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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


अजातशत्रु (Ajatshatru)
मगध सम्राट बिम्बिसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अजातशत्रु गद्दी पर बैठा जिसका दूसरा नाम कुणीक था। इसने 551 ई. पू. से लेकर 519 ई. पू. तक राज्य किया। इसी के राज्य काल में हर्यक वंश अपने गौरव के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा। अपनी विजयों से अजातशत्रु ने अपने वंश की शान और यश को बढ़ाया।

साम्राज्य विस्तार
(Extension of Kingdom)

अजातशत्रु ने मगध सिंहासनारूढ़ होने के बाद अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्धों को प्रारम्भ किया जिसमें उसे अपार सफलता मिली तथा साम्राज्य भी विस्तृत हुआ।

कोशल राज्य से युद्ध— कोशल राज्य की पुत्री कोशल देवी ने अपने पति बिम्बिसार की मृत्यु से दुःखी होकर अपने प्राण त्याग दिये। तत्कालीन कोशल का राजा प्रसेनजित था। कोशल देवी उसकी बहन थी। इसलिए उसने बिम्बिसार को दहेज में दिया हुआ काशी ग्राम वापस ले लिया। फलतः दोनों में संघर्ष प्रारम्भ हो गया। युद्ध में कई उतार-चढ़ाव आये। एक बार कोशल के राजा को परास्त होकर राजधानी की ओर भागना पड़ा और अजातशत्रु भी इसी युद्ध में बन्दी बनाया गया। परन्तु बाद में प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से करके मित्रता स्थापित की। इस प्रकार से मगध साम्राज्य में काशी को मिला लिया गया।

प्रमाणों के आधार पर यह भी ज्ञात होता है कि कोशलराज के सेनापति ने उसे गद्दी से हटाकर उसके उत्तराधिकारी विडुडाभ को राजा बनाया। कोशलराज अपने दामाद अजातशत्रु से सहायता लेने मगध गया, पर रास्ते में सर्दी लगने के कारण मगध के राजद्वार पर ही उसकी मृत्यु हो गयी।

वैशाली से युद्ध— वज्जि संघ का सबसे शक्तिशाली वैशाली राज्य था। इसमें आठ गण सम्मिलित थे। इनसे मगध साम्राज्य का भय बना रहता था। बिम्बिसार ने इनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया था।

जैन लेखकों के अनुसार बिम्बिसार ने अपने पुत्र हल्ल और बेहल्ल को अपना हाथी शेषनाग तथा 13 लारियों वाला मोती का हार दे दिया था। ये दोनों राजकुमार वैशाली की राजकुमारी चेल्लना के पुत्र थे। अजातशत्रु जब गद्दी पर बैठा तब उसने हाथी, हार तथा राजकुमारों को लौटाने के लिए कहा परन्तु वैशाली के राजा चेतन ने इन सबको वापस करने से इन्कार कर दिया। फलस्वरूप युद्ध प्रारम्भ हो गया।

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार मगध और वज्जि संघ के बीच गंगा नदी बहती थी। इस नदी के तट पर एक सोने की खान तथा उपयोगी बन्दरगाह था। इस पर दोनों का समान अधिकार था। परन्तु दो वर्षों तक वज्जि संघ इसका उपयोग कर रहा था। अतः अजातशत्रु ने अपने अधिकार की रक्षा के लिए वञ्जि संघ पर आक्रमण कर दिया।

अजातशत्रु को लिच्छवियों की शक्ति का ज्ञान था। अतः उसने कूटनीति के द्वारा पराजित करने का निश्चय किया। उसने अपने ब्राह्मण मन्त्री से संघर्ष कर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। उसने जाकर वञ्जि संघ में शरण ली और समय पाकर संघ में भेद पैदा कर दिया। फलतः हाथ आया देखकर अजातशत्रु ने लिच्छवियों पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अजातशत्रु को पद्मावती ने भाग लेने के लिए उकसाया। यह युद्ध 16 वर्षे तक चलता रहा।

भगवान बुद्ध ने लिच्छवियों के बारे में कहा था कि वे तब तक अजेय हैं जब तक वे सभी गणतन्त्र की सभी शर्ते पूरी करते हैं जैसे - जल्दी-जल्दी परामर्श करना और नीति की एकता, अन्य परम्पराओं, संस्थाओं और पूजा आदि का पालन, वयोवृद्धों का मान, स्त्रियों, और सन्यासियों का आदर परन्तु भाष्कर द्वारा फूट डालने के 3 वर्ष के बाद ही वैशाली को विजय कर लिया गया।

अजातशत्रु स्वयं लिच्छवियों के बारे में कहता है जोकि उसके कटु विचारों को चरितार्थ करते हैं - "मै इन वज्जियों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर दूंगा चाहे वे कितने भी सशक्त और बलवान हों, और उन्हें मिट्टी में मिला दूंगा।'

अवन्ति के साथ संघर्ष— मज्झिल निकाय से ज्ञात होता है कि अवन्ति के राजा चण्डप्रद्योत ने बिम्बिसार की मृत्यु का बदला लेने का निश्चय किया था और इस युद्ध में अजातशत्रु को अपनी राजधानी की रक्षा का प्रबन्ध करना पड़ा था। परन्त इस युद्ध की तिथि का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।

अजातशत्रु के अस्त्र-शस्त्र - अजातशत्रु ने युद्धों में दो नये प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जो निम्नलिखित थे -

1. महाशिलाकण्टक— यह एक प्रकार का अपक्षेपी था जिससे बड़े-बड़े पत्थर फेंके जाते थे।
2. रथमूसल— यह एक प्रकार का स्वचलित यन्त्र था क्योंकि यह घोड़ों और चालक के बगैर ही चलता था। शायद मध्ययुग के यन्त्रों की भाँति एक व्यक्ति इसके अन्दर छिपा रहता था और पहिए घुमाता था। इसके बारे में बड़ा ही अच्छा वर्णन होर्नल महोदय ने किया।

अजातशत्रु का धर्म— प्रारम्भ में अजातशत्रु का झुकाव जैन धर्म की ओर था परन्तु कुछ समय बाद वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया, परन्तु इस सम्बन्ध में साक्ष्यों का अभाव है। अतः उचित यही प्रतीत होता है कि इसे दोनों धर्मों से श्रद्धा थी। जैन ग्रन्थों के अनुसार वह अपनी पत्नी सहित महावीर स्वामी के दर्शन के लिए वैशाली गया था। बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उसे अपने पिता की हत्या से काफी पश्चाताप हुआ था और उसने अपना अपराध महात्मा बुद्ध के सम्मुख जाकर स्वीकार किया था जिससे उसे सन्तोष प्राप्त हआ। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात जो बुद्ध सभा राज सप्तपणि गुफा में हुई थी, उसका निर्माण अजातशत्रु ने ही कराया था। महापरिनिर्माण सूत्र से विदित होता है कि अजातशत्रु ने उनके कुछ अवशेषों के ऊपर राजगृह में एक स्तूप बनवाया था।

शासनावधि— बौद्ध साहित्य के अनुसार अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक राज्य किया और पुराणों के अनुसार 15 वर्ष राज्य किया।

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