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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


प्रश्न 2 - सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत पर सिकन्दर के आक्रमणों के प्रभाव की समीक्षा कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर क्या राजनीतिक प्रभाव पड़ा ?
2. सिकन्दर के आक्रमण के ऐतिहासिक प्रभाव बताइए।
3. सिकन्दर के आक्रमण के व्यापारिक प्रभाव बताइए।
4. सिकन्दर के आक्रमण के सांस्कृतिक प्रभाव बताइए।
5. सिकन्दर के आक्रमण के कोई स्थाई प्रभाव नहीं हुए, क्यों ?

उत्तर -

सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव
(Effect of Alexander's Invasion on India)

सिकन्दर भारतवर्ष में 18 मास रहा और उसके वापस लौटते ही उसका सम्पूर्ण साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। इस आक्रमण के प्रभाव के बारे में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं।

सिकन्दर के भारतीय अभियान की महत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर भी कहा गया है और कम भी कहा गया है। अतः स्पष्ट है कि भारत पर यूनानी आक्रमण का पूर्ण प्रभाव तो नहीं बल्कि संक्षिप्त प्रभाव अवश्य रहा। डा. स्मिथ के अनुसार इस आक्रमण का प्रभाव भारत पर बहुत कम पड़ा। इसी से भारतीय साहित्य में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसका विस्तारपूर्वक उल्लेख यूनानी साहित्य में मिलता है। इस प्रकार यह भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण घटना है। यद्यपि इसका कोई स्थायी प्रभाव नहीं मिलता फिर भी इसने भारतीय जनजीवन को सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अवश्य प्रभावित किया।

राजनीतिक प्रभाव
(Political Impact)

1. एकता की भावना का विकास— सिकन्दर ने उत्तर-पश्चिम के छोटे-छोटे राज्यों को नष्ट कर दिया। इससे देश में एकता की भावना का विकास हुआ। डा. आर. के मुकर्जी के अनुसार, "सिकन्दर के आक्रमण से भारतवर्ष के राजनैतिक एकीकरण को प्रोत्साहन मिला। एकीकरण के मार्ग में बाधक पौरव, अभिसार, तक्षशिला इत्यादि राज्य बड़े राज्यों में विलीन हो गये। ये परिस्थितियाँ एक महान भारतीय साम्राज्य के उदय के लिए अत्यन्त अनुकूल थीं। चन्द्रगुप्त ने शीघ्र ही ऐसे एक साम्राज्य की स्थापना की।

2. मौर्य साम्राज्य स्थापित करने में सहायक—  सिकन्दर के आक्रमण के पश्चात् छोटे-छोटे राज्यों की स्थिति दयनीय हो गयी थी। उसी समय मगध के सिंहासन पर चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय हुआ और उसने इनको मिलाकर विशाल साम्राज्य की स्थापना की।

3. नवीन नगरों की स्थापना— जिन नगरों की स्थापना सिकन्दर ने की थी वह आगे चलकर काफी महत्वपूर्ण साबित हुए।

4. सेना का संगठन दोषपूर्ण - यूनानी आक्रमण से भारतीयों को यह ज्ञात हो गया कि उनकी सेना का दोषपूर्ण संगठन ही पराजय का करण था। कुछ विद्वानों के अनुसार भारतीयों ने यूनानी युद्धकौशल को अपनाया परन्तु डा. वी. ए. स्मिथ इसे स्वीकार नहीं करते।

ई. आर. नेवान राजनीतिक स्थिति के बारे में अपना मत व्यक्त करते हैं कि "भारत पर यूरोपीय आक्रमण इतना बड़ा था कि उसके बहुत गहरे प्रभाव पड़े। अन्य विदेशी आक्रमणों की भाँति इसने भी आन्तरिक बाधाओं को तोड़ दिया जिनके कारण देश के एकीकरण में रुकावट पड़ रही थी। स्वतन्त्र जातियों के समूह भिन्न-भिन्न हो गये जिन्होंने दूसरी राजनैतिक प्रणालियों से अलग ही जीवन व्यतीत किया था। छोटे-छोटे राज्य बड़े राज्यों में मिला दिये गये और ऐसा ही एक बड़ा राज्य सिकन्दर ने पौरव को दिया। कुछ ही वर्षों बाद जब मौर्य साम्राज्य ने महान भारतीय साम्राज्य की नींव रखी तो सिकन्दर के इस कार्य से पर्याप्त सहायता मिली।

