदिक धर्म का अनुयायी था
क्योंकि आचार्य चाणक्य कट्टर ब्राह्मण था, जिसने धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष
को मनुष्य के जीवन का अंग बतलाया है तथा यज्ञ आदि करने पर जोर दिया है।
परन्तु जैन ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त सच्चा जैनी था, जिसने अपने जीवन
का अन्तिम समय में एक आदर्श जैन संन्यासी की भांति तपस्या करते हुए अपने
प्राण त्याग दिये। परन्तु यदि उसके शासनकाल में देखा जाय तो उसने जनता को
धर्म के नाम पर परेशान नहीं किया था। अपितु अपनी-अपनी इच्छानुसार धर्म पालन
करने की पूरी छूट थी। अतः चन्द्रगुप्त मौर्य को धर्मपालक के रूप में स्वीकार
किया जा सकता है।
5. वीर सेनानायक - चन्द्रगुप्त मौर्य एक अतुलित शक्ति वाला योद्धा था जिसने
नन्दों तथा यवन सम्राट सेल्यूकस के विरुद्ध कुशल सेनानायक का परिचय दिया। अतः
उसे कुशल सैनिक के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
6. दूरदर्शी शासक - चन्द्रगुप्त मौर्य को दूरदर्शी सम्राट के रूप में स्वीकार
किया जा सकता है, क्योंकि उसने अपने विशाल शासन को केन्द्रित व्यवस्था के
आधार पर प्रशासित किया तथा मन्त्रियों की नियुक्ति कर विभिन्न विभागों में
समायोजन स्थापित किया। यह सब उसकी दूरदर्शिता को सूचित करता है।
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य निश्चय ही एक
महान सम्राट था, जिसकी गणना भारत के महानतम शासकों में की जाती है। वी. ए.
स्मिथ के अनुसार अठारह वर्ष का लम्बा समय लगाकर उसने मकदूनिया के सिपाहियों
को भारत की सीमाओं से खदेड़ा, विशेषकर पंजाब और सिंध की भूमि से उन्हें बाहर
धकेल दिया, सेल्यूकस की शक्ति को उसने क्षीण कर दिया और स्वयं उत्तरी भारत का
निर्विवाद सम्राट बन गया। अरियाना प्रदेश के बहुत बड़े भाग पर भी उसका अधिकार
था। ये सभी विशेषताएं उसे महानतम और सफलतम शासकों के बीच स्थान देती हैं।
|