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मगध साम्राज्य का उत्थान
(Rise of Magadh Empire)
दीर्घ एवं लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 - बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का
संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
बिम्बिसार से चन्द्रगुप्त मौर्य तक एक साम्राज्य के रूप में मगध के इतिहास पर
प्रकाश डालिए।
अथवा
C 600 ई.पू. में मगध के उत्कर्ष का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
मगध साम्राज्य पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय
1. बिम्बिसार के हर्यक वंश के होने के पक्ष में तर्क दीजिए।
2. बिम्बिसार की प्रशासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिए।
3. अजातशत्रु कौन था ? व्याख्या कीजिए।
अथवा अजातशत्रु के विषय में आप क्या जानते हैं ?
4. अजातशत्रु पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
5. बिम्बिसार पर एक लेख लिखिए।
6. बिम्बिसार कौन था ? वर्णन कीजिए।
7. महापद्मनन्द का वर्णन कीजिए।
8. नन्द वंश पर एक लेख लिखिये।
9. नन्द वंश के पतन के कारण लिखिए।
10. नन्द कौन थे ? महापद्मनन्द के जीवन का उल्लेख कीजिए।
11. महापदमनन्द की उपलब्धियों का विवरण दीजिए।
12. शनैः-शनैः किस प्रकार मगध साम्राज्य का उत्कर्ष हुआ ? स्पष्ट कीजिए।
13. मगध के क्रमशः उत्तरोत्तर विकास को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर— मगध का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। इसका महत्व महाभारत काल से रहा है।
यह स्थान राजनीतिक एवं धार्मिक क्रान्तियों के प्रमुख केन्द्र के रूप में रहा
है। यहाँ पर गुप्त और मौर्य जैसे शक्तिशाली वंशों का उद्भव और पराभव हुआ। मगध
राज्य वर्तमान बिहार राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित पटना और गया जिलों में
है। इसके उत्तर-पश्चिम मे गंगा और सोन नदियाँ हैं तथा दक्षिण में विन्ध्य और
उत्तर में चम्पा नदी है। प्राचीनकाल में इसे कुशाग्रपुर राजगृह, मगधपुर आदि
नाम से पुकारते थे।
ऋग्वेद और अथर्ववेद से भी मगध की प्राचीनता पर प्रकाश पड़ता है इसके साथ ही
साथ यजुर्वेद में मगध के भाटों का उल्लेख प्राप्त होता है।
डा. एच. सी. राय चौधरी के अनुसार, "मगध का प्राचीन राजवंशीय इतिहास
अन्धकारपूर्ण है। कहीं-कहीं योद्धा और कहीं राजनीतिज्ञ दिखाई दे जाते हैं
जिनमें से कुछ तो बिल्कुल काल्पनिक थे और कुछ वास्तविक नेता प्रतीत होते हैं।
वास्तविक इतिहास हर्यक वंशी बिम्बिसार से आरम्भ होता है।"
मगध साम्राज्य का संस्थापक वंश
(Founder Dynasty of Magadh Empire)
मगध साम्राज्य के संस्थापक बृहद्रथ वंश के विषय में विस्तृत जानकारी
निम्नलिखित साक्ष्य से होती है -
महाभारत एवं पुराण - इन दोनों ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि मगध साम्राज्य की
स्थापना बृहद्रथ ने की थी जो जरासन्ध का पिता और वसु का पुत्र था। रामायण के
अनुसार गिरिब्रज की स्थापना वसुमति ने स्वयं की थी। यद्यपि पुराणों में मगध