ऐतिहासिक प्रभाव
(Historical Impact)

1. विदेशों से सम्पर्क— सिकन्दर के आक्रमण से भारत का अन्य देशों के साथ सम्पर्क हुआ। डा. वी. ए. स्मिथ के अनुसार, "सिकन्दर ने पूर्व और पश्चिम के बीच की दीवार को तोड़ दिया। संचार के चार रास्ते निकाले, तीन भूमि के रास्ते और चौथा समुद्र का रास्ता। भूमि के ये रास्ते काबुल, विलोचिस्तान में मुल्ला कादर्श और गौडोसिया से निकलते थे। नीरकस से मकरान के तट के इर्द-गिर्द घूमकर समुद्री मार्ग को ढूँढ निकाला और सिद्ध किया कि स्थानीय जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् ऐसे रास्ते में कोई कठिनाई बाकी नहीं रहती। परन्तु हैवेल का कथन है कि "यह कार्य सिकन्दर के पूर्व ईरानियों ने किया था।''

2. निश्चित तिथिक्रम का ज्ञान— सिकन्दर के आक्रमण के बाद हमें कालक्रम तिथियों की निश्चित जानकारी प्राप्त होती है जिससे भारतीय इतिहास को क्रमबद्ध करने में पर्याप्त सहायता मिलती है।

व्यापारिक तथा वाणिज्य की दृष्टि से प्रभाव
(Impact from the Point of View of Trade and Commerce)

1. नवीन मार्गों द्वारा व्यापार— सिकन्दर के आक्रमण के फलस्वरूप कुछ नये मार्गों का ज्ञान हआ जिनसे आगे चलकर भारत का पश्चिम के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गया। इन तीन स्थल तथा एक जल मार्ग का उल्लेख डा. वी. ए. स्मिथ ने किया है।

2. व्यापार में दृढ़ता— भारत को यूनान और मिस्र से व्यापारिक आदान-प्रदान प्राप्त हो गया था तथा व्यापारिक स्थिति को नियमित और सक्रिय बनाने के लिए कुछ सिक्कों का भी प्रचलन किया गया। क्योंकि सिकन्दर के आक्रमण के बाद बहुत सा माल विदेशों से भारत आने लगा।

डॉ. आर. सी. मजूमदार ने इस विषय में लिखा है कि "जिन यात्राओं और अभियानों की सिकन्दर ने योजनाएं बनाईं उनसे समकालीन व्यक्तियों का दृष्टिकोण विकसित हुआ और संचार के नये साधन बने तथा वाणिज्य-व्यापार और समुद्री यात्रा के नये मार्ग खोल दिये। जिन उपनिवेशों की सीमान्त प्रदेश में विदेशियों ने स्थापना की उन्हें मौर्यों ने सम्भवतः पूरी तरह विनष्ट नहीं किया। मगध के महान सम्राट के यवन कर्मचारी उसी प्रकार उसकी सेवा में लगे रहे जिस प्रकार वे पर्सपोलिस के महान सम्राट की सेवा करते थे। मगध के पतन के पश्चात् पावन साहसिक्कों ने उत्तर-पश्चिम में अपने राज्य बना लिए।

सांस्कृतिक प्रभाव
(Cultural Impact)

1. वैवाहिक सम्बन्ध - सिकन्दर ने अपने बहुत से सैनिकों के विवाह भारतीय तथा ईरानी स्त्रियों के साथ कराये। उसका यह अनुमान था जो इनसे सन्तान उत्पन्न होगी वे मेरे लक्ष्य को पूरा करेंगी। इससे सिकन्दर के उद्देश्य की पूर्ति तो नहीं हुई बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान अवश्य हुआ।

2. मुद्राओं का निर्माण - भारतीयों ने यूनानियों की मुद्राओं को बनाने का तरीका सीखा क्योंकि भारत में मोटे और आकारहीन सिक्के इसके पूर्व प्रचलन में थे। यूनानी दीनार को भारतीय दम का ही रूपान्तर विद्वानों ने स्वीकार किया है।

3. भारतीय दार्शनिक महत्व स्वीकार - यूनानियों ने भारतीय दार्शनिक महत्व स्वीकार किया। इन्होंने आत्मा, पुनर्जन्म तथा कर्म के सिद्धान्तों को ग्रहण किया। यूनानी दार्शनिक पैथागोरस पर इस क्षेत्र में भारतीय प्रभाव है।
 
4. सिक्कों का प्रचलन - सिकन्दर ने अपने भारतीय विजित क्षेत्र में सिक्के भी चलाये। इतिहासकार प्लूटार्क ने इसका समर्थन किया है।

5. कला पर प्रभाव - सिकन्दर के आक्रमण के फलस्वरूप गन्धार कला का विकास हुआ। परन्तु विद्वानों का यह तर्क उचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि गन्धार कला का विकास पर्याप्त समय बाद हुआ। इतना अवश्य है कि भारतीय कला पर कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पड़ा। कनिष्क ने बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियाँ बनाने के लिए ग्रोकोबैक्ट्रियन कलाकारों को भारत बुलाया । इन मूर्तियों में भारतीय और यूनानी शैली का आभास मिलता है।

व्यापक या कम प्रभाव (Exhaustive or Less Impact) - पॉल मेसन-ओर्सेल ने कहा है कि, "सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव प्रत्येक क्षेत्र में पड़ा तथा उसने यह भी कहा कि "सिकन्दर के भारतीय अभियान की महत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर भी कहा गया है और कम भी कहा गया है। इसका भारत के भाग्य पर कोई निर्णायक प्रभाव नहीं पड़ा। इसके परिणाम थोड़ी देर तक ही रहे। फिर भी आठ वर्षों के यूनानी आधिपत्य से कई शताब्दियों तक यूनानी संस्कृति सभ्यता के क्षेत्र में एक मुख्य अंश रही और भारत के पश्चिमवर्ती प्रदेश में प्रशासन पर भी इसका पर्याप्त प्रभाव पड़ा। भूमध्य सागरीय सभ्यता का पंजाब और मध्य एशिया की सभ्यता से सीधा सम्बन्ध स्थापित हुआ और पूर्व और पश्चिम के मध्य में सैमिटिक जेबिलोनिया और ईरानी साम्राज्य दीवार के रूप में खड़े न रह सके। इन तथ्यों का केवल यूनानी या भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि विश्व के एकमात्र वास्तविक इतिहास में पर्याप्त महत्व है।"

स्थायी परिणाम नहीं
(No Permanent Effect)

सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसका कोई स्थायी परिणाम नहीं निकला जिसके कई कारण थे जो निम्नलिखित हैं -

1. सिकन्दर की 33 वर्ष की आयु में अकाल मृत्यु हो गयी।
2. सिकन्दर के जीवित रहने पर भारतीय क्षेत्र में आधिपत्य अवश्य बना रह सकता था पर ऐसा नहीं हुआ।
3. सिकन्दर 18 मास तक केवल युद्ध ही करता रहा जबकि उसकी प्रशासनिक व्यवस्था ठीक नहीं थी।
4. चन्द्रगुप्त मौर्य के उदय से पंजाब में यूनानियों का पतन शीघ्र हो गया।
उपर्युक्त विश्लेषण से कि भारत पर सिकन्दर की विजयों तथा अक्रमणों के प्रभाव का स्पष्ट ज्ञान होता है।

प्रश्न 3 - सिकन्दर के आक्रमण के समय उत्तर भारत की राजनीतिक दशा का वर्णन कीजिए।


सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न

1. सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी ?
2. सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत में कौन-कौन से राज्य थे ?
3. सिकन्दर द्वारा किये गये आक्रमण के समय भारत में 'कठ' राज्य की क्या स्थिति थी?