वंश के राजाओं की जो सूची दी गई है वह कालक्रम तथा राज्यों के क्रम से ठीक
नहीं है। परन्तु पुराणों से यह बात प्रमाणित हो जाती है कि पुणीक पुत्र
प्रद्योत के अवन्ति के राजा बनने पर मगध से बृहद्रथ वंश समाप्त हो गया था।
इसके समाप्त होने की अन्तिम तिथि छठी शताब्दी ईसा पूर्व है।
बिम्बिसार
(Bimbisar)
मगध सम्राट बिम्बिसार के वंश के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं।
इसके विषय में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं -
1. शिशुनाग वंश - पुराणों में शिशुनाग का उल्लेख प्राप्त होता है। इसी ने
शिशुनाग वंश की स्थापना की और इसके उत्तराधिकारियों में काकवर्ण, नन्दीवर्धन,
क्षामोजस, बिम्बिसार, अजातशत्रु, दर्शक नन्दीवर्धन तथा महानन्दन थे। मत्स्य
पुराण के आधार पर इस वंश के राजाओं ने 360 वर्ष राज्य किया।
आलोचना - डा. वी. ए. स्मिथ के अनुसार, "पुराणों में दिये गये शिशुनाग वंश के
कालक्रम को स्वीकार करते हैं लेकिन पुराणों में दी गई राज्यकाल की अवधि को
स्वीकार नहीं करते।''
अश्वघोष के अनुसार, "बिम्बिसार हर्यक वंश का था, शिशुनाग वंश का नहीं।''
2. हर्यक वंश - ईसा के पूर्व पंचवी और छठी शताब्दी में मगध का सिंहासन पुराण
प्रसिद्ध शिशुनाग राजाओं के अधिकार में था। पुराणों की सूची के अनुसार वह
पहला राजा था। बौद्ध लेखकों ने राजाओं की सूची में शिशुनाग का नाम बहुत पीछे
रखा है और वे उस वंश को दो हिस्सों में बांटते हैं। प्रमाण के अनुसार केवल
दूसरा हिस्सा जिसमें शिशुनाग और उसके पुत्र तथा पौत्र हैं वही शिशुनाग वंश
है।
हर्यक वंश के विषय में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं -
1. महावंश के अनुसार शिशुनाग स्वयं एक वंश का संस्थापक था और वह बिम्बिसार के
बाद पदारूढ़ हुआ।
2. पुराणों के अनुसार शिशुनाग प्रद्योतों की कीर्ति को समाप्त करेगा।
प्रद्योत बिम्बिसार का समकालीन था। उक्त विचार यदि वायुपुराण का ठीक है तो
शिशुनाग का काल चण्ड प्रद्योत के बाद होगा क्योंकि प्रद्योत और बिम्बिसार
समकालीन थे।
3. बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने वैशाली की सर्वप्रथम विजय की थी। पाली के
उद्धरणों के अनुसार शिशुनाग ने वैशाली को अपनी राजधानी बनाया था। अतः स्पष्ट
है कि शिशुनाग के पूर्व अजातशत्रु हुआ। इस प्रकार बिम्बिसार के पहले शिशुनाग
नहीं हो सकता।
4. शिशुनाग द्वारा राजगृह छोड़ देने पर उसकी अवनति प्रारम्भ हो गयी थी। यह
उल्लेख पाली ग्रन्थ महालंकारवत्थु से प्राप्त होता है। जैसाकि विदित है कि
बिम्बिसार और अजातशत्रु के समय में राजगृह अपनी उन्नति के शिखर पर थी। अतः
शिशुनाग इन दोनों के पूर्व नहीं हो सकता।
5. शिशुनाग के पुत्र कालाशोक ने पाटलिपुत्र की स्थापना की थी परन्तु यह राजा
मगध सम्राट बिम्बिसार के पूर्व का था तो उस समय पाटलिपुत्र का कोई निशान नहीं
था जबकि पाटलिपुत्र की स्थापना बिम्बिसार के वंशज दाथिन ने की थी।
अतः स्पष्ट है कि बिम्बिसार हर्यक वंश का था न कि शिशुनाग वंश का। डा. आर.