उत्तर -
उत्तर भारत की राजनीतिक दशा
(Political Condition of Northern India)

ईरान का हखामनी साम्राज्य अधिक समय तक कायम नहीं रहा। प्राचीनकाल में ग्रीस में अनेक छोटे-छोटे जनपदों की सत्ता थी जिन्हें ग्रीक लोग 'पोलिस' कहते थे। हखामनी सम्राट रषयार्श ने ईगियन सागर को पारकर इन ग्रीक राज्यों को जीतने का उपक्रम किया था। यद्यपि ये ग्रीक राज्य ईरान के अधीन होने से बचे रह गये, पर वे लम्बे समय तक अपनी स्वतन्त्रता को कायम नहीं रख सके। जिस प्रकार उत्तरी बिहार के वज्जि आदि गणराज्यों की स्वतन्त्रता का मगध के विजिगीषु राजाओं द्वारा अन्त किया गया, वैसे ही मैसिडोनिया (जो ग्रीक जनपदों के उत्तर में था) के राजाओं ने ग्रीस के विविध राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था, उसका नाम फिलिप (चौथी सदी ई. पूर्व) था। वह मगध के नन्द वंशीय राजाओं का समकालीन था । पूर्वी भारत में जो काम महापद्मनन्द ने किया था, पाश्चात्य जगत में फिलिप ने उसी का अनुसरण किया और ग्रीस के विविध जनपदों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। सिकन्दर के आक्रमण के समय निम्नलिखित राज्य थे—

1. अलपेशियन— अलोशांग और कुनार नदियों की घाटी में इस जाति का राज्य था। सिकन्दर के साथ इस जाति का भयंकर युद्ध हआ। इस युद्ध में सिकन्दर ने 40 हजार व्यक्तियों को बन्दी ब लाखों पशुओं को लूट लिया।

2. अस्सेकेनोस— यह राज्य सिन्धु नदी के पूर्व में था। मारकन्द दर्रे के निकट मरसम इसकी राजधानी थी। यह स्थान सुरक्षित होने के कारण इस जाति के लोगों ने सिकन्दर से डटकर मुकाबला किया था।

3. अयगु रेइना गौर— यह राज्य पंच गौर नदी की घाटी में स्थित था।

4. नीसा— काबुल तथा सिन्धु नदियों के मध्य में यह राज्य स्थित था। यहाँ पर गणतन्त्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी।

5. तक्षशिला— सिन्धु और झेलम नदियों के मध्य में यह राज्य स्थित था । यहाँ का राजा आम्भि था। इसमें और पड़ोसी पुरु में आपसी वैमनस्य था। आम्भि ने पुरु के विरुद्ध सिकन्दर का साथ दिया।

6. पौरव राज्य— झेलम और चिनाव नदियों के मध्य में यह राज्य स्थित था। यहाँ पर उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा पुरु राज्य करता था। देशभक्त व अदम्य उत्साही होने के कारण सिकन्दर के साथ भयंकर युद्ध होने के बाद भी सिकन्दर ने इसे अपना मित्र बना लिया।

7. पश्चिमी गन्धार— यह एक शक्तिशाली राज्य था। सिकन्दर ने बड़ी ही कठिनाई से एक मास में इसे जीता था। विद्वान इसका समीकरण पुष्करावती के साथ करते हैं। इसकी राजधानी गाँधार थीं।

8. अरसेक्स या उरक्षा— यह राज्य आधुनिक हजारा जिले में स्थित है।

9. अभिसार— इस राज्य के अन्तर्गत काश्मीर राज्य का पश्चिमी भाग आता था। अभिसार नरेश ने भी सिकन्दर के सामने आत्मसमर्पण किया था।

10. कठ— रावी और व्यास नदियों के बीच में स्थित होने के कारण यह राज्य बड़ा ही सुरक्षित और शक्तिशाली राज्य था। यहाँ गणतन्त्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी। यह सौन्दर्य प्रेमी होने के कारण सर्वाधिक सुन्दर व्यक्ति को अपना राजा निर्वाचित करता था। यह लोग युद्ध में प्राण त्याग करना अपना भाग्य समझते थे और विवाह आदि में स्त्रियाँ और पुरुष स्वतन्त्र थे। इनके यहाँ सती प्रथा का प्रचलन भी था। कठ राज्य की राजधानी सांगल थी। सिकन्दर ने बड़ी ही कठिनाई से इस राज्य पर विजय प्राप्त की थी।

11. अड्रेस्टाई— यह राज्य रावी नदी के पूर्व में था।

12. ग्लोगनिदाइ— इस राज्य की स्थिति भी चेनाव और रावी नदियों के मध्य में बताई जाती है।

13. सौभूति - यह राज्य झेलम नदी के तट पर था।

14. सिबोई - यह राज्य भी झेलम और चेनाव नदियों के मध्य में था।

15. फेगलस - यह राज्य रावी और व्यास नदियों के मध्य में स्थित था। यहाँ भी गणतंत्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी।

16. मालवा - यह राज्य रावी के निचले भाग में स्थित था। यह भी एक गणतन्त्र था। यूनानी लेखकों ने इसे मल्लोई नाम से उद्धृत किया। पाणिनि ने इनके लिए वार्ता शस्त्रोपजीवी शब्द का प्रयोग किया। क्षुद्रक और मालव लोगों ने मिलकर सिकन्दर का सामना किया था। परन्तु वीरता से लड़ने के बावजूद भाग्य ने साथ नहीं दिया और विजयश्री सिकन्दर को प्राप्त हुई।

17. क्षुद्रक - झेलम और चेनाव के संगम के नीचे क्षुद्रक लोगों का स्वतन्त्र गणराज्य था। सम्भवतः इस राज्य को सिकन्दर विजय न कर सका था अपितु उसने मैत्री स्थापित कर ली थी। इस राज्य का उल्लेख संस्कृत ग्रन्थों में मिलता है।
18. अम्बवष्ट - यह मालवों का शक्तिशाली गणराज्य था। इसके पास 60 हजार पैदल, 6 हजार घुड़सवार तथा 500 रथारोही थे। इसने वीरतापूर्वक सिकन्दर का सामना किया था।

19. सत तथा वसाति - यह दोनों गणराज्य चेनाव और रावी के संगम पर स्थित थे। इन्होंने सिकन्दर के आक्रमण से भयभीत होकर बिना युद्ध किए. आत्मसमर्पण कर दिया था।

20. उसिकनोई-पारिणी के अष्टाध्यायी में इस राज्य का उल्लेख भुचिकर्ण गण के नाम से हुआ है। डॉ. जायसवाल ने इसका सम्बन्ध 'उसी' गणराज्य से स्थापित किया है। यह राज्य वर्तमान समय में सिन्ध में स्थित है।

21. तायानप्रस्थ -' यह सिन्धु नदी के डेल्टा के पास स्थित था। यह राज्य भी सिकन्दर के आक्रमण से न बच सका।

22. शाम्ब - यह राज्य भूषिक राज्य का पड़ोसी था। इसकी राजधानी सिन्हमान थी।

23. ब्राह्मणक - यह राज्य भूषिक राज्य के दक्षिण में था। सिकन्दर के साथ युद्ध होने पर सिकन्दर ने यहाँ के लोगों का निर्दयतापूर्वक वध करा दिया था।

24. अगलस्सि - यह राज्य महाभारत में उल्लिखित अग्रेयग है। यह आधुनिक हिसार जिले में है। यहाँ के निवासियों को जब सिकन्दर के विरुद्ध विजय की आशा नहीं रही तो इन लोगों ने नगर में आग लगा दी और स्त्री, बच्चों सहित जल मरे।

25. मस्सनोई - यह राज्य सिन्ध तथा पंजाब नदियों के संगम के निचले हिस्से में स्थित था।
उपर्युक्त तथ्य से स्पष्ट है कि उत्तर भारत में तमाम छोटे-छोटे राजा होने के कारण राजनैतिक स्थिति अव्यवस्थित थी। इस अव्यवस्था का लाभ सिकन्दर ने उठाया और भारत विजय करने में उसे सहायता मिली।

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