के. मुकर्जी भी बिम्बिसार को हर्यक वंश का सिद्ध करते हैं।
डा. भण्डारकर के अनुसार, "बिम्बिसार प्रारम्भ में एक सेनापति था परन्तु उसने
वज्जियों को परास्त करके अपना एक स्वतन्त्र राज्य तथा नवीन वंश की स्थापना की
थी।'' परन्तु यह कथन समीचीन नहीं प्रतीत होता है क्योंकि महावंश के अनुसार
बिम्बिसार के पिता ने 15 वर्ष की आयु में उसका राजतिलक किया था।
टर्नर तथा एन. एल. के अनुसार बिम्बिसार के पिता का नाम पट्टीय था। तिब्बत
वासी महापद्म और पुराण उसे क्षेनजित तथा सात्रोज कहते थे| परन्तु वास्तविक
नाम के अतिरिक्त एक अन्य नाम श्रोणिक भी था।
वैवाहिक सम्बन्ध - बिम्बिसार एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसने वैवाहिक
सन्धियों और विजय की अपनी नीति से मगध के मान और यश को बढ़ाया। उसकी एक रानी
कौशल के राजा प्रसेनजित की बहिन थी। दहेज के रूप में उसे काशी में एक गाँव
मिला था। इस गाँव से एक लाख रुपये की आमदनी प्राप्त होती थी।
बिम्बिसार ने लिच्छवि राजा चेटक की पुत्री चेल्लना से विवाह किया था। उससे
मित्रता करने के फलस्वरूप उसे नेपाल तक साम्राज्य विस्तार करने का अवसर
प्राप्त हुआ।
मगध सम्राट बिम्बिसार द्वारा मद्रदेश के राजा की राजकुमारी खेमा से विवाह का
उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ महाबग्ध के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियां
थीं।
बिम्बिसार ने इन कूटनीतिक विवाहों के द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया
जिसके फलस्वरूप उसे अपना साम्राज्य स्थापित करने में अपार सहायता मिली।
बिम्बिसार के पुत्र— जैन लेखकों के अनुसार बिम्बिसार के पुत्र थे - अजातशत्रु
हल्ल, वेहतल, क्षभय, नदीसेन और वेधकुमार। पहले तीन पुत्र चेटक की पुत्री
चेल्लना के और चौथा लिच्छिवि आम्रपाली का पुत्र था। बौद्ध ग्रन्थों के लेखक
बिम्बिसार के पुत्रों में अजातशत्रु, विमल कोण्डना, बेहल्ल और शीलवर्त को
बतलाते हैं।
बिम्बिसार को अपने-अपने पुत्रों से पर्याप्त कष्ट प्राप्त होने का भी उल्लेख
प्राप्त होता होता है।
साम्राज्य विस्तार - बिम्बिसार ने अपना साम्राज्य काफी दूर तक बढ़ाया था।
तक्षशिला - तत्कालीन स्थिति में तक्षशिला का राजा अपने शत्रओं से घिरा हआ था।
उसने अपना दूत भेजकर बिम्बिसार से सहायता की प्रार्थना की। बिम्बिसार ने
राजदूत का स्वागत तो किया पर किसी भी प्रकार की सहायता का वचन नहीं दिया। अतः
इससे सिद्ध होता है कि बिम्बिसार तत्कालीन परिस्थितियों में पड़कर अपना
साम्राज्य बढ़ाना चाहता था।
आवन्ति पर आक्रमण - बिम्बिसार ने अवन्ति राज्य पर आक्रमण कर उसके राजा
खेमचन्द को पराजित किया । दीर्घ निकाय और महाबग्ग से अंग विजय की पुष्टि होती
है। अंग विजय से बिम्बिसार की कीति में चार चाँद लग गये।
काशी - वैवाहिक सम्बन्ध द्वारा काशी उसे प्राप्त हुआ था। वह भी प्रसिद्ध तथा
सम्पत्तिशात था जिससे उसे लाखों रुपये की आय होती थी। अतः काशी मिल जाने से
उसका यश काफी बढ़ गया।
बिम्बिसार के राज्य का क्षेत्रफल - मगध साम्राज्य में 80,000 गाँव थे जिनका
क्षेत्रफल 2700 वर्ग मील के लगभग था। बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार साम्राज्य
विस्तार 300 योजन था।
राजधानी - बिम्बिसार ने मगध की राजधानी के रूप में गिरिब्रज को चुना था। इस
पर प्रायः वज्जियों के आक्रमण हुआ करते थे। एक बार वञ्जियों के राज्य में आग
लगने के कारण कई ग्राम नष्ट हो गये थे। बिम्बिसार ने इस संकट की मुक्ति के
लिए इसके उत्तर में राजगृह नामक नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया
तथा बाद में वजिसंघ से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर शत्रुता का अन्त किया।
प्रशासन व्यवस्था
(System of Administration)
बिम्बिसार का प्रशासन बहुत ही उत्तम था। वह अपने कर्मचारियों पर कड़ी नजर
रखता था। वह कार्यकुशल कर्मचारियों को पुरस्कार तथा अयोग्य कर्मचारियों को
दण्ड देता था।
पदाधिकारियों की नियुक्ति - उसने अपने कार्य को सरल तथा प्रशासन को दृढ़
बनाने के लिए पदाधिकारियों की नियुक्ति की। उसके उच्चधिकारी 'राजभट' चार
श्रेणियों में विभक्त थे जिन्हें सेनापति, सेनानायक, महामात्र तथा उपराजा आदि
कहा जाता था।
ग्राम व्यवस्था - ग्रामों की व्यवस्था का भार ग्रामिणी पर होता था जो सारी
ग्रामीण व्यवस्था की देखभाल करता था। बौद्ध ग्रन्थ महाबग्ग के अनुसार समस्त
ग्रामों के ग्रामिक अथवा ग्रामिणी उसकी सभा में उपस्थित हुआ करते थे।
न्याय व्यवस्था - बिम्बिसार अपराधियों को तत्काल दण्ड देता था। उसके दण्ड
विधान अत्यन्त कठोर थे। अपराधियों को कैद की व्यवस्था और अपराधियों को कोड़े
मारना, छापा लगाना, फाँसी देना, पसलियाँ तोड़ना और जीभ काटना आदि दण्ड दिये
जाते थे।
प्रान्तों की स्वायत्तता - बिम्बिसार के प्रान्तों को पर्याप्त मात्रा में
स्वतन्त्रता प्रदान की। उसने युवराजों को प्रान्तों का अधिकारी बनाया गया,
प्रशासनिक कार्यों में पुत्रों से सहयोग लिया। इसके अधीनस्थ मण्डलीय राजाओं
का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
प्रजाहितार्थ कार्य - बिम्बिसार ने अपने राज्य के 80 हजार ग्राम प्रमुखों की
सभा बुलाकर ग्रामीण समस्याओं और उनके निराकरण पर विचार-विमर्श किया। फलस्वरूप
यातायात के साधनों को सुधारा गया और कुशाग्रपुर के जल जाने के बाद नये
राजप्रासाद का निर्माण कराया गया।
बिम्बिसार का धर्म - बिम्बिसार एक सहिष्णु सम्राट था। महात्मा बुद्ध उसके
मित्र थे। स्वतः भगवान बुद्ध अपना धर्म प्रचार करते हुए मगध आये। बिम्बिसार
ने वैणुवन भगवान बुद्ध (अर्थात् बौद्ध संघ) को दान कर दिया था। जैन ग्रन्थ
उत्तर ध्यानसूत्र के अनुसार महावीर स्वामी से भण्डीकुक्षी चैत्य में अपनी
रानियों, कर्मचारियों एवं सम्बन्धियों सहित भेंट करने गया और उनका अनुयायी बन
गया। ब्राह्मणों के अनुसार बिम्बिसार वैदिक धर्म का अनुयायी था।
विद्या और कला - उसकी राजसभा में जीवन नामक वैद्य का उल्लेख प्राप्त होता है
जिसने तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त की थी। वह आयुर्वेद की कौमार भृत्य शाखा
का विशेषज्ञ था। इसके अतिरिक्त बिम्बिसार ने कला के क्षेत्र में राजगृह के कई
भवनों को कलात्मक ढंग से निर्माण कराया था। तत्कालीन कला विशेषज्ञ जिसने
राजगृह में राजप्रसाद को कलात्मक ढंग से निर्मित किया था उसका नाम महागोविन्द
प्रसाद था।
शासनावधि - महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने 52 वर्ष राज्य किया था जिसे
प्रमाणित माना गया है। डा. आर. के. मुकर्जी उसका राज्य काल 603 ई.. पू. से
551 ई. पूर्व तक निश्चित करते हैं। डा. स्मिथ के अनसार इसने 582 ई.प. के 557
ई. प. तक 28 वर्ष राज्य किया।
बिम्बिसार की मृत्यु - बिम्बिसार के दीर्घजीवी होने के कारण उसका शासन
अत्यन्त लम्बा हो गया। फलस्वरूप उसका पुत्र अजातशत्रु जो महात्वाकांक्षी था
अधिक दिन प्रतीक्षा नहीं कर सका। अतः उसने अपने चचेरे भाई देवदत्त के साथ
षड्यन्त्र करके अपने पिता को बन्दी बना लिया। उसे अन्न और जल तक भी नहीं
दिया। इस तरह बिम्बिसार की मृत्यु हो गयी। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार यह ज्ञात
होता है कि उसे अपने इस कार्य पर पर्याप्त खेद हुआ और इससे आप त्राण के लिए
भगवान बुद्ध की शरण में गया जहाँ उसे शांति प्राप्त हो सकी।
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